क्या मुनासिब सही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब नहीं आदमी के लिए ।
सूरज सोचे सदा से सुबह के लिए ,
चांद सोचे सदा से पूनम के लिए ,
जल सोचे सदा से नदी के लिए ,
है मुनासिब यही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब सही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब नहीं आदमी के लिए।
दुष्ट सोचे सदा है कलह के लिए ,
विष सोचे हमेशा मरण के लिए ,
जो नाशे समय न कर्म को करे ,
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए,
क्या मुनासिब सही आदमी के लिए,
क्या मुनासिब नहीं आदमी के लिए।
जो मुर्दा में पशुपति जीवन भरे ,
काल की कालिमा को उजाला करे ,
ज्ञान चक्षु धारातल को जो जन दिए ,
है मुनासिब यही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब सही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब नहीं आदमी के लिए।
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कविता
मैं
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद ( मेरा नाम भी भगवान शिव का पर्यायवाची है )
बना हूं नूर मैं
जमीं और सितारों में ,
मेरा भी नाम गिना
जाता तीन सवारों में।
हूं मैं सब्ज रंग
इन सभी बहारों में ,
काला व श्याम हूं
मैं सभी सियरों में ।
गंध में सुगंध हूं
मैं सभी गुलाबों में ,
शाह शहंशाह हूं
मैं सभी गुलामों में ।
हुस्न की दुकान हूं
प्यार और दुलारो में ,
रौनके अरमान हूं
मैं सभी बाजारों में ,
मेरा भी नाम गिना
जाता तीन सवारों में ।
मधुर मनोहर हूं
मैं सभी सुहागों में ,
साहस व आशा हूं
मैं सभी अभागों में ।
रंग और गुलाल हूं
मैं सभी नजारों में ,
हूरों की हीर हूं
मैं सभी उजाड़ो में ।
रेखा लकीर हूं
मैं सभी कुभागों में ,
व्यक्त हूं अव्यक्त हूं
मैं सभी भागों में ।
आजाद हिंद फौज हूं
मैं सभी कतारों में ,
नदी का नीर हूं
मैं सभी कगारो में ।
मेरा भी नाम गिना
जाता तीन सवारों में ,
बना हूं नूर मैं
जमीं और सितारों में ।
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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन 845453
E-mail er.pashupati57@gmail.com
Mobile 6201400759
My blog URL
Pashupati57.blogspot.com ( इस पर click करके आप मेरी और सभी रचनाएं पढ़ सकते हैं।)
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