बुधवार, 15 जून 2022

विचार ( भाग 9 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 9 प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कोटेशन
विचार ( भाग 9 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** सुख के दिनों में दुख का दिन भूल जाता है । अगर यदा-कदा याद भी आता है तो मधुर स्मृति बनकर और इससे मनोरंजन होता है ।
पर दुख के दिन में सुख का दिन नहीं भूलता , उसकी याद और प्रबल हो जाती है ,और यही सहारा और धैर्य बनती है। **


**  जैसे ध्रुव पर जाकर सभी देशांतर रेखाएं अपना कोण और दिशा खोकर एक बिंदु में परिवर्तित हो जाता है , वैसे ही ज्ञान की एक खास सीमा पार करने के बाद व्यक्ति को जीवों में अंतर नहीं  दिखता । **



** दुर्योधनो को एक से एक मारक कुबुद्धि एवं कुकर्म होता है । और कृष्णो को एक से एक सुबुद्धि एवं सुकर्म ।
कुबुद्धि एवं कुकर्म अंततः दुर्योधनो का ही विनाश करता है , तथा सुबुद्धि एवं सुकर्म कृष्णों को विजयी तथा दुर्योधनो को पराजयी बनाता है **


** शरीर में कंपन भय से भी होता है , और क्रोध से भी । भय से उत्पन्न कंपन शिथिलता एवं कुंठा उत्पन्न कर नाश करता है ।  इसके विपरीत क्रोध से उत्पन्न कंपन गतिशीलता , उग्रता एवं गुप्त बुद्धि पैदा कर करो या मरो को चरितार्थ करता है **


** कोई भी सिद्धि या सफलता  तीन मूल बातों पर निर्भर करती है। प्रथम योजना , दूसरा कर्म ( प्रयास ) और तीसरा धन **


**  पूर्ण ज्ञान या विद्या निम्न प्रकार से अर्जित होता है।
1. देख कर ( आंख से )
2. सुनकर (कान से )
3.सूंघकर (नाक से )
4. चखकर ( जीभ से )
5.स्पर्श कर ( त्वचा से )
6. बोलकर या पढ़कर ( मुंह से )
7. लिखकर ( हाथ से )
क्रम संख्या 1 से 5 पूर्ण ज्ञान देता है इसलिए पांच ज्ञानेंद्रियां कहलाता है ।
जब-जब की क्रम संख्या 1,2,6,7  पूर्ण विद्या देता है । **


** निर्धारित समय में निर्धारित कार्य को पूरा करने वाला व्यक्ति को सफल पुरुष कहते हैं ,और फल को सफलता । **


** भीड़ जिसको आंखें होती है , पर दिखता नहीं । कान होता है ,पर सुनता नहीं । मस्तिष्क होता है  एक नहीं अनेक , पर सभी में गोबर भरा होता है , समझता नहीं। और आश्चर्य की बात यह है कि इसको मुंह नहीं होता , लेकिन आवाजें अनेक होती है , सभी अल्प आयु और अलग-अलग । और इसका रूप एवं आकार हर देश के हर कोने और हर काल में एक सा ही होता है, तनिक सा भी फर्क नहीं होता। **


** किसी खास समय एवं खास स्थान पर सभी प्रकार की ऊर्जाओं की आवृत्तियों के कुल योग को प्रकृति कहते हैं ।**


** सफल , योग्य एवं सच्चा वैज्ञानिक नहीं किसी घटना या बात से इंकार करता है , और नहीं उसे आंख मूंद कर स्वीकार। इन्कार इसलिए नहीं करता कि कुछ  भी संभव है । और स्वीकार तब तक नहीं करता जब तक वह तर्क ,जांच एवं प्रयोग पर खरा नहीं उतर जाए।
इसके बावजूद भी जो स्वीकार नहीं करता , वह नराधम वैज्ञानिक कुल का कलंक है । **


** तीव्र से तीव्र धावक चाहे वह पृथ्वी की परिक्रमा कुछ ही क्षण में पूर्ण करेने की क्षमता क्यों नहीं रखता हो यदि खेल के नियम के विपरीत दिशा में दौड़े तो एक साधारण धावक से भी पार नहीं पा सकता। वह लक्ष्य से दूर होता जाएगा।  जबकि वह वास्तविक दृष्टिकोण से योग्य धावक है , लेकिन वैधानिक दृष्टिकोण से असफल धावक । उस व्यक्ति का भी यही हाल होता है जो योग्य होते हुए भी सामाजिक , नैतिक एवं वैधानिक नियम नहीं पालन करते यानी उल्टा चलते हैं। **


** परम मित्र एवं घोर शत्रु : -
जिसके  कर्म से धन , विद्या ,बल ,नाम ,यश एवं बुद्धि का नाश हो , उसे घोर शत्रु कहते हैं । तथा जिसके सुकर्म और सहयोग से वृद्धि हो , उसे परम मित्र । **


** अलग या अलगाव :-
इसमें सर्वप्रथम मन अलग होता है , तब तन , और अंततः धन की अलगाव से इसकी पूर्णता होती है।**


** मित्रता का भेद या प्रकार : -
मित्रता का निम्न प्रकार है -
1.हेलो हाय
2. चाय-पान
3.रोटी
4. निवास
5. बेटी
6. आर्थिक लेनदेन
7. विश्वसनीयता
8. अंतरंग  **


** अगर मेजबान अपने मेहमान के साथ वैसा ही स्वागत नहीं करता जैसा खुद वह मेहमान बनने पर चाहता है तो वह योग्य मेजबान नहीं ।
उसी प्रकार  मेहमान  अपने मेहमान से वैसा ही व्यवहार नहीं करता जब वह खुद मेजबान होता तो वह योग्य मेहमान नहीं । **


** सबसे बड़ी मूर्खता मूर्खों के बीच चतुर बनना। सबसे बड़ी चतुराई मूर्खों के बीच मूर्ख बनना । **


** ईश्वर एक ऐसी पूर्ण आस्था जो माता-पिता , पति-पत्नी , पुत्र-पुत्री , भाई-बहन और बंधु-बांधव की आस्था से भी ज्यादा विश्वासनीय होती है ।**


** खुशी कलह का व्युत्क्रमानुपाती होता है तथा शांति के समानुपाती । इसी प्रकार दुख कलह का समानुपाती होता है , तथा शांति के व्युत्क्रमानुपाती।
दूसरे शब्दों में -
खुशी = क × शांति = क × 1/कलह
दुख = क × कलह = क × 1/शांति
क= नियतांक  **


** समानता का सिद्धांत ( Theory of similarity ) -
वस्तुओं के बहुत गुण एक सा होता है , बहुत से घटनाक्रम में भी समानता होती है । व्यक्तियों के चेहरा, गुण यहां तक कि हाव भाव भी मिलता है। इसे ही समानता का सिद्धांत कहते हैं । **


** शतरंज की चाल निम्नलिखित चार मूल सिद्धांतों पर आधारित है।
1. आगे पीछे
2.अगल-बगल
3. तिरछा
4. ढ़ाई घर । **


** समतुल्य विचार ( Thought equivalent )-
एक ही वस्तु को देखकर भिन्न भाषा , जगह के मानव उसे भिन्न नाम ( ध्वनि ) से पुकारते हैं । यह सिद्ध करता है कि उनके मन में विचार एवं भाव समान हैं , लेकिन उस वस्तु के निरूपण के लिए ध्वनि अलग-अलग है। इसे ही समतुल्य विचार कहते हैं। अर्थात भिन्न-भिन्न ध्वनियों के लिए मात्र एक और एक ही वस्तु के रूप का उपजा भाव। **


** अगर प्रचार द्वारा झूठ को भी मान्यता मिल जाए तो वह भी सत्य सा प्रतीत होता है। और कालांतर में सत्य हो जाता है , लेकिन इसकी उम्र दीर्घायु नहीं होती । **


** आश्चर्य : - ब्रह्मांड की प्रथम घटना , वस्तु एवं कार्य को आश्चर्य करते हैं । **


** वैज्ञानिक एवं साहित्यिक में अंतर यह है कि प्रथम ताड़ को तिल बनाता है , और  दूजा तिल को ताड़ ।**


** शून्य जोड़ने से कुछ नहीं मिलता , लेकिन अनंत जोड़ने पर अनंत मिलता। **


** परम सरल रेखा होकर जो जहां से चलता है अनंत समय के बाद वहीं पहुंचता है **


** प्रकृति या तो नाश करती है अथवा विकास , विराम में कदापि नहीं रहती **


** अतीत सदा सुहावन , वर्तमान कभी मनभावन तो कभी अपावन और भविष्य सदा लुभावन होता है । **


** प्रश्न - ईश्वर क्या है ?
उत्तर - विश्वास ।
प्रश्न - सहयोग करता है ?
उत्तर - यदि विश्वास करते हो ।
प्रश्न - अगर नहीं ?
उत्तर - तो नहीं । **


** संबंध दो प्रकार का होता है ।
एक खून का , दूसरा विश्वास और  व्यवहार का । दूसरा अधिक महत्वपूर्ण , सफल एवं विश्वासनीय होता है । **


** ईश्वर की परिकल्पना प्राया लोग ऊपर ही क्यों मानते हैं ? क्योंकि ऊपर सहज दृश्य है , और नीचे सहज अदृश्य। **


** लेन-देन निम्न ही तरह से किया जाता है , अर्थात इसका निम्न  नाम है ।
1. कर्ज के रूप में
2. दान के रुप में
3.भीख के रूप में
4.सहयोग के रूप में
5. खरीद-विक्री **


**************** क्रमशः ****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
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रविवार, 12 जून 2022

चाणक्य नीति काव्यानुवाद , अध्याय 14

महर्षि चाणक्य


कविता
चाणक्य नीति काव्यानुवाद
अध्याय 14
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

तीन रत्न है इस धारा पर ,
अन्न , जल व मधुमय वाणी ।
शिलाखंड को रत्न मानते ,
कहलाते जन मूर्ख अनाड़ी ।

आत्मा के अपराध वृक्ष से ,
पांच फल है फलता तन में ।
रोग ,दरिद्रता ,दुख व बंधन ,
व्यसन वगैरह जन जीवन में ।

भार्या , मित्र , धन व धारा ,
मिलते ए सब बारंबार ।
किंतु शरीर बहुत दुर्लभ है ,
इसे न नर पाए हर बार ।

बहुजन निर्बल जन मिलकर नाशे शत्रु प्रबल को ,
बलशाली नर पर हो अकेला है  बेचारा ।
तृण समूह मिला करके जो छप्पर बनता ,
निष्फल करता बादल की यह प्रबल धारा ।

जल में तेल नहीं पचता है ,
दुर्जन में नहीं गुप्त वार्ता ।
दान सुपात्र स्वयं फैलाए ,
विज्ञ फैलाता शास्त्र की चर्चा ।

धर्म की चर्चा को सुनने पर,
श्मशान  में चिता देखकर ।
रोगी देख जो भाव उपजता ,
पर यह भाव सदा नहीं रहता ।
गर यह भाव सदा रह पाए ,
मानव जन्म धन्य हो जाए ।

कर्म कुफल मिलने पर पछताए जन जैसा ,
कर्म के पहले गर सोचे रहता वह वैसा ।
नहीं समय पछताने का आता जीवन में ,
गिना जाता पुरुष महापुरुष सज्जन में ।

तप में , दान में और विज्ञान में ,
नीति कुशलता , शौर्य , विनय में ।
एक से बढ़कर एक धुरंधर ,
करे न विस्मय  इसे सोच कर।

दूर न दूरी करती उसको ,
जो बसता है मन के अंदर ।
निकट नहीं भी निकट के वासी,
उससे मन गर करता अंतर ।

लाभ की इच्छा रखते जिससे ,
उससे रखो मधुर व्यवहार ।
मधुर बीन से मोहित करके ,
करे शिकारी मृग शिकार ।

राजा ,अग्नि ,गुरु व नारी ,
अति निकटता विनाशकारी ।
दूरी इनसे न फलदायक ,
मध्य अवस्था ये हितकारी ।

अग्नि ,जल , सर्प , मूढ़ , नारी ,
राजा , राजा का संबंधी ।
रखे सावधानी इन सबसे ,
हरे प्राण शीघ्र ए पाखंडी ।

उत्तम जीवन है गुणी का ,
थर्मी जन का जीवन सार्थक ।
हीन धर्म से अथवा गुण से ,
जन का जीवन व्यर्थ निरर्थक ।

केवल एक कर्म से जग को ,
अपना वश में चाहो करना ।
रामबाण उपाय समझ लो ,
पर निंदा से दूर तू रहना ।

अवसर के अनुकूल बोले जो वाक्य हमेशा ,
अपना ही सामर्थ मुताबिक प्रेम करे जो ।
जितनी शक्ति उतना क्रोध को करने वाला ,
दुनिया कहती पंडित गुणी ऐसा जन को ।

एक ही देह भिन्न दृष्टि से ,
भिन्न रूप में नजर है आता ।
कुत्ता मांस रूप में देखे ,
कामी में कामुकता लाता ।
योगी देखे त्रिया तन को ,
तन यह शव सा लागे उनको ।

6 बातों को सदा छिपाएं ,
मैथुन , दोष अपने घर जन को ,
धर्माचरण ,सिद्ध औषधि ,
अपनी निंदा ,कुभोजन को ।

कोयल दिन बिताती मौन होकर के तब तक ,
मीठी बोली के दिन आते हैं नहीं जब तक ।
जैसे ही ऋतुराज बसंती रंग में छाए ,
मनभावन वाणी में श्यामा खुलकर गाए ।

धर्म , धन धान्य व वचन  गुरु का,
औषध का प्रयोग समझकर ।
जो नहीं करता हरे ए जीवन ,
चलें हमेशा इनसे बच कर ।

तज खल संगति , रह साधु संग ,
पुण्य कार्य कर हे! मानव जन ।
परब्रह्म को भज नित दिन तू ,
नित्य न जग यह , हे! जन के मन ।

 ( नोट : - पूरा चाणक्य नीति काव्यानुवाद पढ़ने के लिए वाट्सएप 919351904104 पर संपर्क करें। या http://Www.nayigoonj.com पर क्लिक करें। )

             +++ समाप्त +++

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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शनिवार, 11 जून 2022

विचार ( भाग 8 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 8 प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 8 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** चूहा पकड़ने वाला जैसे ही चूहा के बिल का मुख्य छिद्र खोदता है , उसमें असंख्य बिलों का जाल पाता है । कौन से बिल में चूहा है इसका निर्णय उसे नहीं हो पाता है ।
अतः शेष सभी बिलों को बंद कर एक एक बिल को अंत तक खोद खोद कर देखता है , और अथक श्रम के परिणाम स्वरूप अंततः चूहा पकड़ पाता है।
कभी-कभी यह भी होता है कि प्रथम बिल में ही चूहा मिल जाता है , कभी मध्य में ,  तथा कभी अंत में । कभी यह भी होता है कि चूहा इन बिलों में होता ही नहीं , बाहर निकल गया होता है , और उसे निराशा हाथ लगती है ।
ठीक यही स्थिति अनुसंधान और अनुसंधानकर्ता की भी होती है । असंख्य सिद्धांतों को जांचने पर कोई एक सिद्धांत प्रयोग पर खरा उतरता है । कभी प्रथम सिद्धांत ही प्रयोग पर खरा उतर जाता है। कभी अंत का , तथा कभी कोई नहीं । कुछ तो जीवन भर अथक परिश्रम के बाद भी कुछ नहीं पाते ।
यही स्थिति सफलता की भी होती है । असंख्य प्रयत्नों की बाद एक प्रयत्न सफल हो पाता है ।कभी प्रथम , कभी मध्य तथा कभी अंत। कुछ तो जीवन भर असफल होकर ही मृत्यु को पाते हैं।**

** सभी स्वदेशी का प्रथम पूर्वज विदेशी ही हैं। जैसे -आर्य भी बाहर से ही आए हैं । अमेरिका के नागरिक भी बाहर से ही आए हैं वगैरह ।**

** अग्नि में फूंक मारने से प्रकाश मिलता है ,राख में फूंक मारने से कालिख ।  मूर्ख में फूंक मारने से कुबुद्धि और विद्वान में फूंक मारने से सुबुद्धि ।**

** मनुष्य को संकट काल में सफलता पाने के लिए कछुआ के गुणों का अनुसरण करना चाहिए , जैसे कछुआ संकट आने पर अपना गर्दन छुपाकर रक्षा कवच ओढ़ लेता है , वैसे ही सज्ञ को चाहिए कि अपना गर्दन संकटकाल में छुपा ले , तथा संकट छंटते ही कछुआ की गति से धीरे-धीरे परंतु दृढ़ता पूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त करे। **

** दूरी बढ़ने से आकर्षण बढ़ता जाता है , भावना तथा प्रेम भी प्रबल बनता जाता है , दुर्भावना , द्वेष मिटता जाता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आकर्षण , प्रेम भावना की प्रबलता  दूरी के समानुपाती होता है। तथा द्वेष , क्लेश ,दुर्भावना दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है । जैसे -
आकर्षण ( भावना ) = क × दूरी
विकर्षण ( दुर्भावना ) = क × 1/दूरी
क = नियतांक  **

** अगर कोई छात्र किसी से कुछ नहीं पूछता है तो या तो वह असाधारण और विलक्षण है ,  वह सब कुछ  समझ जाता है । अथवा वह महामूर्ख , कुछ नहीं समझता और लज्जा वश पूछता भी नहीं।**

** मछेरा मछली पकड़ने के लिए अनेकों कांटा डालता है । किसी में छोटा , किसी में मन लायक तथा किसी में कुछ नहीं फंसता है , वैसा ही अवसर है । **

** किसी देश , किसी घर और किसी व्यक्ति का बल उसकी औरतें हैं । उन्हीं में केंद्रित है उनका विकास या विनाश । ए जैसी होंगी विकास भी वैसा होगा। **

** महत्वाकांक्षा की प्रचंड ज्वाला ही मन में अग्नि प्रज्वलित करती है , जो सर्वप्रथम मस्तक को भस्म करता है ,  तथा क्रोध में प्रज्वलित होता है । उसके बाद धीरे-धीरे मन और तन को भी खा जाता है **

** जीवन में कभी एक ऐसा उदासीन बिंदु आता है जहां मां-बाप , पुत्र-पुत्री , पत्नी- मित्र , भाई- बंधु इत्यादि अपना नहीं लगता । इस हालत में सिर्फ एक ही मान्यता और आस्था पर विश्वास जमता है और वह है ईश्वर । यदि व्यक्ति इस मान्यता और आस्था का सहारा नहीं ले तो यह उदासीन बिंदु व्यक्ति को या तो पागल कर दे या तो मौत दे दे ।**

** तन का बल और कुछ दूसरा नहीं मन का ही बल है । इसलिए शेर हाथी को भी हरा देता है वगैरह।**

** यों तो धन का उपयोग हमेशा है , लेकिन इसकी उपयोगिता बुढ़ापा में सबसे ज्यादा है । **

** यों तो माता पिता अपनी संतान को हमेशा अपने पास देखना चाहते हैं , लेकिन बुढापा में सबसे ज्यादा अपने नजदीक देखना चाहते हैं ।**

** ज्यादा काम करना ही खूबी नहीं है । खूबी  है सफल कर्म करना अर्थात सफलता ।**

** जैसे किसी के पास बहुत सा शून्य हो तो भी वह संख्या नहीं बना सकता अगर उसके पास अंक नहीं हो । वैसे ही मूर्ख और दुष्ट के संग से कोई भी वृद्धि संभव नहीं। **

**  पूर्ण सफलता तीन बातों से परिभाषित होती है - नाम  ,यश और अर्थ यानी धन। जिसमें ( आम परिस्थितियों में ) तीसरा काफी महत्वपूर्ण है । कहने का अर्थ यह है कि यदि व्यक्ति सफल हो और पैसा नहीं मिले तो उसका वह कार्य असफल तुल्य ही है । **

** ओम मेरी नजरों में -
ओम अ + ऊ + म  से बना है। जिसका अर्थ निम्नलिखित होता है -
अ = अन्य पुरुष ( वह , वे आदि )
उ = उत्तम पुरुष ( मैं , हम आदि )
म = मध्यम पुरुष ( तुम ,  तू आदि )
अर्थात सर्व भूतों यानी सभी जीवों का संग्रहित रूप का निरूपण । संसार के सभी जीव उपरोक्त तीन ही भाग में विभक्त हैं । **

** न्याय , शिक्षा एवं प्रशासन सिर्फ यही तीन सुधर जाए तो वह देश उन्नति की चोटी पा जाए । अर्थात रामराज्य  और आदर्श देश में उनकी गणना होने लगे ।
न्याय - सस्ता , मुफ्त , सजल्द और सही ।
शिक्षा - व्यवहारिक एवं जीवन उपयोगी , सस्ता एवं मुफ्त , सुचरित्र एवं अनुशासित ।
प्रशासन- विनम्र कठोर , कर्तव्य परायण , ईमानदार तथा सुचरित्र ।
आम जनता को भोजन , आवास एवं वस्त्र के अलावा इन तीन बातों की चाह राज्य से होती है ।**

** शाप और कुछ नहीं मन का विखंडन है , और मन का विखंडन और कुछ नहीं इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन इत्यादि से भी अति सूक्ष्म तत्त्वों का विखंडन है। और उससे उत्सर्जित ऊर्जा परमाणु बम से भी ज्यादा विनाशकारी होती है **

** मन का विखंडन अर्थात अति सूक्ष्म तत्त्वों का विखंडन , जिसे मस्तिष्क रूपी कंप्यूटर से प्राचीन ऋषि करते थे  , जिस पर प्राचीन आर्ष ग्रंथ प्रकाश डालता है । **

** बार-बार पढ़ने के बाद भी जिस किताब या रचना का स्वाद अगर उसके प्रथम पाठन जैसा बना रहे , बल्कि बढ़ता जाए तो वह उच्च कोटि का ग्रंथ या रचना कहलाता है । **

** परंपरा अनुकरणीय होता है । जहां अनुकरणीय नहीं है वहां विद्रोह पैदा होता है । **

** शाप और आशीर्वाद की परिपूर्णता दाता की आत्मा  पर निर्भर करती है। यदि शत प्रतिशत शुद्ध आत्मा से शाप या आशीर्वाद दिया जाए तो शत-प्रतिशत फलित  होगा । यदि त्रुटि युक्त आत्मा से दिया जाए तो पूर्ण फलित नहीं होगा ।
  शाप -  शत प्रतिशत शुद्ध आत्मा द्वारा प्रचंड क्रोध से व्यक्त भाव ।
आशीर्वाद - परिशुद्ध आत्मा द्वारा प्रसन्न भाव।
परिशुद्ध आत्मा - 100% सभी  भय से मुक्त।
त्रुटि युक्त आत्मा - किसी न किसी भय युक्त। **

** बिना किसी काम यानी कर्म रहित चुपचाप बैठा व्यक्ति तंद्रा में रहता है , अर्थात या तो चिंता में अथवा चिंतन में । यदि मन शांत है तो चिंतन में , यदि मन अशांत है तो चिंता में । और दोनों ही तंद्रा की अवस्था है ।
चिंता में मन बहु बिंदु पर रहता है अनेक बातें सोचता है , जबकि चिंतन में एक बिंदु पर ।**

**  छोटी अवधि तंद्रा स्वाभाविक प्रक्रिया है। परंतु बड़ी अवधि तंद्रा आम आदमी के लिए अस्वभाविक प्रक्रिया है , परंतु योगी , ज्ञानी और वैज्ञानिकों के लिए स्वाभाविक प्रक्रिया । 
तंद्रा दूर करने का सबसे आसान ढंग है कोई कार्य में लग जाना अथवा अकेले में नहीं रहना। **

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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शुक्रवार, 10 जून 2022

हठ , स्वाभिमानी बनो , नेपाल ( तीन गीत )

अनुसंधानशाला से तीन गीत प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


गीत
शीर्षक - हठ , स्वाभिमानी बनो और नेपाल ( तीन गीत )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

हठ
सोचो राम की कहानी
तू गुमानी प्रिये !
मत करो बदनामी
अभिमानी प्रिये !

हठ कैकई के कारण से दशरथ मरे ,
हठ सीता के कारण से रावण हरे ,
हठ करना नहीं बुद्धिमानी प्रिये ,
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये।

हठ कारण से लंका रसातल हुई ,
हठ कारण से सीता धरातल गई ,
हठ से होती हमेशा है हानी प्रिये ,
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये ।

छोड़ो हठ अभिमान व गुमान प्रियतम,
मन में रखो सदा स्वाभिमान प्रियतम ,
इन बातों को सोचो दीवानी प्रिये ।
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये।

कहे पशुपतिनाथ , हठ करता है नाश ,
हठ कारण ही रावण का हुआ सर्वनाश ,
याद रखना इसे तू जुबानी प्रिये ,
मत करो बदनामी अभिमानी प्रिये।

*******

स्वाभिमान बनो
नहीं मानी बनो , ना अभिमानी बनो ,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो ।

मुंह से अमृत की वाणी हमेशा बोलो ,
दीन दुखियों में दीपक बनके जलो ,
किसी इतिहास की तू कहानी बनो ,
नहीं मानी बनो , न अभिमानी बनो ,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो ।

काल की कड़कड़ाहट से डरना ना तू ,
डगर में रुकावट को भरना न तू ,
बसंती हवा तू सुहानी बनो ,
न मानी बनो ना अभिमानी बनो,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो ।

करो कर्म ऐसा सुहावन प्यारा ,
नाम मर कर अमर भी हो जाए तेरा ,
दीन दुखियों हेतु तू दानी बनो ,
न मानी बनो न अभिमानी बनो ,
अगर बनना है तो स्वाभिमानी बनो।

वह बनो ज्वाला जल जाए बत्ती ,
दूर हो अंधेरा कहे पशुपति ,
आग बीच कूद करके तू पानी बनो ,
न मानी बनो ना अभिमानी बनो ,
अगर बनना है तो स्वाभिमानी बनो।

पढ़ो लिखो सभी कि हटे मूर्खता ,
काम वह सब करो हो जाए एकता ,
अज्ञानी नहीं सभी ज्ञानी बनो ,
न मानी बनो ना अभिमानी बनो ,
गर बनना है तो स्वाभिमानी बनो।

***********

नेपाल
नोट:- नेपाल चीन के गोद और भारत के कंधों पर स्थित हिमालय में बसा एक छोटा देश है । जो अपनी वीरता, सौंदर्य और स्वतंत्रता के लिए प्रसिद्ध है। जब पूरा संसार ब्रिटिश सरकार के  आधीन था उस समय भी नेपाल स्वतंत्र था । उसी नेपाल का एक छोटा परिचय यहां प्रस्तुत है -

सुन सुन सब नेपाली ,
जहां पशुपति काली ,
जहां गर्मी के नहीं दीदार होला,
यहां लोगों के मन में प्यार होला ।

हिमालय व तराई ,
बीच में पर्वत जंगल खाई ,
जहां नदियों की कल कल बाहर होला,
यहां लोगों के मन में प्यार होला।

मधेशी व पहाड़ी ,
थारू , लामा जाति सारी ,
यहां शेर हाथी गैंडा की बाहर होला ,
यहां लोगों के मन में प्यार होला ।

घूमें गोरा गोरा गाल ,
होंठ होते लाल लाल ,
मन निर्मल व हिरनी की चाल होला ,
यहां लोगों के मन में प्यार होला।

लिखे पशुपतिनाथ ,
सुनें बाबा पशुपतिनाथ ,
जिनकी कृपा से सबका उद्धार होला ,
यहां लोगों के मन में प्यार होला।

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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गुरुवार, 9 जून 2022

कलम और कुदाल , अकेला तथा भय ( तीन कविताएं )

अनुसंधानशाला से तीन कविताएं प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद



कविता
शीर्षक - कलम और कुदाल
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

व्यर्थ जाति रटता संसार ,
सभी जाति का दो है सार ,
प्रथम कलम , दूजा कुदाल ,
चाहें परखें कोई काल ।

दो हेतु रत जीव व जन ,
प्रथम पेट , दूसरा मन ,
पेट हेतु है बना कुदाल ,
मन हेतु कलम की चाल ,
चाहें परखें कोई काल।

कठिन प्रश्न यह श्रेष्ठ है कौन ,
जिससे पूछा हो गया मौन ,
चिंतन से निकला यह सार ,
समझो सुनो सभी संसार ,
सभी जाति का दो है सार ।

गुरु हमेशा श्रेष्ठ कहाता ,
क्योंकि गुरु ही कलम बनाता ,
कलम बनाता है कुदाल ,
कुदाली से जग का भाल ,
चाहें परखें कोई काल ।

नर-मादा के मन जब डोले ,
चक्षु मन की बातें बोले ,
दोनों का होता संयोग ,
शांत निशा में करते भोग ,

दोनों मिल एक हो जाते ,
शून्य टूट गर्भ में आते ,
गति के कारण मन कहलाते ,
काल संग शिशु बन जाते ।

मन के कारण बनता पेट ,
इस कारण से मन है श्रेष्ठ ,
पेट की चाहत सदा कुदाल ,
मन की चाहत कलम की चाल,
चाहें परखें कोई काल ।

जब-जब कोई कलम उठाए ,
वहां पर ब्रह्मा बन जाए ,
जैसे छूता है कुदाल ,
बना शेष जाति तत्काल ,
चाहें परखें कोई काल ।

व्यर्थ जाति रटता संसार ,
सभी जाति के दो ही सार।

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कविता
शीर्षक - अकेला
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

जहां दुष्टों का मेला है ,
परिस्थितियां जहां झमेला है,
हर बात जहां पर ढेला है ,
चलना वहां अकेला है।

हर ढंग जहां अलबेला है ,
जहां गुलाब का रेला है ,
हर गंध जहां पर बेला है ,
बसना वहां अकेला है ।

जहां पे नहीं कोई चेला है ,
जहां हरदम मचा झमेला है ,
हर कर्म में ठेलम ठेला है ,
चलना अच्छा अकेला है ।

जहां सब कुछ अलबेला  है ,
जहां गुरु नहीं सब चेला है ,
जहां स्वभाव का मेला है ,
बसना वहां अकेला है ।

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कविता
शीर्षक - भय
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

भय की महिमा बहुत अपार है ,
भय से चलता सारा संसार है ।

भय कारण से ही नर मानव है ,
अगर भय नहीं है तो दानव है ,
भय राजा हेतु हथियार है ,
भय से चलता सारा संसार है ।

भय कारण ही टिका समाज है ,
भय कारण ही चलता राज है ,
भय कारण ही शांत तकरार है ,
भय की महिमा बहुत अपार है ।

जीव एक दूसरा से भय खाता ,
नियम कानून भय है लाता ,
भय सभी सभ्यता का सार है ,
भय से चलता सारा संसार ।

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
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बुधवार, 8 जून 2022

शून्य , एक और अनंत तथा तम और आकाश

 

शोध कविता

शीर्षक - शून्य , एक और अनंत तथा  तम और आकाश

रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

शून्य , एक और अनंत

पूर्ण पूर्ण में दिया रहा फिर भी पूर्णांक ,
पूर्ण पूर्ण से लिया रहा फिर भी पूर्णांक ,
गुणा पूर्ण में किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक ,
पूर्ण विभाजित किया पूर्ण फिर भी पूर्णांक।
( अनंत + अनंत = अनंत , अनंत - अनंत = अनंत,
अनंत × अनंत = अनंत , अनंत ÷ अनंत = अनंत )
( देखें संदर्भ 2 )

शून्य शून्य में दिया रहा फिर भी शून्यांक ,
शून्य शून्य से लिया रहा फिर भी शून्यांक ,
गुणा शून्य में किया शून्य  फिर भी शून्यांक ,
शून्य विभाजित किया शून्य आया पूर्णांक ।
( 0 + 0 = 0 ,  0 - 0 = 0 ,  0 × 0 = 0 ,  0 ÷ 0 = अनंत )

शून्य बिना एक रहता निष्फल ,
बिना एक शून्य फले नहीं फल ,
शून्य आदि है , एक शुरू है ,
अंत अनंत से ब्रह्म बद्ध है ।

बंद वक्र पर सभी जगह से शून्य शुरू है ,
वहीं पर है एक अनंत बन अंत है पाता ,
अंक विद्या के सब गणित के जनक तीन ए ,

इन तीनों से ही गणित को सीखा जाता ।

( देखें संदर्भ - 1 )

अगर शून्य रहता है किसी अंक के पीछे ,
बढ़े जरा भी अंक नहीं रहता वह नीचे ,
अगर शून्य आता है किसी अंक के आगे ,
10 गतांक में वृद्धि हो भाग्य उसका जागे ।
( जैसे - 01 , 10 , 100 वगैरह )

यह वृद्धि धीरे धीरे बनता अनंत ,
घटते घटते शून्य बने कहे सब संत ,
शून्य और अनंत नहीं दो इसको मानें ,
इन दोनों का दो उद्भव नहीं इसको जानें ।
( देखें संदर्भ - 1 )

तम
जहां कहीं प्रकाश रोको वहां तम आ जाता ,
क्या है इसका वेग बोल तू क्या है पाता ?
अवलोकन बतलाता इसका वेग शून्य , अनंत ,
इस कारण से प्रकट हो जाता कहीं तुरंत ।
( वेग = विस्थापन/ समय  , अगर समय शून्य तब वेग अनंत यानी शून्य समय में कहीं भी । अगर समय अनंत तब वेग शून्य यानी पूर्ण स्थिर )

इसका भौतिक गुण शून्य से है निरूपित ,
गति शून्य , आवृत्ति शून्य इसमें अपेक्षित ,
पांचवा मूल माप की परिभाषा देता तम ,
जिससे बद्ध यह वृहद प्रकृति चलती हरदम ।
( पांचवा मूल माप cycle )

सब कहते हैं ब्रह्म रचता है भू को सब को ,
तुम कहते हो तम रचता है ब्रह्म को सबको ,
तम क्या है यह प्रश्न हमारा ?
कहो क्या प्रमाण तुम्हारा ?

बिना स्रोत नहीं भू पर बहता निर्मल निर्झर ,
बिना स्रोत प्रकाश पूंज नहीं भू है पाती ,
बिना स्रोत भू पर छाया बन जाती कैसे ?
अंत: कोई है स्रोत जहां से बनके आती ?

यह स्रोत अनंत बिंदु तम ,
यह स्रोत शून्य बिंदु तम ,
यह स्रोत है अंत बिंदु तम ,
यह स्रोत है आदि बिंदु तम ।

शुभ्र दिन में जो नीला रंग दिखता ऊपर ,
घोर निशा में जो काला छाता इस भू पर ,
ज्योंहि दीप शिखा बुझता जो रंग है आता ,
यही तम का भिन्न रूप इस भू पर छाता।

कहता वेद सभी है ऐसा ,
मनुस्मृति साक्षी जैसा ,
उपनिषद भी कहता यही ,
फिर क्यों मानें ऐसा वैसा ।
( देखें संदर्भ )

आकाश
जनक यज्ञ में याज्ञवल्क्य से गार्गी ने पूछा-
भू किससे आच्छादित है यह आप बताएं ,
भू है जल से,जल वायु से,
वायु ऊपर नभ है आए,
नभ ऊपर गंधर्व लोक है,
सूर्य लोग इस ऊपर आए।

इसके ऊपर चंद्रलोक है ,
नक्षत्र लोग इस ऊपर छाए,
देवलोक इसके ऊपर है,
इंद्रलोक इस ऊपर आए ,
प्रजापति लोक इसके ऊपर,
ब्रह्मलोक सब ऊपर छाए ,
पुनः प्रश्न किया गार्गी ने
इसके ऊपर पुनः बताएं ।

प्रश्न कठिन था , उत्तर शेष था ,
ऋषि मन तब कुछ अकुलाया ,
आकुल मन तब क्रोध सृजन कर
गार्गी को था चुप कराया ।

इसके आगे मैं बतलाता ,
ब्रह्म के ऊपर तम है छाता ,
तम के ऊपर क्या है आता ,
सबसे ऊपर क्या है छाता।

बंद वक्र पर चलो जहां से
फिर कर आते पुनः वहां पे ,
ऐसा ही इस चक्र को जानें ,
सबसे ऊपर तम को मानें ।
( देखें संदर्भ -1 )

जो है सूक्ष्म जिससे जितना
वह ऊपर रहता है उतना ,
जो है स्थूल जिससे जितना
वह नीचे रहता है उतना । 

वैज्ञानिक हाईगन का इथर
भी लगता कुछ तम के ऐसा ,
माइचेलसन-मोरले प्रयोग से
सिद्ध नहीं हो पाता वैसा ।

मैं पाता प्रयोग गलत यह
क्योंकि स्रोत है धारा ही पर ,
नित्य बिंदु पाने के हेतु
लें स्रोत किसी ग्रह के ऊपर ।

विद्युत-चुंबकीय , गुरुत्वाकर्षण
क्षेत्र द्वय आकाश बनाते ,
इथर का अस्तित्व नहीं है ,
अल्बर्ट आइंस्टीन यह बतलाते ।

महाप्रलय के हो जाने पर
नभ का पिंड खत्म होते सारे ,
सूर्य चंद्र व ग्रह नक्षत्र सब
खत्म हो जाते हैं सब तारे ।

तो भी क्या उपरोक्त क्षेत्र द्वय
बच जाएंगे ,
उसके बाद आकाश कहां से
बन पाएंगे।

अतः तम है जनक सभी का ,
और सभी हैं दास इसी का ,
स्वत: जन्म ले , स्वत: मरण ले,
मित्र अमित्र यह नहीं किसी का ।

सभी जगह यह व्याप्त
नहीं कोई जगह है खाली ,
ग्रह ,नक्षत्र ,परमाणु हो
अथवा रवि लाली ।

भू ,चंद्र हो अथवा कोई
नभ का तारा ,
यही अनंत का रूप
जिसे है देखती धारा ।

स्वामी विवेकानंद कहते
अनंत नहीं हो सकता दो-तीन ,
अनंत एक है , एक ही रहता ,
बीते चाहे कितना ही दिन।

अगर कोई विद्वान नहीं
सहमत इन सबसे ,
कृपा करके वह अपना
विचार बताए ,
अपना तर्क और प्रमाण
ईमेल करके ,
मुझ नाचीज़ को अपनी
बातों से समझाए।

संदर्भ ( References ) :--

1.     

अनंत और शून्य बंद वक्र पर एक ही जगह पर होता है।

  




2. पुर्णमिद्; पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
     पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
                                    ( उपनिषद )

3. तम आसीत्तमसा गूढमग्रेअ्प्रकेतं संलिलं सर्वमा इदम।
तुच्छयेनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकम ।।
( ऋग्वेद , अ.8,अ.7,व.17 , ऋग्वेदादिभाष्य भूमिकापेज 85 , स्वामी दयानंद सरस्वती रचित )

4. आसीदिदं तमोभूतम प्रज्ञात्मललक्षणम्।
     अप्रतक्र्यमविज्ञेयम् प्रसुप्तमिव सर्वत:।।
( मनुस्मृति अध्याय 1, श्लोक 5 )

5. अनेकाबाहूदरवक्त्रनेत्रं
पश्यामि त्वां सर्वतोअ्नन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं
पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।
( गीता अध्याय 11, श्लोक 16 )

6. आर्यावर्त अखबार
( गार्गी याज्ञवल्क्य संवाद )

7. Ideas and opinions
   ( Einstein Albert )

8. Paper on Hinduism Chicago Address by Swami Vivekananda ( pp-25 )

*********** समाप्त ***************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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मंगलवार, 7 जून 2022

विचार ( भाग 7 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 7 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 7 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** जैसे नदी की प्रबल धारा को नाविक काट कर नौका को किनारा प्रदान कर देता है । परंतु हवा का प्रबल वेग को नहीं काट पाता और नौका मझधार में या तो डूब जाती है या भटक , उसी प्रकार यह जीवन नौका है ।  कुछ सज्ञ जानते हैं यह राह नाश और पतन की है , परंतु चाह कर भी नहीं छोड़ पाते , अपने को नहीं रोक पाते , लाचार हैं ।
इसको विज्ञ समय के हाथ का खिलौना कहते हैं , कुछ प्रारब्ध दोष कहते ।
परंतु भौतिक रूप से बिचारा या सोचा जाए तो यह मान , अभिमान , शान , स्वार्थ और लालच से उपजा फला फल है या प्रकृति आपदा । **


** मानव इसलिए सत्य नहीं बोलता क्योंकि वह सत्य को ढक कर उसका नाम सभ्यता और चतुराई रख दिया है। अतः कटु सत्य बोलने में कांप जाता है । जैसे कलम जब नंगी होती है तभी शब्द उगलती है , जब ढकी होती है तो वह पॉकेट में जाकर चुप रहती है । **


** सौंदर्य - जो नेत्र प्रिय हो और मन में आकर्षण पैदा करे 
इस आकर्षण को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है , नैसर्गिक और भौतिक
नैसर्गिक सौंदर्य -  इस आकर्षण से मैथुन इंद्रियों पर प्रभाव नहीं पड़ता , जैसे फूलों की सुंदरता , बच्चों का मधुर संसार वगैरह ।
भौतिक सौंदर्य - यह आकर्षण मैथुन इंद्रियों को प्रभावित करता है , जैसे नारी सौंदर्य वगैरह। **


** तार्किक दृष्टिकोण से तो नहीं कुछ सत्य है और नहीं असत्य है । क्योंकि सत्य और असत्य दोनों परब्रह्म का ही रूप है , यानी अनंत का अंश ।
परंतु लौकिक  दृष्टिकोण से जिसे आंख से प्रत्यक्ष देखा जाए वही सत्य है , नहीं तो कल्पना , भ्रम , विश्वास , फ़साना वगैरह।**


** रात्रि पृथ्वी की छाया है , तथा छाया तम का एक रूप और तम जिसमें आवृत्ति तथा समय शून्य हो ।  दूसरे शब्दों में प्रकाश और अंधकार का मिलन विंदू तम है। या बराबर बराबर प्रकाश और अंधकार मिलाने से जो प्राप्त होगा वह तम है। **


** योग्यता युक्त अहं स्वाभिमान कहाता  है , परंतु योग्यता रहित अहं अभिमान , शान , घमंड कहता है । प्रथम ऐश्वर्य, वैभव ,अमरता देता है । वहीं दूसरा खोखलापन , पाखंड और अंततः मायूसी। एक ऊपर ले जाता है , तो दूजा नीचे । एक उन्नत मार्ग है , तो दूसरा पतन का । **


** स्वच्छ मुस्कुराहट तभी मानव मुखड़ा पर प्रकट हो सकती है जब उतने क्षण के लिए उसके अंदर किसी प्रकार का क्लेश , द्वेष, वैर और मैल की भावना ना हो , अथवा मुस्कुराहट आ ही नहीं सकती ।
यह बात उन लोगों में भी अवलोकन किया जा सकता है जो दुष्ट से दुष्ट हैं ,तथा उन लोगों में भी जो श्रेष्ठ से श्रेष्ठ हैं । **


** मिट्टी से बना दलदल में फंसकर जीव का मात्र तन का ही नाश होता है , आत्मा और मन सुरक्षित रहते हैं , परंतु मैला से बने दलदलल में फंस कर तीनों का नाश होता है । मैला दूसरा कुछ नहीं दुरात्मा का कलापन है और जगत की माया । **


** पृथ्वी का कुल धन नियत ( constant ) है । इस कारण एक तभी धनी होगा , जब दूसरा निर्धन हो। ठीक उसी प्रकार जैसे सूरज नहीं अस्त होता है और नहीं उदय । किसी एक जगह के लिए अस्त होता है तो दूसरे जगह के लिए उदय होता है।
धन का भी यही हाल है , जिसकी जैसी बुद्धि है वैसा उसको धन है ।  **


** धन बुद्धि का समानुपाती है और निर्धनता बुद्धि का  व्युत्क्रमानुपाती । **
यानी  धन = क × बुद्धि
         निर्धनता = क × 1/बुद्धि
यहां क = नियतांक


** लेन-देन का  साथी यदि लाभ हो तो वह अविराम चलता रहता है , रुकता नहीं। यदि दुर्भाग्य से उसकी सहेली हानी बनी तो वह टूट कर बिखर जाता है ।
जीवन क्रम का भी यही हालत है। यदि योग्य साथी मिला तो चलता रहता है और अयोग्य हो तो टूटकर बिखर जाता है । **


** पूरब और पश्चिम सही माने में देखा जाए तो एक ही है । दो व्यक्तियों में आगे वाले के लिए पीछे वाला पश्चिम है तो पीछे वाले के लिए आगे वाला पूर्व  वगैरह । **


** चलने से रास्ता खत्म होता है और करने से काम और सतत प्रयास से सफलता ।
संचित करने से धन बढ़ता  , उचित व्यय से उसका सदुपयोग और अपव्यय से उसका नाश । **


** कुपात्र पहले अपनी तथा दूसरे की विद्या का नाश करता है , उसके बाद बुद्धि का , फिर धन का , उसके बाद जीवन का और सुपात्र ठीक इसके उल्टा वृद्धि करता है।
नाश एवं विकास का यही क्रम भी है  तथा कुपात्र एवं सुपात्र इसका कारण और कर्त्ता । इनकी क्रियाएं अकर्तव्य और कर्तव्य । **


** विनाश में सबसे पहले विद्या का नाश होता , तब बुद्धि का , तब धन का , अंत में तन का । और विकास में इसके उल्टा। **


** प्रकृति प्रदत्त शरीर का काम है मल विसर्जन तथा सभ्य का काम है इसकी सफाई ।
प्रकृति का कार्य है अव्यवस्था तथा सभ्यता का काम है व्यवस्था ।
मात्र इसी दो मूल कार्यों में समग्र विश्व व्यस्त है। **


** जीवन यापन के लिए काम ढूंढकर पाना मानव जीवन का सबसे जटिल एवं महत्वपूर्ण कार्य है।**


** आदमी जितना सिखाने में दिलचस्पी लेता है उतना सीखने में लेता तो पृथ्वी स्वर्ग बन जाए।**


** मूर्ख नहीं किसी का दोस्त होता और नहीं दुश्मन। मूर्ख का एक ही काम है और वह है विनाश।  जबकि वह अपनी समझ से अपने हितैषी का उपकार ही करता है , लेकिन उसको उपकार और अपकार में अंतर नहीं दिखता , इसलिए वह बिनाश ही करता है अर्थात उसको उ और अ में अंतर नहीं दिखता , उसके लिए दोनों एक ही है । **


**  ज्ञान मूर्खता का व्युत्क्रमानुपाती होता है । **
अर्थात ज्ञान = क × 1/मूर्खता
क नियतांक है

** अगर मूर्ख मूर्ख का नाश नहीं करें तो वह विद्वान का नाश करेगा , क्योंकि मूर्ख का कर्म है विनाश। ठीक उसी प्रकार जैसे कीड़ा अगर कीड़ा को नहीं खाए तो वह सभी उत्तम लकड़ी और फर्नीचर को ही खा जाएगा । **


** मूर्ख और दुष्ट कलह में रहता है, कलह में जीता है , कलह ढूंढता है , और दूसरी जगह जाकर कलह बोता   है तथा वहां से कलह ले आता है ।
ज्ञानी शांति में जीता है , शांति ढूंढता है ,शांति बोता है और शांति काटता है , एवं शांति का लेन-देन करता है । **


** समाज जब मूर्खता से लड़ता तब  विकास करता है , तथा जब विद्वान से लड़ता है तब विनाश होता है । **


** चक्षु से मात्र सीमित परिवेश दृष्टिकोण होता है , परंतु ज्ञान से असीमित परिवेश का दर्शन किया जा सकता है । **

** किसी भी कलह का कारण जलन है ,और जलन का अनेक रूप है , इसलिए कलह का भी अनेक ढंग  है । **


** सभ्यता का मूल दर्शन है , जितना भी ज्ञान विज्ञान सत्य विद्याएं हैं उन सभी का जनक दर्शन ही है , और बुद्धि दर्शन की माता , मंथन दर्शन का जनक ।
इसी को कुछ लोग तप , ध्यान और योग द्वारा पाते हैं , तो कुछ लोग देशाटन द्वारा तथा कुछ लोग समाजिक सभा-सम्मेलन द्वारा इत्यादि। **


** समय सब कुछ का धीरे धीरे नाश कर देता है तथा महाप्रलय के बाद खुद नाश को पा तम में विलीन हो जाता है , और पुनः तम से जन्म पाता है । सिर्फ एक ही चीज का नाश नहीं होता और शाश्वत है , वह है तम । यह पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है , और हर जगह चाहे वो भू हो अथवा अंतरिक्ष या कहीं एक ही रूप है , और एक ही गुण  है। इसी का भौतिक रूप अंधकार , छाया , कालापन , नीलापन इत्यादि है ।**


  ** कुपात्र अपने आप को सबसे चतुर समझता है , तथा अपनी कुपात्रता के कारण अपना समय खाता है , तथा अपनी मूर्खता रूपी चतुराई के फलस्वरूप सुपात्र का समय खाने में सदा सचेत रहता है , लेकिन समय जब उसको नाश का विशाल सागर उपस्थित कर चुका होता है तब उसे अपनी गलती का एहसास होता है ।
इसी कर्म फल को कुछ विज्ञ पाप का फल बताते हैं , तथा कुपात्र के कर्म फल को निषेध उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हैं ।
सुपात्र ठीक इसके विपरीत होता है। वह समय को विकास में बदलता जाता है । इसलिए समय उसके सामने विकास समृद्धि का विशाल सागर उपस्थित करता है , जो उसे अमरत्व प्रदान करता है ।इसे विज्ञ पुण्य फल मानते हैं , तथा अनुकरणीय आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करते हैं ।**


** विचार पांच ज्ञानेंद्रियों आंख ( प्रकाश तरंग ) , कान ( ध्वनि तरंग ) , नाक (आणविक तत्त्व ) , त्वचा ( तापीय, विद्युतीय तरंग )  जीभ ( आण्विक तत्त्व )  द्वारा पैदा किया गया एक विशेष तरंग है जो मस्तक में पहुंचकर भाव पैदा करता है और शब्द आदि बनता है।
इसलिए खान-पान और परिवेश पर ध्यान देने के लिए सज्ञ हमेशा जोर डालते हैं । **


** मस्तिष्क से तौली बातें सबसे ज्यादा सत्य होती है , अर्थात सर्वोत्तम होती है , आंख से देखी बातें इससे थोड़ा कम सत्य और काम से सुनी बातें इससे भी कम । **


** कटु सत्य 24 कैरेट सोना सा होता है ,सत्य 20 से 22 कैरेट सोना सा और अर्ध सत्य गिनी सा यानी 12 से 18 कैरेट सोना सा और असत्य गिलट सा। **


**  जो पूरे होश हवास में सर्वदा नंगा रहता है उसे परब्रह्म परमेश्वर कहते हैं । जो दाढ़ी मूंछ आने पर होश हवास में  नंगा होता है उसे अवतार कहते हैं , जैसे महावीर ।
और जो दाढ़ी मूंछ आने पर किसी कारण वश बेहोश हो सदा नंगा रहे उसे पागल कहते हैं ।
और जो अपनी दुष्टता से किसी को नंगा करें उसे दुष्ट और कुपात्र कहते हैं ।**


** जो सिर्फ बात से सुधर जाए उसे सुपात्र , जो हल्का दंड से सुधर जाए वह पात्र और जो भारी दंड से भी सुधार नही पाए उसे कुपात्र कहते हैं। **


** जहां दंड विधान शून्य हो जाता है वहां व्यक्ति व्यक्ति दुर्जन बनने लग जाता है। यहां तक कि सीधा , निरीह और सज्जन भी दुर्जन बनने लगते हैं ** 


** छोटा से छोटा पेड़ भी तभी गिरता है जब उसका जड़ काटा जाता है । यदि जड़ को छोड़ उसके और दूसरे भाग को जन्म भर काटा जाए तो भी उसका अस्तित्व कायम रहता है । यही कुटनीति और राजनीति का सार है। **


** विज्ञान कटु सत्य होता है और उसकी नीरसता से उत्पन्न गर्मी से राहत साहित्य की ठंडक प्रदान करती है , क्योंकि सत्य यथार्थ है इसलिए तीखा होता है , और कल्पना स्वप्न है इसलिए मधुर ।
और साहित्य कल्पना के धरातल पर स्वप्न का महल है । अर्थात दूसरे शब्दों में विज्ञान जहां पर प्रायोगिक सत्य है वहां साहित्य काल्पनिक सत्य।**

************* क्रमशः ****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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सोमवार, 6 जून 2022

तू , वह और मैं

अनुसंधानशाला से " तू , वह और मैं " कविता प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कविता
शीर्षक - तू , वह और मैं
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कविता का भावार्थ यह कि यदि कोई अपने लिए मैं है तो सामने वाले के लिए तू है और परोक्ष वाले के लिए वह है। यानी एक ही व्यक्ति भिन्न परिस्थितियों में तू, वह और मैं है।ए तीनों व्यक्ति के नहीं आत्मा का वोध कराते हैं जो सभी में है और ए तीनों भी सभी में हैं।


अपना मन अग्नि रोक सदा ,
लहका करके न जलाओ तू ,
प्रचंड बना गर भड़का यह ,
इस ज्वाला में जल जाए भू ।

कालिमा राख की परत चढ़ा ,
मन चिंगारी न बुझाओ तू ,
चित्त चिनगी से चितचोर जला
मन को स्वच्छंद बनाओ तू ।

जो समझ रहे हो वह न समझ ,
वह समझ से बाहर समझ ले तू ,
गर समझ ही इतनी रहती तो
पहले ही जाता समझ ए भू ।

कालिमा राख का ढेर लगा
राहों का विघ्न नहीं बन तू ,
प्रचंड उठेगी आंधी जब ,
इस भस्म में भस्म हो जाए तू ।

जब तलक रहे भू चंद्र सूरज ,
चिंता तम में न गड़ा रह तू ,
सबका भोजन चलता जिनसे
उनको ही मान चला कर तू ।

मैं को न समझ जन भू जन सा
मैं ही है वह , मैं ही है तू ,
गर समझ ना पाए तू को तू ,
तब समझो  मैं  मैं ही है तू ।

उसको भी बता वह वह समझे ,
उसमें भी मैं उसमें भी तू ,
गर समझ ना पाए वह वह को ,
तो समझे मैं , मैं ही वह हूं ।

बढ़ता जा आगे कर्म के बल ,
फल चिंता तम में पड़ो ना तू ,
नित्य लक्ष्य निर्धारित कर कर के
बन कर्म पथिक रत रहना तू ।

बीती कल है सबने देखी ,
आगे की कल कब देखा भू ,
आज जो देखा आदि बना ,
इससे कल में न पड़ा रह तू।

न सोच निरर्थक की बातें  , 
ना व्यर्थ समय को बिताओ तू ,
मन समझ ना पाए अर्थ अगर
मन शांत समर्थ बनाओ तू ।

सुनने की आदत को डालो ,
बिना समझे मत बोलो तू ,
व्यर्थ की बातें न सुनकर ,
नित्य कर्मों में रत रहना तू ।

गर बैठोगे बिन कर्मों के
मन सोचेगा मैं , वह या तू ,
मन को गर कर्म में बाधोगे ,
मन सोचेगा सु और न कु ।

**********समाप्त**********

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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शुक्रवार, 3 जून 2022

विचार ( भाग 6 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 6 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 6 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** मात्र महत्त्वाकांक्षा यानी योग्यता रहित महत्वाकांक्षा अराजकता एवं पागलपन पैदा करती है । महत्वाकांक्षा रहित योग्यता लक्ष्य हीनता , शिथिलता , असफलता एवं कर्म हीनता पैदा करती है । तथा महत्वाकांक्षा युक्त योग्यता स्फूर्ति , लक्ष्य , सफलता एवं कर्मठता पैदा करती है।
विश्व मानव उपयुक्त इन्हीं तीन सिद्धांतों अनुसार विभक्त एवं कर्म रत है । **

** भगवान और शैतान दोनोें  एक दूसरे के विपरीत होते हैं । शैतान पूर्वार्ध समय में हावी रहता है । तथा भगवान उत्तरार्ध समय में । शैतान आक्रमण करता है , तथा भगवान परास्त । शैतान असफल होता है , और भगवान सफल । **

** भूत एवं वर्तमान का सही आकलन ही भविष्य का सही आकलन है । यानी सही भविष्यवाणी वशर्ते कि प्रकृति साथ दे ।
क्योंकि प्रकृति स्वतंत्र एवं अति सशक्त है तथा नित्य परिवर्तनशील । इसी कारण सभी भविष्यवाणियां सत्य नहीं होती । **

** लग्नशीलता , ईमानदारी एवं बुद्धिमत्ता ए तीन सफलता एवं समृद्धि दायक हैं।**

** कर्ज जहां दाता में अभिमान या अहंभाव देता है , वहां ग्राहक में लाचारी । प्रथम को लाभ ,  वहां द्वितीय को हानि।
सिर्फ एक सही मूल्य ही दाता एवं ग्राहक का संतुलन बिंदु है , जो दोनों को अहंभाव एवं संतुष्टि देता है , और दोनों को लाभ होता है । **

** भय का अंतिम परिणाम और सीमा मृत्यु है , तथा आरंभ जन्म । भय किसी न किसी रूप में उम्र भर व्याप्त रहता है । **

** साहित्यकार समाज का ब्रह्मा है ,
और समाज साहित्य का । जैसा ए होंगे निर्माण भी वैसा होगा । **

** जिस प्रकार कुम्हार के आवा से  कोई  पात्र बड़ा ही सुंदर पक जाता है , भट्टी से कोई कोई ईंट बड़ा ही सुंदर ढंग से पका हुआ निकल आता है , मां की कोख से कई संतानों में से कोई एक सुपुत्र निकल आता है , वैसे ही कवियों और लेखकों के बहुत लेखों और छंदों में कोई एक लेख और छंद बहुत ही चारू मनोरम और मनभावन बन आता है , जो अमरवाणी बन जाता है । **

** कुत्ता मुर्दा मांस तथा हड्डी खाता है , गिद्ध लाश की अतड़ी खाता है , शेर हत्या कर खून पीता है , कौवा मेला खाता है , पर दुर्जन और मूर्ख समय खाता है, भेजा खाता है ,और अंत में अपने आप को खाता है । **

** अपमान के जीवन से सम्मान की मौत श्रेयकर होती है । हजारों मूर्खो की संगत से एक साधु की संगत सुखदायक होती है । **

** परमात्मा अखंड अनंत ज्योर्तिपुंज एवं ऊर्जा स्रोत है । जैसे अतुल संपदा का स्वामी अपना धन का कुछ का भाग ऋण पत्र , अंशाधि पत्र इत्यादि में खर्च किए रहता है , तथा शेष राशि से अपनी शक्ति बनाए रखता है , वैसे ही परमात्मा का अनंत ऊर्जा का कुछ भाग अनंत जीवो में विद्यमान है , जोकि मृत्यु के बाद वह पुनः परमात्मा में लौट आता है , तथा पून: वहां से नए जीव में । यही सृष्टि क्रम है। जैसे अग्नि स्रोत से प्रकाश पुंज निकलकर अपने आसपास के स्थान को प्रभावित करता है ,  वैसे ही  अनंत ऊर्जा पुंज से बना परमात्मा अपने ब्रह्म से ब्रह्मांड को प्रभावित करता है । **

** सुपात्र से समय का सदुपयोग होता है । पात्र से समय कटता है । तथा कुपात्र से समय नष्ट होता है। पहला का संग उपयोगी है , दूसरा का संग कामचलाऊ है । तथा अंतिम का संग अवांछित है। प्रथम सुखदायक है , दूसरा लायक है , तथा तीसरा नालायक है । ** 

**   विचार विद्युत चुंबकीय तरंग है जो ब्रह्मांड में तैरता रहता है । विचार न नया होता है ना पुराना बल्कि यह शास्वत है । यह देश जाति भाषा तथा लिपि से परे सर्वव्यापी है । जैसे पानी विभिन्न पात्रों में अपना रूप बदलता है , उसी तरह विचार विभिन्न मानव मस्तिष्क में विभिन्न तरह से प्रकट होता है । यह विचार विज्ञान में वैज्ञानिक बनाता है , अध्यात्म में ईश्वर और आत्मा का ज्ञान  दे ऋषि , तथा  साहित्य में महाकवि कालिदास और राजनीति कूटनीति में कृष्ण और कौटिल्य वगैरह-वगैरह। **

** मौत न टूटने वाली अनंत नींद है । मौत अनंत शांति का दूसरा नाम है। मौत सभी चिंताओं से मुक्ति देती है । मौत सुनने में भयंकर , सोचने पर आश्चर्यजनक और पाने पर मुक्ति है । **

** परिवार , समाज , देश इत्यादि की उत्पत्ति का सही आकलन किया जाए तो इनके जन्म का जनक स्वार्थ ही है । स्वार्थ ही सभ्यता का जनक है । योगी , ज्ञानी , सन्यासी इत्यादि भी स्वार्थ से परे नहीं है , नहीं परे हैं ईश्वर । किसी को धन का स्वार्थ है , तो किसी को नाम और यश का , किसी को स्वर्ग , मोक्ष ,ज्ञान इत्यादि की चिंता है , तो ईश्वर को सृष्टि चलाने की।
स्वार्थ एक ऐसा आण्विक  बंधन है जो पूरे ब्रह्मांड को बांधा है । इसे कुछ लोग मोह भी कहते हैं। लालच और स्वार्थ में महान अंतर है।
लालच सामाजिक नियमों से च्युत  कर्म है , जबकि स्वार्थ समाजिक नियम अनुसार कर्म है । **

** ए विश्व अनंत के कई रंगमंचों में से एक है , इसके जीव इस पर कलाकार के रूप में अपनी अपनी योग्यता अनुसार अपनी कला दिखाते तथा परिश्रम पाते हैं । जो सुपात्र बनता है वह नायक या उसके समकक्ष पद प्राप्त करता है , और जो कुपात्र बनता है वह खलनायक या उसके समकक्ष पद पाता है। **

** परमात्मा के ही दिया हुआ और प्रेरित किया हुआ अच्छा और बुरा दोनों कर्म है , जिसे मानव करता है , जैसे श्वेत और श्याम , प्रकाश और अंधकार इत्यादि ।श्वेत कर्म यानी सुकर्म करने वाला श्वेत फल यानी नाम , यश , धन और श्याम कर्म यानी कुकर्म करने वाला श्याम फल  यानी दुख , अपयस  , गरीबी आदि तथा दोनों कर्म करने वाला दोनों फल पाता है । **

** किसी भी धर्म या सिद्धांत की महत्ता निम्न बातों पर निर्भर करती है -
1. अच्छा साहित्य जिसमें अच्छे विचार अर्थात जन कल्याण भाव हो ।
2. उसके संस्थापक एवं अनुयाई की प्रस्तुति का ढंग एवं  गुणवत्ता ।
3.  तथा उसकी आयु उसके अनुयायियों की बुद्धि , निस्वार्थता , सत्यता , निष्ठा एवं जन मन की आकर्षण पर निर्भर है । **

** अपमान खाकर और बिना उसका प्रतिकार किए अन्न खाना विष सा  है , और  जिंदा रहना जिंदा लाश सा । **

** एक समय  में जो वस्तु अरूचिकर , अप्रिय और त्याग्य लगता है , वही किसी समय विशेष में रुचिकर , प्रिय और ग्राह्य लगता है , जैसे जो अग्नि शरद ऋतु में अच्छी लगती है , वही गृष्म में नहीं लगती  , जो हवा , पानी गृष्म में प्रिय लगता वही शरद ऋतु में अच्छा नहीं लगता। जो विचार , भाव मस्तिष्क में रात में चंद किरण तले पैदा होते हैं वही दिन में सूर्य प्रकाश में  ठीक नहीं लगते । **

************  क्रमशः ***************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
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गुरुवार, 2 जून 2022

विचार ( भाग 5 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 5 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 5 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


** मुहब्बत सिर्फ गुण देखती है अवगुण नहीं , तथा घृणा सिर्फ अवगुण देखती है गुण नहीं , सिर्फ मनुजता गुण और अवगुण दोनों देखकर चलती है। **


** राजनीति और कुटनीति में नीच से नीच सिद्धांतों से प्राप्त जीत ऊंच से ऊंच सिद्धांतों और आदर्शों से प्राप्त हार से श्रेष्ठ होती है। **


** कल्पना बड़ी ही मधुर एवं मनोरम होती है । यही कारण है कि बड़े चाव से लोग उपन्यास एवं कथा पढ़ते हैं । और सत्य रुखा एवं सूखा होता है । यही कारण है कि कुछ लोग ही गणित और विज्ञान में रुचि लेते हैं । **


** कोई भी नई आदत अपना बनाने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है । और अभ्यास 1 दिन का काम नहीं , यह दिनों महीनों में होता है।**


** मानव जीवन में तीन ही महत्वपूर्ण तिथियां होती है । 1. जन्मदिन  2. विवाह दिन  और 3. मृत्यु दिन प्रथम उत्तम है सभी के लिए अर्थात सभी खुश होते हैं । दूसरा मध्यम होता है अर्थात संतान गृहस्थ में प्रवेश करता है तो माता-पिता वानप्रस्थ में । और तीसरा सर्वोत्तम है अर्थात वह सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है । हालाकि  परिवार जन शोक में डूबे रहते हैं । **


** सूअर सफाई से वैर रखता है । और मूर्ख , दुष्ट व्यवस्था से । **


** अपना से अयोग्य के कर्मों से जो शिक्षा लेता है अथवा नकल करता है , उसका नाश निश्चित होता है । तथा अपना से योग्य के कर्मों की जो नकल करता है या अपनाता है उसका विकास भी कोई नहीं रोक सकता। **


** दुष्ट के साथ दुष्टता करने वाला दुष्ट नहीं कहलाता । दुष्ट वह कहलाता है जो सज्जन के साथ दुष्टता करता है ।**


** जो जितना उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है उसकी कीमत उतना ही ज्यादा है । **


** मूर्ख और दुष्ट दोनों ही दुश्मन  का ही काम करते हैं । फिर भी दुष्ट अच्छा होता है ,क्योंकि दुष्ट से आदमी हमेशा सावधान रहता है , तथा बचकर चलता है। किंतु मूर्ख से सावधान नहीं रहता जिससे उसके कर्मों से ज्यादा हानि होती है । **


** आदमी की पूर्ण परिभाषा उसके अंत:परिवेश तथा वाह्य परिवेश से दिया जाता है।
अंत:परिवेश कुभावना एवं सुभावना से बनता है। तथा वाह्य परिवेश कुकर्म एवं सुकर्म से बनता है। इन्हीं 4 मूलभूत तत्त्वों एवं सिद्धांतों के आधार पर प्रत्येक मानव का आकलन होता है । **


** अनंत त्रिज्या से बना गोला का गुण यह भी होता है कि कोई इस गोला पर जहां से चलता है अनंत काल के बाद पुनः वहीं लौटता है , चाहे दिशा कुछ भी हो । जैसे पृथ्वी पर एक बिंदु से और एक दिशा में गमन करता व्यक्ति पुनः उसी बिंदु पर लौटता है । **


** मैला का यह अवगुण यह है कि वह अपना पूरा जीवन बदबू फैलाने में ही बिताता है । जब अपना नाश पाता है यानी  सड़ता है तब वह खाद बन उपयोगी बनता है ।
ठीक यही हालत मूर्ख और  दुष्ट का है । पूरा जीवन उडंता अव्यवस्था फैलाता है । जब अपना नाश कर लेता है तब विनम्रता तथा उचित समझता है । **


**  ताला लगाने के पीछे छिपा मनोविज्ञान एवं सिद्धांत यह है कि यह न तो चोर से रक्षा कर सकता है और ना डाकू से बचाव , बल्कि साधु चोर डाकू न बन जाए अर्थात अपना ईमान न खो दें इसके लिए है । **


** जैसे एक जीव दूसरे जीव का जन्म देता है , वैसा ही एक विचार दूसरे विचार का ।**


** अगर कोई छात्र परीक्षा में 0 अंक पाता है तो इससे मतलब निकलता है कि वह या तो सबसे बड़ा मूर्ख है या असाधारण । अगर वह असाधारण है तो परीक्षक शून्य है । अगर वह शून्य है तो परीक्षक असाधारण है। **


** अगर किसी की उत्तर पुस्तिका पर परीक्षक यह लिखता है कि परीक्षार्थी परीक्षक से योग्य एवं बेहतर है तो उससे योग्य शिक्षक या परीक्षक मेरे नजर में दूसरा कोई नहीं है । वह असाधारण परीक्षक है । **


** आजकल पैसा से बड़ा सहायक और मित्र दूसरा कोई नहीं। **


** जिस प्रकार त्रुटि पूर्ण अंग तीन तरह से - दवा से , चीरकर तथा अंत में अंग काटकर ठीक किया जाता है , उसी प्रकार त्रुटि युक्त मानव भी तीन प्रकार से  , प्रथम बात से  , दूजा लात से यानी पीटकर  और अन्तत: मौत से सुधार पाते हैं । **


** जहां रक्षक एवं भक्षक में एकता हो उस परिवेश जगह का त्याग ही कल्याण कारक एवं मंगलमय होता है **


** न जिसका अंत हो , न मध्य हो और न आदि हो ऐसी स्थिति मात्र बंद वक्र में पाई जाती है ।**


*" जैसे महिलाएं अपने प्रिय जनों की मौत पर भावुक हो जाती है , वैसा ही नेता गण चुनाव आने पर ।
जो नारी अपने प्रियजनों की सेवा जिंदा रहने पर नहीं करती , नित्य गाली से स्वागत करती है , वह भी मौत के बाद उसका गुणगान करते  नहीं थकती।
ठीक यही हालत नेताओं की है । जो नेता अपने क्षेत्र में कभी नहीं घूमता। जिसे क्षेत्र की गर्मी की लू लग जाती है । वही चुनाव के समय हाथ जोड़े , धूल गर्द से लीपा पुता ,  विनय की मूर्ति बने  ऐसा घूमता है जैसे स्वर्ग का आनंद ले रहा हो ।**


** प्रकाशन का स्तंभ है - प्रकाशक , प्रेस और वितरक । **


** कितना ज्यादा समय तक करते हो यह खूबी नहीं है । क्या करते हो यानी कार्य की गुणवत्ता और समाप्ति यह खूबी है । **


** भ्रम युक्त और संदेह युक्त मन कभी सफल नहीं होता। हमेशा असफल होता है । सिर्फ शुद्ध मन अर्थात संदेह रहित मन ही सफलता प्राप्त करता है।**


** वैज्ञानिक विचार 24 कैरेट सोना सा परिशुद्ध होता है । दार्शनिक विचार और ऐतिहासिक विचार 23 कैरेट सोना सा , साहित्यिक विचार 18 से 20 कैरेट सोना सा तथा अन्य सभी विचार 12 से 18 कैरेट सोना का शुद्ध होता है । तथा जो विचार जीरो से 12 कैरेट सोना सा होता है वह पानी के बुलबुलों सा क्षणभंगुर होता है अर्थात प्रति क्षण जन्मता और मिटता रहता है । **


** अनुसंधान के लिए तीन महत्वपूर्ण बातों का होना आवश्यक है ।
1. हम क्या करना चाहते हैं ?
2. इस संबंध में अभी तक क्या-क्या हुआ है इस संबंधी जानकारी इकट्ठा करना ।
तथा 3. किस तरह से इसे पूरा किया जाए इस पर सोचना विचारना और इसकी पूर्ति हेतु सामग्री इकट्ठा करना । **


** कर्म का मूल्य है सफलता , और सफलता का मूल्य है पैसा , तथा कर्म चक्र की गतिशीलता इसी आकर्षण के हेतु है । यह जितना प्रबल होगा कर्म चक्र उतना ही गतिशील । **


** किसी निश्चित क्रिया को निश्चित समय में पूरा करना ही साधना है अर्थात क्रिया और समय से संबंध ।
साधक नित्य अभ्यास द्वारा इसे पूरा करता है जब यह क्रिया निर्विघ्न साधक द्वारा निर्धारित समय अनुसार पूर्ण होती है तो उस कार्य को सिद्ध होना कहा जाता है । यह सिद्धांत प्रत्येक कार्य एवं समय संबंध पर लागू है । **


** किसी कार्य की पूर्ति का मानक समय कितना होना चाहिए ?
विश्व में लघुत्तम समय में जो उस कार्य को सफलता पूर्वक और गुणवत्ता के साथ पूरा किया हो उस कार्य के लिए मानक समय है। **


** मन की दृढ़ता तन का बल है । साहसइ इसकासुपुत्र , धैर्य इसका जनक , सफलता इसकी बेटी , शंका  , भय , शोक , आलस इत्यादि इसका वफादार गुलाम और चारण । खुशी , प्रसन्नता इसकी पत्नी और वैभव , समृद्धि इसकी मां। **


** आलोचना एक पक्षीय , समालोचना द्विपक्षीय और मौन सर्वपक्षीय होता है। **


*************** क्रमशः ***************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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बुधवार, 1 जून 2022

विचार ( भाग 4 )

अनुसंधानशाला से विचार ( भाग 4 ) प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 4 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** किसी भी कार्य का प्राय: चार ही कारण है , नाम , यश ,धन और प्रभुत्व ।  इन्हीं चार के लिए आदि से आज तक और आगे भी भू के जन रत हैं। **


** धन काफी महत्वपूर्ण है । इसे अपने अधिकार में रखना उचित है। दूसरे के अधिकार में जाने पर कष्ट उठाना पड़ सकता है , चाहे अपना बेटा , पत्नी ही क्यों न हो। **


** मूर्खों के साथ विद्वता दिखना सबसे बड़ी मूर्खता है। उनके साथ मूर्ख बनकर रहना ही ठीक है।**


** ब्रह्मांड में अनेक तारें , ग्रह , नक्षत्र इत्यादि विद्यमान हैं । सवाल यह है कि क्या इन सबका प्रभाव मानव तन, मन, बुद्धि और विचार  इत्यादि पर पड़ता है ?
मेरे विचार में आकाशीय पिंड पृथ्वी पर दो तरह से प्रभाव डालते हैं ।
1. आकर्षण के रूप में ,
2. तथा दूसरा तरंग और किरणें उत्पन्न कर।
पृथ्वी पर कुल आकाशीय पिंडों  का आकर्षण
बल नियत रहता है । यदि नियत नहीं होता तो पृथ्वी का परिक्रमा कक्ष बदल जाता । अतः आकर्षण बल मानव मन विचार इत्यादि को प्रभावित नहीं करते।
सिर्फ आकाशीय प्रकाश , तरंग और किरणें प्रभाव डालता है। प्राचीन ऋषियों ने रत्नों का उपयोग इसी प्रभाव से बचने के लिए बताया है। **


** विचार , प्रकाश , ताप और ध्वनि में गहरा ‌संबंध है **


** प्रकाश , ध्वनि , स्वाद ,स्पर्श और गंध ये पांच मन का निर्माण करते हैं। **


**  हम जो बोलते हैं क्या यह आवाज वायुमंडल में रहता है ? अथवा आज से लाखों वर्ष पहले जो ध्वनि लोगों ने बोली है वह वायुमंडल में सुरक्षित है अथवा खत्म हो गई है?
मेरे विचार में सुरक्षित है । समय के साथ ध्वनि की तीव्रता ( intensity or loudness ) क्षीण होती गई है। अर्थात उनका आयाम ( amplitude ) घटता गया है। और वह इतना कम हो गया है जो लगभग  0.0° 1 हो गया है।
0.0000.........1 =  0.0°1 
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि ध्वनि की तीव्रता समय का व्युत्क्रमानुपाति ( universally proportional ) होता है ।
अर्थात  तीव्रता = क × 1/ समय
या  समय = क × 1/ तीव्रता
और हम जानते हैं कि   तीव्रता  = (आयाम )^2
अतः समय = क × 1/ ( आयाम )^2
   
अर्थात समय ज्यादा होगा तो आयाम कम होगा और तीव्रता यानी लाउडनेस कम होगा।
यहां क को आयाम नियतांक कहते हैं। जिसका मान प्रयोग द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
यह विचार विगत आवाज के अनुसंधान में उपयोगी हो सकता है।
इसका उदाहरण नदी जल में ढेला फेंकने पर देखा जा सकता है। समय के साथ तरंग का आयाम ( amplitude ) क्षीण होता जाता है। **


** प्राकृत संख्या ( 1से 9 तक ) के पूर्व यानी पहले वास्तविक संख्या ( 0 ) अर्थ हीन है। लेकिन बाद में आकर अर्थ पूर्ण हो जाता और गणित का जन्म देता है। जैसे - 01 और 10 ।**


** कब कहां कैसे और किनका कौन सा हाव भाव किनको भा जाए , इसी को सौंदर्य और प्यार कहते हैं। **


** मूलत प्रकृति अपनी तीन आवस्था में परिवर्तन कर अपना नयापन अर्थात अपने यौवन को हमेशा कायम रखती है । और ए हैं - गर्मी , वर्षा और जाड़ा।
और ए तीनों अवस्था प्रकृति के तीन स्रोत पर प्रति क्षण आधारित हैं । और ए हैं - सूरज , बादल , हवा।
लगभग यही हालत मानव का भी है। मानव शरीर का नयापन ( सुंदरता ) भी तीन बातों पर निर्भर करता है। ये हैं - केश-सज्जा , परिधान, स्वच्छता और स्वास्थ्य , गुण ।
और ए तीन चार बातों पर निर्भर हैं । ए हैं - बुद्धि , विद्या , बल और धन। **


** जैसे पानी में दूध डालने पर पानी की गुणवत्ता और महत्ता बढ़ जाती है , परंतु दूध में पानी डालने पर दूध की गुणवत्ता और महत्ता कम होती है , वैसे ही सज्ञ जब अज्ञ का गुण ग्रहण करता है तो वह श्रीहीन बनता है और जब अज्ञ सज्ञ का गुण अपनाता है तो श्रीमान बनता है । **


** भगवान , शैतान एवं इंसान में फर्क यह होता है कि हैवान एवं शैतान सदा हिंसक होते हैं , और इसके विपरीत इंसान सदा अहिंसक तथा भगवान हैवान एवं शैतान के लिए सदा हिंसक तथा इंसान के लिए सदा अहिंसक होता है। **


**   घटना - बुद्धि = क
शर्त 1 - अगर क = 0  , तब घटना = बुद्धि
             अर्थात घटना का पूर्ण विश्लेषण होता है। इसका कोई भी अंश ज्ञान से परे नहीं है। और इसे विज्ञान कहते हैं।

शर्त 2-   यदि  क > 0 यानी धनात्मक
               तब  घटना > बुद्धि
          अर्थात घटना का पूर्ण विश्लेषण नहीं होता है , तथा इसका कुछ अंश ज्ञान से परे है। और इसे ही आश्चर्य , चमत्कार , रहस्य , जादू , असाधारण बातें इत्यादि कहते हैं।

शर्त 3 -  यदि  क < 0 यानी ऋणात्मक
               तब  घटना < बुद्धि
अर्थात घटना की व्याख्या कोई भी कर सकता है। यानी इसकी जानकारी आम है। रोजमर्रा की बातें वगैरह इसी के अंतर्गत आती है। जैसे - खाना ,सोना वगैरह-वगैरह।
ब्रह्मांड की सभी घटनाएं इन्हीं तीनों शर्तों के अंतर्गत आती है। **


** प्रत्येक व्यक्ति की एक नित्य प्राकृतिक आदत होती है । और दूसरी अनित्य आकस्मिक।**


*" दुष्ट की दुष्टता रोकने की एक ही रामबाण दवा है उसके साथ वैसा ही व्यवहार। यदि यह संभव नहीं तो उसका परित्याग। **


** समाज सोया रहता है , पर अपनी जुबान और कान खोले रहता है। यह आवाज व्यक्तिगत आवाज से भिन्न होती है । यह सत्य और निष्पक्ष आवाज होती। किसी चीज का सही विश्लेषण। **


** किसी भी समुदाय के कुशल प्रधान को निम्नलिखित चार चिंताएं रहती है -
1. आमद ( आय )   2. खर्च ( वर्तमान )। 3. लाभ 4. हानि
और उसके सदस्य को मात्र एक चिंता , और वह है खर्च की अर्थात् व्यय की। **


** मेरे विचार से मृत्यु  चार प्रकार से होती है।
1. परिपक्व स्वभाविक  -  सत्तर के बाद और रोग , दुर्घटना आदि रहित।
2. परिपक्व अस्वभाविक - सत्तर के बाद किंतु रोग या दुर्घटना आदि से ।
3. अपरिपक्व स्वभाविक - सत्तर से पहले किंतु रोग , दुर्घटना आदि रहित।
4. अपरिपक्व अस्वभाविक - सत्तर से पहले तथा रोग , दुर्घटना आदि से।
1 और 3 बढ़िया कहा जा सकता है। 2 और 4  दुर्भाग्य पूर्ण है। 4 तो सबसे शोकाकुल है। **


** अनुसंधान कार्य बाल से खाल निकालने जैसा है। दूसरे शब्दों में मक्खी के दूध से घी निकालने जैसा। **


** किसी भी कार्य का आरंभ संघर्षमय होता है , समाप्ति हर्षमय होती है और फल सुखमय होता है । **


** जीवन संघर्षमय , शादी हर्षमय और मौत शांतिमय होता है। **


** मकान के नक्शा बनाते समय इंजीनियर को तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए।  सूर्य प्रकाश , वर्षा और हवा ।
प्रथम यानी प्रकाश हर हालत में आवश्यक है। अतः व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जब चाहे प्रकाश अंदर आने दें और जब चाहे रोक दें।
दूसरे के लिए मकान के अंदर कोई जगह नहीं है। यानी वर्षा से पूर्ण सुरक्षित हो।
तीसरा के लिए खिड़की आमने-सामने हो य़दि संभव नहीं तो साइड में तो अवश्य होना चाहिए।**


** मौत के सिवा पूर्ण शांति और कोई नहीं दे सकता है। पूर्ण शांति का नाम ही मौत है। **


** दिमाग से पढ़ने वाला कम समय तक पढ़ता है और रटकर पढ़ने वाला पूर्ण जीवन।**


** यदि लिखने का अविष्कार नहीं हुआ रहता तो मानव बहुत सा  विचारों और जानकारियों से अनभिज्ञ रहता । नहीं अपने विचारों को भविष्य के लिए सुरक्षित रख पाता वगैरह-वगैरह। **

*****************क्रमशः****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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मंगलवार, 31 मई 2022

सही आदमी और मैं ( दो कविताएं )

 ब्रह्मा , विष्णु और महेश त्रिदेव ( तीन सवार )
ज्ञान चक्षु धारातल को ए सब दिए ,
ए मुनासिब सही आदमी के लिए ।


कविता
सही आदमी और ग़लत आदमी
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

क्या मुनासिब सही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब नहीं आदमी के लिए ।

सूरज सोचे सदा से सुबह के लिए ,
चांद सोचे सदा से पूनम के लिए ,
जल सोचे सदा से नदी के लिए ,
है मुनासिब यही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब सही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब नहीं आदमी के लिए।

दुष्ट सोचे सदा है कलह के लिए ,
विष सोचे हमेशा मरण के लिए ,
जो नाशे समय न कर्म को करे ,
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए,
क्या मुनासिब सही आदमी के लिए,
क्या मुनासिब नहीं आदमी के लिए।

जो मुर्दा में पशुपति जीवन भरे ,
काल की कालिमा को उजाला करे ,
ज्ञान चक्षु धारातल को जो जन दिए ,
है मुनासिब यही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब सही आदमी के लिए ,
क्या मुनासिब नहीं आदमी के लिए।

**********           **************
कविता
मैं
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद ( मेरा नाम भी भगवान शिव का पर्यायवाची है )


बना हूं नूर मैं
जमीं और सितारों में ,
मेरा भी नाम गिना
जाता तीन सवारों में।

हूं मैं सब्ज रंग
इन सभी बहारों में ,
काला व श्याम हूं
मैं सभी सियरों में ।

गंध में सुगंध हूं
मैं सभी गुलाबों में ,
शाह शहंशाह हूं
मैं सभी गुलामों में ।

हुस्न की दुकान हूं
प्यार और दुलारो में ,
रौनके अरमान हूं
मैं सभी बाजारों में ,
मेरा भी नाम गिना
जाता तीन सवारों में ।

मधुर मनोहर हूं
मैं सभी सुहागों में ,
साहस व आशा हूं
मैं सभी अभागों में ।

रंग और गुलाल हूं
मैं सभी नजारों में ,
हूरों की हीर हूं
मैं सभी उजाड़ो में ।

  रेखा लकीर हूं
मैं सभी कुभागों में ,
व्यक्त हूं अव्यक्त हूं
मैं सभी भागों में ।

आजाद हिंद फौज हूं
मैं सभी कतारों में ,
नदी का नीर हूं
मैं सभी कगारो में ।

मेरा भी नाम गिना
जाता तीन सवारों में ,
बना हूं नूर मैं
जमीं और सितारों में ।

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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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