रविवार, 29 मई 2022

अरबी , फारसी में हिन्दू का अर्थ चोर क्यों है ?

इंजीनियर पशुपतिनाथ अनुसंधानशाला में


कविता
शीर्षक - अरबी और फारसी में हिन्दू का अर्थ चोर क्यों है ?
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

एक बात अजब हम पाते हैं ,
सब लोगों को बतलाते हैं ।

बिना पैर जो सब जगह ,
वह सर्वव्यापी में आते हैं ,
एक पैर रख नहीं चले ,
वे जड़ पादप कहलाते हैं ,
चार पैर रख कर के भी
पशु दूर नहीं जा पाते हैं ,
दो पैरों का मानव जन
कहां से कहां चले जाते हैं ,
एक बात अजब हम .... ।

इसी तरह पश्चिम के मानव
सिंधु पार कर आते थे ,
कुछ चोरों के द्वारा अपना
धन मान गवांते थे ,
अपने वतन लौट कर के
जब ये बातें बतलाते थे ,
सिंधु शब्द का अर्थ वहां
सब मानव चोर लगाते थे ,
एक बात अजब ..... ।

( पश्चिम के मानव = अरब/ गल्फ से )

कालक्रम में यही शब्द
अपभ्रंश हुआ है हिंदू में ,
कुछ दुष्टों के कारण इसमें
दाग है जैसे इंदु में ,
यहां की बातें ऐसी कि
लोग नहीं रुक पाते हैं ,
यहां की जलवायु मिट्टी 
से खींचे चले आते हैं ,
एक बात अजब ..... ।

बड़े-बड़े शूरमा आए ,
पर टिक नहीं यहां पाए ,
हीरा मोती रत्न ले गए ,
फिर भी नाश नहीं लाए ,
ग्रंथ यहां के ले जाकर भी
यह परिवेश नहीं पाए ,
शुभ्र बहुत बातें यहां है ,
कितना यहां बतलाए ,
एक बात अजब ...... ।

आज यह धरती एक शब्द में
हिंदुस्तान कहलाती है ,
मन उद्गार यहां का भाई
हिंदी ही बतलाती है ,
हिंदी आज राजभाषा है ,
यह कविता भी हिंदी में ,
भारत में हिन्दी वैसी है
जैसे नारी बिंदी में ,
एक बात अजब ...... ।

******************************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
Mobile  6201400759

My blog URL
Pashupati57.blogspot.com  ( इस  पर click करके आप मेरी  और सभी रचनाएं पढ़ सकते हैं।)

************          ***              *************

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें