कुछ समझ में न आया कौन आदमी ?
वकवादी हो अथवा मौन आदमी ।
जिनसे आशा किया ,
वही धोखा दिया ,
कुछ जहर घोलकर ,
कुछ कहर खोल कर ।
मैंने पिया जाहर , बना शिव शंकर ,
बन के रावण में राम , मैंने झेला कहर ।
अब कलम उठा , शब्दवेधी चला ,
करेंगे बयां भिन्न भिन्न जीवन कला ।
आदमी जिंदगी
या जीवन आदमी ,
बेशर्म आदमी
या हया आदमी ।
धर्म आदमी या कर्म आदमी ,
भ्रम आदमी या मर्म आदमी ।
सुधा आदमी या जहर आदमी ,
धोखा आदमी या लहर आदमी ।
सब मंथन से मुझको
ए आई समझ ,
काम आए समय पर
वही आदमी ।
क्षुधा आदमी या खुदा आदमी ,
लूटा आदमी जब फूटा आदमी।
जुटा आदमी तब बढ़ा आदमी ,
जब रावण हुआ तब मिटा आदमी ।
मंत्री आदमी
या संत्री आदमी ,
विधि आदमी
या निधि आदमी।
नेताओं को परखा तो आई समझ ,
जिनकी नीति नहीं है वही आदमी।
जहां मूर्ख समाज अनपढ़ आदमी ,
जहां काना राजा अंध सब आदमी।
जहां कर्मठ सभी ,
सब उन्नत आदमी ,
जहां द्वेषी अधिक
अवनत आदमी ।
घर घर में झांका देखा आदमी ,
हर चेहरे को देखा पढ़ा आदमी।
कुछ वस्त्रों में लिपटे सिर्फ आदमी ,
कुछ सजके संवरके बने आदमी ।
कुछ पागल बने
घूमते आदमी ,
कुछ काटे ना मांगे
पानी आदमी ।
कुछ की बोली से शीतल होता आदमी ,
कुछ की बोली पर गोली छोड़े आदमी।
बूढ़ा आदमी या शिशु आदमी ,
बेटा आदमी या बेटी आदमी ।
रोना आदमी
या हंसी आदमी ,
जो है मीठा न खट्टा
वही आदमी ।
सभी पूछते हैं मैं हूं कौन आदमी ?
जो कभी न मरे मैं वही आदमी ।
पंडा आदमी या मुल्ला आदमी ,
या जो ठगकर कमाए वही आदमी।
इस धारा पर आए
बहुत आदमी ,
इस धारा से जाए
बहुत आदमी,
काल खाए रोजना बहुत आदमी,
नाम करता अमर है सही आदमी।
जिसे जपता तवारीख सही आदमी,
भू की महत्ता बढ़ाए यही आदमी।
काम छोड़े अधूरा
नहीं आदमी,
काम करता है पूरा
सही आदमी।
काल जिनको नचाए नहीं आदमी,
वक्त जिनको रुलाए नहीं आदमी।
वक्त खुद जो बनाए सही आदमी,
सिर्फ बातें बनाए नहीं आदमी।
गीत गाए खुशी से
सही आदमी,
दुख से आंसू बहाए
नहीं आदमी।
नाज अपना पे जिनको सही आदमी,
जो है दूसरे पे आश्रित नहीं आदमी।
ले कल से जो शिक्षा सही आदमी,
आज पर हाथ जिनका सही आदमी।
आंख परसों पर जिनकी
सही आदमी,
कालदर्शी बने हैं
यही आदमी।
नम्र हृदय है जिनका सही आदमी,
मन पत्थर है जिनका नहीं आदमी।
लेखनी जिनकी तीखी सही आदमी,
शब्द जिनका दे जीवन सही आदमी।
नव जीवन बने जो
वही आदमी,
जो नाशे जीवन को
नहीं आदमी।
अपने करतब को देखो सभी आदमी,
क्या है पाया अभी तक सभी आदमी ?
कम पाए अगर हो सभी आदमी,
कुछ करतब करो अब सभी आदमी।
क्यों दूसरे से जलते
लोभी आदमी,
खुद अपने को परखो
सभी आदमी।
सुंदरता बिछाए सही आदमी,
जो कीचड़ लगाए नहीं आदमी।
************ क्रमशः *****************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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