शोध कविता
शीर्षक - शून्य , एक और अनंत तथा तम और आकाश
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
शून्य , एक और अनंत
पूर्ण पूर्ण में दिया रहा फिर भी पूर्णांक ,
पूर्ण पूर्ण से लिया रहा फिर भी पूर्णांक ,
गुणा पूर्ण में किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक ,
पूर्ण विभाजित किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक।
( अनंत + अनंत = अनंत , अनंत - अनंत = अनंत,
अनंत × अनंत = अनंत , अनंत ÷ अनंत = अनंत )
( देखें संदर्भ 2 )
शून्य शून्य में दिया रहा फिर भी शून्यांक ,
शून्य शून्य से लिया रहा फिर भी शून्यांक ,
गुणा शून्य में किया शून्य फिर भी शून्यांक ,
शून्य विभाजित किया शून्य आया पूर्णांक ।
( 0 + 0 = 0 , 0 - 0 = 0 , 0 × 0 = 0 , 0 ÷ 0 = अनंत )
शून्य बिना एक रहता निष्फल ,
बिना एक शून्य फले नहीं फल ,
शून्य आदि है , एक शुरू है ,
अंत अनंत से ब्रह्म बद्ध है ।
बंद वक्र पर सभी जगह से शून्य शुरू है ,
वहीं पर है एक अनंत बन अंत है पाता ,
अंक विद्या के सब गणित के जनक तीन ए ,
इन तीनों से ही गणित को सीखा जाता ।
( देखें संदर्भ - 1 )
अगर शून्य रहता है किसी अंक के पीछे ,
बढ़े जरा भी अंक नहीं रहता वह नीचे ,
अगर शून्य आता है किसी अंक के आगे ,
10 गतांक में वृद्धि हो भाग्य उसका जागे ।
( जैसे - 01 , 10 , 100 वगैरह )
यह वृद्धि धीरे धीरे बनता अनंत ,
घटते घटते शून्य बने कहे सब संत ,
शून्य और अनंत नहीं दो इसको मानें ,
इन दोनों का दो उद्भव नहीं इसको जानें ।
( देखें संदर्भ - 1 )
तम
जहां कहीं प्रकाश रोको वहां तम आ जाता ,
क्या है इसका वेग बोल तू क्या है पाता ?
अवलोकन बतलाता इसका वेग शून्य , अनंत ,
इस कारण से प्रकट हो जाता कहीं तुरंत ।
( वेग = विस्थापन/ समय , अगर समय शून्य तब वेग अनंत यानी शून्य समय में कहीं भी । अगर समय अनंत तब वेग शून्य यानी पूर्ण स्थिर )
इसका भौतिक गुण शून्य से है निरूपित ,
गति शून्य , आवृत्ति शून्य इसमें अपेक्षित ,
पांचवा मूल माप की परिभाषा देता तम ,
जिससे बद्ध यह वृहद प्रकृति चलती हरदम ।
( पांचवा मूल माप cycle )
सब कहते हैं ब्रह्म रचता है भू को सब को ,
तुम कहते हो तम रचता है ब्रह्म को सबको ,
तम क्या है यह प्रश्न हमारा ?
कहो क्या प्रमाण तुम्हारा ?
बिना स्रोत नहीं भू पर बहता निर्मल निर्झर ,
बिना स्रोत प्रकाश पूंज नहीं भू है पाती ,
बिना स्रोत भू पर छाया बन जाती कैसे ?
अंत: कोई है स्रोत जहां से बनके आती ?
यह स्रोत अनंत बिंदु तम ,
यह स्रोत शून्य बिंदु तम ,
यह स्रोत है अंत बिंदु तम ,
यह स्रोत है आदि बिंदु तम ।
शुभ्र दिन में जो नीला रंग दिखता ऊपर ,
घोर निशा में जो काला छाता इस भू पर ,
ज्योंहि दीप शिखा बुझता जो रंग है आता ,
यही तम का भिन्न रूप इस भू पर छाता।
कहता वेद सभी है ऐसा ,
मनुस्मृति साक्षी जैसा ,
उपनिषद भी कहता यही ,
फिर क्यों मानें ऐसा वैसा ।
( देखें संदर्भ )
आकाश
जनक यज्ञ में याज्ञवल्क्य से गार्गी ने पूछा-
भू किससे आच्छादित है यह आप बताएं ,
भू है जल से,जल वायु से,
वायु ऊपर नभ है आए,
नभ ऊपर गंधर्व लोक है,
सूर्य लोग इस ऊपर आए।
इसके ऊपर चंद्रलोक है ,
नक्षत्र लोग इस ऊपर छाए,
देवलोक इसके ऊपर है,
इंद्रलोक इस ऊपर आए ,
प्रजापति लोक इसके ऊपर,
ब्रह्मलोक सब ऊपर छाए ,
पुनः प्रश्न किया गार्गी ने
इसके ऊपर पुनः बताएं ।
प्रश्न कठिन था , उत्तर शेष था ,
ऋषि मन तब कुछ अकुलाया ,
आकुल मन तब क्रोध सृजन कर
गार्गी को था चुप कराया ।
इसके आगे मैं बतलाता ,
ब्रह्म के ऊपर तम है छाता ,
तम के ऊपर क्या है आता ,
सबसे ऊपर क्या है छाता।
बंद वक्र पर चलो जहां से
फिर कर आते पुनः वहां पे ,
ऐसा ही इस चक्र को जानें ,
सबसे ऊपर तम को मानें ।
( देखें संदर्भ -1 )
जो है सूक्ष्म जिससे जितना
वह ऊपर रहता है उतना ,
जो है स्थूल जिससे जितना
वह नीचे रहता है उतना ।
वैज्ञानिक हाईगन का इथर
भी लगता कुछ तम के ऐसा ,
माइचेलसन-मोरले प्रयोग से
सिद्ध नहीं हो पाता वैसा ।
मैं पाता प्रयोग गलत यह
क्योंकि स्रोत है धारा ही पर ,
नित्य बिंदु पाने के हेतु
लें स्रोत किसी ग्रह के ऊपर ।
विद्युत-चुंबकीय , गुरुत्वाकर्षण
क्षेत्र द्वय आकाश बनाते ,
इथर का अस्तित्व नहीं है ,
अल्बर्ट आइंस्टीन यह बतलाते ।
महाप्रलय के हो जाने पर
नभ का पिंड खत्म होते सारे ,
सूर्य चंद्र व ग्रह नक्षत्र सब
खत्म हो जाते हैं सब तारे ।
तो भी क्या उपरोक्त क्षेत्र द्वय
बच जाएंगे ,
उसके बाद आकाश कहां से
बन पाएंगे।
अतः तम है जनक सभी का ,
और सभी हैं दास इसी का ,
स्वत: जन्म ले , स्वत: मरण ले,
मित्र अमित्र यह नहीं किसी का ।
सभी जगह यह व्याप्त
नहीं कोई जगह है खाली ,
ग्रह ,नक्षत्र ,परमाणु हो
अथवा रवि लाली ।
भू ,चंद्र हो अथवा कोई
नभ का तारा ,
यही अनंत का रूप
जिसे है देखती धारा ।
स्वामी विवेकानंद कहते
अनंत नहीं हो सकता दो-तीन ,
अनंत एक है , एक ही रहता ,
बीते चाहे कितना ही दिन।
अगर कोई विद्वान नहीं
सहमत इन सबसे ,
कृपा करके वह अपना
विचार बताए ,
अपना तर्क और प्रमाण
ईमेल करके ,
मुझ नाचीज़ को अपनी
बातों से समझाए।
संदर्भ ( References ) :--
1.
अनंत और शून्य बंद वक्र पर एक ही जगह पर होता है। |
2. पुर्णमिद्; पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
( उपनिषद )
3. तम आसीत्तमसा गूढमग्रेअ्प्रकेतं संलिलं सर्वमा इदम।
तुच्छयेनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकम ।।
( ऋग्वेद , अ.8,अ.7,व.17 , ऋग्वेदादिभाष्य भूमिकापेज 85 , स्वामी दयानंद सरस्वती रचित )
4. आसीदिदं तमोभूतम प्रज्ञात्मललक्षणम्।
अप्रतक्र्यमविज्ञेयम् प्रसुप्तमिव सर्वत:।।
( मनुस्मृति अध्याय 1, श्लोक 5 )
5. अनेकाबाहूदरवक्त्रनेत्रं
पश्यामि त्वां सर्वतोअ्नन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं
पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।
( गीता अध्याय 11, श्लोक 16 )
6. आर्यावर्त अखबार
( गार्गी याज्ञवल्क्य संवाद )
7. Ideas and opinions
( Einstein Albert )
8. Paper on Hinduism Chicago Address by Swami Vivekananda ( pp-25 )
*********** समाप्त ***************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन 845453
E-mail er.pashupati57@gmail.com
Mobile 6201400759
My blog URL
Pashupati57.blogspot.com ( इस पर click करके आप मेरी और सभी रचनाएं पढ़ सकते हैं।)
****** ******* ******** *******
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें