( पैसा पर स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने कहा था-
टका धर्म: टका कर्म: टका हि परमं पदम् ,
यस्य गृहे टका नास्ति हा टका टकटकायते
कवि गिरधर अपनी कुंडलियां कविता में लिखते हैं-
साईं इस संसार में मतलब का व्यवहार,
जबतक पैसा हाथ में तबतक ताके यार,
तबतक ताके यार यार संगहि संग बोले,
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोले। )
पैसा
पैसा अमोद है, पैसा प्रमोद है,
प्रमोद में मिठास है, मिठास से हास्य है,
हास्य में हुड़दंग है, हुड़दंग में हो हल्ला है ,
हल्ला में जोश है, बिना पैसा खामोश है।
पैसा से अन्न है, अन्न से जन है,
जन में मन है , मन में तरंग है,
तरंग में उमंग है, उमंग में विकास है,
ज्यादा उमंग हो तो इससे भी नाश है।
पैसा जवानी है , जवानी दीवानी है,
दीवानी में हानि है , फिर भी सुहानी है,
सुहानी नशीली है, नशीली लाल-पीली है,
लाल उकसाता है, पीला जिलाता है।
पैसा रंगीला है, पैसा छबीला है,
पैसा जोशीला है , नहीं है तो ढीला है,
पैसा दिखाओ मत , जी ललचाओ मत ,
डाकु आ जाएंगे, लूट ले जाएंगे।
पैसा के पैर नहीं ,
करता है सैर कहीं,
लोगों का चैन छीन,
करता बेचैन कहीं,
पैसा हमारा नहीं,
पैसा तुम्हारा नहीं,
कर्मठ जो जितना है,
पाया वह उतना है।
दिल को जलाओ मत , पलकें झुकाओ मत ,
हाथ उठाओ अब , पंजा लगाओ अब,
पैसा मिल जाएगा, स्वर्ग ले आएगा,
चेहरा सजाएगा, स्वाद चखाएगा।
पैसा व्यवस्था है , व्यवस्था बुद्धि से है ,
पैसा की रक्षा पैसा वृद्धि से है ,
पैसा देशाटन है, पैसा तीर्थाटन है,
देशाटन में ज्ञान है, सिर्फ पैसा निदान है।
पैसा से खेती है, खेती से अन्न है,
अन्न से धन है, अन्न से जन है,
जन में किसान है, जन में इंसान है,
जन में बेइमान है, जन में हैवान है।
सबका आधार यह , सबका बहार यह,
जन जन का प्यार यह , द्वेष तकरार यह,
आता है जाता है , जी ललचाता है,
आंख मिचौली का खेल दिखलाता है।
पैसा सुनहला है, पैसा दुपहला है,
पैसा चौकोना है, पैसा छः कोना है,
पैसा है कागज का , पैसा है धातु का ,
पैसा चमत्कारी है , पैसा सरकारी है।
पैसा लड़ाता है, पैसा नाचाता है,
पैसा गिराता है, पैसा उठाता है,
मन को उड़ाओ मत , खर्चा बढ़ाओ मत ,
फिजुल खर्च कर पैसा उड़ाओ मत।
पैसा कोलाहल है , पैसा हलाहल है,
पैसा घोटाला है , सफेद और काला है,
बड़े बड़े का ईमान डोला जाता है,
कभी कभी साधु को चोर बना जाता है।
पैसा पाठशाला है, पैसा चित्रशाला है,
पैसा जोशीला है, धनिकों का कीला है,
पैसा डील डौल है, पैसा सुडौल है,
पैसा है मौल है, पैसा है कौल है।
पैसा से तौल है , पैसा से धौल है,
पैसा सर्वभौम है, जहां नहीं मौन है,
पैसा मतवाला है, पैसा निराला है,
पैसा से नाक है, पैसा से गांठ है ।
पैसा पे कान दे , पैसा पे ध्यान दे,
पैसा पे लगाम दे , पैसा को मान दे,
पैसा से घात है, पैसा ही तात है।
पैसा से गति है, पैसा ही मति है,
पैसा ही नीति है, पैसा सुमति है,
पैसा बहार है, पैसा है प्यार है,
द्वेष का भंडार है , पैसा है यार है।
पैसा है गुलशन है, दुल्हा है दुल्हन है,
पैसा है दुश्मन है, नहीं है शून्य मन है,
पैसा ही सोच है, पैसा है कोच है,
जिनके ए पास नहीं वहां अफसोस है।
विकास का यह केन्द्र है, राजाओं में देवेन्द्र है,
पृथ्वी पर महेंद्र है, योद्धाओं में जितेंद्र है,
देवों में महेश, ज्योतिओं में दिनेश है,
सिद्धिदाता गणेश है , पैसा विशेष है।
पुस्तक में सुवेद है, भेदों में विभेद है,
इससे मतभेद है, पाते वे खेद हैं ,
चाहे पुराण हो , चाहें कुरान हो ,
पैसा नहीं है तो सबकुछ बेजान हो।
पैसा है वाहन है, पैसा है सावन है,
पैसा ही रावन है , पैसा मनभावन है,
हाथ में पैसा गर आनंदित छुट्टी है,
पैसा नहीं है तो छुट्टी से कुट्टी है।
पैसा है ताली है, पैसा है डाली है,
डाली की जाली से कार्य सफल होता है,
डाली नहीं है तो कार्य विफल होता है।
पैसा से कानन है, पैसा ही आनन है।
पैसा ही शिष्ट है , पैसा क्लिष्ट है,
पैसा नरोत्तम है, पैसा सर्वोत्तम है,
पैसा कालांतर है, पैसा समयांतर है,
लोभ और मोह है, अद्भुत आडंबर है।
********** क्रमशः ***************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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