अनुसंधानशाला से विचार भाग 8 प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद कोटेशन ** चूहा पकड़ने वाला जैसे ही चूहा के बिल का मुख्य छिद्र खोदता है , उसमें असंख्य बिलों का जाल पाता है । कौन से बिल में चूहा है इसका निर्णय उसे नहीं हो पाता है । ** सभी स्वदेशी का प्रथम पूर्वज विदेशी ही हैं। जैसे -आर्य भी बाहर से ही आए हैं । अमेरिका के नागरिक भी बाहर से ही आए हैं वगैरह ।** ** अग्नि में फूंक मारने से प्रकाश मिलता है ,राख में फूंक मारने से कालिख । मूर्ख में फूंक मारने से कुबुद्धि और विद्वान में फूंक मारने से सुबुद्धि ।** ** मनुष्य को संकट काल में सफलता पाने के लिए कछुआ के गुणों का अनुसरण करना चाहिए , जैसे कछुआ संकट आने पर अपना गर्दन छुपाकर रक्षा कवच ओढ़ लेता है , वैसे ही सज्ञ को चाहिए कि अपना गर्दन संकटकाल में छुपा ले , तथा संकट छंटते ही कछुआ की गति से धीरे-धीरे परंतु दृढ़ता पूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त करे। ** ** दूरी बढ़ने से आकर्षण बढ़ता जाता है , भावना तथा प्रेम भी प्रबल बनता जाता है , दुर्भावना , द्वेष मिटता जाता है। ** अगर कोई छात्र किसी से कुछ नहीं पूछता है तो या तो वह असाधारण और विलक्षण है , वह सब कुछ समझ जाता है । अथवा वह महामूर्ख , कुछ नहीं समझता और लज्जा वश पूछता भी नहीं।** ** मछेरा मछली पकड़ने के लिए अनेकों कांटा डालता है । किसी में छोटा , किसी में मन लायक तथा किसी में कुछ नहीं फंसता है , वैसा ही अवसर है । ** ** किसी देश , किसी घर और किसी व्यक्ति का बल उसकी औरतें हैं । उन्हीं में केंद्रित है उनका विकास या विनाश । ए जैसी होंगी विकास भी वैसा होगा। ** ** महत्वाकांक्षा की प्रचंड ज्वाला ही मन में अग्नि प्रज्वलित करती है , जो सर्वप्रथम मस्तक को भस्म करता है , तथा क्रोध में प्रज्वलित होता है । उसके बाद धीरे-धीरे मन और तन को भी खा जाता है ** ** जीवन में कभी एक ऐसा उदासीन बिंदु आता है जहां मां-बाप , पुत्र-पुत्री , पत्नी- मित्र , भाई- बंधु इत्यादि अपना नहीं लगता । इस हालत में सिर्फ एक ही मान्यता और आस्था पर विश्वास जमता है और वह है ईश्वर । यदि व्यक्ति इस मान्यता और आस्था का सहारा नहीं ले तो यह उदासीन बिंदु व्यक्ति को या तो पागल कर दे या तो मौत दे दे ।** ** तन का बल और कुछ दूसरा नहीं मन का ही बल है । इसलिए शेर हाथी को भी हरा देता है वगैरह।** ** यों तो धन का उपयोग हमेशा है , लेकिन इसकी उपयोगिता बुढ़ापा में सबसे ज्यादा है । ** ** यों तो माता पिता अपनी संतान को हमेशा अपने पास देखना चाहते हैं , लेकिन बुढापा में सबसे ज्यादा अपने नजदीक देखना चाहते हैं ।** ** ज्यादा काम करना ही खूबी नहीं है । खूबी है सफल कर्म करना अर्थात सफलता ।** ** जैसे किसी के पास बहुत सा शून्य हो तो भी वह संख्या नहीं बना सकता अगर उसके पास अंक नहीं हो । वैसे ही मूर्ख और दुष्ट के संग से कोई भी वृद्धि संभव नहीं। ** ** पूर्ण सफलता तीन बातों से परिभाषित होती है - नाम ,यश और अर्थ यानी धन। जिसमें ( आम परिस्थितियों में ) तीसरा काफी महत्वपूर्ण है । कहने का अर्थ यह है कि यदि व्यक्ति सफल हो और पैसा नहीं मिले तो उसका वह कार्य असफल तुल्य ही है । ** ** ओम मेरी नजरों में - ** न्याय , शिक्षा एवं प्रशासन सिर्फ यही तीन सुधर जाए तो वह देश उन्नति की चोटी पा जाए । अर्थात रामराज्य और आदर्श देश में उनकी गणना होने लगे । ** शाप और कुछ नहीं मन का विखंडन है , और मन का विखंडन और कुछ नहीं इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन इत्यादि से भी अति सूक्ष्म तत्त्वों का विखंडन है। और उससे उत्सर्जित ऊर्जा परमाणु बम से भी ज्यादा विनाशकारी होती है ** ** मन का विखंडन अर्थात अति सूक्ष्म तत्त्वों का विखंडन , जिसे मस्तिष्क रूपी कंप्यूटर से प्राचीन ऋषि करते थे , जिस पर प्राचीन आर्ष ग्रंथ प्रकाश डालता है । ** ** बार-बार पढ़ने के बाद भी जिस किताब या रचना का स्वाद अगर उसके प्रथम पाठन जैसा बना रहे , बल्कि बढ़ता जाए तो वह उच्च कोटि का ग्रंथ या रचना कहलाता है । ** ** परंपरा अनुकरणीय होता है । जहां अनुकरणीय नहीं है वहां विद्रोह पैदा होता है । ** ** शाप और आशीर्वाद की परिपूर्णता दाता की आत्मा पर निर्भर करती है। यदि शत प्रतिशत शुद्ध आत्मा से शाप या आशीर्वाद दिया जाए तो शत-प्रतिशत फलित होगा । यदि त्रुटि युक्त आत्मा से दिया जाए तो पूर्ण फलित नहीं होगा । ** बिना किसी काम यानी कर्म रहित चुपचाप बैठा व्यक्ति तंद्रा में रहता है , अर्थात या तो चिंता में अथवा चिंतन में । यदि मन शांत है तो चिंतन में , यदि मन अशांत है तो चिंता में । और दोनों ही तंद्रा की अवस्था है । ** छोटी अवधि तंद्रा स्वाभाविक प्रक्रिया है। परंतु बड़ी अवधि तंद्रा आम आदमी के लिए अस्वभाविक प्रक्रिया है , परंतु योगी , ज्ञानी और वैज्ञानिकों के लिए स्वाभाविक प्रक्रिया । ************* ******** ****** इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद My blog URL ******** ******* **** ****** |
मैं इंजीनियर , रिसर्चर और लेखक हूं। मैं गांव रोआरी , जिला-पश्चिम चम्पारण ,बिहार ,भारत का निवासी हूं। मेरी रचनाएं जो रोचक कविता , काव्यानुवाद , गीत , व्यंग , लेख , कोटेशन इत्यादि भिन्न भिन्न विषयों पर है आप यहां पढ़कर उसका आनंद उठा सकते हैं। I am engineer , researcher and writer. I live at village Roari , via - Lauria, District- champaran, Bihar, India. Blog url -Pashupati57.blogspot.com , Contact-- Er. Pashupatinath prasad , E-mail- er.pashupati57@gmail.com , Mobile 6201400759
शनिवार, 11 जून 2022
विचार ( भाग 8 )
शुक्रवार, 10 जून 2022
हठ , स्वाभिमानी बनो , नेपाल ( तीन गीत )
अनुसंधानशाला से तीन गीत प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद |
गीत
शीर्षक - हठ , स्वाभिमानी बनो और नेपाल ( तीन गीत )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
हठ हठ कैकई के कारण से दशरथ मरे , हठ कारण से लंका रसातल हुई , छोड़ो हठ अभिमान व गुमान प्रियतम, कहे पशुपतिनाथ , हठ करता है नाश , ******* स्वाभिमान बनो मुंह से अमृत की वाणी हमेशा बोलो , काल की कड़कड़ाहट से डरना ना तू , करो कर्म ऐसा सुहावन प्यारा , वह बनो ज्वाला जल जाए बत्ती , पढ़ो लिखो सभी कि हटे मूर्खता , *********** नेपाल सुन सुन सब नेपाली , हिमालय व तराई , मधेशी व पहाड़ी , घूमें गोरा गोरा गाल , लिखे पशुपतिनाथ , *********** ******** ************ इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद My blog URL ******* ********** |
गुरुवार, 9 जून 2022
कलम और कुदाल , अकेला तथा भय ( तीन कविताएं )
अनुसंधानशाला से तीन कविताएं प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद |
कविता
शीर्षक - कलम और कुदाल
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
व्यर्थ जाति रटता संसार , दो हेतु रत जीव व जन , कठिन प्रश्न यह श्रेष्ठ है कौन , गुरु हमेशा श्रेष्ठ कहाता , नर-मादा के मन जब डोले , दोनों मिल एक हो जाते , मन के कारण बनता पेट , जब-जब कोई कलम उठाए , व्यर्थ जाति रटता संसार , ******* ********** कविता जहां दुष्टों का मेला है , हर ढंग जहां अलबेला है , जहां पे नहीं कोई चेला है , जहां सब कुछ अलबेला है , ****** ********* कविता भय की महिमा बहुत अपार है , भय कारण से ही नर मानव है , भय कारण ही टिका समाज है , जीव एक दूसरा से भय खाता , ********* ******** इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद My blog URL *********** ******** |
बुधवार, 8 जून 2022
शून्य , एक और अनंत तथा तम और आकाश
शोध कविता
शीर्षक - शून्य , एक और अनंत तथा तम और आकाश
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
शून्य , एक और अनंत
पूर्ण पूर्ण में दिया रहा फिर भी पूर्णांक ,
पूर्ण पूर्ण से लिया रहा फिर भी पूर्णांक ,
गुणा पूर्ण में किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक ,
पूर्ण विभाजित किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक।
( अनंत + अनंत = अनंत , अनंत - अनंत = अनंत,
अनंत × अनंत = अनंत , अनंत ÷ अनंत = अनंत )
( देखें संदर्भ 2 )
शून्य शून्य में दिया रहा फिर भी शून्यांक ,
शून्य शून्य से लिया रहा फिर भी शून्यांक ,
गुणा शून्य में किया शून्य फिर भी शून्यांक ,
शून्य विभाजित किया शून्य आया पूर्णांक ।
( 0 + 0 = 0 , 0 - 0 = 0 , 0 × 0 = 0 , 0 ÷ 0 = अनंत )
शून्य बिना एक रहता निष्फल ,
बिना एक शून्य फले नहीं फल ,
शून्य आदि है , एक शुरू है ,
अंत अनंत से ब्रह्म बद्ध है ।
बंद वक्र पर सभी जगह से शून्य शुरू है ,
वहीं पर है एक अनंत बन अंत है पाता ,
अंक विद्या के सब गणित के जनक तीन ए ,
इन तीनों से ही गणित को सीखा जाता ।
( देखें संदर्भ - 1 )
अगर शून्य रहता है किसी अंक के पीछे ,
बढ़े जरा भी अंक नहीं रहता वह नीचे ,
अगर शून्य आता है किसी अंक के आगे ,
10 गतांक में वृद्धि हो भाग्य उसका जागे ।
( जैसे - 01 , 10 , 100 वगैरह )
यह वृद्धि धीरे धीरे बनता अनंत ,
घटते घटते शून्य बने कहे सब संत ,
शून्य और अनंत नहीं दो इसको मानें ,
इन दोनों का दो उद्भव नहीं इसको जानें ।
( देखें संदर्भ - 1 )
तम
जहां कहीं प्रकाश रोको वहां तम आ जाता ,
क्या है इसका वेग बोल तू क्या है पाता ?
अवलोकन बतलाता इसका वेग शून्य , अनंत ,
इस कारण से प्रकट हो जाता कहीं तुरंत ।
( वेग = विस्थापन/ समय , अगर समय शून्य तब वेग अनंत यानी शून्य समय में कहीं भी । अगर समय अनंत तब वेग शून्य यानी पूर्ण स्थिर )
इसका भौतिक गुण शून्य से है निरूपित ,
गति शून्य , आवृत्ति शून्य इसमें अपेक्षित ,
पांचवा मूल माप की परिभाषा देता तम ,
जिससे बद्ध यह वृहद प्रकृति चलती हरदम ।
( पांचवा मूल माप cycle )
सब कहते हैं ब्रह्म रचता है भू को सब को ,
तुम कहते हो तम रचता है ब्रह्म को सबको ,
तम क्या है यह प्रश्न हमारा ?
कहो क्या प्रमाण तुम्हारा ?
बिना स्रोत नहीं भू पर बहता निर्मल निर्झर ,
बिना स्रोत प्रकाश पूंज नहीं भू है पाती ,
बिना स्रोत भू पर छाया बन जाती कैसे ?
अंत: कोई है स्रोत जहां से बनके आती ?
यह स्रोत अनंत बिंदु तम ,
यह स्रोत शून्य बिंदु तम ,
यह स्रोत है अंत बिंदु तम ,
यह स्रोत है आदि बिंदु तम ।
शुभ्र दिन में जो नीला रंग दिखता ऊपर ,
घोर निशा में जो काला छाता इस भू पर ,
ज्योंहि दीप शिखा बुझता जो रंग है आता ,
यही तम का भिन्न रूप इस भू पर छाता।
कहता वेद सभी है ऐसा ,
मनुस्मृति साक्षी जैसा ,
उपनिषद भी कहता यही ,
फिर क्यों मानें ऐसा वैसा ।
( देखें संदर्भ )
आकाश
जनक यज्ञ में याज्ञवल्क्य से गार्गी ने पूछा-
भू किससे आच्छादित है यह आप बताएं ,
भू है जल से,जल वायु से,
वायु ऊपर नभ है आए,
नभ ऊपर गंधर्व लोक है,
सूर्य लोग इस ऊपर आए।
इसके ऊपर चंद्रलोक है ,
नक्षत्र लोग इस ऊपर छाए,
देवलोक इसके ऊपर है,
इंद्रलोक इस ऊपर आए ,
प्रजापति लोक इसके ऊपर,
ब्रह्मलोक सब ऊपर छाए ,
पुनः प्रश्न किया गार्गी ने
इसके ऊपर पुनः बताएं ।
प्रश्न कठिन था , उत्तर शेष था ,
ऋषि मन तब कुछ अकुलाया ,
आकुल मन तब क्रोध सृजन कर
गार्गी को था चुप कराया ।
इसके आगे मैं बतलाता ,
ब्रह्म के ऊपर तम है छाता ,
तम के ऊपर क्या है आता ,
सबसे ऊपर क्या है छाता।
बंद वक्र पर चलो जहां से
फिर कर आते पुनः वहां पे ,
ऐसा ही इस चक्र को जानें ,
सबसे ऊपर तम को मानें ।
( देखें संदर्भ -1 )
जो है सूक्ष्म जिससे जितना
वह ऊपर रहता है उतना ,
जो है स्थूल जिससे जितना
वह नीचे रहता है उतना ।
वैज्ञानिक हाईगन का इथर
भी लगता कुछ तम के ऐसा ,
माइचेलसन-मोरले प्रयोग से
सिद्ध नहीं हो पाता वैसा ।
मैं पाता प्रयोग गलत यह
क्योंकि स्रोत है धारा ही पर ,
नित्य बिंदु पाने के हेतु
लें स्रोत किसी ग्रह के ऊपर ।
विद्युत-चुंबकीय , गुरुत्वाकर्षण
क्षेत्र द्वय आकाश बनाते ,
इथर का अस्तित्व नहीं है ,
अल्बर्ट आइंस्टीन यह बतलाते ।
महाप्रलय के हो जाने पर
नभ का पिंड खत्म होते सारे ,
सूर्य चंद्र व ग्रह नक्षत्र सब
खत्म हो जाते हैं सब तारे ।
तो भी क्या उपरोक्त क्षेत्र द्वय
बच जाएंगे ,
उसके बाद आकाश कहां से
बन पाएंगे।
अतः तम है जनक सभी का ,
और सभी हैं दास इसी का ,
स्वत: जन्म ले , स्वत: मरण ले,
मित्र अमित्र यह नहीं किसी का ।
सभी जगह यह व्याप्त
नहीं कोई जगह है खाली ,
ग्रह ,नक्षत्र ,परमाणु हो
अथवा रवि लाली ।
भू ,चंद्र हो अथवा कोई
नभ का तारा ,
यही अनंत का रूप
जिसे है देखती धारा ।
स्वामी विवेकानंद कहते
अनंत नहीं हो सकता दो-तीन ,
अनंत एक है , एक ही रहता ,
बीते चाहे कितना ही दिन।
अगर कोई विद्वान नहीं
सहमत इन सबसे ,
कृपा करके वह अपना
विचार बताए ,
अपना तर्क और प्रमाण
ईमेल करके ,
मुझ नाचीज़ को अपनी
बातों से समझाए।
संदर्भ ( References ) :--
1.
अनंत और शून्य बंद वक्र पर एक ही जगह पर होता है। |
2. पुर्णमिद्; पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
( उपनिषद )
3. तम आसीत्तमसा गूढमग्रेअ्प्रकेतं संलिलं सर्वमा इदम।
तुच्छयेनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकम ।।
( ऋग्वेद , अ.8,अ.7,व.17 , ऋग्वेदादिभाष्य भूमिकापेज 85 , स्वामी दयानंद सरस्वती रचित )
4. आसीदिदं तमोभूतम प्रज्ञात्मललक्षणम्।
अप्रतक्र्यमविज्ञेयम् प्रसुप्तमिव सर्वत:।।
( मनुस्मृति अध्याय 1, श्लोक 5 )
5. अनेकाबाहूदरवक्त्रनेत्रं
पश्यामि त्वां सर्वतोअ्नन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं
पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।
( गीता अध्याय 11, श्लोक 16 )
6. आर्यावर्त अखबार
( गार्गी याज्ञवल्क्य संवाद )
7. Ideas and opinions
( Einstein Albert )
8. Paper on Hinduism Chicago Address by Swami Vivekananda ( pp-25 )
*********** समाप्त ***************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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मंगलवार, 7 जून 2022
विचार ( भाग 7 )
अनुसंधानशाला से विचार भाग 7 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद |
कोटेशन
विचार ( भाग 7 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
** जैसे नदी की प्रबल धारा को नाविक काट कर नौका को किनारा प्रदान कर देता है । परंतु हवा का प्रबल वेग को नहीं काट पाता और नौका मझधार में या तो डूब जाती है या भटक , उसी प्रकार यह जीवन नौका है । कुछ सज्ञ जानते हैं यह राह नाश और पतन की है , परंतु चाह कर भी नहीं छोड़ पाते , अपने को नहीं रोक पाते , लाचार हैं । ** मानव इसलिए सत्य नहीं बोलता क्योंकि वह सत्य को ढक कर उसका नाम सभ्यता और चतुराई रख दिया है। अतः कटु सत्य बोलने में कांप जाता है । जैसे कलम जब नंगी होती है तभी शब्द उगलती है , जब ढकी होती है तो वह पॉकेट में जाकर चुप रहती है । ** ** सौंदर्य - जो नेत्र प्रिय हो और मन में आकर्षण पैदा करे ** तार्किक दृष्टिकोण से तो नहीं कुछ सत्य है और नहीं असत्य है । क्योंकि सत्य और असत्य दोनों परब्रह्म का ही रूप है , यानी अनंत का अंश । ** रात्रि पृथ्वी की छाया है , तथा छाया तम का एक रूप और तम जिसमें आवृत्ति तथा समय शून्य हो । दूसरे शब्दों में प्रकाश और अंधकार का मिलन विंदू तम है। या बराबर बराबर प्रकाश और अंधकार मिलाने से जो प्राप्त होगा वह तम है। ** ** योग्यता युक्त अहं स्वाभिमान कहाता है , परंतु योग्यता रहित अहं अभिमान , शान , घमंड कहता है । प्रथम ऐश्वर्य, वैभव ,अमरता देता है । वहीं दूसरा खोखलापन , पाखंड और अंततः मायूसी। एक ऊपर ले जाता है , तो दूजा नीचे । एक उन्नत मार्ग है , तो दूसरा पतन का । ** ** स्वच्छ मुस्कुराहट तभी मानव मुखड़ा पर प्रकट हो सकती है जब उतने क्षण के लिए उसके अंदर किसी प्रकार का क्लेश , द्वेष, वैर और मैल की भावना ना हो , अथवा मुस्कुराहट आ ही नहीं सकती । ** मिट्टी से बना दलदल में फंसकर जीव का मात्र तन का ही नाश होता है , आत्मा और मन सुरक्षित रहते हैं , परंतु मैला से बने दलदलल में फंस कर तीनों का नाश होता है । मैला दूसरा कुछ नहीं दुरात्मा का कलापन है और जगत की माया । ** ** पृथ्वी का कुल धन नियत ( constant ) है । इस कारण एक तभी धनी होगा , जब दूसरा निर्धन हो। ठीक उसी प्रकार जैसे सूरज नहीं अस्त होता है और नहीं उदय । किसी एक जगह के लिए अस्त होता है तो दूसरे जगह के लिए उदय होता है। ** धन बुद्धि का समानुपाती है और निर्धनता बुद्धि का व्युत्क्रमानुपाती । ** ** लेन-देन का साथी यदि लाभ हो तो वह अविराम चलता रहता है , रुकता नहीं। यदि दुर्भाग्य से उसकी सहेली हानी बनी तो वह टूट कर बिखर जाता है । ** पूरब और पश्चिम सही माने में देखा जाए तो एक ही है । दो व्यक्तियों में आगे वाले के लिए पीछे वाला पश्चिम है तो पीछे वाले के लिए आगे वाला पूर्व वगैरह । ** ** चलने से रास्ता खत्म होता है और करने से काम और सतत प्रयास से सफलता । ** कुपात्र पहले अपनी तथा दूसरे की विद्या का नाश करता है , उसके बाद बुद्धि का , फिर धन का , उसके बाद जीवन का और सुपात्र ठीक इसके उल्टा वृद्धि करता है। ** विनाश में सबसे पहले विद्या का नाश होता , तब बुद्धि का , तब धन का , अंत में तन का । और विकास में इसके उल्टा। ** ** प्रकृति प्रदत्त शरीर का काम है मल विसर्जन तथा सभ्य का काम है इसकी सफाई । ** जीवन यापन के लिए काम ढूंढकर पाना मानव जीवन का सबसे जटिल एवं महत्वपूर्ण कार्य है।** ** आदमी जितना सिखाने में दिलचस्पी लेता है उतना सीखने में लेता तो पृथ्वी स्वर्ग बन जाए।** ** मूर्ख नहीं किसी का दोस्त होता और नहीं दुश्मन। मूर्ख का एक ही काम है और वह है विनाश। जबकि वह अपनी समझ से अपने हितैषी का उपकार ही करता है , लेकिन उसको उपकार और अपकार में अंतर नहीं दिखता , इसलिए वह बिनाश ही करता है अर्थात उसको उ और अ में अंतर नहीं दिखता , उसके लिए दोनों एक ही है । ** ** ज्ञान मूर्खता का व्युत्क्रमानुपाती होता है । ** ** अगर मूर्ख मूर्ख का नाश नहीं करें तो वह विद्वान का नाश करेगा , क्योंकि मूर्ख का कर्म है विनाश। ठीक उसी प्रकार जैसे कीड़ा अगर कीड़ा को नहीं खाए तो वह सभी उत्तम लकड़ी और फर्नीचर को ही खा जाएगा । ** ** मूर्ख और दुष्ट कलह में रहता है, कलह में जीता है , कलह ढूंढता है , और दूसरी जगह जाकर कलह बोता है तथा वहां से कलह ले आता है । ** समाज जब मूर्खता से लड़ता तब विकास करता है , तथा जब विद्वान से लड़ता है तब विनाश होता है । ** ** चक्षु से मात्र सीमित परिवेश दृष्टिकोण होता है , परंतु ज्ञान से असीमित परिवेश का दर्शन किया जा सकता है । ** ** किसी भी कलह का कारण जलन है ,और जलन का अनेक रूप है , इसलिए कलह का भी अनेक ढंग है । ** ** सभ्यता का मूल दर्शन है , जितना भी ज्ञान विज्ञान सत्य विद्याएं हैं उन सभी का जनक दर्शन ही है , और बुद्धि दर्शन की माता , मंथन दर्शन का जनक । ** समय सब कुछ का धीरे धीरे नाश कर देता है तथा महाप्रलय के बाद खुद नाश को पा तम में विलीन हो जाता है , और पुनः तम से जन्म पाता है । सिर्फ एक ही चीज का नाश नहीं होता और शाश्वत है , वह है तम । यह पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है , और हर जगह चाहे वो भू हो अथवा अंतरिक्ष या कहीं एक ही रूप है , और एक ही गुण है। इसी का भौतिक रूप अंधकार , छाया , कालापन , नीलापन इत्यादि है ।** ** कुपात्र अपने आप को सबसे चतुर समझता है , तथा अपनी कुपात्रता के कारण अपना समय खाता है , तथा अपनी मूर्खता रूपी चतुराई के फलस्वरूप सुपात्र का समय खाने में सदा सचेत रहता है , लेकिन समय जब उसको नाश का विशाल सागर उपस्थित कर चुका होता है तब उसे अपनी गलती का एहसास होता है । ** विचार पांच ज्ञानेंद्रियों आंख ( प्रकाश तरंग ) , कान ( ध्वनि तरंग ) , नाक (आणविक तत्त्व ) , त्वचा ( तापीय, विद्युतीय तरंग ) जीभ ( आण्विक तत्त्व ) द्वारा पैदा किया गया एक विशेष तरंग है जो मस्तक में पहुंचकर भाव पैदा करता है और शब्द आदि बनता है। ** मस्तिष्क से तौली बातें सबसे ज्यादा सत्य होती है , अर्थात सर्वोत्तम होती है , आंख से देखी बातें इससे थोड़ा कम सत्य और काम से सुनी बातें इससे भी कम । ** ** कटु सत्य 24 कैरेट सोना सा होता है ,सत्य 20 से 22 कैरेट सोना सा और अर्ध सत्य गिनी सा यानी 12 से 18 कैरेट सोना सा और असत्य गिलट सा। ** ** जो पूरे होश हवास में सर्वदा नंगा रहता है उसे परब्रह्म परमेश्वर कहते हैं । जो दाढ़ी मूंछ आने पर होश हवास में नंगा होता है उसे अवतार कहते हैं , जैसे महावीर । ** जो सिर्फ बात से सुधर जाए उसे सुपात्र , जो हल्का दंड से सुधर जाए वह पात्र और जो भारी दंड से भी सुधार नही पाए उसे कुपात्र कहते हैं। ** ** जहां दंड विधान शून्य हो जाता है वहां व्यक्ति व्यक्ति दुर्जन बनने लग जाता है। यहां तक कि सीधा , निरीह और सज्जन भी दुर्जन बनने लगते हैं ** ** छोटा से छोटा पेड़ भी तभी गिरता है जब उसका जड़ काटा जाता है । यदि जड़ को छोड़ उसके और दूसरे भाग को जन्म भर काटा जाए तो भी उसका अस्तित्व कायम रहता है । यही कुटनीति और राजनीति का सार है। ** ** विज्ञान कटु सत्य होता है और उसकी नीरसता से उत्पन्न गर्मी से राहत साहित्य की ठंडक प्रदान करती है , क्योंकि सत्य यथार्थ है इसलिए तीखा होता है , और कल्पना स्वप्न है इसलिए मधुर । ************* क्रमशः **************** इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद My blog URL |
सोमवार, 6 जून 2022
तू , वह और मैं
अनुसंधानशाला से " तू , वह और मैं " कविता प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद |
कविता
शीर्षक - तू , वह और मैं
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
कविता का भावार्थ यह कि यदि कोई अपने लिए मैं है तो सामने वाले के लिए तू है और परोक्ष वाले के लिए वह है। यानी एक ही व्यक्ति भिन्न परिस्थितियों में तू, वह और मैं है।ए तीनों व्यक्ति के नहीं आत्मा का वोध कराते हैं जो सभी में है और ए तीनों भी सभी में हैं। अपना मन अग्नि रोक सदा , कालिमा राख की परत चढ़ा , जो समझ रहे हो वह न समझ , कालिमा राख का ढेर लगा जब तलक रहे भू चंद्र सूरज , मैं को न समझ जन भू जन सा उसको भी बता वह वह समझे , बढ़ता जा आगे कर्म के बल , बीती कल है सबने देखी , न सोच निरर्थक की बातें , सुनने की आदत को डालो , गर बैठोगे बिन कर्मों के **********समाप्त********** इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद My blog URL ***** ***** ****** |
शुक्रवार, 3 जून 2022
विचार ( भाग 6 )
अनुसंधानशाला से विचार भाग 6 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद |
कोटेशन
विचार ( भाग 6 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
** मात्र महत्त्वाकांक्षा यानी योग्यता रहित महत्वाकांक्षा अराजकता एवं पागलपन पैदा करती है । महत्वाकांक्षा रहित योग्यता लक्ष्य हीनता , शिथिलता , असफलता एवं कर्म हीनता पैदा करती है । तथा महत्वाकांक्षा युक्त योग्यता स्फूर्ति , लक्ष्य , सफलता एवं कर्मठता पैदा करती है। ** भगवान और शैतान दोनोें एक दूसरे के विपरीत होते हैं । शैतान पूर्वार्ध समय में हावी रहता है । तथा भगवान उत्तरार्ध समय में । शैतान आक्रमण करता है , तथा भगवान परास्त । शैतान असफल होता है , और भगवान सफल । ** ** भूत एवं वर्तमान का सही आकलन ही भविष्य का सही आकलन है । यानी सही भविष्यवाणी वशर्ते कि प्रकृति साथ दे । ** लग्नशीलता , ईमानदारी एवं बुद्धिमत्ता ए तीन सफलता एवं समृद्धि दायक हैं।** ** कर्ज जहां दाता में अभिमान या अहंभाव देता है , वहां ग्राहक में लाचारी । प्रथम को लाभ , वहां द्वितीय को हानि। ** भय का अंतिम परिणाम और सीमा मृत्यु है , तथा आरंभ जन्म । भय किसी न किसी रूप में उम्र भर व्याप्त रहता है । ** ** साहित्यकार समाज का ब्रह्मा है , ** जिस प्रकार कुम्हार के आवा से कोई पात्र बड़ा ही सुंदर पक जाता है , भट्टी से कोई कोई ईंट बड़ा ही सुंदर ढंग से पका हुआ निकल आता है , मां की कोख से कई संतानों में से कोई एक सुपुत्र निकल आता है , वैसे ही कवियों और लेखकों के बहुत लेखों और छंदों में कोई एक लेख और छंद बहुत ही चारू मनोरम और मनभावन बन आता है , जो अमरवाणी बन जाता है । ** ** कुत्ता मुर्दा मांस तथा हड्डी खाता है , गिद्ध लाश की अतड़ी खाता है , शेर हत्या कर खून पीता है , कौवा मेला खाता है , पर दुर्जन और मूर्ख समय खाता है, भेजा खाता है ,और अंत में अपने आप को खाता है । ** ** अपमान के जीवन से सम्मान की मौत श्रेयकर होती है । हजारों मूर्खो की संगत से एक साधु की संगत सुखदायक होती है । ** ** परमात्मा अखंड अनंत ज्योर्तिपुंज एवं ऊर्जा स्रोत है । जैसे अतुल संपदा का स्वामी अपना धन का कुछ का भाग ऋण पत्र , अंशाधि पत्र इत्यादि में खर्च किए रहता है , तथा शेष राशि से अपनी शक्ति बनाए रखता है , वैसे ही परमात्मा का अनंत ऊर्जा का कुछ भाग अनंत जीवो में विद्यमान है , जोकि मृत्यु के बाद वह पुनः परमात्मा में लौट आता है , तथा पून: वहां से नए जीव में । यही सृष्टि क्रम है। जैसे अग्नि स्रोत से प्रकाश पुंज निकलकर अपने आसपास के स्थान को प्रभावित करता है , वैसे ही अनंत ऊर्जा पुंज से बना परमात्मा अपने ब्रह्म से ब्रह्मांड को प्रभावित करता है । ** ** सुपात्र से समय का सदुपयोग होता है । पात्र से समय कटता है । तथा कुपात्र से समय नष्ट होता है। पहला का संग उपयोगी है , दूसरा का संग कामचलाऊ है । तथा अंतिम का संग अवांछित है। प्रथम सुखदायक है , दूसरा लायक है , तथा तीसरा नालायक है । ** ** विचार विद्युत चुंबकीय तरंग है जो ब्रह्मांड में तैरता रहता है । विचार न नया होता है ना पुराना बल्कि यह शास्वत है । यह देश जाति भाषा तथा लिपि से परे सर्वव्यापी है । जैसे पानी विभिन्न पात्रों में अपना रूप बदलता है , उसी तरह विचार विभिन्न मानव मस्तिष्क में विभिन्न तरह से प्रकट होता है । यह विचार विज्ञान में वैज्ञानिक बनाता है , अध्यात्म में ईश्वर और आत्मा का ज्ञान दे ऋषि , तथा साहित्य में महाकवि कालिदास और राजनीति कूटनीति में कृष्ण और कौटिल्य वगैरह-वगैरह। ** ** मौत न टूटने वाली अनंत नींद है । मौत अनंत शांति का दूसरा नाम है। मौत सभी चिंताओं से मुक्ति देती है । मौत सुनने में भयंकर , सोचने पर आश्चर्यजनक और पाने पर मुक्ति है । ** ** परिवार , समाज , देश इत्यादि की उत्पत्ति का सही आकलन किया जाए तो इनके जन्म का जनक स्वार्थ ही है । स्वार्थ ही सभ्यता का जनक है । योगी , ज्ञानी , सन्यासी इत्यादि भी स्वार्थ से परे नहीं है , नहीं परे हैं ईश्वर । किसी को धन का स्वार्थ है , तो किसी को नाम और यश का , किसी को स्वर्ग , मोक्ष ,ज्ञान इत्यादि की चिंता है , तो ईश्वर को सृष्टि चलाने की। ** ए विश्व अनंत के कई रंगमंचों में से एक है , इसके जीव इस पर कलाकार के रूप में अपनी अपनी योग्यता अनुसार अपनी कला दिखाते तथा परिश्रम पाते हैं । जो सुपात्र बनता है वह नायक या उसके समकक्ष पद प्राप्त करता है , और जो कुपात्र बनता है वह खलनायक या उसके समकक्ष पद पाता है। ** ** परमात्मा के ही दिया हुआ और प्रेरित किया हुआ अच्छा और बुरा दोनों कर्म है , जिसे मानव करता है , जैसे श्वेत और श्याम , प्रकाश और अंधकार इत्यादि ।श्वेत कर्म यानी सुकर्म करने वाला श्वेत फल यानी नाम , यश , धन और श्याम कर्म यानी कुकर्म करने वाला श्याम फल यानी दुख , अपयस , गरीबी आदि तथा दोनों कर्म करने वाला दोनों फल पाता है । ** ** किसी भी धर्म या सिद्धांत की महत्ता निम्न बातों पर निर्भर करती है - ** अपमान खाकर और बिना उसका प्रतिकार किए अन्न खाना विष सा है , और जिंदा रहना जिंदा लाश सा । ** ** एक समय में जो वस्तु अरूचिकर , अप्रिय और त्याग्य लगता है , वही किसी समय विशेष में रुचिकर , प्रिय और ग्राह्य लगता है , जैसे जो अग्नि शरद ऋतु में अच्छी लगती है , वही गृष्म में नहीं लगती , जो हवा , पानी गृष्म में प्रिय लगता वही शरद ऋतु में अच्छा नहीं लगता। जो विचार , भाव मस्तिष्क में रात में चंद किरण तले पैदा होते हैं वही दिन में सूर्य प्रकाश में ठीक नहीं लगते । ** ************ क्रमशः *************** इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद My blog URL ***** ******** ***** ***** |
गुरुवार, 2 जून 2022
विचार ( भाग 5 )
अनुसंधानशाला से विचार भाग 5 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद |
कोटेशन
विचार ( भाग 5 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
** मुहब्बत सिर्फ गुण देखती है अवगुण नहीं , तथा घृणा सिर्फ अवगुण देखती है गुण नहीं , सिर्फ मनुजता गुण और अवगुण दोनों देखकर चलती है। ** ** राजनीति और कुटनीति में नीच से नीच सिद्धांतों से प्राप्त जीत ऊंच से ऊंच सिद्धांतों और आदर्शों से प्राप्त हार से श्रेष्ठ होती है। ** ** कल्पना बड़ी ही मधुर एवं मनोरम होती है । यही कारण है कि बड़े चाव से लोग उपन्यास एवं कथा पढ़ते हैं । और सत्य रुखा एवं सूखा होता है । यही कारण है कि कुछ लोग ही गणित और विज्ञान में रुचि लेते हैं । ** ** कोई भी नई आदत अपना बनाने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है । और अभ्यास 1 दिन का काम नहीं , यह दिनों महीनों में होता है।** ** मानव जीवन में तीन ही महत्वपूर्ण तिथियां होती है । 1. जन्मदिन 2. विवाह दिन और 3. मृत्यु दिन प्रथम उत्तम है सभी के लिए अर्थात सभी खुश होते हैं । दूसरा मध्यम होता है अर्थात संतान गृहस्थ में प्रवेश करता है तो माता-पिता वानप्रस्थ में । और तीसरा सर्वोत्तम है अर्थात वह सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है । हालाकि परिवार जन शोक में डूबे रहते हैं । ** ** सूअर सफाई से वैर रखता है । और मूर्ख , दुष्ट व्यवस्था से । ** ** अपना से अयोग्य के कर्मों से जो शिक्षा लेता है अथवा नकल करता है , उसका नाश निश्चित होता है । तथा अपना से योग्य के कर्मों की जो नकल करता है या अपनाता है उसका विकास भी कोई नहीं रोक सकता। ** ** दुष्ट के साथ दुष्टता करने वाला दुष्ट नहीं कहलाता । दुष्ट वह कहलाता है जो सज्जन के साथ दुष्टता करता है ।** ** जो जितना उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है उसकी कीमत उतना ही ज्यादा है । ** ** मूर्ख और दुष्ट दोनों ही दुश्मन का ही काम करते हैं । फिर भी दुष्ट अच्छा होता है ,क्योंकि दुष्ट से आदमी हमेशा सावधान रहता है , तथा बचकर चलता है। किंतु मूर्ख से सावधान नहीं रहता जिससे उसके कर्मों से ज्यादा हानि होती है । ** ** आदमी की पूर्ण परिभाषा उसके अंत:परिवेश तथा वाह्य परिवेश से दिया जाता है। ** अनंत त्रिज्या से बना गोला का गुण यह भी होता है कि कोई इस गोला पर जहां से चलता है अनंत काल के बाद पुनः वहीं लौटता है , चाहे दिशा कुछ भी हो । जैसे पृथ्वी पर एक बिंदु से और एक दिशा में गमन करता व्यक्ति पुनः उसी बिंदु पर लौटता है । ** ** मैला का यह अवगुण यह है कि वह अपना पूरा जीवन बदबू फैलाने में ही बिताता है । जब अपना नाश पाता है यानी सड़ता है तब वह खाद बन उपयोगी बनता है । ** ताला लगाने के पीछे छिपा मनोविज्ञान एवं सिद्धांत यह है कि यह न तो चोर से रक्षा कर सकता है और ना डाकू से बचाव , बल्कि साधु चोर डाकू न बन जाए अर्थात अपना ईमान न खो दें इसके लिए है । ** ** जैसे एक जीव दूसरे जीव का जन्म देता है , वैसा ही एक विचार दूसरे विचार का ।** ** अगर कोई छात्र परीक्षा में 0 अंक पाता है तो इससे मतलब निकलता है कि वह या तो सबसे बड़ा मूर्ख है या असाधारण । अगर वह असाधारण है तो परीक्षक शून्य है । अगर वह शून्य है तो परीक्षक असाधारण है। ** ** अगर किसी की उत्तर पुस्तिका पर परीक्षक यह लिखता है कि परीक्षार्थी परीक्षक से योग्य एवं बेहतर है तो उससे योग्य शिक्षक या परीक्षक मेरे नजर में दूसरा कोई नहीं है । वह असाधारण परीक्षक है । ** ** आजकल पैसा से बड़ा सहायक और मित्र दूसरा कोई नहीं। ** ** जिस प्रकार त्रुटि पूर्ण अंग तीन तरह से - दवा से , चीरकर तथा अंत में अंग काटकर ठीक किया जाता है , उसी प्रकार त्रुटि युक्त मानव भी तीन प्रकार से , प्रथम बात से , दूजा लात से यानी पीटकर और अन्तत: मौत से सुधार पाते हैं । ** ** जहां रक्षक एवं भक्षक में एकता हो उस परिवेश जगह का त्याग ही कल्याण कारक एवं मंगलमय होता है ** ** न जिसका अंत हो , न मध्य हो और न आदि हो ऐसी स्थिति मात्र बंद वक्र में पाई जाती है ।** *" जैसे महिलाएं अपने प्रिय जनों की मौत पर भावुक हो जाती है , वैसा ही नेता गण चुनाव आने पर । ** प्रकाशन का स्तंभ है - प्रकाशक , प्रेस और वितरक । ** ** कितना ज्यादा समय तक करते हो यह खूबी नहीं है । क्या करते हो यानी कार्य की गुणवत्ता और समाप्ति यह खूबी है । ** ** भ्रम युक्त और संदेह युक्त मन कभी सफल नहीं होता। हमेशा असफल होता है । सिर्फ शुद्ध मन अर्थात संदेह रहित मन ही सफलता प्राप्त करता है।** ** वैज्ञानिक विचार 24 कैरेट सोना सा परिशुद्ध होता है । दार्शनिक विचार और ऐतिहासिक विचार 23 कैरेट सोना सा , साहित्यिक विचार 18 से 20 कैरेट सोना सा तथा अन्य सभी विचार 12 से 18 कैरेट सोना का शुद्ध होता है । तथा जो विचार जीरो से 12 कैरेट सोना सा होता है वह पानी के बुलबुलों सा क्षणभंगुर होता है अर्थात प्रति क्षण जन्मता और मिटता रहता है । ** ** अनुसंधान के लिए तीन महत्वपूर्ण बातों का होना आवश्यक है । ** कर्म का मूल्य है सफलता , और सफलता का मूल्य है पैसा , तथा कर्म चक्र की गतिशीलता इसी आकर्षण के हेतु है । यह जितना प्रबल होगा कर्म चक्र उतना ही गतिशील । ** ** किसी निश्चित क्रिया को निश्चित समय में पूरा करना ही साधना है अर्थात क्रिया और समय से संबंध । ** किसी कार्य की पूर्ति का मानक समय कितना होना चाहिए ? ** मन की दृढ़ता तन का बल है । साहसइ इसकासुपुत्र , धैर्य इसका जनक , सफलता इसकी बेटी , शंका , भय , शोक , आलस इत्यादि इसका वफादार गुलाम और चारण । खुशी , प्रसन्नता इसकी पत्नी और वैभव , समृद्धि इसकी मां। ** ** आलोचना एक पक्षीय , समालोचना द्विपक्षीय और मौन सर्वपक्षीय होता है। ** *************** क्रमशः *************** इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद My blog URL ********* ******** *********** |
बुधवार, 1 जून 2022
विचार ( भाग 4 )
अनुसंधानशाला से विचार ( भाग 4 ) प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद |
कोटेशन
विचार ( भाग 4 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
** किसी भी कार्य का प्राय: चार ही कारण है , नाम , यश ,धन और प्रभुत्व । इन्हीं चार के लिए आदि से आज तक और आगे भी भू के जन रत हैं। ** ** धन काफी महत्वपूर्ण है । इसे अपने अधिकार में रखना उचित है। दूसरे के अधिकार में जाने पर कष्ट उठाना पड़ सकता है , चाहे अपना बेटा , पत्नी ही क्यों न हो। ** ** मूर्खों के साथ विद्वता दिखना सबसे बड़ी मूर्खता है। उनके साथ मूर्ख बनकर रहना ही ठीक है।** ** ब्रह्मांड में अनेक तारें , ग्रह , नक्षत्र इत्यादि विद्यमान हैं । सवाल यह है कि क्या इन सबका प्रभाव मानव तन, मन, बुद्धि और विचार इत्यादि पर पड़ता है ? ** विचार , प्रकाश , ताप और ध्वनि में गहरा संबंध है ** ** प्रकाश , ध्वनि , स्वाद ,स्पर्श और गंध ये पांच मन का निर्माण करते हैं। ** ** हम जो बोलते हैं क्या यह आवाज वायुमंडल में रहता है ? अथवा आज से लाखों वर्ष पहले जो ध्वनि लोगों ने बोली है वह वायुमंडल में सुरक्षित है अथवा खत्म हो गई है? ** प्राकृत संख्या ( 1से 9 तक ) के पूर्व यानी पहले वास्तविक संख्या ( 0 ) अर्थ हीन है। लेकिन बाद में आकर अर्थ पूर्ण हो जाता और गणित का जन्म देता है। जैसे - 01 और 10 ।** ** कब कहां कैसे और किनका कौन सा हाव भाव किनको भा जाए , इसी को सौंदर्य और प्यार कहते हैं। ** ** मूलत प्रकृति अपनी तीन आवस्था में परिवर्तन कर अपना नयापन अर्थात अपने यौवन को हमेशा कायम रखती है । और ए हैं - गर्मी , वर्षा और जाड़ा। ** जैसे पानी में दूध डालने पर पानी की गुणवत्ता और महत्ता बढ़ जाती है , परंतु दूध में पानी डालने पर दूध की गुणवत्ता और महत्ता कम होती है , वैसे ही सज्ञ जब अज्ञ का गुण ग्रहण करता है तो वह श्रीहीन बनता है और जब अज्ञ सज्ञ का गुण अपनाता है तो श्रीमान बनता है । ** ** भगवान , शैतान एवं इंसान में फर्क यह होता है कि हैवान एवं शैतान सदा हिंसक होते हैं , और इसके विपरीत इंसान सदा अहिंसक तथा भगवान हैवान एवं शैतान के लिए सदा हिंसक तथा इंसान के लिए सदा अहिंसक होता है। ** ** घटना - बुद्धि = क शर्त 2- यदि क > 0 यानी धनात्मक शर्त 3 - यदि क < 0 यानी ऋणात्मक ** प्रत्येक व्यक्ति की एक नित्य प्राकृतिक आदत होती है । और दूसरी अनित्य आकस्मिक।** *" दुष्ट की दुष्टता रोकने की एक ही रामबाण दवा है उसके साथ वैसा ही व्यवहार। यदि यह संभव नहीं तो उसका परित्याग। ** ** समाज सोया रहता है , पर अपनी जुबान और कान खोले रहता है। यह आवाज व्यक्तिगत आवाज से भिन्न होती है । यह सत्य और निष्पक्ष आवाज होती। किसी चीज का सही विश्लेषण। ** ** किसी भी समुदाय के कुशल प्रधान को निम्नलिखित चार चिंताएं रहती है - ** मेरे विचार से मृत्यु चार प्रकार से होती है। ** अनुसंधान कार्य बाल से खाल निकालने जैसा है। दूसरे शब्दों में मक्खी के दूध से घी निकालने जैसा। ** ** किसी भी कार्य का आरंभ संघर्षमय होता है , समाप्ति हर्षमय होती है और फल सुखमय होता है । ** ** जीवन संघर्षमय , शादी हर्षमय और मौत शांतिमय होता है। ** ** मकान के नक्शा बनाते समय इंजीनियर को तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए। सूर्य प्रकाश , वर्षा और हवा । ** मौत के सिवा पूर्ण शांति और कोई नहीं दे सकता है। पूर्ण शांति का नाम ही मौत है। ** ** दिमाग से पढ़ने वाला कम समय तक पढ़ता है और रटकर पढ़ने वाला पूर्ण जीवन।** ** यदि लिखने का अविष्कार नहीं हुआ रहता तो मानव बहुत सा विचारों और जानकारियों से अनभिज्ञ रहता । नहीं अपने विचारों को भविष्य के लिए सुरक्षित रख पाता वगैरह-वगैरह। ** *****************क्रमशः**************** इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद My blog URL ********* ******* ******* |
मंगलवार, 31 मई 2022
सही आदमी और मैं ( दो कविताएं )
ब्रह्मा , विष्णु और महेश त्रिदेव ( तीन सवार ) ज्ञान चक्षु धारातल को ए सब दिए , ए मुनासिब सही आदमी के लिए । |
कविता
सही आदमी और ग़लत आदमी
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
क्या मुनासिब सही आदमी के लिए , सूरज सोचे सदा से सुबह के लिए , दुष्ट सोचे सदा है कलह के लिए , जो मुर्दा में पशुपति जीवन भरे , ********** ************** बना हूं नूर मैं हूं मैं सब्ज रंग गंध में सुगंध हूं हुस्न की दुकान हूं मधुर मनोहर हूं रंग और गुलाल हूं रेखा लकीर हूं आजाद हिंद फौज हूं मेरा भी नाम गिना ************* ************ My blog URL |
सोमवार, 30 मई 2022
विचार ( भाग 3 )
अनुसंधानशाला से विचार भाग 3 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद |
कोटेशन
विचार ( भाग ३ )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
** संसार की सभी भाषा और बोली समान ध्वनियों के हेर फेर से निर्मित है जिसे भाषा तुल्यांक कहते हैं । जैसे - अंग्रेजी शब्द का पेन , हिंदी का शब्द सापेक्ष और उर्दू का पेशाब वगैरह में " पे " ध्वनि भाषा तुल्यांक है।**
** बल ,विद्या एवं बुद्धि प्रदान करते हैं नाम ,यश एवं धन । तथा नाम , यश और धन प्रदान करते हैं सुख ,समृद्धि तथा प्रभुत्व । **
** साहित्य - सत्य या असत्य कल्पना पर आधारित गल्प या आलेख है ।
विज्ञान - प्रयोग द्वारा सत्य पाया गया प्रमाणित सिद्धांत है ।
तथा इतिहास - प्रमाण पर आश्रित विगत सत्य घटनाएं है। **
** जलन या खुशी अपने लोगों से या अपने पहचान वालों से होती है , मार्ग का विकास या विनाश अपने ही लोग करते हैं , क्योंकि जीवन का अधिक समय इनके ही साथ बितता है , अपरिचित के संग मात्र कुछ ही क्षण व्यतीत होता है ।
अतः इनसे विकास- विनाश का ज्यादा लेना देना नहीं होता । **
** जैसे तोता डाली पर लटके आम पर ठोकर मारता है और उसमें से कुछ ठोकर मारते ही गिर जाते हैं , कुछ कच्चे निकलते हैं , कुछ पके होने पर भी खट्टे निकलते हैं , तथा कुछ पके मधुर एवं सरस गोपी फल निकलते हैं , जिससे वह संतुष्ट एवं तृप्त होता है ।
जीवन का क्रम ऐसा ही है । सफल व्यक्ति मधुर सरस गोपी अवसर की तलाश करता है , सफल होकर तृप्त होता है ।
दुष्ट जल्दबाज़ होता है , कलह में अपना समय ज्यादा देता है , उसे कच्चे-पक्के और मधुर स्वाद में फर्क करने का समयाभाव है , अतः अरूचि ही उसकी रूचि है । **
** जैसे 32 दांतो के बीच जीभ है ,वैसे ही विपुल सफलता को प्राप्त करने वाला व्यक्ति दुष्टों के बीच घिरा रहता है । जैसे जरा सा असावधान होने पर दांत जीभ को काटकर तकलीफ देता है , वैसा ही वह व्यक्ति जरा भी असावधान हुआ कि दुष्ट उसकी एकाग्रता भंग कर उसे दुष्टता की तरफ धकेलने लगते हैं ।
यदि व्यक्ति में आत्म बल , दृढ़ता एवं निर्भयता की कमी है तो उसकी एकाग्रता खत्म होती है और वह नाश को पाता है । यदि इन तीनों की प्रचुरता हो तो लक्ष्य को ।
ये जन जान पहचान वाले ही होते हैं ,गैर नहीं , क्योंकि गैरों की दुष्टता क्षणिक होती है , जबकि अपनों की स्थाई । **
** अगर जीवन का हर पल सदुपयोग किया जाए और सभी पल का कर्म सफल हो , उसमें विघ्न नहीं पड़े तो शायद करने का कुछ भी नहीं रह जाएगा ।
जीवन का 10% पल एकाग्र भाव से काम करने में तथा 90% विघ्न बाधाओं से लड़ने में खर्च होता है। **
** जैसे दुख का उपचार दवा और परहेज है , वैसा ही गलत हिज्जे का उपचार लिखना तथा ध्यान से पढ़ना है । एवं उच्चारण का उपचार बोलकर पढ़़ना तथा ध्यान से सुनना है । तथा याद का उपचार एक ही चीज को बार बार ध्यान देना एवं दुहराना है , कम से कम 3 बार । **
** पागलपन और कुछ नहीं बल्कि उत्कट इच्छा और महत्वाकांक्षा की पूर्ति नहीं होना है । जिसमें सामाजिक व्यंग उत्प्रेरक का काम करता है । तथा इसका इलाज समाजिक प्यार और सद्व्यवहार है। इसमें भी परिवारिक प्यार और सद्व्यवहार तो अमृत के सदृश है ।**
**दैनिक कार्यों से उसी दिन निपट लेना ही मानसिक शांति है । वैसे तो दैनिक कार्य अनेक हैं परंतु नित्यकर्म अर्थात सुबह का कार्य जैसे - हाथ- मुंह धोना , पखाना जाना तथा विशेषकर स्नान यदि ब्रह्म मुहूर्त में या सूर्योदय के पहले पूरा कर लिया जाए तो दैनिक कार्यों में 50% कार्यों का निपटारा हो जाता है । और सब कार्यों के लिए काफी समय मिल जाता है । **
** मानसिक तनाव का कारण क्रोध है , और क्रोध मन की शांति भंग होने से उठता है , तथा इसका इलाज इन कारणों को हटना है जिससे मन की शांति भंग होती है । **
** प्रकाश की तीव्रता एवं रंग , आवाज , गंध , स्वाद एवं स्पर्श इत्यादि के अनुसार मन एवं मस्तिष्क की तरंगे बनती और बदलती है । **
** जैसे तीसरे बिंदु की प्रामाणिकता के लिए कम से कम 2 परिचित बिंदुओं की आवश्यकता होती है । उसी प्रकार जीवन या ब्रह्मांड की किसी भी समस्या का हल किया जा सकता है यदि दो महत्वपूर्ण बातें आस्था और आत्मा या परमात्मा को समझ लिया जाए। **
** सबका कुछ न कुछ तकिया कलाम होता है, भारतीय नेताओं का तकिया कलाम है देश का विकास , जनता का विकास , जन कल्याण ,भले ही वह करें या ना करें । **
** जैसे सावन की हवा बादलों को विभिन्न रूपों में बनाती और बिगड़ती है , वैसे ही मन में अनेकों विचार बनते और पुनः बिगड़ते हैं ।**
** विस्तृत प्रकृति में अनेकों क्रियाएं पल प्रतिपल होती रहती है , कई ऐसे विचित्र कार्य कलाप
भी होते रहते हैं , इन्हीं कार्य कलापों का रहस्य अनावरण करना विज्ञों का काम रहा है जिसे ऋषि , रिसर्चर या वैज्ञानिक कहते हैं । **
** समय के प्रत्येक अंश के साथ प्रकृति अपने आप में परिवर्तन करती रहती है , हमें यह परिवर्तन तब मालूम होता है जब कुछ खास घटित होती है ।**
** प्रकृति की जिस घटना को मानव विश्लेषण नहीं कर सकता या समझ नहीं पाता , उसे ही रहस्य कहते हैं ।*"
** प्रकृति मानव के लिए हमेशा रहस्य तथा चुनौती रही है , तथा इससे सामना करना मानव का काम रहा है । **
** जिसने अपने तर्क और बुद्धि से प्रकृति के रहस्यों को सुलझाया है उसे विज्ञ और वैज्ञानिक कहते हैं । **
** प्राचीन राजाओं की विरुदावली और गुणगान गाने के लिए कुछ चारण होते थे , आजकल यह काम आकाशवाणी और दूरदर्शन बखूबी निभा रहे हैं । **
** कहीं पढ़ा था पहले के संपादक अपना सब कुछ गंवा कर अपने सम्मान की रक्षा के करते थे , आजकल अपना सम्मान बेचकर सब कुछ प्राप्त करते हैं । **
** पहले नेता होते थे डंडा खाने के लिए और आजकल के होते हैं डंडा बरसाने के लिए । **
** पहले के नेता आग झेलते थे और आज कल के आग लगाते हैं । **
** पहले के चोर डाकू सूरज उगने पर छिप जाते थे , और आजकल सीना ताने घूमते रहते हैं । **
** कहावत है -अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ता , लेकिन अकेला भाड़ बहुत से चने को फोड़ डालता है । **
** पहले के चोर और डाकू में इतनी नैतिकता थी कि खुद को गलत समझते थे , किंतु आज इसे अपना सर्वोपरि गुण समझते हैं । **
** कच्चा खरबूजा से कच्चा खरबुजा रंग नहीं बदलता , लेकिन एक पका खरबूजा बहुत कच्चे को रंग डालता है । **
** घी नीम की कड़वाहट को मिटा नहीं सकता , लेकिन कम तो कर ही सकता है । **
** जोश का उद्गम बिंदु दिल है , और होश का दिमाग , जहां दोनों ही हो वहां क्या पूछना । **
** दिल से काम करने वाला हमेशा असफल होता है , और दिमाग से काम करने वाला असफल होकर भी हाथ नहीं मलता , बल्कि सफलता का नया आयाम जुटा ही लेता है । **
** जोश में होश खोना श्रेयकर नहीं , बल्कि जोश में होश रखना सर्वोत्तम है । **
** आशाएं लॉटरी है । पूरी भी हो सकती है और नहीं भी । केवल इसी पर निर्भर रहना सही नहीं है । **
**लोग पुलिस से इसलिए दूर भागते हैं , क्योंकि वह कुछ देती नहीं , बल्कि लेती है । यह लेना आर्थिक , मानसिक और सामाजिक शोषण के रूप में हो सकता है । और प्रत्येक आदमी अपने सम्मान की रक्षा चाहता है । **
** औरत और पुरुष में भेद यह है कि प्रथम का मस्तिष्क दूसरे के मस्तिष्क से ज्यादा संवेदनशील होता है । **
** थकावट दो प्रकार की होती है ।
1.मानसिक थकावट - यह काम आरंभ से पहले और काम का ढेर को देखकर ।
2. दूसरा शारीरिक थकावट - यह काम की समाप्ति पर या अधिक काम करने से ।
प्रथम शारीरिक परिश्रम से दूर होता है , जबकि दूसरा आराम से । **
** भ्रम मोह उपजाता है , मोह संवेदना और संवेदना आंसू । तथा इन सब पर जो विजय पाए वही कर्मवीर है। **
** पति पत्नी का रिश्ता बड़े ही नाजुक डोर से बंधा होता है , जिसे विश्वास करते हैं । यदि इसमें दरार पड़ गई तो पुनः नहीं जुटती । **
** धैर्य के साथ समय का इंतजार राजनीति कूटनीति एवं सफलता का पहला मंत्र है । **
** विषम परिस्थिति में संयम न खोना सफलता का लक्षण है । **
** एक को मिलाना और दूसरे को लड़ाना , राजनीति और कूटनीति का मूल है । **
** चाहे जैसे हो जनता को विश्वास में लेकर चलना ही राजनीति तथा कूटनीति का मूल आधार है ।**
** जब जैसा तब तैसा राजनीति और कूटनीति का सार है । **
**************क्रमश:***************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन 845453
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रविवार, 29 मई 2022
अरबी , फारसी में हिन्दू का अर्थ चोर क्यों है ?
इंजीनियर पशुपतिनाथ अनुसंधानशाला में |
कविता
शीर्षक - अरबी और फारसी में हिन्दू का अर्थ चोर क्यों है ?
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
एक बात अजब हम पाते हैं ,
सब लोगों को बतलाते हैं ।
बिना पैर जो सब जगह ,
वह सर्वव्यापी में आते हैं ,
एक पैर रख नहीं चले ,
वे जड़ पादप कहलाते हैं ,
चार पैर रख कर के भी
पशु दूर नहीं जा पाते हैं ,
दो पैरों का मानव जन
कहां से कहां चले जाते हैं ,
एक बात अजब हम .... ।
इसी तरह पश्चिम के मानव
सिंधु पार कर आते थे ,
कुछ चोरों के द्वारा अपना
धन मान गवांते थे ,
अपने वतन लौट कर के
जब ये बातें बतलाते थे ,
सिंधु शब्द का अर्थ वहां
सब मानव चोर लगाते थे ,
एक बात अजब ..... ।
( पश्चिम के मानव = अरब/ गल्फ से )
कालक्रम में यही शब्द
अपभ्रंश हुआ है हिंदू में ,
कुछ दुष्टों के कारण इसमें
दाग है जैसे इंदु में ,
यहां की बातें ऐसी कि
लोग नहीं रुक पाते हैं ,
यहां की जलवायु मिट्टी
से खींचे चले आते हैं ,
एक बात अजब ..... ।
बड़े-बड़े शूरमा आए ,
पर टिक नहीं यहां पाए ,
हीरा मोती रत्न ले गए ,
फिर भी नाश नहीं लाए ,
ग्रंथ यहां के ले जाकर भी
यह परिवेश नहीं पाए ,
शुभ्र बहुत बातें यहां है ,
कितना यहां बतलाए ,
एक बात अजब ...... ।
आज यह धरती एक शब्द में
हिंदुस्तान कहलाती है ,
मन उद्गार यहां का भाई
हिंदी ही बतलाती है ,
हिंदी आज राजभाषा है ,
यह कविता भी हिंदी में ,
भारत में हिन्दी वैसी है
जैसे नारी बिंदी में ,
एक बात अजब ...... ।
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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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