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मंगलवार, 28 जून 2022

आदमी ( भाग 2 )

अनुसंधानशाला से आदमी भाग 2 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कविता
आदमी ( भाग 2 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

आशियाना बसाते सही आदमी,
तोड़ उसको गिराए नहीं आदमी।
जो कर से कमाएं
मध्यम आदमी ,
जो बुद्धि लड़ाए
उत्तम आदमी ।
जो जी को चुराए अधम आदमी ,
जिनकी कृति अमर सर्वोत्तम आदमी।

नवधारा गिराए यही आदमी ,
नव मानव बनाए यही आदमी।
नवचेतन जगाए
सही आदमी ,
छल को ठेंगा दिखाए
सही आदमी ।
मथ के नदियों के पानी को पौरुष से जो ,
भर दे ज्योति दिशाओं में कर्मठ है वो।

इन पे माथा झुकाता सभी आदमी ,
ए हैं देवों में देव सुनो आदमी।
धैर्य इनमें बहुत है
सुनो आदमी ,
बैर इनको गैर है
सुनो आदमी।
मेरे मन की सहेली यही आदमी ,
खून बनके जिलाते यही आदमी।

बनके ऊर्जा जिलाते यही आदमी ,
मन में हिम्मत बढ़ाते यही आदमी ।
जिनमें है स्वाभिमान
सही आदमी ,
बिना पूछे जो जाए
नहीं आदमी ।
बिना परखे जो करता नहीं आदमी ,
जिसका हिम्मत सखा है वही आदमी।

जिनमें गैरत नहीं है केवल आदमी,
जिनमें हैरत भरा है मरल आदमी।
जाल संकट का काटे
सही आदमी,
जल संकट बिछाए
नहीं आदमी ।
मन की अग्नि बुझाए विरल आदमी ,
मन में अग्नि लगाए गिरल आदमी।

फूल से दामन फंसाते सभी आदमी,
जो है कांटा चबाते वही आदमी।
घनचक्कर में डाले
गिरल आदमी ,
चक्रपाणि कहते
विरल आदमी ।
ब्रह्म पैदा है करता नहीं आदमी,
ब्रह्म करता है पैदा सभी आदमी।

कुछ इनमें से बनते असल आदमी ,
कुछ इनसे बनते नकल आदमी ।
कुछ इनमें से बनते
गिरल आदमी,
कुछ इनमें से बनते
विरल आदमी ।
नहीं जन को बढ़ाओ सिर्फ आदमी ,
उसे शिक्षित बनाओ मूर्ख आदमी ।

किसे  गुरु बनाएं कहो आदमी ,
अपना चिंतन है गुरु सुनो आदमी।
भ्रम करता है पैदा
गिरल आदमी ,
कर्म करता है पैदा
विरल आदमी ।
सब्र खोने से बनता गिरल आदमी ,
सब्र रखता है हरदम विरल आदमी।

धैर्य होने से होता अभयआदमी ,
धैर्य होने से होता अजय आदमी।
धैर्य कारण ही करता
विजय आदमी ,
धैर्य छूटा तो होता है
क्षय आदमी।
धैर्य  अंतिम समय का कठिन आदमी,
धैर्य अंतिम समय का विजय आदमी।

धैर्य करता है मन को निर्भय आदमी,
धैर्य करता है मन को सबल आदमी।
गिरकर मिट जाए
मरल आदमी,
गिरकर टूट जाए
गिरल आदमी ।
गिर कर उठ जाए सरल आदमी ,
टूटकर जुट जाए विरल आदमी।

आंधियों में जो स्थिर अचल आदमी ,
विघ्न जिनको हिलाए विचल आदमी।
घोर गर्जन में अविकल
विरल आदमी,
घोर संकट से विचलित
गिरल आदमी।
काम बुद्धि से करता सफल आदमी,
तर्क लाता अमल में असल आदमी।

बिना सोचे है करता नकल आदमी,
फल पाने पर होता विकल आदमी।
दूसरों पर जो आश्रित
नहीं आदमी,
अपने पर जो आश्रित
वही आदमी।
काम कितना कठिन व विकट आदमी,
जिन्हें लगता सरल व निकट आदमी।

एक दिन वही होते अमर आदमी,
एक दिन वही  बनते अजय आदमी।
कुछ की बातों से होता
तरल आदमी,
कुछ की बोली में होता
गरल आदमी।
कुछ बाहर से होते सरल आदमी,
पर अंदर में रखते गरल आदमी।

कुछ बाहर से दिखते मरल आदमी,
पर अंदर से होते गिरल आदमी।
कुछ बाहर से होते
गरल आदमी,
पर अंदर से होते
सरल आदमी।
कुछ अंदर व बाहर सरल आदमी,
कुछ अंदर व बाहर गरल आदमी।

कुछ होते हैं बिल्कुल मौन आदमी,
कुछ कहना कठिन ए कौन आदमी।
कुछ ऐसे भी होते
सफल आदमी,
जिनके कर्मों को करता
नकल आदमी।
कुछ ऐसे भी होते विफल आदमी,
जिनके कर्मों से रहता अलग आदमी।

कुछ ऐसे भी होते सरल आदमी,
जिनकी संगति बनाती तरल आदमी।
कुछ की संगति में पीता
गरल आदमी,
कुछ की संगति में जीता
मरल आदमी।
कुछ की संगति से मिटता सरल आदमी,
कुछ की संगति से होता विरल आदमी।

***********  क्रमशः ****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
Mobile  6201400759

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सोमवार, 27 जून 2022

आदमी ( भाग 1 )

अनुसंधानशाला से आदमी भाग 1 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद 

कविता
आदमी ( भाग 1 )
रचनाकार- इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कुछ समझ में न आया  कौन आदमी ?
वकवादी हो अथवा मौन आदमी ।
जिनसे आशा किया ,
वही धोखा दिया ,
कुछ जहर घोलकर ,
कुछ कहर खोल कर ।
मैंने पिया जाहर , बना शिव शंकर ,
बन के रावण में राम , मैंने झेला कहर ।


अब कलम उठा , शब्दवेधी चला ,
करेंगे बयां भिन्न भिन्न जीवन कला ।
आदमी जिंदगी
या जीवन आदमी  ,
बेशर्म आदमी
या हया आदमी ।
धर्म आदमी या कर्म आदमी ,
भ्रम आदमी या मर्म आदमी ।


सुधा आदमी या जहर आदमी ,
धोखा आदमी या लहर आदमी ।
सब मंथन से मुझको
ए आई समझ ,
काम आए समय पर
वही आदमी ।
क्षुधा आदमी या खुदा  आदमी ,
लूटा आदमी जब फूटा आदमी।


जुटा आदमी तब बढ़ा आदमी ,
जब रावण हुआ तब मिटा आदमी ।
मंत्री आदमी
या संत्री आदमी ,
विधि आदमी
या निधि आदमी।
नेताओं को परखा तो आई समझ ,
जिनकी नीति नहीं है वही आदमी।


जहां मूर्ख समाज अनपढ़ आदमी ,
जहां काना राजा अंध सब आदमी।
जहां कर्मठ सभी ,
सब उन्नत आदमी ,
जहां द्वेषी अधिक
अवनत आदमी ।
घर घर में झांका देखा आदमी ,
हर चेहरे को देखा पढ़ा आदमी।


कुछ वस्त्रों में लिपटे सिर्फ आदमी ,
कुछ सजके संवरके बने आदमी ।
कुछ पागल बने
घूमते आदमी ,
कुछ काटे ना मांगे
पानी आदमी ।
कुछ की बोली से शीतल होता आदमी ,
कुछ की बोली पर गोली छोड़े आदमी।


बूढ़ा आदमी या शिशु आदमी ,
बेटा आदमी या बेटी आदमी ।
रोना आदमी
या हंसी आदमी ,
जो है मीठा न खट्टा
वही आदमी ।
सभी पूछते हैं मैं हूं कौन आदमी ?
जो कभी न मरे मैं वही आदमी ।


पंडा आदमी या मुल्ला आदमी ,
या जो ठगकर कमाए वही आदमी।
इस धारा पर आए
बहुत आदमी ,
इस धारा से जाए
बहुत आदमी,
काल खाए रोजना बहुत आदमी,
नाम करता अमर है  सही आदमी।


जिसे जपता तवारीख  सही आदमी,
भू की महत्ता बढ़ाए यही आदमी।
काम छोड़े अधूरा
नहीं आदमी,
काम करता है पूरा
सही आदमी।
काल जिनको नचाए नहीं आदमी,
वक्त जिनको रुलाए नहीं आदमी।


वक्त खुद जो बनाए सही आदमी,
सिर्फ बातें बनाए नहीं आदमी।
गीत गाए खुशी से
सही आदमी,
दुख से आंसू बहाए
नहीं आदमी।
नाज अपना पे जिनको सही आदमी,
जो है दूसरे पे आश्रित नहीं आदमी।


ले कल से जो शिक्षा सही आदमी,
आज पर हाथ जिनका सही आदमी।
आंख परसों पर जिनकी
सही आदमी,
कालदर्शी बने हैं
यही आदमी।
नम्र हृदय है जिनका सही आदमी,
मन पत्थर है जिनका नहीं आदमी।


लेखनी जिनकी तीखी सही आदमी,
शब्द जिनका दे जीवन सही आदमी।
नव जीवन बने जो
वही आदमी,
जो नाशे जीवन को
नहीं आदमी।
अपने करतब को देखो सभी आदमी,
क्या है पाया अभी तक सभी आदमी ?

कम पाए अगर हो सभी आदमी,
कुछ करतब करो अब सभी आदमी।
क्यों दूसरे से जलते
लोभी आदमी,
खुद अपने को परखो
सभी आदमी।
सुंदरता बिछाए सही आदमी,
जो कीचड़ लगाए नहीं आदमी।

************  क्रमशः *****************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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गुरुवार, 23 जून 2022

विचार ( भाग 13 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 13 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 13 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** मन की गति ( Velocity of mind)
किसी व्यक्ति के लिए यदि स्रवण, स्वाद, स्पर्श, एवं घ्राण स्थिर मान लिया जाए तो मन की गति प्रकाश की तीव्रता ( intensity of light )  पर निर्भर करती है। **

** विषम परिस्थितियों में भी संयम और धैर्य बनाए रखना योग्य पुरुष के लक्षण होते। और यही सफलता का रास्ता भी है। **

** ईश्वर को पेट नहीं होता । इसलिए उसे भोजन की आवश्यकता नहीं होती है। प्रसाद तो भक्त गण अपने लिए चढ़ाते हैं। अगर ईश्वर खाने लगे तो कोई भी प्रसाद नहीं चढ़ाएगा। सभी उसे पेटु कहेंगे।
इसलिए कर्मठ योग्य व्यक्ति को मानव बनना चाहिए। क्योंकि मानव को पेट होता है और पेट के लिए भोजन चाहिए। **

** जो सहायक दोस्त और दुश्मन दोनों में भी बैठे उस पर विश्वास करना धोखा खाना है। वह विश्वासनीय नहीं है। **

** गुणा और जोड़ की लगातार क्रियाएं का अंत अनंत है। तथा घटाव और भाग का शून्य। शून्य आरंभ है और अनंत अंत। अतः घटाव और भाग आरंभ की ओर ले जाते जबकि जोड़ और गुणा अनंत की ओर।
उन्नति और अवनति का भी यही नियम है। उन्नति के लिए जोड़ें या गुणा करें। अवनति के लिए घटाएं या भाग करें। **

** नाम, यश और धन ही नाम, यश और धन लाते और इन्हें पाने के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। **

** चारो तरफ विष्ठा हो और जाने का रास्ता नहीं तो मजबूरी में विष्ठा का रास्ता ही चुनना पड़ेगा।
यदि तीन तरफ विष्ठा हो और एक तरफ गंदगी हो तो गंदगी चुनना बेहतर होगा।
कहने का तात्पर्य यह है कि चतुर जन जो बेहतर है उसे ही चुनते हैं।
अंधों में काना को राजा बनातें हैं। **

** अगर संसार चोर हो जाए और एक साधु हो तो उसे क्या करना चाहिए ?
मेरे विचार में दो ही रास्ते हैं। या तो चोर बन जाए या उस जगह का परित्याग कर दे। **

** मनुष्य को बिना कर्म नहीं बैठना चाहिए। कुछ न कुछ करते रहना चाहिए , रंग बदल कर, ढंग बदल कर, संग बदल कर। **

** अगर लंबाई घटाई जाए और चौड़ाई बढ़ाई जाए तो एक समय ऐसा आएगा कि लंबाई और चौड़ाई बराबर हो जाएगी। विकास-विनाश और लाभ-हानि इत्यादि की भी यही स्थिति है। **

** प्रारब्ध ईश्वरीय है और कर्म मानव निर्मित। कर्म अपने अंतर्गत आता , प्रारब्ध अधिकार से बाहर। अतः प्रारब्ध से अच्छा है कर्म पर विश्वास करना। **

** खुशी दो तरह से होती। एक निर्धारित कार्य की समाप्ति पर तथा दूसरा सफल फल प्राप्ति पर। **

** सांप हर जगह ( बिल से बाहर ) टेढ़ा चलता है, परंतु बिल में बिल के जैसा। यदि बिल सीधा हो तो उसे सीधा चलना पड़ेगा नहीं तो उसकी कमर टूट जाएगी। बिल सांप का रक्षक है और उससे ज्यादा शक्तिशाली।
प्रकृति और ईश्वर भी जीव के लिए ऐसा ही है। **

** जब कोई अपना अस्तित्व खोता है तब ही वह दूसरा में बदलता है। **

** जैसे जैसे सूक्ष्मता की ओर वस्तु बढ़ती जाती है अपना गुण खोती चली जाती है। जैसे सभी तत्व का इलेक्ट्रॉन एक ही गुण का होता है, इसमें पदार्थ का गुण नहीं होता है।
उसी प्रकार जब मानव जैसे जैसे ईश्वरत्व की ओर बढ़ता जाता है समाजिक गुण राग, द्वेष, मान, अपमान इत्यादि भूलकर एक होता जाता है। **

** पांच ज्ञानेंद्रियां मन बनाते हैं। और मन विचार बनाता है। इन पांचों में आंख सबसे प्रधान है। इसके बाद कान , स्पर्श , स्वाद और गंध है। **

** मनुष्य का प्रभाव दो तरह से होता है। प्रथम रूप द्वारा तथा दूसरा गुण द्वारा।
प्रथम तुरंत प्रभाव डालता है। और दूसरा कुछ समय तक साथ रहने पर।
प्रथम अस्थाई प्रभाव है जबकि दूसरा स्थाई।**

** किसी देश में प्रत्येक व्यक्ति की आस्था और शक्ति का कुल योग वहां की सरकार का मापदंड है।**

** जैसे मल्लाह जाल से मछली छापता है वैसे ही ज्ञानी प्रकृति से ज्ञान पकड़ विचार बनाते हैं।**

** मनुष्य खुश होने पर हंसता है और दुखी होने पर रोता है। इन दोनों अवस्थाओं के बाद  सामान्य होता है। ए दोनो अतरिक्त मनोभाव को बाहर कर सामान्य बनाते हैं जैसे डैम का स्पिल वे (spill way ) डैम से पानी बाहर निकल डैम को सामान्य बनाता है। **

** भेष और परिवेश ही विशेष बनाता है। इसलिए मनुष्य को दोनों पर ध्यान देना चाहिए। **

** तम भार में शून्य तथा आयतन में अनंत है। दूसरे शब्दों में इसका विस्तार अनंत और तौल शून्य है। देखने में अनंत और अनुभव करने में शून्य है।**

** पेट की सामग्री सस्ती होती है और मन की महंगी। पेट की सामग्री कुदाल देता और मन की कलम। **

** सहयोग तीन तरह से किया जाता है , तन से , मन से और धन से। **

** बच्चे खिलौने से खेलते और सयाने बच्चों से। अतः बच्चे सयानों के लिए खिलौना हैं जो मन को प्रसन्न करते हैं। **

** कलह और दुख से हमेशा नाश होता है। तथा शांति और सुख से हमेशा विकास।**

** पानी का कोई रंग नहीं होता है। इसका रंग अदृश्य है। यह जिस पात्र में रहता है उसी के रंग के कारण दिखलाई पड़ता है।**

** प्याज के सभी परत निकाल देने पर जो बचता है वह शून्य है। जहां पर रूक जाएं वहीं प्याज का अस्तित्व है। अंतिम परत शून्य है, यहां उसका अस्तित्व नहीं रहता है। यह शून्य का सबसे बढ़िया उदाहरण है।**

** सभी पीला सोना नहीं होता है। पखाना भी पीला होता है।**

** अगर पखाना और मूत्र ही खाना पड़े तो सज्ञ और विज्ञ गाय के खाते हैं जैसे पंचगभ और पंचामृत।**

** जैसे कुम्हार का घड़ा शुरू में कच्चा रहता है, वह जरा सा झटका नहीं सह सकता है। और जिसे वह पीटकर, सुखाकर , रंग कर, तथा अंत में आग में जला कर पक्का बनाता है वैसे ही पिता अपनी संतान को विभिन्न अवस्थाओं और क्रियाओं से गुजार कर पक्का और योग्य बनाता है। **

** प्रत्येक नाम अपने आप में एक छोटा इतिहास छुपाए हुए है।**

** सोचने में सबसे कम, देखने में उससे ज्यादा , सुनने और बोलने में उससे ज्यादा, और लिखने में सबसे  ज्यादा समय लगता है। **

** प्रकृति हमेशा अपना संतुलन बनाए रखती है। इसलिए वह जितना ऋणात्मक होगी उतना ही घनात्मक । दूसरे शब्दों में एक जगह अगर ऋणात्मक होगी तो दूसरे जगह घनात्मक तभी संतुलन में रहेगी।
अर्थात   ऋणात्मक + घनात्मक = 0
इसलिए  सभी रोग की दवा भी प्रकृति में है , जरूरत है उसको खोजना। **

************ क्रमशः *****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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मंगलवार, 21 जून 2022

विचार ( भाग 12 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 12 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कोटेशन
विचार ( भाग 12 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** समझना से समझाना कठिन होता है। **

** साहित्य का महत्व दो तरह से आंका जाता है।
प्रथम शब्दों की प्रधानता द्वारा तथा दूसरा विचार , भाव इत्यादि की प्रधानता से।
शब्द प्रधान साहित्य के अनुवाद के बाद उसकी मूल गुणवत्ता नहीं रहती , क्योंकि अनुवाद के बाद शब्द बदल जाते हैं।
लेकिन विचार और भाव इत्यादि प्रधान साहित्य अनुवाद के बाद भी अपनी गुणवत्ता बनाए रखते हैं । क्योंकि भाषा बदलने के बाद भी विचार और भाव इत्यादि नहीं बदलता । ए शाश्वत हैं।**

** अनुश्वार (• ) और चंद्र बिंदु की उत्पत्ति संभवत: चांद और तारा देखकर  हुयी है। **

** अधिकांश कार्य दो प्रकार से पूरे किए जाते हैं -
1. हाथ से
2. मस्तिष्क से
इन दो प्रकार के कार्यों में पूरा संसार रत है। **

** जाति नाम , धर्म और भेष बदलकर बदली जा सकती है। **

** समाज ईश्वर का एक ब्रांच औफिस है। और व्यक्ति इसका एजेंट। **

** कलम का काम देखने में बहुत आसान , पर करने में भीषण कठिन है। जबकि कुदाल का काम देखने में भीषण कठिन , पर करने में आसान है। **

** विकास और विनाश समय पर सीधे निर्भर करता है। **

** नवीनता के लिए परिवर्तन आवश्यक है । और परिवर्तन के लिए नवीनता आवश्यक है। **

** सफलता के लिए अपने सामर्थ्य अनुसार लक्ष्य निर्धारित करना जरूरी है। और निर्धारित समय में उसे पूरा करना भी जरूरी है। **

** जो शिकारी जिस तीर से शेर मारने की तमन्ना रखता है उससे गीदड़ भी नहीं मरे तो या तो शिकारी अनाड़ी है या गीदड़ चमत्कारी। **

** किसी तथ्य की सत्यता निम्न प्रकार से की जाती है।
1. मानक पुस्तक द्वारा
2. वैसा ही घटना देखकर या विश्वासी व्यक्ति से सुनकर।
3.  प्रयोगशाला में परीक्षण कर । **

** मानव संसार मुख्यत: तीन कर्मों में ही रत है।
1. दैहिक ( देह संबंधित )
2. भौतिक ( जीविका इत्यादि संबंधित )
3. आध्यात्मिक ( मन / आत्मा इत्यादि संबंधित )
अज्ञ और दुर्जन दूसरा और सज्ञ & विज्ञ दूसरा के साथ तीसरा पर जोर देते । प्रथम सभी को अंशत: या पूरा करना ही पड़ता है। **

** कोई जिधर घृणा करता उधर पीठ और जिधर भय देखता उधर मुंह रखता है। इसी प्रकार सोने में जिधर निर्भयता है उधर सिर और जिधर भय है उधर पैर रखता है।
उदाहरण स्वरूप गेहुंअन सर्प को लिया जा सकता है। जिधर मनुष्य देखता उधर अपना फन रखता है। **

** भारत में अराजकता के अनेक कारणों में से एक कारण यह है कि आजादी के बाद ग्रामीण प्रशासन जो पंचों द्वारा संचालित होता था धीरे धीरे शून्य होता गया।
यह प्रशासन 90% लोगों की समस्याएं सुलझाता था। अतः 90% समस्याएं खड़ी है।
आधुनिक पंचायत का प्रारूप वह नहीं जो पहले था। प्राचीन पंचायत की झलक मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी पंच परमेश्वर में दृष्टिगत होती है। **  

** प्रकाश ( चेतन ) और अंधकार ( जड़ ) इन दो से ब्रह्मांड निर्मित है। इन दोनों का मूल तम है। **

** मानव के पूरे जीवन में तीन ही साथी और संरक्षण बनते।
1. आरंभ में माता-पिता
2. जवानी में पत्नी
3. अंत में संतान **

** ब्रह्मांड में कोई भी रेखा परम सरल रेखा  ( absolute straight line ) नहीं है। अर्थात शून्य डिग्री का वक्र।  परम सरल रेखा भी नहीं खींचा जा सकता है।**

**  तम क्या है ?
जिसमें लम्बाई, चौड़ाई , मोटाई , समय , आवृत्ति या साइकिल शून्य या अनंत हो । यह नित्य , सर्व व्याप्त और अविनाशी है।
यह वैज्ञानिक हाईगन के ईथर सा है , लेकिन काल्पनिक नहीं है । इसका भौतिक रूप अंधकार , नीला , काला इत्यादि देखने में मिलता है। **

** आकाश कैसे बना है ?
आकाश का प्रथम तह तम है । दूसरा तह गुरुत्वाकर्षण और विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र से भरा है । इसके बाद और सब ( जैसे हवा , ध्वनि इत्यादि ) है। **

** सत्य प्रमाणित निम्न प्रकार से किया जाता है।
1. मानक पुस्तक
2. गणित
3. निरीक्षण और अवलोकन
4. प्रयोग
5. तर्क
6. साक्ष्य और गवाह **

** मेरे विचार में मन , आत्मा , प्राण , ब्रह्म, परमात्मा की परिभाषा निम्न हैं।

मन - पांच ज्ञानेंद्रियां नाक , कान, आंख , त्वचा एवं जीभ द्वारा निर्मित एक विशेष तरंग को मन कहते हैं।
मन = +/- दृश्य +/- घ्राण +/- स्पर्श +/- स्वाद +/- स्रवण
आत्मा - ईश्वर के अंश जो सबमें रहता उसे आत्मा कहते हैं।
परमात्मा - कुल आत्मा और ईश्वर के शेष भाग का योग को परमात्मा कहते हैं। इस प्रकार परमात्मा और ईश्वर एक ही हैं।
प्राण - संवेदना उत्पन्न करने वाला तत्त्व को प्राण कहते हैं।
ब्रह्म - ईश्वर का सक्रिय रूप को ब्रह्म कहते हैं।
            ब्रह्म + 0.0°1 = ईश्वर
                    0.00000.......1 = 0.0°1

उपरोक्त सब मेरा अपना सोच और विचार है। इस पर आप सब अपना विचार और प्रतिक्रिया से अवगत कराएं तो आभारी रहूंगा।

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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सोमवार, 20 जून 2022

विचार ( भाग 11 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 11 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कोटेशन
विचार ( भाग 11 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** मूर्ख का यह गुण होता है कि अपनी प्रगति के लिए सदा शून्य से गुणा करता है और अनंत से विभाजित । नतीजा शून्य का शून्य।
और दुष्ट इससे चतुर होता । वह शून्य जोड़ता रहता है । नतीजा जैसा का तैसा रहता है।
लेकिन सज्ञ और विज्ञ शून्य तथा अनंत की क्रिया से पूर्ण वाफिक होते । इसलिए  वे समयानुसार शून्य से भाग और अनंत से गुणा कर अपना विकास करते रहते हैं। **


** व्यक्ति की अमरता में नाम , यश और धन का योगदान अहम होता है । **


** अगर मन कर्म करना न चाहे , काम से मन जी चुराए , यह भी न समझ आए कि क्या करें या न करें , तो  ऐसे समय में सभी कार्यों की एक सूची बना लें और जो सबसे आसान और रूचिकर कार्य हो उसे पहले शुरू करें । इसी तरह और कार्यों को करते जाएं। जो सबसे कठीन है उसे सबसे बाद में।
अगर यह भी न हो पाए और मन अशांत रहे तो उस जगह को कुछ समय के लिए छोड़ देना ठीक रहता है। **


** अविद्या विद्या के मार्ग में सदा रुकावट पैदा करती है। यह डरती है तो सिर्फ दो से -
1. धन , क्योंकि यह निर्धन होती है तथा धन के प्रति अतीव आकर्षण रखती है।
2. राजदंड , क्योंकि राजदंड इसको रोकने के लिए ही विद्या की देन है। **


** विकास - इसमें पहले नाम , तब धन और अंत में यश मिलता है।
विनाश - पहले धन जाता , तब नाम और अंत में यश । **


** पूर्व संस्कार , वर्तमान संस्कार और परिवेश मन और चरित्र का निर्माण करते हैं। **


** अगर प्रकाश स्रोत पृथ्वी से बाहर अर्थात सूर्य , तारा इत्यादि पर लिया जाए तो इससे पृथ्वी पर बनी छाया अनित्य ( variable ) होती है।
अगर प्रकाश स्रोत पृथ्वी पर लिया जाए जैसे लालटेन इत्यादि तो इससे बनी छाया नित्य ( constant ) होती है।
इसी कारण माइचेलसन और मोरले प्रयोग में drift नहीं मिलता है। क्योंकि स्रोत पृथ्वी पर है ।**


** किसी एक समान गति से गमन करता हुआ पिंड A पर  स्थित गति करता हुआ पिंड B की गति पर पिंड A की गति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
लेकिन ज्योंहि इससे संपर्क छूटता है उसकी गति पर प्रभाव पड़ जाता है।
जैसे - रेल में सवार व्यक्ति अपने ही गति से अंदर घूमता है। लेकिन अगर बाहर कूदे तो गाड़ी की गति प्रभाव डाल देगी। 
( माइचेलसन और मोरले प्रयोग में इसी कारण प्रकाश की गति पर पृथ्वी की गति का प्रभाव नहीं पड़ता है , क्योंकि प्रकाश स्रोत पृथ्वी पर है । जिससे drift नहीं मिलता है। )**


** दो देशों के युद्ध में दोनों का संविधान कठोर रूप से सक्रिय हो जाता है , लेकिन गृह युद्ध की स्थिति में उल्टी होती , क्योंकि गृह युद्ध संविधान की शिथिलता के कारण ही होता है। **


** राजद्रोह - जो व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए लड़ा जाए।
गृह युद्ध -  जो जन कल्याण के लिए लड़ा जाए और जिसमें आम जनता भाग ले। **


** समाज की रचना और संचालन समझौता के सिद्धांत के कारण है। **


** वह कर्म बढ़िया और अच्छा कर्म कहलाता जो दूसरे कर्म में सहयोग दे और सफल बनाए। जो असहयोग करे और असफल बनाए वह घटिया कर्म है। **


** एक ही कर्म एक के लिए बढ़िया तो दूसरे के लिए घटिया हो सकता है। एक समय में बढ़िया तो दूसरे समय में घटिया हो सकता है वगैरह। **


** कोई भी व्यक्ति किसी की मृत्यु का कारण हो सकता है कर्त्ता नहीं। लेकिन अपनी मृत्यु और जीवन का कर्त्ता हो सकता है। **


** आचार्य भास्कर के अनुसार शून्य को शून्य से विभाजित करने पर परिणाम अनंत होता है। **


** चाहें किसी विधि से मिली सफलता सुखदाई होती , जबकि असफलता दुखदाई। **


** धन का आगमन असंतोष पैदा करता है । और धन का गमन संतोष करने पर बाध्य करता है । ए धन का नित्य गुण हैं। **


** सज्ञ - किसी चीज का पूर्ण ज्ञान
विज्ञ - जो सिद्धांत प्रतिपादित करे। जैसे - पाणिनि , कर्णाद , न्यूटन वगैरह।
शिक्षक - ज्ञान के साथ बताने का ढंग सरल और बोधगम्य। **


** जीत के लिए निम्न शक्तियों की आवश्यकता होती है -
1. आध्यात्मिक ( आत्मिक ) शक्ति
2. बौद्धिक /तार्किक शक्ति
3. कुटनीति/राजनीति
4. सैन्य शक्ति
5. धन वगैरह **


** ब्रह्मांड में कोई ऐसा चीज नहीं जो बिना छिद्र  ( void ) का हो। प्रकाश में भी छिद्र है । एक ही चीज जिसमें छिद्र नहीं है वह है तम । यानी शून्य छिद्र ( zero void ) । **


** जब मनुष्य शरीर धारण कर लेता है तो बिना कर्म नहीं रह सकता है। प्रत्येक शरीरधारी जीव को कर्म करना ही पड़ता , चाहे वह सुकर्म हो अथवा कुकर्म। सभी कर्म का दो ही लक्ष्य है। मन की तृप्ति या पेट की तृप्ति।
ए दोनो लक्ष्य सुकर्म से भी पूरा होते और कुकर्म से भी। लेकिन सुकर्म लक्ष्य पूर्ति के साथ नाम और यश भी देता , लेकिन कुकर्म अपयस ।
कुकर्म का प्रारंभ सुगम , आकर्षक और लुभावन होता है , लेकिन अंत कष्टकर । सुकर्म का आरंभ अरुचिकर होता , लेकिन अंत सुखमय ।
मूर्ख , दुष्ट प्रायः कुकर्म अपनाते , और सज्ञ , विज्ञ सुकर्म । **



** मूर्ख और दुर्जन का तीन अनियंत्रित होता है ।
प्रथम मुंह , दूजा जीभ , तीसरा हाथ । यदि इन तीनों पर वे नियंत्रण कर लें तो सज्ञ बन जाएंगे। **



** यदि कोई बिंदु किसी बिंदु के सापेक्ष स्थान न बदले तो उसे स्थिर बिंदु कहते हैं।
परंतु परम स्थिर बिंदु ( Absolute fixed point ) शून्य ( zero ) या अनंत ( infinite ) की गति से अपना स्थान परिवर्तन करता है। इस कारण छोटा से छोटा दूरी तय करने के लिए अनंत समय या बड़ा से बड़ा दूरी तय करने के लिए शून्य समय लेता इस कारण वह वहां के वहां ही रहता।
अवलोकन से तम में यह स्थिति देखने को मिलती है। क्योंकि ज्योंहि प्रकाश रोका जाता तम वहां तुरंत प्रकट हो जाता है।
अतः तम परम स्थिर बिंदु का एक स्पष्ट उदाहरण है। **


** भय का कारण भ्रम है । भय का निदान ज्ञान , बुद्धि , तर्क तथा अध्ययन है। **


** अर्थव्यवस्था तीन प यानी प्रकृति , परिवेश और परिवर्तन पर निर्भर है। **


** पागल कोई समाजिक कार्य नहीं कर सकता है। यदि कोई समाजिक कार्य करता है तो वह पागल नहीं है।
अगर किसी में पागलपन का लक्षण दिखाई पड़े तो उसे उसके रुचि अनुसार समाजिक कार्यों में व्यस्त करना चाहिए। धार्मिक कार्य ( किसी भी धर्म का ) भी एक समाजिक कार्य ही है और सरल भी है।
पागलपन दूर करने का यह सरल देसी उपाय है।**



** अगर किसी देश में वहां की प्रजा 100 रुपए की लागत से 1000 रुपए की उत्पादन करती है। तथा 5000 रुपए लगाकर 4000 रुपए की ।
तो अर्थशास्त्र अनुसार बाद वाला उत्पादन देशहित में है और पहले वाला व्यक्तिगत हित में।**


** जब अच्छा और बुरा में फर्क नही पता चले तो या तो वह ईश्वरत्व की ओर झुक रहा या पागलपन की ओर। **


** महात्वाकांक्षा अच्छी बात है। बिना इसके कोई सफल नहीं हो सकता , परंतु अति महत्वाकांक्षा विनाशकारी है। सफलता की जगह विनाश दायक है। **


************ क्रमशः ******************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
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गुरुवार, 16 जून 2022

विचार ( भाग 10 )

अनुसंधानशाला से इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद विचार भाग 10 प्रस्तुत करते हुए


कोटेशन
विचार ( भाग 10 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** आम आदमी सिर्फ बीता कल अर्थात भूत की बातें  सोचता है और जीता है । मध्यम पुरुष बीता कल यानी भूत की बातें सोचता है परंतु भविष्य में जीता है । परंतु उत्तम व्यक्ति , दूरदर्शी पुरुष भूत वर्तमान और भविष्य तीनों देखता है और सोचता है तथा वर्तमान में जीता है। **

** वर्तमान भूत का अंत और भविष्य का प्रारंभ है। 0.0000.....1 सेकेंड में भूत वर्तमान में और वर्तमान भविष्य में बदल जाता है। भूत पर सोचा जा सकता है , भविष्य पर विचार किया जा सकता है , लेकिन वर्तमान कर्म करने के लिए है । अगर यह समय गंवा दिए तो फिर नहीं आने का। **

** प्रकोष्ठ यानी रूम तथा पोशाक को अस्त व्यस्त रहना मानसिक परेशानी का द्योतक है । और ऐसा व्यक्ति या तो जाहिल है अथवा पहुंचा हुआ । **

** किसी भी व्यक्ति को परास्त करने का दो ही अचूक तरीका है । यदि साधन हीन या असमर्थ हों तो अपनी महत्वाकांक्षा को घटाएं । यदि प्रभावशाली और साधन युक्त हों तो इसका प्रयोग कर उसके समानांतर व्यवस्था कायम करें । **

** पौराणिक मतानुसार आत्मा मृत्यु के बाद निम्न  गति को पाती है ।
१. पुनर्योनि अर्थात पुन: जन्म
२. प्रेत योनि अर्थात उर्जा रूप में अंतरिक्ष में स्वतंत्र अवस्था में भटकती है ।
३. मुक्ति या मोक्ष अर्थात् परमात्मा में मिलन ।**

** हां कह कर धोखा देने से ना कह कर धोखा नहीं देना बेहतर होता है । **

** वह कर्म जिससे बढ़िया से  पूर्ण होने पर भी धन लाभ नहीं होता वह कर्म त्याज्य है। दूसरे शब्दों में अपने आप त्याज्य हो जाता है ।
वह कर्म जिससे अर्थ लाभ नहीं हो वह पूर्ण है अथवा अपूर्ण पहले यह देखना चाहिए । यदि अपूर्ण है तो पूर्ण करना चाहिए । यदि पूर्ण है तो त्याग कर देना चाहिए। **

** मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति सपने जैसी रहती है । **

**आत्मा बेहद सूक्ष्म तरंग उर्जा है । जिसका वेग प्रकाश वेग से ज्यादा होता है । **

** प्रत्येक व्यक्ति इसी आशा में जिंदा है कि मेरा अभीष्ट लक्ष्य , कार्य अब पूरा ही होने वाला है । यह उम्मीद उसे मृत्यु तक लगी रहती है । **

** प्रत्येक व्यक्ति चाहे गुणी हो या अवगुणी यही अभिलाषा होती है कि मेरे गुणों की प्रशंसा दुनिया करे , लेकिन दुनिया आदिकाल से गुणों की प्रशंसा करती है तथा अवगुणों को त्याग करती है। **

** विद्या और बुद्धि एक नहीं तथा ज्ञान भी इन दोनों से अलग है । एक अनपढ़ व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है , जैसे- अकबर । विद्या युक्त व्यक्ति भी मूर्ख हो सकता है , जैसे- एम ए पास मूर्ख । लेकिन ज्ञानी हमेशा बुद्धिमान और विद्वान ही होगा , क्योंकि ज्ञान विद्या , बुद्धि की संयुक्त देन है । **

** बुद्धि ईश्वरीय है अर्थात प्रभु निर्मित । तथा विद्या किताब , गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान है यानी मानव निर्मित । **

** किसी में परम लगा देने का मतलब है अनंत , जैसे- परम शक्ति , परम ब्रह्म , परम पिता इत्यादि। और अनंत सिर्फ एक ही है , अत: परम लगा देने से सभी एक ही का बोध कराता है , अर्थात अनंत का।**

** मलाह जैसे जाल से मछली छापता है , वैसे ही विज्ञ  ब्रह्मांड से विचार । **

** जैसे हवा की गति की दिशा के अनुकूल खर-पात़ और धूल इत्यादि घूमता रहता है , वैसे ही मूर्ख , गवांर चतुर के इशारे पर घूमते रहते हैं ।**

** सत्य क्या है ?
किसी भी चीज के विषय  में बार-बार सोचने के बाद यदि एक ही विचार रहे तो वह सत्य विचार है। **

** स्वाद का आरंभ बिंदु जहर है यानी हलाहल तथा अंत बिंदु अमृत है। अर्थात जहर का स्वाद को शून्य माना जाए तो अमृत का स्वाद अनंत । तथा और सभी स्वाद इनके बीच में। **  

** यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो महाभारत युद्ध का मूल द्रौपदी थी और विजय भी द्रौपदी ।**

** स्त्री पुरुष के बल , सफलता और उत्साह का मूल है । ए जैसी होगी व्यक्ति, घर ,समाज और देश वैसा होगा । ****

** अगर स्वतंत्रता  का मतलब अनुशासनहीनता है तो उससे अच्छा परतंत्रता है । **

** सबसे बड़ा साधु - जो दुष्ट के साथ दुष्टता करे। सबसे बड़ा दुष्ट - जो साधु के साथ दुष्टता करे और दुष्ट के साथ साधुता।**

**  कर्म फल कारण नहीं देखता ।  कर्म चाहे जिस कारण उचित या अनुचित के कारण पूरा नहीं हुआ हो तो फल पर प्रभाव डालता ही है , जैसे यदि एक मेधावी छात्र पैसे की कमी के कारण से किताब नहीं खरीद सकता , जिससे उसकी परीक्षा की तैयारी नहीं हो पाती , जबकि  वह निर्दोष है फिर भी वह अनुत्तीर्ण होगा । यह सिद्ध करता है कि कर्म फल कारण नहीं देखता।**

** कर्म फल कर्म की पूर्ति चाहता है । कर्म जब तक पूर्ण नहीं होगा तब तक उसका फल नहीं मिलता है। **

** कर्म का सफल फल ही प्रसन्नता , श्रेष्ठता एवं समृद्धि है । तथा असफल फल कुंठा , दरिद्रता एवं लघुता है। **

** उचित पूर्ण कर्म का उचित फल, उचित अपूर्ण कर्म का अपूर्ण फल , तथा अनुचित पूर्ण या अपूर्ण कर्म का कुछ फल नहीं मिलता है ।**

** प्रश्न - भ्रम क्या है ?
उत्तर - अशांत मन और अज्ञान ।
प्रश्न - अभ्रम क्या है ?
उत्तर - शांत मन और ज्ञान। **

** सूर्य प्रकाश में आंख से दृष्टिगत घटना और कान से सुनी ध्वनि विश्वसनीय होते हैं अन्यथा संदेहास्पद। **

** जीवन में कर्म बदल जाए और क्रिया नहीं बदला जाए या क्रिया बदल जाए और कर्म नहीं बदला जाए तो वह सफलता नहीं मिलती।**

** नौकरी वस्तुत: चाकरी है। नौकरी करने का मतलब है परतंत्र होना । **

सभी काल में सब कोई प्रायः यही कहता है कि मेरे पूर्वज का समय का जीवन सुखमय  था । और अब जमाना बदल गया। अब क्या जमाना आ गया ।और पहले कितना अच्छा जमाना था। इसका मूल कारण यह कि यह है कि सुनी बातें मनभावन होती तथा दूसरा कारण अतीत प्यारा होता है और वर्तमान कठोर क्योंकि यह प्रत्यक्ष होता और परिश्रम करना पड़ता वगैरह । **

************** क्रमशः *****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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बुधवार, 15 जून 2022

विचार ( भाग 9 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 9 प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कोटेशन
विचार ( भाग 9 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** सुख के दिनों में दुख का दिन भूल जाता है । अगर यदा-कदा याद भी आता है तो मधुर स्मृति बनकर और इससे मनोरंजन होता है ।
पर दुख के दिन में सुख का दिन नहीं भूलता , उसकी याद और प्रबल हो जाती है ,और यही सहारा और धैर्य बनती है। **


**  जैसे ध्रुव पर जाकर सभी देशांतर रेखाएं अपना कोण और दिशा खोकर एक बिंदु में परिवर्तित हो जाता है , वैसे ही ज्ञान की एक खास सीमा पार करने के बाद व्यक्ति को जीवों में अंतर नहीं  दिखता । **



** दुर्योधनो को एक से एक मारक कुबुद्धि एवं कुकर्म होता है । और कृष्णो को एक से एक सुबुद्धि एवं सुकर्म ।
कुबुद्धि एवं कुकर्म अंततः दुर्योधनो का ही विनाश करता है , तथा सुबुद्धि एवं सुकर्म कृष्णों को विजयी तथा दुर्योधनो को पराजयी बनाता है **


** शरीर में कंपन भय से भी होता है , और क्रोध से भी । भय से उत्पन्न कंपन शिथिलता एवं कुंठा उत्पन्न कर नाश करता है ।  इसके विपरीत क्रोध से उत्पन्न कंपन गतिशीलता , उग्रता एवं गुप्त बुद्धि पैदा कर करो या मरो को चरितार्थ करता है **


** कोई भी सिद्धि या सफलता  तीन मूल बातों पर निर्भर करती है। प्रथम योजना , दूसरा कर्म ( प्रयास ) और तीसरा धन **


**  पूर्ण ज्ञान या विद्या निम्न प्रकार से अर्जित होता है।
1. देख कर ( आंख से )
2. सुनकर (कान से )
3.सूंघकर (नाक से )
4. चखकर ( जीभ से )
5.स्पर्श कर ( त्वचा से )
6. बोलकर या पढ़कर ( मुंह से )
7. लिखकर ( हाथ से )
क्रम संख्या 1 से 5 पूर्ण ज्ञान देता है इसलिए पांच ज्ञानेंद्रियां कहलाता है ।
जब-जब की क्रम संख्या 1,2,6,7  पूर्ण विद्या देता है । **


** निर्धारित समय में निर्धारित कार्य को पूरा करने वाला व्यक्ति को सफल पुरुष कहते हैं ,और फल को सफलता । **


** भीड़ जिसको आंखें होती है , पर दिखता नहीं । कान होता है ,पर सुनता नहीं । मस्तिष्क होता है  एक नहीं अनेक , पर सभी में गोबर भरा होता है , समझता नहीं। और आश्चर्य की बात यह है कि इसको मुंह नहीं होता , लेकिन आवाजें अनेक होती है , सभी अल्प आयु और अलग-अलग । और इसका रूप एवं आकार हर देश के हर कोने और हर काल में एक सा ही होता है, तनिक सा भी फर्क नहीं होता। **


** किसी खास समय एवं खास स्थान पर सभी प्रकार की ऊर्जाओं की आवृत्तियों के कुल योग को प्रकृति कहते हैं ।**


** सफल , योग्य एवं सच्चा वैज्ञानिक नहीं किसी घटना या बात से इंकार करता है , और नहीं उसे आंख मूंद कर स्वीकार। इन्कार इसलिए नहीं करता कि कुछ  भी संभव है । और स्वीकार तब तक नहीं करता जब तक वह तर्क ,जांच एवं प्रयोग पर खरा नहीं उतर जाए।
इसके बावजूद भी जो स्वीकार नहीं करता , वह नराधम वैज्ञानिक कुल का कलंक है । **


** तीव्र से तीव्र धावक चाहे वह पृथ्वी की परिक्रमा कुछ ही क्षण में पूर्ण करेने की क्षमता क्यों नहीं रखता हो यदि खेल के नियम के विपरीत दिशा में दौड़े तो एक साधारण धावक से भी पार नहीं पा सकता। वह लक्ष्य से दूर होता जाएगा।  जबकि वह वास्तविक दृष्टिकोण से योग्य धावक है , लेकिन वैधानिक दृष्टिकोण से असफल धावक । उस व्यक्ति का भी यही हाल होता है जो योग्य होते हुए भी सामाजिक , नैतिक एवं वैधानिक नियम नहीं पालन करते यानी उल्टा चलते हैं। **


** परम मित्र एवं घोर शत्रु : -
जिसके  कर्म से धन , विद्या ,बल ,नाम ,यश एवं बुद्धि का नाश हो , उसे घोर शत्रु कहते हैं । तथा जिसके सुकर्म और सहयोग से वृद्धि हो , उसे परम मित्र । **


** अलग या अलगाव :-
इसमें सर्वप्रथम मन अलग होता है , तब तन , और अंततः धन की अलगाव से इसकी पूर्णता होती है।**


** मित्रता का भेद या प्रकार : -
मित्रता का निम्न प्रकार है -
1.हेलो हाय
2. चाय-पान
3.रोटी
4. निवास
5. बेटी
6. आर्थिक लेनदेन
7. विश्वसनीयता
8. अंतरंग  **


** अगर मेजबान अपने मेहमान के साथ वैसा ही स्वागत नहीं करता जैसा खुद वह मेहमान बनने पर चाहता है तो वह योग्य मेजबान नहीं ।
उसी प्रकार  मेहमान  अपने मेहमान से वैसा ही व्यवहार नहीं करता जब वह खुद मेजबान होता तो वह योग्य मेहमान नहीं । **


** सबसे बड़ी मूर्खता मूर्खों के बीच चतुर बनना। सबसे बड़ी चतुराई मूर्खों के बीच मूर्ख बनना । **


** ईश्वर एक ऐसी पूर्ण आस्था जो माता-पिता , पति-पत्नी , पुत्र-पुत्री , भाई-बहन और बंधु-बांधव की आस्था से भी ज्यादा विश्वासनीय होती है ।**


** खुशी कलह का व्युत्क्रमानुपाती होता है तथा शांति के समानुपाती । इसी प्रकार दुख कलह का समानुपाती होता है , तथा शांति के व्युत्क्रमानुपाती।
दूसरे शब्दों में -
खुशी = क × शांति = क × 1/कलह
दुख = क × कलह = क × 1/शांति
क= नियतांक  **


** समानता का सिद्धांत ( Theory of similarity ) -
वस्तुओं के बहुत गुण एक सा होता है , बहुत से घटनाक्रम में भी समानता होती है । व्यक्तियों के चेहरा, गुण यहां तक कि हाव भाव भी मिलता है। इसे ही समानता का सिद्धांत कहते हैं । **


** शतरंज की चाल निम्नलिखित चार मूल सिद्धांतों पर आधारित है।
1. आगे पीछे
2.अगल-बगल
3. तिरछा
4. ढ़ाई घर । **


** समतुल्य विचार ( Thought equivalent )-
एक ही वस्तु को देखकर भिन्न भाषा , जगह के मानव उसे भिन्न नाम ( ध्वनि ) से पुकारते हैं । यह सिद्ध करता है कि उनके मन में विचार एवं भाव समान हैं , लेकिन उस वस्तु के निरूपण के लिए ध्वनि अलग-अलग है। इसे ही समतुल्य विचार कहते हैं। अर्थात भिन्न-भिन्न ध्वनियों के लिए मात्र एक और एक ही वस्तु के रूप का उपजा भाव। **


** अगर प्रचार द्वारा झूठ को भी मान्यता मिल जाए तो वह भी सत्य सा प्रतीत होता है। और कालांतर में सत्य हो जाता है , लेकिन इसकी उम्र दीर्घायु नहीं होती । **


** आश्चर्य : - ब्रह्मांड की प्रथम घटना , वस्तु एवं कार्य को आश्चर्य करते हैं । **


** वैज्ञानिक एवं साहित्यिक में अंतर यह है कि प्रथम ताड़ को तिल बनाता है , और  दूजा तिल को ताड़ ।**


** शून्य जोड़ने से कुछ नहीं मिलता , लेकिन अनंत जोड़ने पर अनंत मिलता। **


** परम सरल रेखा होकर जो जहां से चलता है अनंत समय के बाद वहीं पहुंचता है **


** प्रकृति या तो नाश करती है अथवा विकास , विराम में कदापि नहीं रहती **


** अतीत सदा सुहावन , वर्तमान कभी मनभावन तो कभी अपावन और भविष्य सदा लुभावन होता है । **


** प्रश्न - ईश्वर क्या है ?
उत्तर - विश्वास ।
प्रश्न - सहयोग करता है ?
उत्तर - यदि विश्वास करते हो ।
प्रश्न - अगर नहीं ?
उत्तर - तो नहीं । **


** संबंध दो प्रकार का होता है ।
एक खून का , दूसरा विश्वास और  व्यवहार का । दूसरा अधिक महत्वपूर्ण , सफल एवं विश्वासनीय होता है । **


** ईश्वर की परिकल्पना प्राया लोग ऊपर ही क्यों मानते हैं ? क्योंकि ऊपर सहज दृश्य है , और नीचे सहज अदृश्य। **


** लेन-देन निम्न ही तरह से किया जाता है , अर्थात इसका निम्न  नाम है ।
1. कर्ज के रूप में
2. दान के रुप में
3.भीख के रूप में
4.सहयोग के रूप में
5. खरीद-विक्री **


**************** क्रमशः ****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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रविवार, 12 जून 2022

चाणक्य नीति काव्यानुवाद , अध्याय 14

महर्षि चाणक्य


कविता
चाणक्य नीति काव्यानुवाद
अध्याय 14
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

तीन रत्न है इस धारा पर ,
अन्न , जल व मधुमय वाणी ।
शिलाखंड को रत्न मानते ,
कहलाते जन मूर्ख अनाड़ी ।

आत्मा के अपराध वृक्ष से ,
पांच फल है फलता तन में ।
रोग ,दरिद्रता ,दुख व बंधन ,
व्यसन वगैरह जन जीवन में ।

भार्या , मित्र , धन व धारा ,
मिलते ए सब बारंबार ।
किंतु शरीर बहुत दुर्लभ है ,
इसे न नर पाए हर बार ।

बहुजन निर्बल जन मिलकर नाशे शत्रु प्रबल को ,
बलशाली नर पर हो अकेला है  बेचारा ।
तृण समूह मिला करके जो छप्पर बनता ,
निष्फल करता बादल की यह प्रबल धारा ।

जल में तेल नहीं पचता है ,
दुर्जन में नहीं गुप्त वार्ता ।
दान सुपात्र स्वयं फैलाए ,
विज्ञ फैलाता शास्त्र की चर्चा ।

धर्म की चर्चा को सुनने पर,
श्मशान  में चिता देखकर ।
रोगी देख जो भाव उपजता ,
पर यह भाव सदा नहीं रहता ।
गर यह भाव सदा रह पाए ,
मानव जन्म धन्य हो जाए ।

कर्म कुफल मिलने पर पछताए जन जैसा ,
कर्म के पहले गर सोचे रहता वह वैसा ।
नहीं समय पछताने का आता जीवन में ,
गिना जाता पुरुष महापुरुष सज्जन में ।

तप में , दान में और विज्ञान में ,
नीति कुशलता , शौर्य , विनय में ।
एक से बढ़कर एक धुरंधर ,
करे न विस्मय  इसे सोच कर।

दूर न दूरी करती उसको ,
जो बसता है मन के अंदर ।
निकट नहीं भी निकट के वासी,
उससे मन गर करता अंतर ।

लाभ की इच्छा रखते जिससे ,
उससे रखो मधुर व्यवहार ।
मधुर बीन से मोहित करके ,
करे शिकारी मृग शिकार ।

राजा ,अग्नि ,गुरु व नारी ,
अति निकटता विनाशकारी ।
दूरी इनसे न फलदायक ,
मध्य अवस्था ये हितकारी ।

अग्नि ,जल , सर्प , मूढ़ , नारी ,
राजा , राजा का संबंधी ।
रखे सावधानी इन सबसे ,
हरे प्राण शीघ्र ए पाखंडी ।

उत्तम जीवन है गुणी का ,
थर्मी जन का जीवन सार्थक ।
हीन धर्म से अथवा गुण से ,
जन का जीवन व्यर्थ निरर्थक ।

केवल एक कर्म से जग को ,
अपना वश में चाहो करना ।
रामबाण उपाय समझ लो ,
पर निंदा से दूर तू रहना ।

अवसर के अनुकूल बोले जो वाक्य हमेशा ,
अपना ही सामर्थ मुताबिक प्रेम करे जो ।
जितनी शक्ति उतना क्रोध को करने वाला ,
दुनिया कहती पंडित गुणी ऐसा जन को ।

एक ही देह भिन्न दृष्टि से ,
भिन्न रूप में नजर है आता ।
कुत्ता मांस रूप में देखे ,
कामी में कामुकता लाता ।
योगी देखे त्रिया तन को ,
तन यह शव सा लागे उनको ।

6 बातों को सदा छिपाएं ,
मैथुन , दोष अपने घर जन को ,
धर्माचरण ,सिद्ध औषधि ,
अपनी निंदा ,कुभोजन को ।

कोयल दिन बिताती मौन होकर के तब तक ,
मीठी बोली के दिन आते हैं नहीं जब तक ।
जैसे ही ऋतुराज बसंती रंग में छाए ,
मनभावन वाणी में श्यामा खुलकर गाए ।

धर्म , धन धान्य व वचन  गुरु का,
औषध का प्रयोग समझकर ।
जो नहीं करता हरे ए जीवन ,
चलें हमेशा इनसे बच कर ।

तज खल संगति , रह साधु संग ,
पुण्य कार्य कर हे! मानव जन ।
परब्रह्म को भज नित दिन तू ,
नित्य न जग यह , हे! जन के मन ।

 ( नोट : - पूरा चाणक्य नीति काव्यानुवाद पढ़ने के लिए वाट्सएप 919351904104 पर संपर्क करें। या http://Www.nayigoonj.com पर क्लिक करें। )

             +++ समाप्त +++

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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शनिवार, 11 जून 2022

विचार ( भाग 8 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 8 प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 8 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** चूहा पकड़ने वाला जैसे ही चूहा के बिल का मुख्य छिद्र खोदता है , उसमें असंख्य बिलों का जाल पाता है । कौन से बिल में चूहा है इसका निर्णय उसे नहीं हो पाता है ।
अतः शेष सभी बिलों को बंद कर एक एक बिल को अंत तक खोद खोद कर देखता है , और अथक श्रम के परिणाम स्वरूप अंततः चूहा पकड़ पाता है।
कभी-कभी यह भी होता है कि प्रथम बिल में ही चूहा मिल जाता है , कभी मध्य में ,  तथा कभी अंत में । कभी यह भी होता है कि चूहा इन बिलों में होता ही नहीं , बाहर निकल गया होता है , और उसे निराशा हाथ लगती है ।
ठीक यही स्थिति अनुसंधान और अनुसंधानकर्ता की भी होती है । असंख्य सिद्धांतों को जांचने पर कोई एक सिद्धांत प्रयोग पर खरा उतरता है । कभी प्रथम सिद्धांत ही प्रयोग पर खरा उतर जाता है। कभी अंत का , तथा कभी कोई नहीं । कुछ तो जीवन भर अथक परिश्रम के बाद भी कुछ नहीं पाते ।
यही स्थिति सफलता की भी होती है । असंख्य प्रयत्नों की बाद एक प्रयत्न सफल हो पाता है ।कभी प्रथम , कभी मध्य तथा कभी अंत। कुछ तो जीवन भर असफल होकर ही मृत्यु को पाते हैं।**

** सभी स्वदेशी का प्रथम पूर्वज विदेशी ही हैं। जैसे -आर्य भी बाहर से ही आए हैं । अमेरिका के नागरिक भी बाहर से ही आए हैं वगैरह ।**

** अग्नि में फूंक मारने से प्रकाश मिलता है ,राख में फूंक मारने से कालिख ।  मूर्ख में फूंक मारने से कुबुद्धि और विद्वान में फूंक मारने से सुबुद्धि ।**

** मनुष्य को संकट काल में सफलता पाने के लिए कछुआ के गुणों का अनुसरण करना चाहिए , जैसे कछुआ संकट आने पर अपना गर्दन छुपाकर रक्षा कवच ओढ़ लेता है , वैसे ही सज्ञ को चाहिए कि अपना गर्दन संकटकाल में छुपा ले , तथा संकट छंटते ही कछुआ की गति से धीरे-धीरे परंतु दृढ़ता पूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त करे। **

** दूरी बढ़ने से आकर्षण बढ़ता जाता है , भावना तथा प्रेम भी प्रबल बनता जाता है , दुर्भावना , द्वेष मिटता जाता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आकर्षण , प्रेम भावना की प्रबलता  दूरी के समानुपाती होता है। तथा द्वेष , क्लेश ,दुर्भावना दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है । जैसे -
आकर्षण ( भावना ) = क × दूरी
विकर्षण ( दुर्भावना ) = क × 1/दूरी
क = नियतांक  **

** अगर कोई छात्र किसी से कुछ नहीं पूछता है तो या तो वह असाधारण और विलक्षण है ,  वह सब कुछ  समझ जाता है । अथवा वह महामूर्ख , कुछ नहीं समझता और लज्जा वश पूछता भी नहीं।**

** मछेरा मछली पकड़ने के लिए अनेकों कांटा डालता है । किसी में छोटा , किसी में मन लायक तथा किसी में कुछ नहीं फंसता है , वैसा ही अवसर है । **

** किसी देश , किसी घर और किसी व्यक्ति का बल उसकी औरतें हैं । उन्हीं में केंद्रित है उनका विकास या विनाश । ए जैसी होंगी विकास भी वैसा होगा। **

** महत्वाकांक्षा की प्रचंड ज्वाला ही मन में अग्नि प्रज्वलित करती है , जो सर्वप्रथम मस्तक को भस्म करता है ,  तथा क्रोध में प्रज्वलित होता है । उसके बाद धीरे-धीरे मन और तन को भी खा जाता है **

** जीवन में कभी एक ऐसा उदासीन बिंदु आता है जहां मां-बाप , पुत्र-पुत्री , पत्नी- मित्र , भाई- बंधु इत्यादि अपना नहीं लगता । इस हालत में सिर्फ एक ही मान्यता और आस्था पर विश्वास जमता है और वह है ईश्वर । यदि व्यक्ति इस मान्यता और आस्था का सहारा नहीं ले तो यह उदासीन बिंदु व्यक्ति को या तो पागल कर दे या तो मौत दे दे ।**

** तन का बल और कुछ दूसरा नहीं मन का ही बल है । इसलिए शेर हाथी को भी हरा देता है वगैरह।**

** यों तो धन का उपयोग हमेशा है , लेकिन इसकी उपयोगिता बुढ़ापा में सबसे ज्यादा है । **

** यों तो माता पिता अपनी संतान को हमेशा अपने पास देखना चाहते हैं , लेकिन बुढापा में सबसे ज्यादा अपने नजदीक देखना चाहते हैं ।**

** ज्यादा काम करना ही खूबी नहीं है । खूबी  है सफल कर्म करना अर्थात सफलता ।**

** जैसे किसी के पास बहुत सा शून्य हो तो भी वह संख्या नहीं बना सकता अगर उसके पास अंक नहीं हो । वैसे ही मूर्ख और दुष्ट के संग से कोई भी वृद्धि संभव नहीं। **

**  पूर्ण सफलता तीन बातों से परिभाषित होती है - नाम  ,यश और अर्थ यानी धन। जिसमें ( आम परिस्थितियों में ) तीसरा काफी महत्वपूर्ण है । कहने का अर्थ यह है कि यदि व्यक्ति सफल हो और पैसा नहीं मिले तो उसका वह कार्य असफल तुल्य ही है । **

** ओम मेरी नजरों में -
ओम अ + ऊ + म  से बना है। जिसका अर्थ निम्नलिखित होता है -
अ = अन्य पुरुष ( वह , वे आदि )
उ = उत्तम पुरुष ( मैं , हम आदि )
म = मध्यम पुरुष ( तुम ,  तू आदि )
अर्थात सर्व भूतों यानी सभी जीवों का संग्रहित रूप का निरूपण । संसार के सभी जीव उपरोक्त तीन ही भाग में विभक्त हैं । **

** न्याय , शिक्षा एवं प्रशासन सिर्फ यही तीन सुधर जाए तो वह देश उन्नति की चोटी पा जाए । अर्थात रामराज्य  और आदर्श देश में उनकी गणना होने लगे ।
न्याय - सस्ता , मुफ्त , सजल्द और सही ।
शिक्षा - व्यवहारिक एवं जीवन उपयोगी , सस्ता एवं मुफ्त , सुचरित्र एवं अनुशासित ।
प्रशासन- विनम्र कठोर , कर्तव्य परायण , ईमानदार तथा सुचरित्र ।
आम जनता को भोजन , आवास एवं वस्त्र के अलावा इन तीन बातों की चाह राज्य से होती है ।**

** शाप और कुछ नहीं मन का विखंडन है , और मन का विखंडन और कुछ नहीं इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन इत्यादि से भी अति सूक्ष्म तत्त्वों का विखंडन है। और उससे उत्सर्जित ऊर्जा परमाणु बम से भी ज्यादा विनाशकारी होती है **

** मन का विखंडन अर्थात अति सूक्ष्म तत्त्वों का विखंडन , जिसे मस्तिष्क रूपी कंप्यूटर से प्राचीन ऋषि करते थे  , जिस पर प्राचीन आर्ष ग्रंथ प्रकाश डालता है । **

** बार-बार पढ़ने के बाद भी जिस किताब या रचना का स्वाद अगर उसके प्रथम पाठन जैसा बना रहे , बल्कि बढ़ता जाए तो वह उच्च कोटि का ग्रंथ या रचना कहलाता है । **

** परंपरा अनुकरणीय होता है । जहां अनुकरणीय नहीं है वहां विद्रोह पैदा होता है । **

** शाप और आशीर्वाद की परिपूर्णता दाता की आत्मा  पर निर्भर करती है। यदि शत प्रतिशत शुद्ध आत्मा से शाप या आशीर्वाद दिया जाए तो शत-प्रतिशत फलित  होगा । यदि त्रुटि युक्त आत्मा से दिया जाए तो पूर्ण फलित नहीं होगा ।
  शाप -  शत प्रतिशत शुद्ध आत्मा द्वारा प्रचंड क्रोध से व्यक्त भाव ।
आशीर्वाद - परिशुद्ध आत्मा द्वारा प्रसन्न भाव।
परिशुद्ध आत्मा - 100% सभी  भय से मुक्त।
त्रुटि युक्त आत्मा - किसी न किसी भय युक्त। **

** बिना किसी काम यानी कर्म रहित चुपचाप बैठा व्यक्ति तंद्रा में रहता है , अर्थात या तो चिंता में अथवा चिंतन में । यदि मन शांत है तो चिंतन में , यदि मन अशांत है तो चिंता में । और दोनों ही तंद्रा की अवस्था है ।
चिंता में मन बहु बिंदु पर रहता है अनेक बातें सोचता है , जबकि चिंतन में एक बिंदु पर ।**

**  छोटी अवधि तंद्रा स्वाभाविक प्रक्रिया है। परंतु बड़ी अवधि तंद्रा आम आदमी के लिए अस्वभाविक प्रक्रिया है , परंतु योगी , ज्ञानी और वैज्ञानिकों के लिए स्वाभाविक प्रक्रिया । 
तंद्रा दूर करने का सबसे आसान ढंग है कोई कार्य में लग जाना अथवा अकेले में नहीं रहना। **

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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शुक्रवार, 10 जून 2022

हठ , स्वाभिमानी बनो , नेपाल ( तीन गीत )

अनुसंधानशाला से तीन गीत प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


गीत
शीर्षक - हठ , स्वाभिमानी बनो और नेपाल ( तीन गीत )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

हठ
सोचो राम की कहानी
तू गुमानी प्रिये !
मत करो बदनामी
अभिमानी प्रिये !

हठ कैकई के कारण से दशरथ मरे ,
हठ सीता के कारण से रावण हरे ,
हठ करना नहीं बुद्धिमानी प्रिये ,
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये।

हठ कारण से लंका रसातल हुई ,
हठ कारण से सीता धरातल गई ,
हठ से होती हमेशा है हानी प्रिये ,
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये ।

छोड़ो हठ अभिमान व गुमान प्रियतम,
मन में रखो सदा स्वाभिमान प्रियतम ,
इन बातों को सोचो दीवानी प्रिये ।
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये।

कहे पशुपतिनाथ , हठ करता है नाश ,
हठ कारण ही रावण का हुआ सर्वनाश ,
याद रखना इसे तू जुबानी प्रिये ,
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये।

*******

स्वाभिमान बनो
नहीं मानी बनो , ना अभिमानी बनो ,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो ।

मुंह से अमृत की वाणी हमेशा बोलो ,
दीन दुखियों में दीपक बनके जलो ,
किसी इतिहास की तू कहानी बनो ,
नहीं मानी बनो , न अभिमानी बनो ,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो ।

काल की कड़कड़ाहट से डरना ना तू ,
डगर में रुकावट को भरना न तू ,
बसंती हवा तू सुहानी बनो ,
न मानी बनो ना अभिमानी बनो,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो ।

करो कर्म ऐसा सुहावन प्यारा ,
नाम मर कर अमर भी हो जाए तेरा ,
दीन दुखियों हेतु तू दानी बनो ,
न मानी बनो न अभिमानी बनो ,
अगर बनना है तो स्वाभिमानी बनो।

वह बनो ज्वाला जल जाए बत्ती ,
दूर हो अंधेरा कहे पशुपति ,
आग बीच कूद करके तू पानी बनो ,
न मानी बनो ना अभिमानी बनो ,
अगर बनना है तो स्वाभिमानी बनो।

पढ़ो लिखो सभी कि हटे मूर्खता ,
काम वह सब करो हो जाए एकता ,
अज्ञानी नहीं सभी ज्ञानी बनो ,
न मानी बनो ना अभिमानी बनो ,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो।

***********

नेपाल
नोट:- नेपाल चीन के गोद और भारत के कंधों पर स्थित हिमालय में बसा एक छोटा देश है । जो अपनी वीरता, सौंदर्य और स्वतंत्रता के लिए प्रसिद्ध है। जब पूरा संसार ब्रिटिश सरकार के  आधीन था उस समय भी नेपाल स्वतंत्र था । उसी नेपाल का एक छोटा परिचय यहां प्रस्तुत है -

सुन सुन सब नेपाली ,
जहां पशुपति काली ,
जहां गर्मी के नहीं दीदार होला,
यहां लोगों के मन में प्यार होला ।

हिमालय व तराई ,
बीच में पर्वत जंगल खाई ,
जहां नदियों की कल कल बाहर होला,
यहां लोगों के मन में प्यार होला।

मधेशी व पहाड़ी ,
थारू , लामा जाति सारी ,
यहां शेर हाथी गैंडा की बाहर होला ,
यहां लोगों के मन में प्यार होला ।

घूमें गोरा गोरा गाल ,
होंठ होते लाल लाल ,
मन निर्मल व हिरनी की चाल होला ,
यहां लोगों के मन में प्यार होला।

लिखे पशुपतिनाथ ,
सुनें बाबा पशुपतिनाथ ,
जिनकी कृपा से सबका उद्धार होला ,
यहां लोगों के मन में प्यार होला।

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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गुरुवार, 9 जून 2022

कलम और कुदाल , अकेला तथा भय ( तीन कविताएं )

अनुसंधानशाला से तीन कविताएं प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद



कविता
शीर्षक - कलम और कुदाल
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

व्यर्थ जाति रटता संसार ,
सभी जाति का दो है सार ,
प्रथम कलम , दूजा कुदाल ,
चाहें परखें कोई काल ।

दो हेतु रत जीव व जन ,
प्रथम पेट , दूसरा मन ,
पेट हेतु है बना कुदाल ,
मन हेतु कलम की चाल ,
चाहें परखें कोई काल।

कठिन प्रश्न यह श्रेष्ठ है कौन ,
जिससे पूछा हो गया मौन ,
चिंतन से निकला यह सार ,
समझो सुनो सभी संसार ,
सभी जाति का दो है सार ।

गुरु हमेशा श्रेष्ठ कहाता ,
क्योंकि गुरु ही कलम बनाता ,
कलम बनाता है कुदाल ,
कुदाली से जग का भाल ,
चाहें परखें कोई काल ।

नर-मादा के मन जब डोले ,
चक्षु मन की बातें बोले ,
दोनों का होता संयोग ,
शांत निशा में करते भोग ,

दोनों मिल एक हो जाते ,
शून्य टूट गर्भ में आते ,
गति के कारण मन कहलाते ,
काल संग शिशु बन जाते ।

मन के कारण बनता पेट ,
इस कारण से मन है श्रेष्ठ ,
पेट की चाहत सदा कुदाल ,
मन की चाहत कलम की चाल,
चाहें परखें कोई काल ।

जब-जब कोई कलम उठाए ,
वहां पर ब्रह्मा बन जाए ,
जैसे छूता है कुदाल ,
बना शेष जाति तत्काल ,
चाहें परखें कोई काल ।

व्यर्थ जाति रटता संसार ,
सभी जाति के दो ही सार।

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कविता
शीर्षक - अकेला
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

जहां दुष्टों का मेला है ,
परिस्थितियां जहां झमेला है,
हर बात जहां पर ढेला है ,
चलना वहां अकेला है।

हर ढंग जहां अलबेला है ,
जहां गुलाब का रेला है ,
हर गंध जहां पर बेला है ,
बसना वहां अकेला है ।

जहां पे नहीं कोई चेला है ,
जहां हरदम मचा झमेला है ,
हर कर्म में ठेलम ठेला है ,
चलना अच्छा अकेला है ।

जहां सब कुछ अलबेला  है ,
जहां गुरु नहीं सब चेला है ,
जहां स्वभाव का मेला है ,
बसना वहां अकेला है ।

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कविता
शीर्षक - भय
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

भय की महिमा बहुत अपार है ,
भय से चलता सारा संसार है ।

भय कारण से ही नर मानव है ,
अगर भय नहीं है तो दानव है ,
भय राजा हेतु हथियार है ,
भय से चलता सारा संसार है ।

भय कारण ही टिका समाज है ,
भय कारण ही चलता राज है ,
भय कारण ही शांत तकरार है ,
भय की महिमा बहुत अपार है ।

जीव एक दूसरा से भय खाता ,
नियम कानून भय है लाता ,
भय सभी सभ्यता का सार है ,
भय से चलता सारा संसार ।

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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बुधवार, 8 जून 2022

शून्य , एक और अनंत तथा तम और आकाश

 

शोध कविता

शीर्षक - शून्य , एक और अनंत तथा  तम और आकाश

रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

शून्य , एक और अनंत

पूर्ण पूर्ण में दिया रहा फिर भी पूर्णांक ,
पूर्ण पूर्ण से लिया रहा फिर भी पूर्णांक ,
गुणा पूर्ण में किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक ,
पूर्ण विभाजित किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक।
( अनंत + अनंत = अनंत , अनंत - अनंत = अनंत,
अनंत × अनंत = अनंत , अनंत ÷ अनंत = अनंत )
( देखें संदर्भ 2 )

शून्य शून्य में दिया रहा फिर भी शून्यांक ,
शून्य शून्य से लिया रहा फिर भी शून्यांक ,
गुणा शून्य में किया शून्य  फिर भी शून्यांक ,
शून्य विभाजित किया शून्य आया पूर्णांक ।
( 0 + 0 = 0 ,  0 - 0 = 0 ,  0 × 0 = 0 ,  0 ÷ 0 = अनंत )

शून्य बिना एक रहता निष्फल ,
बिना एक शून्य फले नहीं फल ,
शून्य आदि है , एक शुरू है ,
अंत अनंत से ब्रह्म बद्ध है ।

बंद वक्र पर सभी जगह से शून्य शुरू है ,
वहीं पर है एक अनंत बन अंत है पाता ,
अंक विद्या के सब गणित के जनक तीन ए ,

इन तीनों से ही गणित को सीखा जाता ।

( देखें संदर्भ - 1 )

अगर शून्य रहता है किसी अंक के पीछे ,
बढ़े जरा भी अंक नहीं रहता वह नीचे ,
अगर शून्य आता है किसी अंक के आगे ,
10 गतांक में वृद्धि हो भाग्य उसका जागे ।
( जैसे - 01 , 10 , 100 वगैरह )

यह वृद्धि धीरे धीरे बनता अनंत ,
घटते घटते शून्य बने कहे सब संत ,
शून्य और अनंत नहीं दो इसको मानें ,
इन दोनों का दो उद्भव नहीं इसको जानें ।
( देखें संदर्भ - 1 )

तम
जहां कहीं प्रकाश रोको वहां तम आ जाता ,
क्या है इसका वेग बोल तू क्या है पाता ?
अवलोकन बतलाता इसका वेग शून्य , अनंत ,
इस कारण से प्रकट हो जाता कहीं तुरंत ।
( वेग = विस्थापन/ समय  , अगर समय शून्य तब वेग अनंत यानी शून्य समय में कहीं भी । अगर समय अनंत तब वेग शून्य यानी पूर्ण स्थिर )

इसका भौतिक गुण शून्य से है निरूपित ,
गति शून्य , आवृत्ति शून्य इसमें अपेक्षित ,
पांचवा मूल माप की परिभाषा देता तम ,
जिससे बद्ध यह वृहद प्रकृति चलती हरदम ।
( पांचवा मूल माप cycle )

सब कहते हैं ब्रह्म रचता है भू को सब को ,
तुम कहते हो तम रचता है ब्रह्म को सबको ,
तम क्या है यह प्रश्न हमारा ?
कहो क्या प्रमाण तुम्हारा ?

बिना स्रोत नहीं भू पर बहता निर्मल निर्झर ,
बिना स्रोत प्रकाश पूंज नहीं भू है पाती ,
बिना स्रोत भू पर छाया बन जाती कैसे ?
अंत: कोई है स्रोत जहां से बनके आती ?

यह स्रोत अनंत बिंदु तम ,
यह स्रोत शून्य बिंदु तम ,
यह स्रोत है अंत बिंदु तम ,
यह स्रोत है आदि बिंदु तम ।

शुभ्र दिन में जो नीला रंग दिखता ऊपर ,
घोर निशा में जो काला छाता इस भू पर ,
ज्योंहि दीप शिखा बुझता जो रंग है आता ,
यही तम का भिन्न रूप इस भू पर छाता।

कहता वेद सभी है ऐसा ,
मनुस्मृति साक्षी जैसा ,
उपनिषद भी कहता यही ,
फिर क्यों मानें ऐसा वैसा ।
( देखें संदर्भ )

आकाश
जनक यज्ञ में याज्ञवल्क्य से गार्गी ने पूछा-
भू किससे आच्छादित है यह आप बताएं ,
भू है जल से,जल वायु से,
वायु ऊपर नभ है आए,
नभ ऊपर गंधर्व लोक है,
सूर्य लोग इस ऊपर आए।

इसके ऊपर चंद्रलोक है ,
नक्षत्र लोग इस ऊपर छाए,
देवलोक इसके ऊपर है,
इंद्रलोक इस ऊपर आए ,
प्रजापति लोक इसके ऊपर,
ब्रह्मलोक सब ऊपर छाए ,
पुनः प्रश्न किया गार्गी ने
इसके ऊपर पुनः बताएं ।

प्रश्न कठिन था , उत्तर शेष था ,
ऋषि मन तब कुछ अकुलाया ,
आकुल मन तब क्रोध सृजन कर
गार्गी को था चुप कराया ।

इसके आगे मैं बतलाता ,
ब्रह्म के ऊपर तम है छाता ,
तम के ऊपर क्या है आता ,
सबसे ऊपर क्या है छाता।

बंद वक्र पर चलो जहां से
फिर कर आते पुनः वहां पे ,
ऐसा ही इस चक्र को जानें ,
सबसे ऊपर तम को मानें ।
( देखें संदर्भ -1 )

जो है सूक्ष्म जिससे जितना
वह ऊपर रहता है उतना ,
जो है स्थूल जिससे जितना
वह नीचे रहता है उतना । 

वैज्ञानिक हाईगन का इथर
भी लगता कुछ तम के ऐसा ,
माइचेलसन-मोरले प्रयोग से
सिद्ध नहीं हो पाता वैसा ।

मैं पाता प्रयोग गलत यह
क्योंकि स्रोत है धारा ही पर ,
नित्य बिंदु पाने के हेतु
लें स्रोत किसी ग्रह के ऊपर ।

विद्युत-चुंबकीय , गुरुत्वाकर्षण
क्षेत्र द्वय आकाश बनाते ,
इथर का अस्तित्व नहीं है ,
अल्बर्ट आइंस्टीन यह बतलाते ।

महाप्रलय के हो जाने पर
नभ का पिंड खत्म होते सारे ,
सूर्य चंद्र व ग्रह नक्षत्र सब
खत्म हो जाते हैं सब तारे ।

तो भी क्या उपरोक्त क्षेत्र द्वय
बच जाएंगे ,
उसके बाद आकाश कहां से
बन पाएंगे।

अतः तम है जनक सभी का ,
और सभी हैं दास इसी का ,
स्वत: जन्म ले , स्वत: मरण ले,
मित्र अमित्र यह नहीं किसी का ।

सभी जगह यह व्याप्त
नहीं कोई जगह है खाली ,
ग्रह ,नक्षत्र ,परमाणु हो
अथवा रवि लाली ।

भू ,चंद्र हो अथवा कोई
नभ का तारा ,
यही अनंत का रूप
जिसे है देखती धारा ।

स्वामी विवेकानंद कहते
अनंत नहीं हो सकता दो-तीन ,
अनंत एक है , एक ही रहता ,
बीते चाहे कितना ही दिन।

अगर कोई विद्वान नहीं
सहमत इन सबसे ,
कृपा करके वह अपना
विचार बताए ,
अपना तर्क और प्रमाण
ईमेल करके ,
मुझ नाचीज़ को अपनी
बातों से समझाए।

संदर्भ ( References ) :--

1.     

अनंत और शून्य बंद वक्र पर एक ही जगह पर होता है।

  




2. पुर्णमिद्; पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
     पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
                                    ( उपनिषद )

3. तम आसीत्तमसा गूढमग्रेअ्प्रकेतं संलिलं सर्वमा इदम।
तुच्छयेनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकम ।।
( ऋग्वेद , अ.8,अ.7,व.17 , ऋग्वेदादिभाष्य भूमिकापेज 85 , स्वामी दयानंद सरस्वती रचित )

4. आसीदिदं तमोभूतम प्रज्ञात्मललक्षणम्।
     अप्रतक्र्यमविज्ञेयम् प्रसुप्तमिव सर्वत:।।
( मनुस्मृति अध्याय 1, श्लोक 5 )

5. अनेकाबाहूदरवक्त्रनेत्रं
पश्यामि त्वां सर्वतोअ्नन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं
पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।
( गीता अध्याय 11, श्लोक 16 )

6. आर्यावर्त अखबार
( गार्गी याज्ञवल्क्य संवाद )

7. Ideas and opinions
   ( Einstein Albert )

8. Paper on Hinduism Chicago Address by Swami Vivekananda ( pp-25 )

*********** समाप्त ***************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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मंगलवार, 7 जून 2022

विचार ( भाग 7 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 7 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 7 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** जैसे नदी की प्रबल धारा को नाविक काट कर नौका को किनारा प्रदान कर देता है । परंतु हवा का प्रबल वेग को नहीं काट पाता और नौका मझधार में या तो डूब जाती है या भटक , उसी प्रकार यह जीवन नौका है ।  कुछ सज्ञ जानते हैं यह राह नाश और पतन की है , परंतु चाह कर भी नहीं छोड़ पाते , अपने को नहीं रोक पाते , लाचार हैं ।
इसको विज्ञ समय के हाथ का खिलौना कहते हैं , कुछ प्रारब्ध दोष कहते ।
परंतु भौतिक रूप से बिचारा या सोचा जाए तो यह मान , अभिमान , शान , स्वार्थ और लालच से उपजा फला फल है या प्रकृति आपदा । **


** मानव इसलिए सत्य नहीं बोलता क्योंकि वह सत्य को ढक कर उसका नाम सभ्यता और चतुराई रख दिया है। अतः कटु सत्य बोलने में कांप जाता है । जैसे कलम जब नंगी होती है तभी शब्द उगलती है , जब ढकी होती है तो वह पॉकेट में जाकर चुप रहती है । **


** सौंदर्य - जो नेत्र प्रिय हो और मन में आकर्षण पैदा करे 
इस आकर्षण को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है , नैसर्गिक और भौतिक
नैसर्गिक सौंदर्य -  इस आकर्षण से मैथुन इंद्रियों पर प्रभाव नहीं पड़ता , जैसे फूलों की सुंदरता , बच्चों का मधुर संसार वगैरह ।
भौतिक सौंदर्य - यह आकर्षण मैथुन इंद्रियों को प्रभावित करता है , जैसे नारी सौंदर्य वगैरह। **


** तार्किक दृष्टिकोण से तो नहीं कुछ सत्य है और नहीं असत्य है । क्योंकि सत्य और असत्य दोनों परब्रह्म का ही रूप है , यानी अनंत का अंश ।
परंतु लौकिक  दृष्टिकोण से जिसे आंख से प्रत्यक्ष देखा जाए वही सत्य है , नहीं तो कल्पना , भ्रम , विश्वास , फ़साना वगैरह।**


** रात्रि पृथ्वी की छाया है , तथा छाया तम का एक रूप और तम जिसमें आवृत्ति तथा समय शून्य हो ।  दूसरे शब्दों में प्रकाश और अंधकार का मिलन विंदू तम है। या बराबर बराबर प्रकाश और अंधकार मिलाने से जो प्राप्त होगा वह तम है। **


** योग्यता युक्त अहं स्वाभिमान कहाता  है , परंतु योग्यता रहित अहं अभिमान , शान , घमंड कहता है । प्रथम ऐश्वर्य, वैभव ,अमरता देता है । वहीं दूसरा खोखलापन , पाखंड और अंततः मायूसी। एक ऊपर ले जाता है , तो दूजा नीचे । एक उन्नत मार्ग है , तो दूसरा पतन का । **


** स्वच्छ मुस्कुराहट तभी मानव मुखड़ा पर प्रकट हो सकती है जब उतने क्षण के लिए उसके अंदर किसी प्रकार का क्लेश , द्वेष, वैर और मैल की भावना ना हो , अथवा मुस्कुराहट आ ही नहीं सकती ।
यह बात उन लोगों में भी अवलोकन किया जा सकता है जो दुष्ट से दुष्ट हैं ,तथा उन लोगों में भी जो श्रेष्ठ से श्रेष्ठ हैं । **


** मिट्टी से बना दलदल में फंसकर जीव का मात्र तन का ही नाश होता है , आत्मा और मन सुरक्षित रहते हैं , परंतु मैला से बने दलदलल में फंस कर तीनों का नाश होता है । मैला दूसरा कुछ नहीं दुरात्मा का कलापन है और जगत की माया । **


** पृथ्वी का कुल धन नियत ( constant ) है । इस कारण एक तभी धनी होगा , जब दूसरा निर्धन हो। ठीक उसी प्रकार जैसे सूरज नहीं अस्त होता है और नहीं उदय । किसी एक जगह के लिए अस्त होता है तो दूसरे जगह के लिए उदय होता है।
धन का भी यही हाल है , जिसकी जैसी बुद्धि है वैसा उसको धन है ।  **


** धन बुद्धि का समानुपाती है और निर्धनता बुद्धि का  व्युत्क्रमानुपाती । **
यानी  धन = क × बुद्धि
         निर्धनता = क × 1/बुद्धि
यहां क = नियतांक


** लेन-देन का  साथी यदि लाभ हो तो वह अविराम चलता रहता है , रुकता नहीं। यदि दुर्भाग्य से उसकी सहेली हानी बनी तो वह टूट कर बिखर जाता है ।
जीवन क्रम का भी यही हालत है। यदि योग्य साथी मिला तो चलता रहता है और अयोग्य हो तो टूटकर बिखर जाता है । **


** पूरब और पश्चिम सही माने में देखा जाए तो एक ही है । दो व्यक्तियों में आगे वाले के लिए पीछे वाला पश्चिम है तो पीछे वाले के लिए आगे वाला पूर्व  वगैरह । **


** चलने से रास्ता खत्म होता है और करने से काम और सतत प्रयास से सफलता ।
संचित करने से धन बढ़ता  , उचित व्यय से उसका सदुपयोग और अपव्यय से उसका नाश । **


** कुपात्र पहले अपनी तथा दूसरे की विद्या का नाश करता है , उसके बाद बुद्धि का , फिर धन का , उसके बाद जीवन का और सुपात्र ठीक इसके उल्टा वृद्धि करता है।
नाश एवं विकास का यही क्रम भी है  तथा कुपात्र एवं सुपात्र इसका कारण और कर्त्ता । इनकी क्रियाएं अकर्तव्य और कर्तव्य । **


** विनाश में सबसे पहले विद्या का नाश होता , तब बुद्धि का , तब धन का , अंत में तन का । और विकास में इसके उल्टा। **


** प्रकृति प्रदत्त शरीर का काम है मल विसर्जन तथा सभ्य का काम है इसकी सफाई ।
प्रकृति का कार्य है अव्यवस्था तथा सभ्यता का काम है व्यवस्था ।
मात्र इसी दो मूल कार्यों में समग्र विश्व व्यस्त है। **


** जीवन यापन के लिए काम ढूंढकर पाना मानव जीवन का सबसे जटिल एवं महत्वपूर्ण कार्य है।**


** आदमी जितना सिखाने में दिलचस्पी लेता है उतना सीखने में लेता तो पृथ्वी स्वर्ग बन जाए।**


** मूर्ख नहीं किसी का दोस्त होता और नहीं दुश्मन। मूर्ख का एक ही काम है और वह है विनाश।  जबकि वह अपनी समझ से अपने हितैषी का उपकार ही करता है , लेकिन उसको उपकार और अपकार में अंतर नहीं दिखता , इसलिए वह बिनाश ही करता है अर्थात उसको उ और अ में अंतर नहीं दिखता , उसके लिए दोनों एक ही है । **


**  ज्ञान मूर्खता का व्युत्क्रमानुपाती होता है । **
अर्थात ज्ञान = क × 1/मूर्खता
क नियतांक है

** अगर मूर्ख मूर्ख का नाश नहीं करें तो वह विद्वान का नाश करेगा , क्योंकि मूर्ख का कर्म है विनाश। ठीक उसी प्रकार जैसे कीड़ा अगर कीड़ा को नहीं खाए तो वह सभी उत्तम लकड़ी और फर्नीचर को ही खा जाएगा । **


** मूर्ख और दुष्ट कलह में रहता है, कलह में जीता है , कलह ढूंढता है , और दूसरी जगह जाकर कलह बोता   है तथा वहां से कलह ले आता है ।
ज्ञानी शांति में जीता है , शांति ढूंढता है ,शांति बोता है और शांति काटता है , एवं शांति का लेन-देन करता है । **


** समाज जब मूर्खता से लड़ता तब  विकास करता है , तथा जब विद्वान से लड़ता है तब विनाश होता है । **


** चक्षु से मात्र सीमित परिवेश दृष्टिकोण होता है , परंतु ज्ञान से असीमित परिवेश का दर्शन किया जा सकता है । **

** किसी भी कलह का कारण जलन है ,और जलन का अनेक रूप है , इसलिए कलह का भी अनेक ढंग  है । **


** सभ्यता का मूल दर्शन है , जितना भी ज्ञान विज्ञान सत्य विद्याएं हैं उन सभी का जनक दर्शन ही है , और बुद्धि दर्शन की माता , मंथन दर्शन का जनक ।
इसी को कुछ लोग तप , ध्यान और योग द्वारा पाते हैं , तो कुछ लोग देशाटन द्वारा तथा कुछ लोग समाजिक सभा-सम्मेलन द्वारा इत्यादि। **


** समय सब कुछ का धीरे धीरे नाश कर देता है तथा महाप्रलय के बाद खुद नाश को पा तम में विलीन हो जाता है , और पुनः तम से जन्म पाता है । सिर्फ एक ही चीज का नाश नहीं होता और शाश्वत है , वह है तम । यह पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है , और हर जगह चाहे वो भू हो अथवा अंतरिक्ष या कहीं एक ही रूप है , और एक ही गुण  है। इसी का भौतिक रूप अंधकार , छाया , कालापन , नीलापन इत्यादि है ।**


  ** कुपात्र अपने आप को सबसे चतुर समझता है , तथा अपनी कुपात्रता के कारण अपना समय खाता है , तथा अपनी मूर्खता रूपी चतुराई के फलस्वरूप सुपात्र का समय खाने में सदा सचेत रहता है , लेकिन समय जब उसको नाश का विशाल सागर उपस्थित कर चुका होता है तब उसे अपनी गलती का एहसास होता है ।
इसी कर्म फल को कुछ विज्ञ पाप का फल बताते हैं , तथा कुपात्र के कर्म फल को निषेध उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हैं ।
सुपात्र ठीक इसके विपरीत होता है। वह समय को विकास में बदलता जाता है । इसलिए समय उसके सामने विकास समृद्धि का विशाल सागर उपस्थित करता है , जो उसे अमरत्व प्रदान करता है ।इसे विज्ञ पुण्य फल मानते हैं , तथा अनुकरणीय आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करते हैं ।**


** विचार पांच ज्ञानेंद्रियों आंख ( प्रकाश तरंग ) , कान ( ध्वनि तरंग ) , नाक (आणविक तत्त्व ) , त्वचा ( तापीय, विद्युतीय तरंग )  जीभ ( आण्विक तत्त्व )  द्वारा पैदा किया गया एक विशेष तरंग है जो मस्तक में पहुंचकर भाव पैदा करता है और शब्द आदि बनता है।
इसलिए खान-पान और परिवेश पर ध्यान देने के लिए सज्ञ हमेशा जोर डालते हैं । **


** मस्तिष्क से तौली बातें सबसे ज्यादा सत्य होती है , अर्थात सर्वोत्तम होती है , आंख से देखी बातें इससे थोड़ा कम सत्य और काम से सुनी बातें इससे भी कम । **


** कटु सत्य 24 कैरेट सोना सा होता है ,सत्य 20 से 22 कैरेट सोना सा और अर्ध सत्य गिनी सा यानी 12 से 18 कैरेट सोना सा और असत्य गिलट सा। **


**  जो पूरे होश हवास में सर्वदा नंगा रहता है उसे परब्रह्म परमेश्वर कहते हैं । जो दाढ़ी मूंछ आने पर होश हवास में  नंगा होता है उसे अवतार कहते हैं , जैसे महावीर ।
और जो दाढ़ी मूंछ आने पर किसी कारण वश बेहोश हो सदा नंगा रहे उसे पागल कहते हैं ।
और जो अपनी दुष्टता से किसी को नंगा करें उसे दुष्ट और कुपात्र कहते हैं ।**


** जो सिर्फ बात से सुधर जाए उसे सुपात्र , जो हल्का दंड से सुधर जाए वह पात्र और जो भारी दंड से भी सुधार नही पाए उसे कुपात्र कहते हैं। **


** जहां दंड विधान शून्य हो जाता है वहां व्यक्ति व्यक्ति दुर्जन बनने लग जाता है। यहां तक कि सीधा , निरीह और सज्जन भी दुर्जन बनने लगते हैं ** 


** छोटा से छोटा पेड़ भी तभी गिरता है जब उसका जड़ काटा जाता है । यदि जड़ को छोड़ उसके और दूसरे भाग को जन्म भर काटा जाए तो भी उसका अस्तित्व कायम रहता है । यही कुटनीति और राजनीति का सार है। **


** विज्ञान कटु सत्य होता है और उसकी नीरसता से उत्पन्न गर्मी से राहत साहित्य की ठंडक प्रदान करती है , क्योंकि सत्य यथार्थ है इसलिए तीखा होता है , और कल्पना स्वप्न है इसलिए मधुर ।
और साहित्य कल्पना के धरातल पर स्वप्न का महल है । अर्थात दूसरे शब्दों में विज्ञान जहां पर प्रायोगिक सत्य है वहां साहित्य काल्पनिक सत्य।**

************* क्रमशः ****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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