शुक्रवार, 10 जून 2022

हठ , स्वाभिमानी बनो , नेपाल ( तीन गीत )

अनुसंधानशाला से तीन गीत प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


गीत
शीर्षक - हठ , स्वाभिमानी बनो और नेपाल ( तीन गीत )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

हठ
सोचो राम की कहानी
तू गुमानी प्रिये !
मत करो बदनामी
अभिमानी प्रिये !

हठ कैकई के कारण से दशरथ मरे ,
हठ सीता के कारण से रावण हरे ,
हठ करना नहीं बुद्धिमानी प्रिये ,
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये।

हठ कारण से लंका रसातल हुई ,
हठ कारण से सीता धरातल गई ,
हठ से होती हमेशा है हानी प्रिये ,
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये ।

छोड़ो हठ अभिमान व गुमान प्रियतम,
मन में रखो सदा स्वाभिमान प्रियतम ,
इन बातों को सोचो दीवानी प्रिये ।
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये।

कहे पशुपतिनाथ , हठ करता है नाश ,
हठ कारण ही रावण का हुआ सर्वनाश ,
याद रखना इसे तू जुबानी प्रिये ,
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये।

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स्वाभिमान बनो
नहीं मानी बनो , ना अभिमानी बनो ,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो ।

मुंह से अमृत की वाणी हमेशा बोलो ,
दीन दुखियों में दीपक बनके जलो ,
किसी इतिहास की तू कहानी बनो ,
नहीं मानी बनो , न अभिमानी बनो ,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो ।

काल की कड़कड़ाहट से डरना ना तू ,
डगर में रुकावट को भरना न तू ,
बसंती हवा तू सुहानी बनो ,
न मानी बनो ना अभिमानी बनो,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो ।

करो कर्म ऐसा सुहावन प्यारा ,
नाम मर कर अमर भी हो जाए तेरा ,
दीन दुखियों हेतु तू दानी बनो ,
न मानी बनो न अभिमानी बनो ,
अगर बनना है तो स्वाभिमानी बनो।

वह बनो ज्वाला जल जाए बत्ती ,
दूर हो अंधेरा कहे पशुपति ,
आग बीच कूद करके तू पानी बनो ,
न मानी बनो ना अभिमानी बनो ,
अगर बनना है तो स्वाभिमानी बनो।

पढ़ो लिखो सभी कि हटे मूर्खता ,
काम वह सब करो हो जाए एकता ,
अज्ञानी नहीं सभी ज्ञानी बनो ,
न मानी बनो ना अभिमानी बनो ,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो।

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नेपाल
नोट:- नेपाल चीन के गोद और भारत के कंधों पर स्थित हिमालय में बसा एक छोटा देश है । जो अपनी वीरता, सौंदर्य और स्वतंत्रता के लिए प्रसिद्ध है। जब पूरा संसार ब्रिटिश सरकार के  आधीन था उस समय भी नेपाल स्वतंत्र था । उसी नेपाल का एक छोटा परिचय यहां प्रस्तुत है -

सुन सुन सब नेपाली ,
जहां पशुपति काली ,
जहां गर्मी के नहीं दीदार होला,
यहां लोगों के मन में प्यार होला ।

हिमालय व तराई ,
बीच में पर्वत जंगल खाई ,
जहां नदियों की कल कल बाहर होला,
यहां लोगों के मन में प्यार होला।

मधेशी व पहाड़ी ,
थारू , लामा जाति सारी ,
यहां शेर हाथी गैंडा की बाहर होला ,
यहां लोगों के मन में प्यार होला ।

घूमें गोरा गोरा गाल ,
होंठ होते लाल लाल ,
मन निर्मल व हिरनी की चाल होला ,
यहां लोगों के मन में प्यार होला।

लिखे पशुपतिनाथ ,
सुनें बाबा पशुपतिनाथ ,
जिनकी कृपा से सबका उद्धार होला ,
यहां लोगों के मन में प्यार होला।

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
Mobile  6201400759

My blog URL
Pashupati57.blogspot.com  ( इस  पर click करके आप मेरी  और सभी रचनाएं पढ़ सकते हैं।)

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