अनुसंधानशाला से इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद विचार भाग 10 प्रस्तुत करते हुए |
कोटेशन
विचार ( भाग 10 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
** आम आदमी सिर्फ बीता कल अर्थात भूत की बातें सोचता है और जीता है । मध्यम पुरुष बीता कल यानी भूत की बातें सोचता है परंतु भविष्य में जीता है । परंतु उत्तम व्यक्ति , दूरदर्शी पुरुष भूत वर्तमान और भविष्य तीनों देखता है और सोचता है तथा वर्तमान में जीता है। ** ** वर्तमान भूत का अंत और भविष्य का प्रारंभ है। 0.0000.....1 सेकेंड में भूत वर्तमान में और वर्तमान भविष्य में बदल जाता है। भूत पर सोचा जा सकता है , भविष्य पर विचार किया जा सकता है , लेकिन वर्तमान कर्म करने के लिए है । अगर यह समय गंवा दिए तो फिर नहीं आने का। ** ** प्रकोष्ठ यानी रूम तथा पोशाक को अस्त व्यस्त रहना मानसिक परेशानी का द्योतक है । और ऐसा व्यक्ति या तो जाहिल है अथवा पहुंचा हुआ । ** ** किसी भी व्यक्ति को परास्त करने का दो ही अचूक तरीका है । यदि साधन हीन या असमर्थ हों तो अपनी महत्वाकांक्षा को घटाएं । यदि प्रभावशाली और साधन युक्त हों तो इसका प्रयोग कर उसके समानांतर व्यवस्था कायम करें । ** ** पौराणिक मतानुसार आत्मा मृत्यु के बाद निम्न गति को पाती है । ** हां कह कर धोखा देने से ना कह कर धोखा नहीं देना बेहतर होता है । ** ** वह कर्म जिससे बढ़िया से पूर्ण होने पर भी धन लाभ नहीं होता वह कर्म त्याज्य है। दूसरे शब्दों में अपने आप त्याज्य हो जाता है । ** मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति सपने जैसी रहती है । ** **आत्मा बेहद सूक्ष्म तरंग उर्जा है । जिसका वेग प्रकाश वेग से ज्यादा होता है । ** ** प्रत्येक व्यक्ति इसी आशा में जिंदा है कि मेरा अभीष्ट लक्ष्य , कार्य अब पूरा ही होने वाला है । यह उम्मीद उसे मृत्यु तक लगी रहती है । ** ** प्रत्येक व्यक्ति चाहे गुणी हो या अवगुणी यही अभिलाषा होती है कि मेरे गुणों की प्रशंसा दुनिया करे , लेकिन दुनिया आदिकाल से गुणों की प्रशंसा करती है तथा अवगुणों को त्याग करती है। ** ** विद्या और बुद्धि एक नहीं तथा ज्ञान भी इन दोनों से अलग है । एक अनपढ़ व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है , जैसे- अकबर । विद्या युक्त व्यक्ति भी मूर्ख हो सकता है , जैसे- एम ए पास मूर्ख । लेकिन ज्ञानी हमेशा बुद्धिमान और विद्वान ही होगा , क्योंकि ज्ञान विद्या , बुद्धि की संयुक्त देन है । ** ** बुद्धि ईश्वरीय है अर्थात प्रभु निर्मित । तथा विद्या किताब , गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान है यानी मानव निर्मित । ** ** किसी में परम लगा देने का मतलब है अनंत , जैसे- परम शक्ति , परम ब्रह्म , परम पिता इत्यादि। और अनंत सिर्फ एक ही है , अत: परम लगा देने से सभी एक ही का बोध कराता है , अर्थात अनंत का।** ** मलाह जैसे जाल से मछली छापता है , वैसे ही विज्ञ ब्रह्मांड से विचार । ** ** जैसे हवा की गति की दिशा के अनुकूल खर-पात़ और धूल इत्यादि घूमता रहता है , वैसे ही मूर्ख , गवांर चतुर के इशारे पर घूमते रहते हैं ।** ** सत्य क्या है ? ** स्वाद का आरंभ बिंदु जहर है यानी हलाहल तथा अंत बिंदु अमृत है। अर्थात जहर का स्वाद को शून्य माना जाए तो अमृत का स्वाद अनंत । तथा और सभी स्वाद इनके बीच में। ** ** यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो महाभारत युद्ध का मूल द्रौपदी थी और विजय भी द्रौपदी ।** ** स्त्री पुरुष के बल , सफलता और उत्साह का मूल है । ए जैसी होगी व्यक्ति, घर ,समाज और देश वैसा होगा । **** ** अगर स्वतंत्रता का मतलब अनुशासनहीनता है तो उससे अच्छा परतंत्रता है । ** ** सबसे बड़ा साधु - जो दुष्ट के साथ दुष्टता करे। सबसे बड़ा दुष्ट - जो साधु के साथ दुष्टता करे और दुष्ट के साथ साधुता।** ** कर्म फल कारण नहीं देखता । कर्म चाहे जिस कारण उचित या अनुचित के कारण पूरा नहीं हुआ हो तो फल पर प्रभाव डालता ही है , जैसे यदि एक मेधावी छात्र पैसे की कमी के कारण से किताब नहीं खरीद सकता , जिससे उसकी परीक्षा की तैयारी नहीं हो पाती , जबकि वह निर्दोष है फिर भी वह अनुत्तीर्ण होगा । यह सिद्ध करता है कि कर्म फल कारण नहीं देखता।** ** कर्म फल कर्म की पूर्ति चाहता है । कर्म जब तक पूर्ण नहीं होगा तब तक उसका फल नहीं मिलता है। ** ** कर्म का सफल फल ही प्रसन्नता , श्रेष्ठता एवं समृद्धि है । तथा असफल फल कुंठा , दरिद्रता एवं लघुता है। ** ** उचित पूर्ण कर्म का उचित फल, उचित अपूर्ण कर्म का अपूर्ण फल , तथा अनुचित पूर्ण या अपूर्ण कर्म का कुछ फल नहीं मिलता है ।** ** प्रश्न - भ्रम क्या है ? ** सूर्य प्रकाश में आंख से दृष्टिगत घटना और कान से सुनी ध्वनि विश्वसनीय होते हैं अन्यथा संदेहास्पद। ** ** जीवन में कर्म बदल जाए और क्रिया नहीं बदला जाए या क्रिया बदल जाए और कर्म नहीं बदला जाए तो वह सफलता नहीं मिलती।** ** नौकरी वस्तुत: चाकरी है। नौकरी करने का मतलब है परतंत्र होना । ** सभी काल में सब कोई प्रायः यही कहता है कि मेरे पूर्वज का समय का जीवन सुखमय था । और अब जमाना बदल गया। अब क्या जमाना आ गया ।और पहले कितना अच्छा जमाना था। इसका मूल कारण यह कि यह है कि सुनी बातें मनभावन होती तथा दूसरा कारण अतीत प्यारा होता है और वर्तमान कठोर क्योंकि यह प्रत्यक्ष होता और परिश्रम करना पड़ता वगैरह । ** ************** क्रमशः ***************** इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद My blog URL ********* ******* ****** |