शुक्रवार, 3 जून 2022

विचार ( भाग 6 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 6 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 6 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** मात्र महत्त्वाकांक्षा यानी योग्यता रहित महत्वाकांक्षा अराजकता एवं पागलपन पैदा करती है । महत्वाकांक्षा रहित योग्यता लक्ष्य हीनता , शिथिलता , असफलता एवं कर्म हीनता पैदा करती है । तथा महत्वाकांक्षा युक्त योग्यता स्फूर्ति , लक्ष्य , सफलता एवं कर्मठता पैदा करती है।
विश्व मानव उपयुक्त इन्हीं तीन सिद्धांतों अनुसार विभक्त एवं कर्म रत है । **

** भगवान और शैतान दोनोें  एक दूसरे के विपरीत होते हैं । शैतान पूर्वार्ध समय में हावी रहता है । तथा भगवान उत्तरार्ध समय में । शैतान आक्रमण करता है , तथा भगवान परास्त । शैतान असफल होता है , और भगवान सफल । **

** भूत एवं वर्तमान का सही आकलन ही भविष्य का सही आकलन है । यानी सही भविष्यवाणी वशर्ते कि प्रकृति साथ दे ।
क्योंकि प्रकृति स्वतंत्र एवं अति सशक्त है तथा नित्य परिवर्तनशील । इसी कारण सभी भविष्यवाणियां सत्य नहीं होती । **

** लग्नशीलता , ईमानदारी एवं बुद्धिमत्ता ए तीन सफलता एवं समृद्धि दायक हैं।**

** कर्ज जहां दाता में अभिमान या अहंभाव देता है , वहां ग्राहक में लाचारी । प्रथम को लाभ ,  वहां द्वितीय को हानि।
सिर्फ एक सही मूल्य ही दाता एवं ग्राहक का संतुलन बिंदु है , जो दोनों को अहंभाव एवं संतुष्टि देता है , और दोनों को लाभ होता है । **

** भय का अंतिम परिणाम और सीमा मृत्यु है , तथा आरंभ जन्म । भय किसी न किसी रूप में उम्र भर व्याप्त रहता है । **

** साहित्यकार समाज का ब्रह्मा है ,
और समाज साहित्य का । जैसा ए होंगे निर्माण भी वैसा होगा । **

** जिस प्रकार कुम्हार के आवा से  कोई  पात्र बड़ा ही सुंदर पक जाता है , भट्टी से कोई कोई ईंट बड़ा ही सुंदर ढंग से पका हुआ निकल आता है , मां की कोख से कई संतानों में से कोई एक सुपुत्र निकल आता है , वैसे ही कवियों और लेखकों के बहुत लेखों और छंदों में कोई एक लेख और छंद बहुत ही चारू मनोरम और मनभावन बन आता है , जो अमरवाणी बन जाता है । **

** कुत्ता मुर्दा मांस तथा हड्डी खाता है , गिद्ध लाश की अतड़ी खाता है , शेर हत्या कर खून पीता है , कौवा मेला खाता है , पर दुर्जन और मूर्ख समय खाता है, भेजा खाता है ,और अंत में अपने आप को खाता है । **

** अपमान के जीवन से सम्मान की मौत श्रेयकर होती है । हजारों मूर्खो की संगत से एक साधु की संगत सुखदायक होती है । **

** परमात्मा अखंड अनंत ज्योर्तिपुंज एवं ऊर्जा स्रोत है । जैसे अतुल संपदा का स्वामी अपना धन का कुछ का भाग ऋण पत्र , अंशाधि पत्र इत्यादि में खर्च किए रहता है , तथा शेष राशि से अपनी शक्ति बनाए रखता है , वैसे ही परमात्मा का अनंत ऊर्जा का कुछ भाग अनंत जीवो में विद्यमान है , जोकि मृत्यु के बाद वह पुनः परमात्मा में लौट आता है , तथा पून: वहां से नए जीव में । यही सृष्टि क्रम है। जैसे अग्नि स्रोत से प्रकाश पुंज निकलकर अपने आसपास के स्थान को प्रभावित करता है ,  वैसे ही  अनंत ऊर्जा पुंज से बना परमात्मा अपने ब्रह्म से ब्रह्मांड को प्रभावित करता है । **

** सुपात्र से समय का सदुपयोग होता है । पात्र से समय कटता है । तथा कुपात्र से समय नष्ट होता है। पहला का संग उपयोगी है , दूसरा का संग कामचलाऊ है । तथा अंतिम का संग अवांछित है। प्रथम सुखदायक है , दूसरा लायक है , तथा तीसरा नालायक है । ** 

**   विचार विद्युत चुंबकीय तरंग है जो ब्रह्मांड में तैरता रहता है । विचार न नया होता है ना पुराना बल्कि यह शास्वत है । यह देश जाति भाषा तथा लिपि से परे सर्वव्यापी है । जैसे पानी विभिन्न पात्रों में अपना रूप बदलता है , उसी तरह विचार विभिन्न मानव मस्तिष्क में विभिन्न तरह से प्रकट होता है । यह विचार विज्ञान में वैज्ञानिक बनाता है , अध्यात्म में ईश्वर और आत्मा का ज्ञान  दे ऋषि , तथा  साहित्य में महाकवि कालिदास और राजनीति कूटनीति में कृष्ण और कौटिल्य वगैरह-वगैरह। **

** मौत न टूटने वाली अनंत नींद है । मौत अनंत शांति का दूसरा नाम है। मौत सभी चिंताओं से मुक्ति देती है । मौत सुनने में भयंकर , सोचने पर आश्चर्यजनक और पाने पर मुक्ति है । **

** परिवार , समाज , देश इत्यादि की उत्पत्ति का सही आकलन किया जाए तो इनके जन्म का जनक स्वार्थ ही है । स्वार्थ ही सभ्यता का जनक है । योगी , ज्ञानी , सन्यासी इत्यादि भी स्वार्थ से परे नहीं है , नहीं परे हैं ईश्वर । किसी को धन का स्वार्थ है , तो किसी को नाम और यश का , किसी को स्वर्ग , मोक्ष ,ज्ञान इत्यादि की चिंता है , तो ईश्वर को सृष्टि चलाने की।
स्वार्थ एक ऐसा आण्विक  बंधन है जो पूरे ब्रह्मांड को बांधा है । इसे कुछ लोग मोह भी कहते हैं। लालच और स्वार्थ में महान अंतर है।
लालच सामाजिक नियमों से च्युत  कर्म है , जबकि स्वार्थ समाजिक नियम अनुसार कर्म है । **

** ए विश्व अनंत के कई रंगमंचों में से एक है , इसके जीव इस पर कलाकार के रूप में अपनी अपनी योग्यता अनुसार अपनी कला दिखाते तथा परिश्रम पाते हैं । जो सुपात्र बनता है वह नायक या उसके समकक्ष पद प्राप्त करता है , और जो कुपात्र बनता है वह खलनायक या उसके समकक्ष पद पाता है। **

** परमात्मा के ही दिया हुआ और प्रेरित किया हुआ अच्छा और बुरा दोनों कर्म है , जिसे मानव करता है , जैसे श्वेत और श्याम , प्रकाश और अंधकार इत्यादि ।श्वेत कर्म यानी सुकर्म करने वाला श्वेत फल यानी नाम , यश , धन और श्याम कर्म यानी कुकर्म करने वाला श्याम फल  यानी दुख , अपयस  , गरीबी आदि तथा दोनों कर्म करने वाला दोनों फल पाता है । **

** किसी भी धर्म या सिद्धांत की महत्ता निम्न बातों पर निर्भर करती है -
1. अच्छा साहित्य जिसमें अच्छे विचार अर्थात जन कल्याण भाव हो ।
2. उसके संस्थापक एवं अनुयाई की प्रस्तुति का ढंग एवं  गुणवत्ता ।
3.  तथा उसकी आयु उसके अनुयायियों की बुद्धि , निस्वार्थता , सत्यता , निष्ठा एवं जन मन की आकर्षण पर निर्भर है । **

** अपमान खाकर और बिना उसका प्रतिकार किए अन्न खाना विष सा  है , और  जिंदा रहना जिंदा लाश सा । **

** एक समय  में जो वस्तु अरूचिकर , अप्रिय और त्याग्य लगता है , वही किसी समय विशेष में रुचिकर , प्रिय और ग्राह्य लगता है , जैसे जो अग्नि शरद ऋतु में अच्छी लगती है , वही गृष्म में नहीं लगती  , जो हवा , पानी गृष्म में प्रिय लगता वही शरद ऋतु में अच्छा नहीं लगता। जो विचार , भाव मस्तिष्क में रात में चंद किरण तले पैदा होते हैं वही दिन में सूर्य प्रकाश में  ठीक नहीं लगते । **

************  क्रमशः ***************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
Mobile  6201400759

My blog URL
Pashupati57.blogspot.com  ( इस  पर click करके आप मेरी  और सभी रचनाएं पढ़ सकते हैं।)

*****           ********    ‌‌*****         *****