** सुख के दिनों में दुख का दिन भूल जाता है । अगर यदा-कदा याद भी आता है तो मधुर स्मृति बनकर और इससे मनोरंजन होता है ।
पर दुख के दिन में सुख का दिन नहीं भूलता , उसकी याद और प्रबल हो जाती है ,और यही सहारा और धैर्य बनती है। **
** जैसे ध्रुव पर जाकर सभी देशांतर रेखाएं अपना कोण और दिशा खोकर एक बिंदु में परिवर्तित हो जाता है , वैसे ही ज्ञान की एक खास सीमा पार करने के बाद व्यक्ति को जीवों में अंतर नहीं दिखता । **
** दुर्योधनो को एक से एक मारक कुबुद्धि एवं कुकर्म होता है । और कृष्णो को एक से एक सुबुद्धि एवं सुकर्म ।
कुबुद्धि एवं कुकर्म अंततः दुर्योधनो का ही विनाश करता है , तथा सुबुद्धि एवं सुकर्म कृष्णों को विजयी तथा दुर्योधनो को पराजयी बनाता है **
** शरीर में कंपन भय से भी होता है , और क्रोध से भी । भय से उत्पन्न कंपन शिथिलता एवं कुंठा उत्पन्न कर नाश करता है । इसके विपरीत क्रोध से उत्पन्न कंपन गतिशीलता , उग्रता एवं गुप्त बुद्धि पैदा कर करो या मरो को चरितार्थ करता है **
** कोई भी सिद्धि या सफलता तीन मूल बातों पर निर्भर करती है। प्रथम योजना , दूसरा कर्म ( प्रयास ) और तीसरा धन **
** पूर्ण ज्ञान या विद्या निम्न प्रकार से अर्जित होता है।
1. देख कर ( आंख से )
2. सुनकर (कान से )
3.सूंघकर (नाक से )
4. चखकर ( जीभ से )
5.स्पर्श कर ( त्वचा से )
6. बोलकर या पढ़कर ( मुंह से )
7. लिखकर ( हाथ से )
क्रम संख्या 1 से 5 पूर्ण ज्ञान देता है इसलिए पांच ज्ञानेंद्रियां कहलाता है ।
जब-जब की क्रम संख्या 1,2,6,7 पूर्ण विद्या देता है । **
** निर्धारित समय में निर्धारित कार्य को पूरा करने वाला व्यक्ति को सफल पुरुष कहते हैं ,और फल को सफलता । **
** भीड़ जिसको आंखें होती है , पर दिखता नहीं । कान होता है ,पर सुनता नहीं । मस्तिष्क होता है एक नहीं अनेक , पर सभी में गोबर भरा होता है , समझता नहीं। और आश्चर्य की बात यह है कि इसको मुंह नहीं होता , लेकिन आवाजें अनेक होती है , सभी अल्प आयु और अलग-अलग । और इसका रूप एवं आकार हर देश के हर कोने और हर काल में एक सा ही होता है, तनिक सा भी फर्क नहीं होता। **
** किसी खास समय एवं खास स्थान पर सभी प्रकार की ऊर्जाओं की आवृत्तियों के कुल योग को प्रकृति कहते हैं ।**
** सफल , योग्य एवं सच्चा वैज्ञानिक नहीं किसी घटना या बात से इंकार करता है , और नहीं उसे आंख मूंद कर स्वीकार। इन्कार इसलिए नहीं करता कि कुछ भी संभव है । और स्वीकार तब तक नहीं करता जब तक वह तर्क ,जांच एवं प्रयोग पर खरा नहीं उतर जाए।
इसके बावजूद भी जो स्वीकार नहीं करता , वह नराधम वैज्ञानिक कुल का कलंक है । **
** तीव्र से तीव्र धावक चाहे वह पृथ्वी की परिक्रमा कुछ ही क्षण में पूर्ण करेने की क्षमता क्यों नहीं रखता हो यदि खेल के नियम के विपरीत दिशा में दौड़े तो एक साधारण धावक से भी पार नहीं पा सकता। वह लक्ष्य से दूर होता जाएगा। जबकि वह वास्तविक दृष्टिकोण से योग्य धावक है , लेकिन वैधानिक दृष्टिकोण से असफल धावक । उस व्यक्ति का भी यही हाल होता है जो योग्य होते हुए भी सामाजिक , नैतिक एवं वैधानिक नियम नहीं पालन करते यानी उल्टा चलते हैं। **
** परम मित्र एवं घोर शत्रु : -
जिसके कर्म से धन , विद्या ,बल ,नाम ,यश एवं बुद्धि का नाश हो , उसे घोर शत्रु कहते हैं । तथा जिसके सुकर्म और सहयोग से वृद्धि हो , उसे परम मित्र । **
** अलग या अलगाव :-
इसमें सर्वप्रथम मन अलग होता है , तब तन , और अंततः धन की अलगाव से इसकी पूर्णता होती है।**
** मित्रता का भेद या प्रकार : -
मित्रता का निम्न प्रकार है -
1.हेलो हाय
2. चाय-पान
3.रोटी
4. निवास
5. बेटी
6. आर्थिक लेनदेन
7. विश्वसनीयता
8. अंतरंग **
** अगर मेजबान अपने मेहमान के साथ वैसा ही स्वागत नहीं करता जैसा खुद वह मेहमान बनने पर चाहता है तो वह योग्य मेजबान नहीं ।
उसी प्रकार मेहमान अपने मेहमान से वैसा ही व्यवहार नहीं करता जब वह खुद मेजबान होता तो वह योग्य मेहमान नहीं । **
** सबसे बड़ी मूर्खता मूर्खों के बीच चतुर बनना। सबसे बड़ी चतुराई मूर्खों के बीच मूर्ख बनना । **
** ईश्वर एक ऐसी पूर्ण आस्था जो माता-पिता , पति-पत्नी , पुत्र-पुत्री , भाई-बहन और बंधु-बांधव की आस्था से भी ज्यादा विश्वासनीय होती है ।**
** खुशी कलह का व्युत्क्रमानुपाती होता है तथा शांति के समानुपाती । इसी प्रकार दुख कलह का समानुपाती होता है , तथा शांति के व्युत्क्रमानुपाती।
दूसरे शब्दों में -
खुशी = क × शांति = क × 1/कलह
दुख = क × कलह = क × 1/शांति
क= नियतांक **
** समानता का सिद्धांत ( Theory of similarity ) -
वस्तुओं के बहुत गुण एक सा होता है , बहुत से घटनाक्रम में भी समानता होती है । व्यक्तियों के चेहरा, गुण यहां तक कि हाव भाव भी मिलता है। इसे ही समानता का सिद्धांत कहते हैं । **
** शतरंज की चाल निम्नलिखित चार मूल सिद्धांतों पर आधारित है।
1. आगे पीछे
2.अगल-बगल
3. तिरछा
4. ढ़ाई घर । **
** समतुल्य विचार ( Thought equivalent )-
एक ही वस्तु को देखकर भिन्न भाषा , जगह के मानव उसे भिन्न नाम ( ध्वनि ) से पुकारते हैं । यह सिद्ध करता है कि उनके मन में विचार एवं भाव समान हैं , लेकिन उस वस्तु के निरूपण के लिए ध्वनि अलग-अलग है। इसे ही समतुल्य विचार कहते हैं। अर्थात भिन्न-भिन्न ध्वनियों के लिए मात्र एक और एक ही वस्तु के रूप का उपजा भाव। **
** अगर प्रचार द्वारा झूठ को भी मान्यता मिल जाए तो वह भी सत्य सा प्रतीत होता है। और कालांतर में सत्य हो जाता है , लेकिन इसकी उम्र दीर्घायु नहीं होती । **
** आश्चर्य : - ब्रह्मांड की प्रथम घटना , वस्तु एवं कार्य को आश्चर्य करते हैं । **
** वैज्ञानिक एवं साहित्यिक में अंतर यह है कि प्रथम ताड़ को तिल बनाता है , और दूजा तिल को ताड़ ।**
** शून्य जोड़ने से कुछ नहीं मिलता , लेकिन अनंत जोड़ने पर अनंत मिलता। **
** परम सरल रेखा होकर जो जहां से चलता है अनंत समय के बाद वहीं पहुंचता है **
** प्रकृति या तो नाश करती है अथवा विकास , विराम में कदापि नहीं रहती **
** अतीत सदा सुहावन , वर्तमान कभी मनभावन तो कभी अपावन और भविष्य सदा लुभावन होता है । **
** प्रश्न - ईश्वर क्या है ?
उत्तर - विश्वास ।
प्रश्न - सहयोग करता है ?
उत्तर - यदि विश्वास करते हो ।
प्रश्न - अगर नहीं ?
उत्तर - तो नहीं । **
** संबंध दो प्रकार का होता है ।
एक खून का , दूसरा विश्वास और व्यवहार का । दूसरा अधिक महत्वपूर्ण , सफल एवं विश्वासनीय होता है । **
** ईश्वर की परिकल्पना प्राया लोग ऊपर ही क्यों मानते हैं ? क्योंकि ऊपर सहज दृश्य है , और नीचे सहज अदृश्य। **
** लेन-देन निम्न ही तरह से किया जाता है , अर्थात इसका निम्न नाम है ।
1. कर्ज के रूप में
2. दान के रुप में
3.भीख के रूप में
4.सहयोग के रूप में
5. खरीद-विक्री **
**************** क्रमशः ****************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन 845453
E-mail er.pashupati57@gmail.com
Mobile 6201400759
My blog URL
Pashupati57.blogspot.com ( इस पर click करके आप मेरी और सभी रचनाएं पढ़ सकते हैं।)
******** ******** ********* |