मंगलवार, 7 जून 2022

विचार ( भाग 7 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 7 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 7 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** जैसे नदी की प्रबल धारा को नाविक काट कर नौका को किनारा प्रदान कर देता है । परंतु हवा का प्रबल वेग को नहीं काट पाता और नौका मझधार में या तो डूब जाती है या भटक , उसी प्रकार यह जीवन नौका है ।  कुछ सज्ञ जानते हैं यह राह नाश और पतन की है , परंतु चाह कर भी नहीं छोड़ पाते , अपने को नहीं रोक पाते , लाचार हैं ।
इसको विज्ञ समय के हाथ का खिलौना कहते हैं , कुछ प्रारब्ध दोष कहते ।
परंतु भौतिक रूप से बिचारा या सोचा जाए तो यह मान , अभिमान , शान , स्वार्थ और लालच से उपजा फला फल है या प्रकृति आपदा । **


** मानव इसलिए सत्य नहीं बोलता क्योंकि वह सत्य को ढक कर उसका नाम सभ्यता और चतुराई रख दिया है। अतः कटु सत्य बोलने में कांप जाता है । जैसे कलम जब नंगी होती है तभी शब्द उगलती है , जब ढकी होती है तो वह पॉकेट में जाकर चुप रहती है । **


** सौंदर्य - जो नेत्र प्रिय हो और मन में आकर्षण पैदा करे 
इस आकर्षण को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है , नैसर्गिक और भौतिक
नैसर्गिक सौंदर्य -  इस आकर्षण से मैथुन इंद्रियों पर प्रभाव नहीं पड़ता , जैसे फूलों की सुंदरता , बच्चों का मधुर संसार वगैरह ।
भौतिक सौंदर्य - यह आकर्षण मैथुन इंद्रियों को प्रभावित करता है , जैसे नारी सौंदर्य वगैरह। **


** तार्किक दृष्टिकोण से तो नहीं कुछ सत्य है और नहीं असत्य है । क्योंकि सत्य और असत्य दोनों परब्रह्म का ही रूप है , यानी अनंत का अंश ।
परंतु लौकिक  दृष्टिकोण से जिसे आंख से प्रत्यक्ष देखा जाए वही सत्य है , नहीं तो कल्पना , भ्रम , विश्वास , फ़साना वगैरह।**


** रात्रि पृथ्वी की छाया है , तथा छाया तम का एक रूप और तम जिसमें आवृत्ति तथा समय शून्य हो ।  दूसरे शब्दों में प्रकाश और अंधकार का मिलन विंदू तम है। या बराबर बराबर प्रकाश और अंधकार मिलाने से जो प्राप्त होगा वह तम है। **


** योग्यता युक्त अहं स्वाभिमान कहाता  है , परंतु योग्यता रहित अहं अभिमान , शान , घमंड कहता है । प्रथम ऐश्वर्य, वैभव ,अमरता देता है । वहीं दूसरा खोखलापन , पाखंड और अंततः मायूसी। एक ऊपर ले जाता है , तो दूजा नीचे । एक उन्नत मार्ग है , तो दूसरा पतन का । **


** स्वच्छ मुस्कुराहट तभी मानव मुखड़ा पर प्रकट हो सकती है जब उतने क्षण के लिए उसके अंदर किसी प्रकार का क्लेश , द्वेष, वैर और मैल की भावना ना हो , अथवा मुस्कुराहट आ ही नहीं सकती ।
यह बात उन लोगों में भी अवलोकन किया जा सकता है जो दुष्ट से दुष्ट हैं ,तथा उन लोगों में भी जो श्रेष्ठ से श्रेष्ठ हैं । **


** मिट्टी से बना दलदल में फंसकर जीव का मात्र तन का ही नाश होता है , आत्मा और मन सुरक्षित रहते हैं , परंतु मैला से बने दलदलल में फंस कर तीनों का नाश होता है । मैला दूसरा कुछ नहीं दुरात्मा का कलापन है और जगत की माया । **


** पृथ्वी का कुल धन नियत ( constant ) है । इस कारण एक तभी धनी होगा , जब दूसरा निर्धन हो। ठीक उसी प्रकार जैसे सूरज नहीं अस्त होता है और नहीं उदय । किसी एक जगह के लिए अस्त होता है तो दूसरे जगह के लिए उदय होता है।
धन का भी यही हाल है , जिसकी जैसी बुद्धि है वैसा उसको धन है ।  **


** धन बुद्धि का समानुपाती है और निर्धनता बुद्धि का  व्युत्क्रमानुपाती । **
यानी  धन = क × बुद्धि
         निर्धनता = क × 1/बुद्धि
यहां क = नियतांक


** लेन-देन का  साथी यदि लाभ हो तो वह अविराम चलता रहता है , रुकता नहीं। यदि दुर्भाग्य से उसकी सहेली हानी बनी तो वह टूट कर बिखर जाता है ।
जीवन क्रम का भी यही हालत है। यदि योग्य साथी मिला तो चलता रहता है और अयोग्य हो तो टूटकर बिखर जाता है । **


** पूरब और पश्चिम सही माने में देखा जाए तो एक ही है । दो व्यक्तियों में आगे वाले के लिए पीछे वाला पश्चिम है तो पीछे वाले के लिए आगे वाला पूर्व  वगैरह । **


** चलने से रास्ता खत्म होता है और करने से काम और सतत प्रयास से सफलता ।
संचित करने से धन बढ़ता  , उचित व्यय से उसका सदुपयोग और अपव्यय से उसका नाश । **


** कुपात्र पहले अपनी तथा दूसरे की विद्या का नाश करता है , उसके बाद बुद्धि का , फिर धन का , उसके बाद जीवन का और सुपात्र ठीक इसके उल्टा वृद्धि करता है।
नाश एवं विकास का यही क्रम भी है  तथा कुपात्र एवं सुपात्र इसका कारण और कर्त्ता । इनकी क्रियाएं अकर्तव्य और कर्तव्य । **


** विनाश में सबसे पहले विद्या का नाश होता , तब बुद्धि का , तब धन का , अंत में तन का । और विकास में इसके उल्टा। **


** प्रकृति प्रदत्त शरीर का काम है मल विसर्जन तथा सभ्य का काम है इसकी सफाई ।
प्रकृति का कार्य है अव्यवस्था तथा सभ्यता का काम है व्यवस्था ।
मात्र इसी दो मूल कार्यों में समग्र विश्व व्यस्त है। **


** जीवन यापन के लिए काम ढूंढकर पाना मानव जीवन का सबसे जटिल एवं महत्वपूर्ण कार्य है।**


** आदमी जितना सिखाने में दिलचस्पी लेता है उतना सीखने में लेता तो पृथ्वी स्वर्ग बन जाए।**


** मूर्ख नहीं किसी का दोस्त होता और नहीं दुश्मन। मूर्ख का एक ही काम है और वह है विनाश।  जबकि वह अपनी समझ से अपने हितैषी का उपकार ही करता है , लेकिन उसको उपकार और अपकार में अंतर नहीं दिखता , इसलिए वह बिनाश ही करता है अर्थात उसको उ और अ में अंतर नहीं दिखता , उसके लिए दोनों एक ही है । **


**  ज्ञान मूर्खता का व्युत्क्रमानुपाती होता है । **
अर्थात ज्ञान = क × 1/मूर्खता
क नियतांक है

** अगर मूर्ख मूर्ख का नाश नहीं करें तो वह विद्वान का नाश करेगा , क्योंकि मूर्ख का कर्म है विनाश। ठीक उसी प्रकार जैसे कीड़ा अगर कीड़ा को नहीं खाए तो वह सभी उत्तम लकड़ी और फर्नीचर को ही खा जाएगा । **


** मूर्ख और दुष्ट कलह में रहता है, कलह में जीता है , कलह ढूंढता है , और दूसरी जगह जाकर कलह बोता   है तथा वहां से कलह ले आता है ।
ज्ञानी शांति में जीता है , शांति ढूंढता है ,शांति बोता है और शांति काटता है , एवं शांति का लेन-देन करता है । **


** समाज जब मूर्खता से लड़ता तब  विकास करता है , तथा जब विद्वान से लड़ता है तब विनाश होता है । **


** चक्षु से मात्र सीमित परिवेश दृष्टिकोण होता है , परंतु ज्ञान से असीमित परिवेश का दर्शन किया जा सकता है । **

** किसी भी कलह का कारण जलन है ,और जलन का अनेक रूप है , इसलिए कलह का भी अनेक ढंग  है । **


** सभ्यता का मूल दर्शन है , जितना भी ज्ञान विज्ञान सत्य विद्याएं हैं उन सभी का जनक दर्शन ही है , और बुद्धि दर्शन की माता , मंथन दर्शन का जनक ।
इसी को कुछ लोग तप , ध्यान और योग द्वारा पाते हैं , तो कुछ लोग देशाटन द्वारा तथा कुछ लोग समाजिक सभा-सम्मेलन द्वारा इत्यादि। **


** समय सब कुछ का धीरे धीरे नाश कर देता है तथा महाप्रलय के बाद खुद नाश को पा तम में विलीन हो जाता है , और पुनः तम से जन्म पाता है । सिर्फ एक ही चीज का नाश नहीं होता और शाश्वत है , वह है तम । यह पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है , और हर जगह चाहे वो भू हो अथवा अंतरिक्ष या कहीं एक ही रूप है , और एक ही गुण  है। इसी का भौतिक रूप अंधकार , छाया , कालापन , नीलापन इत्यादि है ।**


  ** कुपात्र अपने आप को सबसे चतुर समझता है , तथा अपनी कुपात्रता के कारण अपना समय खाता है , तथा अपनी मूर्खता रूपी चतुराई के फलस्वरूप सुपात्र का समय खाने में सदा सचेत रहता है , लेकिन समय जब उसको नाश का विशाल सागर उपस्थित कर चुका होता है तब उसे अपनी गलती का एहसास होता है ।
इसी कर्म फल को कुछ विज्ञ पाप का फल बताते हैं , तथा कुपात्र के कर्म फल को निषेध उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हैं ।
सुपात्र ठीक इसके विपरीत होता है। वह समय को विकास में बदलता जाता है । इसलिए समय उसके सामने विकास समृद्धि का विशाल सागर उपस्थित करता है , जो उसे अमरत्व प्रदान करता है ।इसे विज्ञ पुण्य फल मानते हैं , तथा अनुकरणीय आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करते हैं ।**


** विचार पांच ज्ञानेंद्रियों आंख ( प्रकाश तरंग ) , कान ( ध्वनि तरंग ) , नाक (आणविक तत्त्व ) , त्वचा ( तापीय, विद्युतीय तरंग )  जीभ ( आण्विक तत्त्व )  द्वारा पैदा किया गया एक विशेष तरंग है जो मस्तक में पहुंचकर भाव पैदा करता है और शब्द आदि बनता है।
इसलिए खान-पान और परिवेश पर ध्यान देने के लिए सज्ञ हमेशा जोर डालते हैं । **


** मस्तिष्क से तौली बातें सबसे ज्यादा सत्य होती है , अर्थात सर्वोत्तम होती है , आंख से देखी बातें इससे थोड़ा कम सत्य और काम से सुनी बातें इससे भी कम । **


** कटु सत्य 24 कैरेट सोना सा होता है ,सत्य 20 से 22 कैरेट सोना सा और अर्ध सत्य गिनी सा यानी 12 से 18 कैरेट सोना सा और असत्य गिलट सा। **


**  जो पूरे होश हवास में सर्वदा नंगा रहता है उसे परब्रह्म परमेश्वर कहते हैं । जो दाढ़ी मूंछ आने पर होश हवास में  नंगा होता है उसे अवतार कहते हैं , जैसे महावीर ।
और जो दाढ़ी मूंछ आने पर किसी कारण वश बेहोश हो सदा नंगा रहे उसे पागल कहते हैं ।
और जो अपनी दुष्टता से किसी को नंगा करें उसे दुष्ट और कुपात्र कहते हैं ।**


** जो सिर्फ बात से सुधर जाए उसे सुपात्र , जो हल्का दंड से सुधर जाए वह पात्र और जो भारी दंड से भी सुधार नही पाए उसे कुपात्र कहते हैं। **


** जहां दंड विधान शून्य हो जाता है वहां व्यक्ति व्यक्ति दुर्जन बनने लग जाता है। यहां तक कि सीधा , निरीह और सज्जन भी दुर्जन बनने लगते हैं ** 


** छोटा से छोटा पेड़ भी तभी गिरता है जब उसका जड़ काटा जाता है । यदि जड़ को छोड़ उसके और दूसरे भाग को जन्म भर काटा जाए तो भी उसका अस्तित्व कायम रहता है । यही कुटनीति और राजनीति का सार है। **


** विज्ञान कटु सत्य होता है और उसकी नीरसता से उत्पन्न गर्मी से राहत साहित्य की ठंडक प्रदान करती है , क्योंकि सत्य यथार्थ है इसलिए तीखा होता है , और कल्पना स्वप्न है इसलिए मधुर ।
और साहित्य कल्पना के धरातल पर स्वप्न का महल है । अर्थात दूसरे शब्दों में विज्ञान जहां पर प्रायोगिक सत्य है वहां साहित्य काल्पनिक सत्य।**

************* क्रमशः ****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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