शनिवार, 11 जून 2022

विचार ( भाग 8 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 8 प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 8 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** चूहा पकड़ने वाला जैसे ही चूहा के बिल का मुख्य छिद्र खोदता है , उसमें असंख्य बिलों का जाल पाता है । कौन से बिल में चूहा है इसका निर्णय उसे नहीं हो पाता है ।
अतः शेष सभी बिलों को बंद कर एक एक बिल को अंत तक खोद खोद कर देखता है , और अथक श्रम के परिणाम स्वरूप अंततः चूहा पकड़ पाता है।
कभी-कभी यह भी होता है कि प्रथम बिल में ही चूहा मिल जाता है , कभी मध्य में ,  तथा कभी अंत में । कभी यह भी होता है कि चूहा इन बिलों में होता ही नहीं , बाहर निकल गया होता है , और उसे निराशा हाथ लगती है ।
ठीक यही स्थिति अनुसंधान और अनुसंधानकर्ता की भी होती है । असंख्य सिद्धांतों को जांचने पर कोई एक सिद्धांत प्रयोग पर खरा उतरता है । कभी प्रथम सिद्धांत ही प्रयोग पर खरा उतर जाता है। कभी अंत का , तथा कभी कोई नहीं । कुछ तो जीवन भर अथक परिश्रम के बाद भी कुछ नहीं पाते ।
यही स्थिति सफलता की भी होती है । असंख्य प्रयत्नों की बाद एक प्रयत्न सफल हो पाता है ।कभी प्रथम , कभी मध्य तथा कभी अंत। कुछ तो जीवन भर असफल होकर ही मृत्यु को पाते हैं।**

** सभी स्वदेशी का प्रथम पूर्वज विदेशी ही हैं। जैसे -आर्य भी बाहर से ही आए हैं । अमेरिका के नागरिक भी बाहर से ही आए हैं वगैरह ।**

** अग्नि में फूंक मारने से प्रकाश मिलता है ,राख में फूंक मारने से कालिख ।  मूर्ख में फूंक मारने से कुबुद्धि और विद्वान में फूंक मारने से सुबुद्धि ।**

** मनुष्य को संकट काल में सफलता पाने के लिए कछुआ के गुणों का अनुसरण करना चाहिए , जैसे कछुआ संकट आने पर अपना गर्दन छुपाकर रक्षा कवच ओढ़ लेता है , वैसे ही सज्ञ को चाहिए कि अपना गर्दन संकटकाल में छुपा ले , तथा संकट छंटते ही कछुआ की गति से धीरे-धीरे परंतु दृढ़ता पूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त करे। **

** दूरी बढ़ने से आकर्षण बढ़ता जाता है , भावना तथा प्रेम भी प्रबल बनता जाता है , दुर्भावना , द्वेष मिटता जाता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आकर्षण , प्रेम भावना की प्रबलता  दूरी के समानुपाती होता है। तथा द्वेष , क्लेश ,दुर्भावना दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है । जैसे -
आकर्षण ( भावना ) = क × दूरी
विकर्षण ( दुर्भावना ) = क × 1/दूरी
क = नियतांक  **

** अगर कोई छात्र किसी से कुछ नहीं पूछता है तो या तो वह असाधारण और विलक्षण है ,  वह सब कुछ  समझ जाता है । अथवा वह महामूर्ख , कुछ नहीं समझता और लज्जा वश पूछता भी नहीं।**

** मछेरा मछली पकड़ने के लिए अनेकों कांटा डालता है । किसी में छोटा , किसी में मन लायक तथा किसी में कुछ नहीं फंसता है , वैसा ही अवसर है । **

** किसी देश , किसी घर और किसी व्यक्ति का बल उसकी औरतें हैं । उन्हीं में केंद्रित है उनका विकास या विनाश । ए जैसी होंगी विकास भी वैसा होगा। **

** महत्वाकांक्षा की प्रचंड ज्वाला ही मन में अग्नि प्रज्वलित करती है , जो सर्वप्रथम मस्तक को भस्म करता है ,  तथा क्रोध में प्रज्वलित होता है । उसके बाद धीरे-धीरे मन और तन को भी खा जाता है **

** जीवन में कभी एक ऐसा उदासीन बिंदु आता है जहां मां-बाप , पुत्र-पुत्री , पत्नी- मित्र , भाई- बंधु इत्यादि अपना नहीं लगता । इस हालत में सिर्फ एक ही मान्यता और आस्था पर विश्वास जमता है और वह है ईश्वर । यदि व्यक्ति इस मान्यता और आस्था का सहारा नहीं ले तो यह उदासीन बिंदु व्यक्ति को या तो पागल कर दे या तो मौत दे दे ।**

** तन का बल और कुछ दूसरा नहीं मन का ही बल है । इसलिए शेर हाथी को भी हरा देता है वगैरह।**

** यों तो धन का उपयोग हमेशा है , लेकिन इसकी उपयोगिता बुढ़ापा में सबसे ज्यादा है । **

** यों तो माता पिता अपनी संतान को हमेशा अपने पास देखना चाहते हैं , लेकिन बुढापा में सबसे ज्यादा अपने नजदीक देखना चाहते हैं ।**

** ज्यादा काम करना ही खूबी नहीं है । खूबी  है सफल कर्म करना अर्थात सफलता ।**

** जैसे किसी के पास बहुत सा शून्य हो तो भी वह संख्या नहीं बना सकता अगर उसके पास अंक नहीं हो । वैसे ही मूर्ख और दुष्ट के संग से कोई भी वृद्धि संभव नहीं। **

**  पूर्ण सफलता तीन बातों से परिभाषित होती है - नाम  ,यश और अर्थ यानी धन। जिसमें ( आम परिस्थितियों में ) तीसरा काफी महत्वपूर्ण है । कहने का अर्थ यह है कि यदि व्यक्ति सफल हो और पैसा नहीं मिले तो उसका वह कार्य असफल तुल्य ही है । **

** ओम मेरी नजरों में -
ओम अ + ऊ + म  से बना है। जिसका अर्थ निम्नलिखित होता है -
अ = अन्य पुरुष ( वह , वे आदि )
उ = उत्तम पुरुष ( मैं , हम आदि )
म = मध्यम पुरुष ( तुम ,  तू आदि )
अर्थात सर्व भूतों यानी सभी जीवों का संग्रहित रूप का निरूपण । संसार के सभी जीव उपरोक्त तीन ही भाग में विभक्त हैं । **

** न्याय , शिक्षा एवं प्रशासन सिर्फ यही तीन सुधर जाए तो वह देश उन्नति की चोटी पा जाए । अर्थात रामराज्य  और आदर्श देश में उनकी गणना होने लगे ।
न्याय - सस्ता , मुफ्त , सजल्द और सही ।
शिक्षा - व्यवहारिक एवं जीवन उपयोगी , सस्ता एवं मुफ्त , सुचरित्र एवं अनुशासित ।
प्रशासन- विनम्र कठोर , कर्तव्य परायण , ईमानदार तथा सुचरित्र ।
आम जनता को भोजन , आवास एवं वस्त्र के अलावा इन तीन बातों की चाह राज्य से होती है ।**

** शाप और कुछ नहीं मन का विखंडन है , और मन का विखंडन और कुछ नहीं इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन इत्यादि से भी अति सूक्ष्म तत्त्वों का विखंडन है। और उससे उत्सर्जित ऊर्जा परमाणु बम से भी ज्यादा विनाशकारी होती है **

** मन का विखंडन अर्थात अति सूक्ष्म तत्त्वों का विखंडन , जिसे मस्तिष्क रूपी कंप्यूटर से प्राचीन ऋषि करते थे  , जिस पर प्राचीन आर्ष ग्रंथ प्रकाश डालता है । **

** बार-बार पढ़ने के बाद भी जिस किताब या रचना का स्वाद अगर उसके प्रथम पाठन जैसा बना रहे , बल्कि बढ़ता जाए तो वह उच्च कोटि का ग्रंथ या रचना कहलाता है । **

** परंपरा अनुकरणीय होता है । जहां अनुकरणीय नहीं है वहां विद्रोह पैदा होता है । **

** शाप और आशीर्वाद की परिपूर्णता दाता की आत्मा  पर निर्भर करती है। यदि शत प्रतिशत शुद्ध आत्मा से शाप या आशीर्वाद दिया जाए तो शत-प्रतिशत फलित  होगा । यदि त्रुटि युक्त आत्मा से दिया जाए तो पूर्ण फलित नहीं होगा ।
  शाप -  शत प्रतिशत शुद्ध आत्मा द्वारा प्रचंड क्रोध से व्यक्त भाव ।
आशीर्वाद - परिशुद्ध आत्मा द्वारा प्रसन्न भाव।
परिशुद्ध आत्मा - 100% सभी  भय से मुक्त।
त्रुटि युक्त आत्मा - किसी न किसी भय युक्त। **

** बिना किसी काम यानी कर्म रहित चुपचाप बैठा व्यक्ति तंद्रा में रहता है , अर्थात या तो चिंता में अथवा चिंतन में । यदि मन शांत है तो चिंतन में , यदि मन अशांत है तो चिंता में । और दोनों ही तंद्रा की अवस्था है ।
चिंता में मन बहु बिंदु पर रहता है अनेक बातें सोचता है , जबकि चिंतन में एक बिंदु पर ।**

**  छोटी अवधि तंद्रा स्वाभाविक प्रक्रिया है। परंतु बड़ी अवधि तंद्रा आम आदमी के लिए अस्वभाविक प्रक्रिया है , परंतु योगी , ज्ञानी और वैज्ञानिकों के लिए स्वाभाविक प्रक्रिया । 
तंद्रा दूर करने का सबसे आसान ढंग है कोई कार्य में लग जाना अथवा अकेले में नहीं रहना। **

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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