सोमवार, 6 जून 2022

तू , वह और मैं

अनुसंधानशाला से " तू , वह और मैं " कविता प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कविता
शीर्षक - तू , वह और मैं
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कविता का भावार्थ यह कि यदि कोई अपने लिए मैं है तो सामने वाले के लिए तू है और परोक्ष वाले के लिए वह है। यानी एक ही व्यक्ति भिन्न परिस्थितियों में तू, वह और मैं है।ए तीनों व्यक्ति के नहीं आत्मा का वोध कराते हैं जो सभी में है और ए तीनों भी सभी में हैं।


अपना मन अग्नि रोक सदा ,
लहका करके न जलाओ तू ,
प्रचंड बना गर भड़का यह ,
इस ज्वाला में जल जाए भू ।

कालिमा राख की परत चढ़ा ,
मन चिंगारी न बुझाओ तू ,
चित्त चिनगी से चितचोर जला
मन को स्वच्छंद बनाओ तू ।

जो समझ रहे हो वह न समझ ,
वह समझ से बाहर समझ ले तू ,
गर समझ ही इतनी रहती तो
पहले ही जाता समझ ए भू ।

कालिमा राख का ढेर लगा
राहों का विघ्न नहीं बन तू ,
प्रचंड उठेगी आंधी जब ,
इस भस्म में भस्म हो जाए तू ।

जब तलक रहे भू चंद्र सूरज ,
चिंता तम में न गड़ा रह तू ,
सबका भोजन चलता जिनसे
उनको ही मान चला कर तू ।

मैं को न समझ जन भू जन सा
मैं ही है वह , मैं ही है तू ,
गर समझ ना पाए तू को तू ,
तब समझो  मैं  मैं ही है तू ।

उसको भी बता वह वह समझे ,
उसमें भी मैं उसमें भी तू ,
गर समझ ना पाए वह वह को ,
तो समझे मैं , मैं ही वह हूं ।

बढ़ता जा आगे कर्म के बल ,
फल चिंता तम में पड़ो ना तू ,
नित्य लक्ष्य निर्धारित कर कर के
बन कर्म पथिक रत रहना तू ।

बीती कल है सबने देखी ,
आगे की कल कब देखा भू ,
आज जो देखा आदि बना ,
इससे कल में न पड़ा रह तू।

न सोच निरर्थक की बातें  , 
ना व्यर्थ समय को बिताओ तू ,
मन समझ ना पाए अर्थ अगर
मन शांत समर्थ बनाओ तू ।

सुनने की आदत को डालो ,
बिना समझे मत बोलो तू ,
व्यर्थ की बातें न सुनकर ,
नित्य कर्मों में रत रहना तू ।

गर बैठोगे बिन कर्मों के
मन सोचेगा मैं , वह या तू ,
मन को गर कर्म में बाधोगे ,
मन सोचेगा सु और न कु ।

**********समाप्त**********

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
Mobile  6201400759

My blog URL
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