व्यर्थ जाति रटता संसार ,
सभी जाति का दो है सार ,
प्रथम कलम , दूजा कुदाल ,
चाहें परखें कोई काल ।
दो हेतु रत जीव व जन ,
प्रथम पेट , दूसरा मन ,
पेट हेतु है बना कुदाल ,
मन हेतु कलम की चाल ,
चाहें परखें कोई काल।
कठिन प्रश्न यह श्रेष्ठ है कौन ,
जिससे पूछा हो गया मौन ,
चिंतन से निकला यह सार ,
समझो सुनो सभी संसार ,
सभी जाति का दो है सार ।
गुरु हमेशा श्रेष्ठ कहाता ,
क्योंकि गुरु ही कलम बनाता ,
कलम बनाता है कुदाल ,
कुदाली से जग का भाल ,
चाहें परखें कोई काल ।
नर-मादा के मन जब डोले ,
चक्षु मन की बातें बोले ,
दोनों का होता संयोग ,
शांत निशा में करते भोग ,
दोनों मिल एक हो जाते ,
शून्य टूट गर्भ में आते ,
गति के कारण मन कहलाते ,
काल संग शिशु बन जाते ।
मन के कारण बनता पेट ,
इस कारण से मन है श्रेष्ठ ,
पेट की चाहत सदा कुदाल ,
मन की चाहत कलम की चाल,
चाहें परखें कोई काल ।
जब-जब कोई कलम उठाए ,
वहां पर ब्रह्मा बन जाए ,
जैसे छूता है कुदाल ,
बना शेष जाति तत्काल ,
चाहें परखें कोई काल ।
व्यर्थ जाति रटता संसार ,
सभी जाति के दो ही सार।
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कविता
शीर्षक - अकेला
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
जहां दुष्टों का मेला है ,
परिस्थितियां जहां झमेला है,
हर बात जहां पर ढेला है ,
चलना वहां अकेला है।
हर ढंग जहां अलबेला है ,
जहां गुलाब का रेला है ,
हर गंध जहां पर बेला है ,
बसना वहां अकेला है ।
जहां पे नहीं कोई चेला है ,
जहां हरदम मचा झमेला है ,
हर कर्म में ठेलम ठेला है ,
चलना अच्छा अकेला है ।
जहां सब कुछ अलबेला है ,
जहां गुरु नहीं सब चेला है ,
जहां स्वभाव का मेला है ,
बसना वहां अकेला है ।
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कविता
शीर्षक - भय
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
भय की महिमा बहुत अपार है ,
भय से चलता सारा संसार है ।
भय कारण से ही नर मानव है ,
अगर भय नहीं है तो दानव है ,
भय राजा हेतु हथियार है ,
भय से चलता सारा संसार है ।
भय कारण ही टिका समाज है ,
भय कारण ही चलता राज है ,
भय कारण ही शांत तकरार है ,
भय की महिमा बहुत अपार है ।
जीव एक दूसरा से भय खाता ,
नियम कानून भय है लाता ,
भय सभी सभ्यता का सार है ,
भय से चलता सारा संसार ।
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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन 845453
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