दिल्ली भारत की राजधानी ,
सभी धर्म के बसते प्राणी ,
कैसे बना था यह राज ,
जिसको कहते दिल्ली आज ?
गंगा तीर बसे कुछ शूर ,
राज बना हस्तिनापुर ,
फूट पड़ी हुआ विभाग ,
जमुना तट जागा सुभाग ,
इंद्रप्रस्थ बसा सुराज ,
इसे ही कहते दिल्ली आज।
समय चाक के सब हैं चालक ,
बूढ़ा में ढल जाता बालक ,
प्रजा मरती , मरता पालक ,
इंद्रप्रस्थ का डूबा तारक ।
इंद्रप्रस्थ की मिटी आन ,
समय बिता उगा चौहान ,
पृथ्वीराज का दिल दिलेर ,
दिल्ली का यह राजा शेर ,
इसी बीच आया तूफान ,
गोरी से आया अफगान ,
दिल्ली की फिर गई शान ,
हिंदू मिटे , चढ़ा कुरान ।
दिल्ली सल्तनत महान ,
समय बिता बना बेजान ,
मुगलों ने किया अब राज ,
आया फिरंगी छिना ताज ।
कोलकाता में राज बसाया ,
फिर दिल्ली में राज ले आया ,
था सन उन्नीस सौ एग्यारह ,
शुभ दिन दिसंबर बारह ।
दिल्ली फिर बनी राजधानी ,
खुश हुए यहां के प्राणी ,
बड़ा बड़ा आचार बनाया ,
फिरंगी विचार बनाया ।
राजाओं सुल्तानों को भी
नतमस्तक कर खार बनाया ,
अंग्रेजों की देन बहुत है,
पर नहीं प्यार दुलार बनाया।
चारों तरफ था भ्रष्टाचार ,
गोरों की चलती अपार ,
पीस रही थी यह सरकार ,
मचा हुआ था हाहाकार।
थे डरे हुए राजा सम्राट ,
खोज रहे थे एक विराट ,
गांधी का बाजा सितार ,
चमक उठा किरणों का तार।
एक एकता एकाकार
में बल है जाने संसार ,
फूट फर्क फिक्र फटेहाल ,
निर्बल कर करता बेहाल ।
हुई एकता हुए स्वतंत्र ,
दिल्ली का हुआ पुनर्जन्म ,
दिल्ली फिर बनी राजधानी ,
हर्ष मनाए मिल सब प्राणी ।
खत्म हुई यह दिल्ली कहानी ,
जिसे सुनाया मैं जुबानी ,
देशवासियों देकर ध्यान
स्वतंत्रता का करो सम्मान।
राणा ने खा घास की रोटी
स्वतंत्रता अपनाई थी ,
वर्षों जंगल में गुजार कर
परतंत्रता ठुकराई थी।
घड़ी रहेगी खूब मस्तानी ,
नहीं करोगे जब नादानी ,
नहीं करो अब आनाकानी ,
याद रखो यह बात जुबानी।
दिल्ली पर मेरा यह उपहार ,
करो नहीं इससे इनकार ,
"पशुपति " का यह उद्गार ,
कृपा कर करो स्वीकार ।
जिस दिन एकता होगी खत्म ,,
फिर मिट जाएंगे सब हम ,
एकता से सब सिद्ध हो काज ,
इसे ही कहते दिल्ली आज ।।
***************समाप्त*****************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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