बुधवार, 20 जुलाई 2022

पैसा ( भाग 3 )

पैसा अगर खरा है, सबकुछ संवारा है,
पैसा गर खोटा है, सबकुछ छोटा है।

कविता
पैसा ( भाग 3 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

( एक बार स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने पैसा पर कहा था -
टका धर्म: टका कर्म: टका हि परमं पदम्,
यस्य गृहे टका नास्ति हा टका टकटकायते।

कविवर गिरधर अपनी कुंडलियां कविता में लिखते हैं -
साईं इस संसार में मतलब का व्यवहार,
जबतक पैसा गांठ में तबतक ताके यार,
तबतक ताके यार यार संगहि संग डोले,
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोले। )

पैसा

पैसा भुजंग है, पैसा ही जंग है,
पैसा है संग है, नहीं है तंग है,
पैसा से रंग है , नहीं तो बेरंग है,
पैसा खुदाई है, पैसा जुदाई है।

पैसा बधाई है, पैसा हरजाई है,
पैसा जलाता है, पैसा बुलाता है,
पैसा भगाता है, पैसा खटाता है,
पैसा उठाता है, पैसा बिठाता है।

पैसा जंजाल है, नहीं है कंगाल है,
पैसा कठिनता है, पैसा से भिन्नता है,
नहीं है दीनता है, प्यार और खिन्नता है,
पैसा पुरातन से , पैसा सनातन से।

पैसा है बातों से, शादी कर खातून से,
पैसा हिसाब से, पैसा किताब से,
पैसा है ब्याज से, पैसा अनाज से,
पैसा संगीत से , पैसा है गीत से।

पैसा जुआरी का , पैसा मदारी का ,
पैसा बिहारी का , होता जोगाड़ी का ,
पैसा बरात है, नहीं जन्मजात है ,
पैसा मुसमात है , रहने पर तात है।

पैसा से नूर है, पैसा से हूर है,
इससे जो दूर है, लंपट लंगूर है,
पैसा व्यापार से, पैसा व्यवहार से,
पैसा सरकार से, पैसा बेगार से।

पैसा जुटाओ तुम, नंबर मिलाओ तुम,
थाक लगाओ तुम, बात न बनाओ तुम,
वह जो कंगाल है, श्वेत जिसका बाल है,
चिपका सा गाल है , बुरा सा हाल है।

पैसा चमकाएगा, ज्योति ले आएगा,
मोटा बनाएगा, दुर्दिन हटाएगा,
पैसा यदि पास नहीं, जीवन की आस नहीं,
पैसा दौड़ाएगा तन में गर सांस नहीं।

शिशु का पालक है , पैसा से बालक है,
नदी का नीर है, द्रौपदी का चीर है,
गड़बड़ घोटाला क्यों, पैसा का हल्ला क्यों ?
ढोलक पर आल्हा क्यों, रास का रसाला क्यों ?

विश्व संचालक क्या, जगत को पालक क्या ?
मानव आकर्षण क्या, जन-मन के दर्पण क्या?
श्रम के सार क्या, तन के आहार क्या ?
पत्नी के प्यार क्या, माता दुलार क्या ?

निर्धन की आशा क्या, पर्व चौमासा क्या ?
चमचा जुहार क्या, सावन फुहार क्या ?
हवा में उड़े कौन, शिखर को छुए कौन ?
मंद मुस्काए कौन, मीठ गीत गाए कौन ?

मेनका की आभा में, साड़ी के धागा में,
उर्वशी रम्भा में , चोटी में कंघा में,
सीपी के मोती में, साधु लंगोटी में,
खेलों की गोटी में, हीरा की ज्योति में।

सोना और चांदी में, सूती और खादी में,
साहब शहजादी में , अन्न और आबादी में,
रत्न और लाल में, साहू के माल में,
रंग और गुलाल में, टका टकसाल में।

राजा और रानी में, धनी मनी प्राणी में,
रूप की जवानी में, धातु कहानी में,
नाच और बाजा में, मीठा और खाजा में,
गहनों की धागा में, बड़ी बड़ी सभा में।

पैसा ही नाज है, पैसा ही बाज है,
पैसा का राज्य है, पैसा सरताज है,
पैसा की ताकत से मौसम बदलता है,
पैसा की ताकत से ह्रदय मचलता है।

पैसा की ताकत से हांडी बदलती है,
पैसा की ताकत से बुद्धि भी चलती है,
पैसा की ताकत से साधु फिसलता है,
पैसा की ताकत से कपटी उछलता है।

पैसा की गर्मी से निर्बल कड़कता है,
पैसा के कारण कलेजा धड़कता है,
पैसा के आने से सोना चमकता है,
पैसा के जाने से सबकुछ अटकता है।

बुद्धि की बातें भी लक्ष्मी सजाती है,
पैसा की कमी कवित्व भी सुखाती है,
पैसा की मंदी से वेग रुक जाता है ,
पैसा का आश्रय आवेग को बढ़ाता है।

पैसा का करतब जयंती सजाता है,
पैसा का महत महंती बनाता है ,
पैसा का भेदन अचूक कहा जाता है,
पैसा का छेदन संहार मचा जाता है।

पैसा का जोश यदि नाक काट डाला है,
पैसा का नोक उसे पुनः बिठा डाला है,
पैसा के मोद से खोभार महक जाता है,
पैसा के योग से आभार चहक जाता है।

पैसा से जितना तू , घृणा कर उतना तू ,
यही एक शक्ति है, जिसपर सबकी भक्ति है,
इसके आकर्षण से , इसके ही घर्षण से,
जगत मचलता है, धावक बन चलता है।

************* क्रमशः ******************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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