मंगलवार, 28 जून 2022

आदमी ( भाग 2 )

अनुसंधानशाला से आदमी भाग 2 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कविता
आदमी ( भाग 2 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

आशियाना बसाते सही आदमी,
तोड़ उसको गिराए नहीं आदमी।
जो कर से कमाएं
मध्यम आदमी ,
जो बुद्धि लड़ाए
उत्तम आदमी ।
जो जी को चुराए अधम आदमी ,
जिनकी कृति अमर सर्वोत्तम आदमी।

नवधारा गिराए यही आदमी ,
नव मानव बनाए यही आदमी।
नवचेतन जगाए
सही आदमी ,
छल को ठेंगा दिखाए
सही आदमी ।
मथ के नदियों के पानी को पौरुष से जो ,
भर दे ज्योति दिशाओं में कर्मठ है वो।

इन पे माथा झुकाता सभी आदमी ,
ए हैं देवों में देव सुनो आदमी।
धैर्य इनमें बहुत है
सुनो आदमी ,
बैर इनको गैर है
सुनो आदमी।
मेरे मन की सहेली यही आदमी ,
खून बनके जिलाते यही आदमी।

बनके ऊर्जा जिलाते यही आदमी ,
मन में हिम्मत बढ़ाते यही आदमी ।
जिनमें है स्वाभिमान
सही आदमी ,
बिना पूछे जो जाए
नहीं आदमी ।
बिना परखे जो करता नहीं आदमी ,
जिसका हिम्मत सखा है वही आदमी।

जिनमें गैरत नहीं है केवल आदमी,
जिनमें हैरत भरा है मरल आदमी।
जाल संकट का काटे
सही आदमी,
जल संकट बिछाए
नहीं आदमी ।
मन की अग्नि बुझाए विरल आदमी ,
मन में अग्नि लगाए गिरल आदमी।

फूल से दामन फंसाते सभी आदमी,
जो है कांटा चबाते वही आदमी।
घनचक्कर में डाले
गिरल आदमी ,
चक्रपाणि कहते
विरल आदमी ।
ब्रह्म पैदा है करता नहीं आदमी,
ब्रह्म करता है पैदा सभी आदमी।

कुछ इनमें से बनते असल आदमी ,
कुछ इनसे बनते नकल आदमी ।
कुछ इनमें से बनते
गिरल आदमी,
कुछ इनमें से बनते
विरल आदमी ।
नहीं जन को बढ़ाओ सिर्फ आदमी ,
उसे शिक्षित बनाओ मूर्ख आदमी ।

किसे  गुरु बनाएं कहो आदमी ,
अपना चिंतन है गुरु सुनो आदमी।
भ्रम करता है पैदा
गिरल आदमी ,
कर्म करता है पैदा
विरल आदमी ।
सब्र खोने से बनता गिरल आदमी ,
सब्र रखता है हरदम विरल आदमी।

धैर्य होने से होता अभयआदमी ,
धैर्य होने से होता अजय आदमी।
धैर्य कारण ही करता
विजय आदमी ,
धैर्य छूटा तो होता है
क्षय आदमी।
धैर्य  अंतिम समय का कठिन आदमी,
धैर्य अंतिम समय का विजय आदमी।

धैर्य करता है मन को निर्भय आदमी,
धैर्य करता है मन को सबल आदमी।
गिरकर मिट जाए
मरल आदमी,
गिरकर टूट जाए
गिरल आदमी ।
गिर कर उठ जाए सरल आदमी ,
टूटकर जुट जाए विरल आदमी।

आंधियों में जो स्थिर अचल आदमी ,
विघ्न जिनको हिलाए विचल आदमी।
घोर गर्जन में अविकल
विरल आदमी,
घोर संकट से विचलित
गिरल आदमी।
काम बुद्धि से करता सफल आदमी,
तर्क लाता अमल में असल आदमी।

बिना सोचे है करता नकल आदमी,
फल पाने पर होता विकल आदमी।
दूसरों पर जो आश्रित
नहीं आदमी,
अपने पर जो आश्रित
वही आदमी।
काम कितना कठिन व विकट आदमी,
जिन्हें लगता सरल व निकट आदमी।

एक दिन वही होते अमर आदमी,
एक दिन वही  बनते अजय आदमी।
कुछ की बातों से होता
तरल आदमी,
कुछ की बोली में होता
गरल आदमी।
कुछ बाहर से होते सरल आदमी,
पर अंदर में रखते गरल आदमी।

कुछ बाहर से दिखते मरल आदमी,
पर अंदर से होते गिरल आदमी।
कुछ बाहर से होते
गरल आदमी,
पर अंदर से होते
सरल आदमी।
कुछ अंदर व बाहर सरल आदमी,
कुछ अंदर व बाहर गरल आदमी।

कुछ होते हैं बिल्कुल मौन आदमी,
कुछ कहना कठिन ए कौन आदमी।
कुछ ऐसे भी होते
सफल आदमी,
जिनके कर्मों को करता
नकल आदमी।
कुछ ऐसे भी होते विफल आदमी,
जिनके कर्मों से रहता अलग आदमी।

कुछ ऐसे भी होते सरल आदमी,
जिनकी संगति बनाती तरल आदमी।
कुछ की संगति में पीता
गरल आदमी,
कुछ की संगति में जीता
मरल आदमी।
कुछ की संगति से मिटता सरल आदमी,
कुछ की संगति से होता विरल आदमी।

***********  क्रमशः ****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
Mobile  6201400759

My blog URL
Pashupati57.blogspot.com  ( इस  पर click करके आप मेरी  और सभी रचनाएं पढ़ सकते हैं।)

**********       *********          ********







 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें