* गीत *
प्यार का लक्षण
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
जब दिन में सपना आए ,
जब मुख पे पसीना छाए,
जब नैना चार हो जाए ,
इकरार इसी को कहते हैं ,
सब प्यार इसी को कहते हैं।
भूल जाते प्रेमी जात पात ,
नहीं भाता है दाल भात ,
मन घूमता रहता पात पात ,
बाहर इसी को कहते हैं ,
सब प्यार इसी को कहते हैं ।
खोजते रहते ए आठ पहर ,
कैसे पा जाएं एक नजर ,
मन में उठती रहती है लहर ,
मन सोचता रहता आठों पहर ,
आंखें देखती रहती डगर ,
इंतजार इसी को कहते हैं ,
सब प्यार इसी को कहते हैं ।
मन ही मन प्रेमी मचलते हैं ,
निर्जन जगह को चलते हैं ,
कुछ मिट जाते , कुछ मिलते हैं ,
दीदार इसी को कहते हैं ,
सब प्यार इसी को कहते हैं।
कुछ सच्चा प्रेमी होते हैं ,
कुछ प्रेम भी अपना खोते हैं ,
कुछ हंसते हैं, कुछ रोते हैं ,
संसार इसी को कहते हैं ,
सब प्यार इसी को कहते हैं ।
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी ,प चंपारण ,बिहार ,भारत
Mobile 6201400759
E-mail er.pashupati57@gmail.com
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