( एक बार स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने पैसा पर कहा था -
टका धर्म: टका कर्म: टका हि परमं पदम्,
यस्य गृहे टका नास्ति हा टका टकटकायते।
कविवर गिरधर अपनी कुंडलियां कविता में लिखते हैं -
साईं इस संसार में मतलब का व्यवहार,
जबतक पैसा हाथ में तबतक ताके यार,
तबतक ताके यार यार संगहि संग डोले,
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोले )
पैसा
जितनी सुंदरता है,जितनी सज्जनता है,
जितनी मानवता है ,जितनी दानवता है,
इसका ही अनुचर हैं , इसका ही सहचर है ,
इसकी ही चेटी है ,इसकी ही बेटी है ।
पैसा चमेली है, पैसा हथेली है,
पैसा पहेली है, पैसा सहेली है,
मन का मनोरथ तू ,सबसे सहोदर तू ,
माया मनोहर तू , धनी धरोहर तू ।
देव देवालय तू , विद्या विद्यालय तू ,
हिम हिमालय तू ,मेघ मेघालय तू ,
तू है इकाई में, तू है दहाई में ,
तू ही सैकड़ा में , तू है सवाई में ।
तू ही खटाई में , तू ही मिठाई में ,
तू ही दवाई में , तू ही विदाई में ,
खपड़ा खपरैल तू , जिन्न और चुड़ैल तू ,
गाय और बैल तू ,हाथों का मैल तू ।
तू ही वियोगी है , साधु है योगी है ,
नफरत वह घृणा भी , फिर भी उपयोगी है ,
तू ही बिरंचि है , तू ही प्रपंची है ,
तू ही प्रदीप्ति है , तुमसे ही तृप्ति है ।
पैसा है खेल में , पैसा है मेल में ,
मानव परिश्रम में , पैसा है तेल में ,
राग और रागिनी तू , जोग और जोगनी तू ,
काली कालिंदी तू , इंदु और बिंदु तू ।
मुस्लिम और हिंदू तू , सागर और सिंधु तू ,
भ्राता और बंधु तू , स्वयं स्वयंभू तू ,
रस अलंकार तू , कला कलाकार तू ,
स्वर्ण स्वर्णकार तू , अहं अहंकार तू ।
गीत गीतकार तू , हाथ हथियार तू ,
भूख व आहार तू , विरह बिहार तू ,
श्री सिंगार तू , देश सरकार तू ,
शिल्प शिल्पकार तू , भाग्य व लिलार तू ।
लोहा लोहार तू , युद्ध ललकार तू ,
कलम तलवार तू , असर असरदार तू ,
फल फलाहार तू , प्रहरी प्रहार तू ,
द्वार प्रतिहार तू , प्रीत प्रतिकार तू।
झूठा आडंबर तू , नंगा दिगांबर तू ,
पीला पीतांबर तू , श्वेत श्वेतांबर तू ,
ठकुर सुहाती तू ,
नाता व नाती तू ,
घोड़ा व हाथी तू ,
असमय में साथी तू,
तेरा अकाल जहां
ठनठन गोपाल वहां,
तेरा कमाल जहां
बाजे करताल वहां।.
लोक परलोक तू , खुशी और शोक तू,
खुदरा और थोक तू, कोष और कोप तू ,
चना चबेना तू , दूध व छेना तू ,
बेंत और बेना तू , लेना और देना तू ।
कुष्ठ का निदान तू , क्षत्रिय अभियान तू ,
अत्रि का ध्यान तू, लक्ष्मण स्वाभिमान तू,
पेडा और लड्डू तू , साग और कद्दू तू,
बेल और बूटा तू, सत्तू और भुट्टा तू।
अंडज और इंगला तू, पिंडज और पिंगला तू ,
शून्य निराकार तू , सदा सकार तू ,
तेरी सुंदरता है फूलों के बागों में,
खुशबू तुम्हारी है गुलशन के ख्वाबों में।
काला कलूटा को
सुंदर बनाता तू,
लंगड़ा व लूल्ला को
हिम्मत दिलाता तू ,
कोढ़ी की काया व
अंधा की आंखें तू ,
गूंगा की बोली व
बहरा की बातें तू।
तेरा जन्म ने है लाई सभ्यता को,
तेरी जवानी खिलाई मनुजता को ,
तेरा दुरात्मा तहलका मचाया है,
तेरी ही मदिरा से जन पगलाया है।
दुनिया में करतब तुम्हारे ही कारण है,
विधि विधान सब तेरे ही चारण है ,
लिखे कहानी कौन तेरे गुणगान की ,
नस नस में तू ही है जग व जहान की।
पैसा से खून कर,
पैसा दे शून्य कर,
पैसा नहीं जेल है,
पैसा है बेल है,
पैसा के कारण से
जीवन में रस है,
पैसा के कारण ही
जीवन सरस है।
*********क्रमशः***********
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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