गुरुवार, 21 जुलाई 2022

पैसा ( भाग 4 )

पैसा अगर खरा है, सबकुछ संवारा है,
पैसा गर खोटा है सबकुछ छोटा है।


कविता
पैसा ( भाग 4 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

( एक बार स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने पैसा पर कहा था -
टका धर्म: टका कर्म: टका हि परमं पदम्,
यस्य गृहे टका नास्ति हा टका टकटकायते।

कविवर गिरधर अपनी कुंडलियां कविता में लिखते हैं -
साईं इस संसार में मतलब का व्यवहार,
जबतक पैसा हाथ में तबतक ताके यार,
तबतक ताके यार यार संगहि संग डोले,
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोले )

पैसा

जितनी सुंदरता है,जितनी सज्जनता है,
जितनी मानवता है ,जितनी दानवता है,
इसका ही अनुचर हैं , इसका ही सहचर है ,
इसकी ही चेटी है ,इसकी ही बेटी है ।

पैसा चमेली है, पैसा हथेली है,
पैसा पहेली है, पैसा सहेली है,
मन का मनोरथ तू ,सबसे सहोदर तू ,
माया मनोहर तू , धनी धरोहर तू ।

देव देवालय तू , विद्या विद्यालय तू ,
हिम हिमालय तू ,मेघ मेघालय तू ,
तू है इकाई में, तू है दहाई में ,
तू ही सैकड़ा में , तू है सवाई में ।

तू ही खटाई में , तू ही मिठाई में ,
तू ही दवाई में , तू ही विदाई में ,
खपड़ा खपरैल तू , जिन्न और चुड़ैल तू ,
गाय और बैल तू ,हाथों का मैल तू ।

तू ही वियोगी है , साधु है योगी है ,
नफरत वह घृणा भी , फिर भी उपयोगी है ,
तू ही बिरंचि है , तू ही प्रपंची है ,
तू ही प्रदीप्ति है , तुमसे ही तृप्ति है ।

पैसा है खेल में , पैसा है मेल में ,
मानव परिश्रम में , पैसा है तेल में ,
राग और रागिनी तू , जोग और जोगनी तू ,
काली कालिंदी तू , इंदु और बिंदु  तू ।

मुस्लिम और हिंदू तू , सागर और सिंधु तू ,
भ्राता और बंधु तू , स्वयं स्वयंभू तू ,
रस अलंकार तू , कला कलाकार तू ,
स्वर्ण स्वर्णकार तू , अहं अहंकार तू ।

गीत गीतकार तू , हाथ हथियार तू ,
भूख व आहार तू , विरह बिहार तू ,
श्री सिंगार तू , देश सरकार तू ,
शिल्प शिल्पकार तू , भाग्य व लिलार तू ।

लोहा लोहार तू , युद्ध ललकार तू ,
कलम तलवार तू , असर असरदार तू ,
फल फलाहार तू , प्रहरी प्रहार तू ,
द्वार प्रतिहार तू , प्रीत प्रतिकार तू।

झूठा आडंबर तू , नंगा दिगांबर तू ,
पीला पीतांबर तू , श्वेत  श्वेतांबर तू ,


ठकुर सुहाती तू ,
नाता व नाती तू ,
घोड़ा व हाथी तू ,
असमय में साथी तू,
तेरा अकाल जहां
ठनठन गोपाल वहां,
तेरा कमाल जहां
बाजे करताल वहां।.

लोक परलोक तू , खुशी और शोक तू,
खुदरा और थोक तू, कोष और कोप तू ,
चना चबेना तू , दूध व छेना तू ,
बेंत और बेना तू , लेना और देना तू ।

कुष्ठ का निदान तू , क्षत्रिय अभियान तू ,
अत्रि का ध्यान तू, लक्ष्मण स्वाभिमान तू,
पेडा और लड्डू तू , साग और कद्दू तू,
बेल और बूटा तू, सत्तू और भुट्टा तू।

अंडज और इंगला तू, पिंडज और पिंगला तू ,
शून्य निराकार तू , सदा सकार तू ,
तेरी सुंदरता है फूलों के बागों में,
खुशबू तुम्हारी है गुलशन के ख्वाबों में।

काला कलूटा को
सुंदर बनाता तू,
लंगड़ा व लूल्ला को
हिम्मत दिलाता तू ,
कोढ़ी की काया व
अंधा की आंखें तू ,
गूंगा की बोली व
बहरा की बातें तू।

तेरा जन्म ने है लाई सभ्यता को,
तेरी जवानी खिलाई मनुजता को ,
तेरा दुरात्मा तहलका मचाया है,
तेरी ही मदिरा से जन पगलाया है।

दुनिया में करतब तुम्हारे ही कारण है,
विधि विधान सब तेरे ही चारण है ,
लिखे कहानी कौन तेरे गुणगान की ,
नस नस में तू ही है जग व जहान की।

पैसा से खून कर,
पैसा दे शून्य कर,
पैसा नहीं जेल है,
पैसा है बेल है,
पैसा के कारण से
जीवन में रस है,
पैसा के कारण ही
जीवन सरस है।

*********क्रमशः***********

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
Mobile  6201400759

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बुधवार, 20 जुलाई 2022

पैसा ( भाग 3 )

पैसा अगर खरा है, सबकुछ संवारा है,
पैसा गर खोटा है, सबकुछ छोटा है।

कविता
पैसा ( भाग 3 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

( एक बार स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने पैसा पर कहा था -
टका धर्म: टका कर्म: टका हि परमं पदम्,
यस्य गृहे टका नास्ति हा टका टकटकायते।

कविवर गिरधर अपनी कुंडलियां कविता में लिखते हैं -
साईं इस संसार में मतलब का व्यवहार,
जबतक पैसा गांठ में तबतक ताके यार,
तबतक ताके यार यार संगहि संग डोले,
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोले। )

पैसा

पैसा भुजंग है, पैसा ही जंग है,
पैसा है संग है, नहीं है तंग है,
पैसा से रंग है , नहीं तो बेरंग है,
पैसा खुदाई है, पैसा जुदाई है।

पैसा बधाई है, पैसा हरजाई है,
पैसा जलाता है, पैसा बुलाता है,
पैसा भगाता है, पैसा खटाता है,
पैसा उठाता है, पैसा बिठाता है।

पैसा जंजाल है, नहीं है कंगाल है,
पैसा कठिनता है, पैसा से भिन्नता है,
नहीं है दीनता है, प्यार और खिन्नता है,
पैसा पुरातन से , पैसा सनातन से।

पैसा है बातों से, शादी कर खातून से,
पैसा हिसाब से, पैसा किताब से,
पैसा है ब्याज से, पैसा अनाज से,
पैसा संगीत से , पैसा है गीत से।

पैसा जुआरी का , पैसा मदारी का ,
पैसा बिहारी का , होता जोगाड़ी का ,
पैसा बरात है, नहीं जन्मजात है ,
पैसा मुसमात है , रहने पर तात है।

पैसा से नूर है, पैसा से हूर है,
इससे जो दूर है, लंपट लंगूर है,
पैसा व्यापार से, पैसा व्यवहार से,
पैसा सरकार से, पैसा बेगार से।

पैसा जुटाओ तुम, नंबर मिलाओ तुम,
थाक लगाओ तुम, बात न बनाओ तुम,
वह जो कंगाल है, श्वेत जिसका बाल है,
चिपका सा गाल है , बुरा सा हाल है।

पैसा चमकाएगा, ज्योति ले आएगा,
मोटा बनाएगा, दुर्दिन हटाएगा,
पैसा यदि पास नहीं, जीवन की आस नहीं,
पैसा दौड़ाएगा तन में गर सांस नहीं।

शिशु का पालक है , पैसा से बालक है,
नदी का नीर है, द्रौपदी का चीर है,
गड़बड़ घोटाला क्यों, पैसा का हल्ला क्यों ?
ढोलक पर आल्हा क्यों, रास का रसाला क्यों ?

विश्व संचालक क्या, जगत को पालक क्या ?
मानव आकर्षण क्या, जन-मन के दर्पण क्या?
श्रम के सार क्या, तन के आहार क्या ?
पत्नी के प्यार क्या, माता दुलार क्या ?

निर्धन की आशा क्या, पर्व चौमासा क्या ?
चमचा जुहार क्या, सावन फुहार क्या ?
हवा में उड़े कौन, शिखर को छुए कौन ?
मंद मुस्काए कौन, मीठ गीत गाए कौन ?

मेनका की आभा में, साड़ी के धागा में,
उर्वशी रम्भा में , चोटी में कंघा में,
सीपी के मोती में, साधु लंगोटी में,
खेलों की गोटी में, हीरा की ज्योति में।

सोना और चांदी में, सूती और खादी में,
साहब शहजादी में , अन्न और आबादी में,
रत्न और लाल में, साहू के माल में,
रंग और गुलाल में, टका टकसाल में।

राजा और रानी में, धनी मनी प्राणी में,
रूप की जवानी में, धातु कहानी में,
नाच और बाजा में, मीठा और खाजा में,
गहनों की धागा में, बड़ी बड़ी सभा में।

पैसा ही नाज है, पैसा ही बाज है,
पैसा का राज्य है, पैसा सरताज है,
पैसा की ताकत से मौसम बदलता है,
पैसा की ताकत से ह्रदय मचलता है।

पैसा की ताकत से हांडी बदलती है,
पैसा की ताकत से बुद्धि भी चलती है,
पैसा की ताकत से साधु फिसलता है,
पैसा की ताकत से कपटी उछलता है।

पैसा की गर्मी से निर्बल कड़कता है,
पैसा के कारण कलेजा धड़कता है,
पैसा के आने से सोना चमकता है,
पैसा के जाने से सबकुछ अटकता है।

बुद्धि की बातें भी लक्ष्मी सजाती है,
पैसा की कमी कवित्व भी सुखाती है,
पैसा की मंदी से वेग रुक जाता है ,
पैसा का आश्रय आवेग को बढ़ाता है।

पैसा का करतब जयंती सजाता है,
पैसा का महत महंती बनाता है ,
पैसा का भेदन अचूक कहा जाता है,
पैसा का छेदन संहार मचा जाता है।

पैसा का जोश यदि नाक काट डाला है,
पैसा का नोक उसे पुनः बिठा डाला है,
पैसा के मोद से खोभार महक जाता है,
पैसा के योग से आभार चहक जाता है।

पैसा से जितना तू , घृणा कर उतना तू ,
यही एक शक्ति है, जिसपर सबकी भक्ति है,
इसके आकर्षण से , इसके ही घर्षण से,
जगत मचलता है, धावक बन चलता है।

************* क्रमशः ******************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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बुधवार, 13 जुलाई 2022

पैसा ( भाग 2 )

पैसा अगर खरा है, सबकुछ संवारा है,
पैसा गर खोटा है, सब कुछ छोटा है।

कविता
पैसा ( भाग 2 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

( पैसा पर स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने कहा था-
टका धर्म: टका कर्म: टका हि परमं पदम् ,
यस्य गृहे टका नास्ति हा टका टकटकायते

कवि गिरधर अपनी कुंडलियां कविता में लिखते हैं-
साईं इस संसार में मतलब का व्यवहार,
जबतक पैसा हाथ में तबतक ताके यार,
तबतक ताके यार यार संगहि संग बोले,
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोले। )


पैसा 

पैसा अमोद है, पैसा प्रमोद है,
प्रमोद में मिठास है, मिठास से हास्य है,
हास्य में हुड़दंग है, हुड़दंग में हो हल्ला है ,
हल्ला में जोश है, बिना पैसा खामोश है।

पैसा से अन्न है, अन्न से जन है,
जन में मन है , मन में तरंग है,
तरंग में उमंग है, उमंग में विकास है,
ज्यादा उमंग हो तो इससे भी नाश है।

पैसा जवानी है , जवानी दीवानी है,
दीवानी में हानि है , फिर भी सुहानी है,
सुहानी नशीली है, नशीली लाल-पीली है,
लाल उकसाता है, पीला जिलाता है।

पैसा रंगीला है, पैसा छबीला है,
पैसा जोशीला है , नहीं है तो ढीला है,
पैसा दिखाओ मत , जी ललचाओ मत ,
डाकु आ जाएंगे, लूट ले जाएंगे।

पैसा के पैर नहीं ,
करता है सैर कहीं,
लोगों का चैन छीन,
करता बेचैन कहीं,
पैसा हमारा नहीं,
पैसा तुम्हारा नहीं,
कर्मठ जो जितना है,
पाया वह उतना है।

दिल को जलाओ मत , पलकें झुकाओ मत ,
हाथ उठाओ अब , पंजा लगाओ अब,
पैसा मिल जाएगा, स्वर्ग ले आएगा,
चेहरा सजाएगा, स्वाद चखाएगा।

पैसा व्यवस्था है , व्यवस्था बुद्धि से है ,
पैसा की रक्षा पैसा वृद्धि से है ,
पैसा देशाटन है, पैसा तीर्थाटन है,
देशाटन में ज्ञान है, सिर्फ पैसा निदान है।

पैसा से खेती है, खेती से अन्न है,
अन्न से धन है, अन्न से जन है,
जन में किसान है, जन में इंसान है,
जन में बेइमान है, जन में हैवान है।

सबका आधार यह , सबका बहार यह,
जन जन का प्यार यह , द्वेष तकरार यह,
आता है जाता है , जी ललचाता है,
आंख मिचौली का खेल दिखलाता है।

पैसा सुनहला है, पैसा दुपहला है,
पैसा चौकोना है, पैसा छः कोना है,
पैसा है कागज का , पैसा है धातु का ,
पैसा चमत्कारी है , पैसा सरकारी है।

पैसा लड़ाता है, पैसा नाचाता है,
पैसा गिराता है, पैसा उठाता है,
मन को उड़ाओ मत , खर्चा बढ़ाओ मत ,
फिजुल खर्च कर पैसा उड़ाओ मत।

पैसा कोलाहल है , पैसा हलाहल है,
पैसा घोटाला है , सफेद और काला है,
बड़े बड़े का ईमान डोला जाता है,
कभी कभी साधु को चोर बना जाता है।

पैसा पाठशाला है, पैसा चित्रशाला है,
पैसा जोशीला है, धनिकों का कीला है,
पैसा डील डौल है, पैसा सुडौल है,
पैसा है मौल है, पैसा है कौल है।

पैसा से तौल है , पैसा से धौल है,
पैसा सर्वभौम है, जहां नहीं मौन है,
पैसा मतवाला है, पैसा निराला है,
पैसा से नाक है, पैसा से गांठ है ।

पैसा पे कान दे , पैसा पे ध्यान दे,
पैसा पे लगाम दे , पैसा को मान दे,
पैसा से घात है, पैसा ही तात है।

पैसा से गति है, पैसा ही मति है,
पैसा ही नीति है, पैसा सुमति है,
पैसा बहार है, पैसा है प्यार है,
द्वेष का भंडार है , पैसा है यार है।

पैसा है गुलशन है, दुल्हा है दुल्हन है,
पैसा है दुश्मन है, नहीं है शून्य मन है,
पैसा ही सोच है, पैसा है कोच है,
जिनके ए पास नहीं वहां अफसोस है।

विकास का यह केन्द्र है, राजाओं में देवेन्द्र है,
पृथ्वी पर महेंद्र है, योद्धाओं में जितेंद्र है,
देवों में महेश, ज्योतिओं में दिनेश है,
सिद्धिदाता गणेश है , पैसा विशेष है।

पुस्तक में सुवेद है, भेदों में विभेद है,
इससे मतभेद है, पाते वे खेद हैं ,
चाहे पुराण हो , चाहें कुरान हो ,
पैसा नहीं है तो सबकुछ बेजान हो।

पैसा है वाहन है, पैसा है सावन है,
पैसा ही रावन है , पैसा मनभावन है,
हाथ में पैसा गर आनंदित छुट्टी है,
पैसा नहीं है तो छुट्टी से कुट्टी है।

पैसा है ताली है, पैसा है डाली है,
डाली की जाली से कार्य सफल होता है,
डाली नहीं है तो कार्य विफल होता है।
पैसा से कानन है, पैसा ही आनन है।

पैसा ही शिष्ट है , पैसा क्लिष्ट है,
पैसा नरोत्तम है, पैसा सर्वोत्तम है,
पैसा कालांतर है, पैसा समयांतर है,
लोभ और मोह है, अद्भुत आडंबर है।

********** क्रमशः ***************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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मंगलवार, 12 जुलाई 2022

चाणक्य नीति काव्यानुवाद ( अध्याय 1 )

 

चाणक्य नीति का रचनाकार महर्षि चाणक्य 



               चाणक्य नीति

                अध्याय - १

                  काव्यानुवाद

 रचनाकार -इन्जीनियर पशुपति नाथ प्रसाद


                         अध्याय - 1

करता नमन मैं विष्णु प्रभु को ,

सिर मैं झुकाता हूँ त्रिलोकी को ।

राजनीति बतलाता हूँ भू को ,

उद्धृत है सब शास्त्रों से जो ।


योग्य-अयोग्य शुभाशुभ कर्म में ,

शास्त्र ज्ञान से अंतर पाये ।

अर्थशास्त्र का ज्ञान हो जिनको ,

उत्तम नर में गिना जाये ।


लोक भलाई जिसमें है वह बात कहूँगा ,

समझ जिसे मूरख नर भी सर्वज्ञ कहाये ।

जिस कुपात्र के गर्दन पर गर सिर नहीं है ,

ज्ञान कहाँ से उसके सिर में जमने पाये ।


मूरख को उपदेश न देते ,

दुष्टों को नहीं पालन पोषण ।

नहीं साथ रहते दुष्ट के ,

अपनाते ये पंडित सा जन ।


भार्या दुष्टा , शठ से यारी ,

नौकर नकचढा हो जिनका ।

बसता घर में सर्फ जहाँ पे ,

मरा हुआ जीवन है उनका ।


धन का संग्रह बहुत जरूरी ,

अति दुर्दिन में करता रक्षा ।

धन से बढकर त्रिया रक्षा ,

सर्वोत्तम है आत्म सुरक्षा ।


बड़े 2 के पास भी आपत्ति आ जाती है ,

लक्ष्मी तजती , संचित धन भी नष्ट हो जाये ।

अजब विरंची की माया यह सब कुछ करती ,

दुर्दिन हेतु अत: हमेशा धन को बचायें ।


जहाँ निरादर , न जीविका हो ,

न लाभ विद्या , न भाई -बंधु ।

वहाँ कदापि क्षण नहीं रहना ,

रहना नहीं जन , रहना नहीं तू ।


जहाँ न राजा , न वैद्य  सरिता ,

विप्र नहीं वेदपाठी जहाँ पे ।

धनी नहीं जन , जहाँ न ये सब ,

एक दिवस नहीं रहना वहाँ पे ।


न परलोक का भय , नहीं लज्जा ,

नहीं त्याग , सम्मान नहीं है ।

नहीं राजभय , नहीं शीतलता ,

बसने योग्य स्थान नहीं है ।


दुख में परखें भाई -बंधु ,

सेवक सेवा के आने पर ।

संकट में हो मित्र परीक्षा ,

पत्नि वैभव के जाने पर ।


बंघु वही जो साथ निभाये ,

दुख में आतुर जब होता मन ।

श्मशान , दुर्भिक्ष इत्यादि ,

संकट जब रचते शत्रु जन ।

संकट आये राजाकृत ,

बने सहायक वही मित्र ।


जो निश्चित को छोड़ जगत में ,

अनिश्चित की ओर दौड़ता ।

निश्चित बन जाता अनिश्चित ,

अनिश्चित कब का है निश्चित ।


कुरूपा गुणी कन्या संग ,

ब्याह अगर हो वह सर्वोत्तम ।

नीच अवगुणी सुरूपा संग ,

ब्याह कभी भी न है उत्तम ।


त्रिया , राजकुल के लोगों पर ,

नदी , शस्त्र जो रखता है जन ।

नख-सींग वाले जीवों पर ,

कभी न आस्था रखना हे जन !


विष से अमृत , नीच से विद्या  ,

अगर मिले यह भी है उत्तम ।

सोना भी अशुद्ध जगह का ,

ले लेना नीति सर्वोत्तम ।

दुष्ट कुल की त्रिया रत्न भी ,

अपनाने में पाप नहीं है ।

विद्यायुक्त कुशल नारी को ,

अपनाने में शाप नहीं है ।


भोजन दूना करती नारी है पुरुषों से ,

लज्जा चौगुनी , साहस छ: गुना होता ।

बाहर से उनकी आँखों में काम न दिखता ,

काम का वेग मगर उनमें अठगुना होता ।


नोट : - पूरा चाणक्य नीति काव्यानुवाद पढ़ने के लिए वाट्सएप 919351904104 पर संपर्क करें। या http://Www.nayigoonj.com पर क्लिक करें।


          ** समाप्त **


  

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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सोमवार, 11 जुलाई 2022

पैसा ( भाग 1 )

पैसा अगर खरा है, सब कुछ संवारा है,
पैसा गर खोटा है, सब कुछ छोटा है।


कविता
पैसा ( भाग 1 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

( पैसा पर स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने कहा था -
टका धर्म: टका कर्म; टका हि परमं पदम् ,
यस्य गृहे टका नास्ति हा टका टकटकायते।

कवि गिरधर अपनी कुंडलियां कविता में लिखते हैं-
सांई इस संसार में मतलब का व्यवहार,
जबतक पैसा हाथ में तबतक ताके यार,
तबतक ताके यार यार संगहि संग डोले,
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोले।  )

पैसा अगर खरा है ,
सब कुछ संवारा है,
पैसा गर खोटा है,
सब कुछ छोटा है।

पैसा देशांतर है ,
पैसा विभवांतर है ,
पैसा समानांतर है ,
पैसा युगांतर है ।

पैसा से ज्योति है ,
पैसा है मोती है ,
पैसा में आशा है ,
नहीं तो निराशा है।

पैसा से रिश्ता है,
पैसा में पिश्ता है ,
पैसा है भाई है ,
पैसा ही माई है ।

पैसा ही पिता है ,
पत्नी भी सीता है ,
पैसा है बेटा है ,
नहीं तो नेता है ।

पैसा अटारी है ,
नहीं तो भिखारी है ,
पैसा जमाना है ,
इससे जनाना है ।

पैसा में गाना है ,
पैसा बजाना है ,
पैसा से गीत है ,
पैसा संगीत है ।

पैसा उजाला है,
पैसा में ज्वाला है ,
पैसा सुबाला है,
पैसा रखवाला है।

जितना सोचता हूं
उलझता ही चला जाता हूं,
लोगों की बातों में
क्यों उलझ जाता हूं ?

करें वही जो
दिल की फरमाइश हो,
दुनिया की चीख पर
चीख क्यों मचाता हूं।

चमचम के लालच में
बीत गए दिन सारे,
चोरों की आदत को
श्रेष्ठ माने जाता हूं।

गैरों बेगैरों ,
बेगैरों और गैरों में ,
अपने जीवन को
क्यों दाव पर चढ़ता हूं?

झूठा तो झूठा है,
उससे वफ़ा ही क्या ?
मृग मरीचिका में
आंसू बहाता हूं।

दूध की मक्खी को
फेकें अब नाली में,
पैरों को रखें
सफलता की थाली में।

छिन्न भिन्न कर दें
ज़माने की जाली को ,
पैसा से उसने
बजवाया है ताली को ।

पैसा है पावर और पैसा है ताकत,
युग युग से यही रिवाज चला आया है,
पैसा है अपना और पैसा बेगाना भी ,
पैसा है सबकुछ रह राज चला आया है।

पैसा है जीवन और पैसा है सत्ता भी,
पर पैसा से शबनम की रीत नहीं आयी है,
पैसा ले आए तराना ग़ज़ल में,
पर पैसा से जीवन में जीत नहीं आयी है।

शबनम की रिश्ता है मन के तरंगों से,
शबनम की रिश्ता है सूरज की किरणों से,
शबनम में लाली है, शबनम में चमचम है,
शबनम में शांति है , शबनम में कांति है।

शबनम को तोड़ो मत ,
पर पैसा भी छोड़ो मत ,
पहला से मन है,
दूसरा से तन है।

पैसा से धर्म है,
पैसा से कर्म है,
पैसा ही मर्म है,
पैसा ही शर्म है।

पैसा से ठेला है,
पैसा है केला है ,
पैसा है मेला है,
पैसा अकेला है।

पैसा है भक्ति है,
पैसा में शक्ति है,
पैसा से रेल है,
पैसा अमेल है।

पैसा है खाना है ,
पैसा खजाना है ,
पैसा अरमान है,
पैसा है दान है।

पैसा से जान है,
पैसा है मान है,
पैसा अभिमान है,
पैसा है शान है।

पैसा से गाड़ी है,
पैसा से साड़ी है ,
साड़ी है नारी है,
पैसा है प्यारी है।

पैसा सुगंधी है,
पैसा है मंडी है,
पैसा ही नन्दी है,
पैसा ही चंडी है।

पैसा से रूप है,
पैसा कुरूप है ,
पैसा से क्रांति है,
पैसा में भ्रांति है।

पैसा से शांति है, पैसा में कांति है,
पैसा में आभा है, पैसा ही प्रभा है,
पैसा है होली है, होली ठिठोली है,
पैसा में बोली है, पैसा से गोली है।

पैसा है स्वाद है , नहीं है खाद है,
पैसा आबाद है, नहीं है बर्बाद है,
पैसा से किताब है, किताब में ख्वाब है,
ख्वाब में कवि है , कवि में रवि है।

रवि है प्रकाश है, प्रकाश है आकाश है,
आकाश में वायु है , वायु से आयु है ,
पैसा से तन है , तन में मन है,
पैसा है मन है, मन से जीवन है।

पैसा नहीं रात है, पैसा है बात है,
पैसा है जात है, नहीं है लात है।
पैसा नहीं मात है, पैसा है साथ है,
पैसा है साख है, साख है क्या बात है।

पैसा से विज्ञान है, पैसा से ज्ञान है,
ज्ञानी महान् है , महान् का नाम है,
नाम ही अमरत्व है, अमरत्व का महत्व है,
पैसा है संभव ए , नहीं तो असंभव ए।

************** क्रमशः *******************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
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शनिवार, 2 जुलाई 2022

आदमी ( भाग 4 )

अनुसंधानशाला से आदमी भाग 4 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कविता
आदमी ( भाग 4 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

जहां बसती सुमति रमती रमा वहां,
जहां बसती कुमति बुझे शमा वहां।
जहां एकता का राज
घर हरदम बहाल,
जहां धूर्त चालाक
घर हरदम बेहाल।
जहां ढंग है बेढंग वहां हरदम अकाल ,
मूर्ख त्रिया जहां बसे नर कंकाल।


घर कलह भरा बसे भूत बैताल,
जहां त्रिया कलंक वहां हरदम सवाल।
जहां पूत है कुपूत
वहां हरदम मलाल,
इनकी काया की कालिख
बुझाए मसाल।
जहां कुटिल अनुज वहां उपजे भुजंग,
ऐसे भ्राता मचाते हैं हुल्लड़ हुड़दंग।


जहां पिता कुटिल घर ढूंढे पताल,
जिनकी माता कुटिल उनका जीवन जंजाल।
जिनकी भार्या फ़ूहड़
उनका जीवन हराम ,
जिनके कुटुंब कराल
नहीं वहां आराम।
जिनकी भार्या सुघड़ उनका ज्योति का घर,
जिनका बेटा कुशल मोद मारे लहर।


भारती जैसी मां उनका जीवन अमर,
जमदग्नि पिता पुत्र ढाए कहर।
जिनके भाई भरत
उन्हें चिंता नहीं,
जहां भाई विभीषण हैं
चिंता वहीं।
लक्ष्मण सा सखा वो रहते सबल,
हनुमत सा सुसंग वहां दिग्गज का बल।


जहां शिशु सुसंग वहां बाजे मृदंग,
जहां बूढ़ा जरज वहां दुखद प्रसंग।
जहां तरुणी तरंग
वहां ठुमरी के रंग,
जहां तरुण उमंग
वहां तरुणी प्रसंग।
जहां धन का अभाव वहां मिटता सुभाव,
जहां मिटता सुभाव वहां बढ़ता कुभाव।


जहां बढ़ता कुभाव मिटता आदमी,
जहां मिटता मनुज डूबता आदमी।
यह है किस्सा समाजिक
सुनो आदमी,
खुद अपने को परखो
गुनो आदमी।
इस भू पर ही स्वर्ग व पताल आदमी,
तजो काला कलह का सवाल आदमी।


वश अपने कर्म पर सिर्फ आदमी,
फल इसका न वश में सुनो आदमी।
काम करते अगर हो
सही आदमी,
फल मिलता है इसका
नहीं आदमी।
क्रम गड़बड़ कर्म का कहीं आदमी,
इसे करता सही जो वही आदमी।


फल फिर भी न मिले सही आदमी,
कर्म लाखों करोड़ों यहीं आदमी।
छोड़ पहले से हो जा
बिलग आदमी,
छोड़ पहले से होओ
अलग आदमी।
कर्म शक्ति मुताबिक चुनो आदमी,
फल पाओगे निश्चित सुनो आदमी।


यह जीवन का चरम रहस्य आदमी,
याद रखना हमेशा विवश आदमी।
सत्य सचमुच समझना
गहन आदमी,
कर्म ही सत्य सबका
कथन आदमी।
कर्म छोड़ कर जो करता भजन आदमी,
कृष्ण कहते हैं नर में अधम आदमी।


कर्म भू पर अनेकों सुनो आदमी,
अपने मन के मुताबिक चुनो आदमी।
कर्म हीनता बनाती
गलत आदमी,
कर्मठता ही लाती है
यश आदमी।
क्लांत मन न समझता असल आदमी,
क्लांत मन से है निर्णय गलत आदमी।


छेड़ मन के तरंग बन सुसंग आदमी,
छेड़ मन के भुजंग मत कुसंग आदमी।
मन की तृप्ति पर गाए
ग़ज़ल आदमी,
मन के खातिर बनाए
महल आदमी।
मन से पैदा है होता कलह आदमी,
मन सुलगा तो लाए प्रलय आदमी।


मन हुलसा तो होती सुलह आदमी,
मन के कारण से आंखें सजल आदमी।
मन कारण ही बनता
असल आदमी,
मन कारण ही करता
नकल आदमी।
मन नाचे तो लाए लहर आदमी,
मन में छाए जहर तो कहर आदमी।


ताल लय सुर है मन का उमंग आदमी,
मनोरंजन उदासी से जंग आदमी।
काव्य मन में है भरता
तरंग आदमी,
काव्य मन का जोशीला है
भंग आदमी।
मन तन का अदृश्य एक अंग आदमी,
यह गिरगिट सा बदले रंग आदमी।


मन पर रखता नियंत्रण विरल आदमी,
मन में मैला लगाए गिरल आदमी।
रंग मन का है कैसा
पूछो आदमी ?
रूप मन का है कैसा
सुनो आदमी ?
मन का कैसा बदन है सुनो आदमी ?
मन बसता कहां है सुनो आदमी ?


जैसे नभवाणी ग्राहक हैं यंत्र आदमी,
वैसे मस्तक के तंत्रों में मन आदमी।
प्रकृति तरंगों से
मन आदमी,
ज्ञानेन्द्रिया बनाती है
मन आदमी।
आंख कान नाक मुंह व चर्म आदमी,
प्रतिपल ए पकड़ते तरंग आदमी।
( नभवाणी ग्राहक यंत्र = रेडियो/Radio  )


इसको मस्तक बनाता है मन आदमी,
जैसा होता तरंग वैसा मन आदमी।
मन उपजाता है
कर्म आदमी,
और कर्म फिर बनाता है
मन आदमी।
ज्ञान मन और कर्म का  पुल आदमी,
इस पुल से सुधरता है भूल आदमी।


मन कर्म को जोड़ता यह पुल आदमी,
इस पुल से है जीवन का मूल आदमी।
जिनमें नहीं यह
पुल आदमी,
मन उनका बना है
शूल आदमी।
यह शूल छेदता उनका मूल आदमी,
मूल खोने पर मिलती धूल आदमी।


जीवन का मूल यही पुल आदमी,
सभी भूल को सुधारे ए पुल आदमी।
विद्या इस पुल का है
जड़ आदमी,
बुद्धि से बनता है
धड़ आदमी।
पुस्तक इस जड़ का है मूल आदमी,
चिंतन इस पुस्तक का मूल आदमी।


मन पानी के जैसा तरल आदमी,
ज्ञान हरता है इसका गरल आदमी।
कर्म इसको बनाता
सरल आदमी,
शठता इसमें भरती
गरल आदमी।
शुभ्र इसको बनाती बुद्धि आदमी,
धार इस पर चढ़ाती शुद्धि आदमी।


विद्या से आता संयम आदमी,
विचलना ही इसका धर्म आदमी।
मन के विचलन से होता
पतन आदमी,
इस पर रखे नियंत्रण
रतन आदमी।
राह खुद ही बनाए समय आदमी,
राह खुद ही सिखाए समय आदमी।


राह खुद ही मिटाए समय आदमी,
राह खुद ही भूलाए समय आदमी।
सोता जगत पर समय
नहीं सोता,
समय के कारण से
सब कुछ होता।
पहचाना समय वह सफल आदमी,
जो भटक गए वो विफल आदमी।


************ समाप्त ********************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

आदमी ( भाग 3 )

अनुसंधानशाला से आदमी भाग 3 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद 


कविता
आदमी ( भाग 3 ) 
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कुछ संगत बनाती सफल आदमी,
कुछ संगत बनाती असल आदमी।
चारु संगत बनाती
अभयआदमी ,
चारु संगत दिलाती है
जय आदमी।
दुष्ट संगत से होता है क्षय आदमी ,
दुष्ट संगत से होता है भय आदमी।


दुष्ट संगत बनती गिरल आदमी,
दुष्ट संगत से लड़ता विरल आदमी।
दुष्ट संगत समाज का
कोढ़ आदमी ,
चारु संगत है इसका
तोड़ आदमी। 
दुष्ट संगत में जाते गिरल आदमी,
चारु संगत सजाते विरल आदमी।


चारु संगत बड़ा ही विरल आदमी,
खोज पाते केवल हैं असल आदमी।
दुष्ट संगत बड़ा ही
सरल आदमी,
जो पाते हैं बनते
गिरल आदमी।
दुष्ट संगत से बचना धर्म आदमी,
धर्म कहता यही है कर्म आदमी।


शठता ही मनुज में शर्म आदमी ,
शठ कारण ही होता भ्रम आदमी।
शठ संगत जगत का
नर्क आदमी,
पाया उसका बेड़ा है
ग़र्क आदमी।
शठ हरदम उगलता गरल आदमी,
शठ हरदम निगलता मरल आदमी।


शठ देखने में लगता सरल आदमी,
शठ अपने को कहता विरल आदमी।
शठ हरदम तलाशे
सरल आदमी,
शठ पर चाबुक लगाए
असल आदमी।
शठ करता है हरदम नकल आदमी,
शठ नाशे मनुज का अक्ल आदमी।


शठता दुष्टता की बहन आदमी,
जनति ए हमेशा जलन आदमी।
दुष्ट कहता है शठ का
अनुज आदमी,
ए दोनो ही खाएं
मनुज आदमी।
विषधर से भयंकर यही आदमी ,
अपनी बुद्धि से बचता सही आदमी।


शठ कारण ही बनता नियम आदमी ,
डंड डर से ही शठ है विनय आदमी।
सभी पूछते हैं शठ है
कौन आदमी ?
मैं तुम या वह जो
मौन आदमी ।
शठ हर युग में होते अलग आदमी ,
जिन्हें देखते ही मुड़े बगल आदमी।


कर्म जिनके उठाए कसक आदमी ,
कर्म जिनके बनाए नर्क आदमी।
मन जिनसे जाए
कड़क आदमी ,
मन जिनसे जाए
भड़क आदमी।
देखते मन में उठे तड़क आदमी,
देखते मन में उठे हड़क आदमी।


सभी तन के अंदर युगल आदमी,
शठ में शठता है ज्यादा उगल आदमी।
जिनके कर्मों को करता
अमल आदमी,
उनके अंदर सज्जनता
भरल आदमी।
कलियुग में शठ भी सफल आदमी,
पर रहता हमेशा नकल आदमी।


शठ निंदित कलह का कलश आदमी,
शठ जिंदा जगत का निरस आदमी।
शठ तीता करैला का
रस आदमी,
शठ के जाने से होता
सरस आदमी।
शठ की बोली लगाए जलन आदमी,
शठ की चुप्पी से होता लल्लन आदमी।


पर शठ भी है जरूरी आदमी,
वरना कैसे नापाते गुणी आदमी।
जब तक जगत में
रहे आदमी,
शठ होगा हमेशा
नहीं आदमी।
काल कारण बने कुछ कुटिल आदमी,
माल कारण बने कुछ कुटिल आदमी।


हठ कारण बने कुछ कुटिल आदमी,
ठाट कारण बने कुछ कुटिल आदमी।
हाट कुछ को बनाते
कुटिल आदमी,
बाट कुछ को बनाते
कुटिल आदमी।
पाठ कारण बने कुछ कुटिल आदमी,
गांठ कारण बने कुछ कुटिल आदमी।


बात है यह असल शठ कुटिल आदमी,
कर्म इनका बनाए जटिल आदमी।
कर्म सूरज का प्रथम
उदय आदमी,
कर्म यही केवल एक
अभय आदमी।
कर्म रहता सदा यह नियत आदमी।
जग होता कर्म के विवश आदमी।


कर्म यही बनाता दिवस आदमी ,
कर्म यही नियति का रहस्य आदमी।
कर्म यही केवल एक
असल आदमी,
शेष करतब है इसका
नकल आदमी।
कर्म दूसरा धारा का अचल आदमी,
कर्म नियति का केवल असल आदमी।


अस्त सूरज का कर्मों का शेष आदमी,
रात बनता है तब फिर विशेष आदमी।
कर्म बादल का अजब
गजब आदमी,
इस करतब के कारण 
जीवन आदमी।
कर्म वायु के कारण बदन आदमी,
इसके कारण ही शीतल सदन आदमी।


कुछ करतब बनाए मदन आदमी,
कुछ करतब है लाते जलन आदमी।
नित्य नियति सिखाती
सबक आदमी,
काल इसमें सहायक
नियत आदमी।
कर्म खुद ही सिखाए कर्म आदमी,
क्रम खुद ही बनाए कर्म आदमी।


*********  क्रमशः ******************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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मंगलवार, 28 जून 2022

आदमी ( भाग 2 )

अनुसंधानशाला से आदमी भाग 2 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कविता
आदमी ( भाग 2 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

आशियाना बसाते सही आदमी,
तोड़ उसको गिराए नहीं आदमी।
जो कर से कमाएं
मध्यम आदमी ,
जो बुद्धि लड़ाए
उत्तम आदमी ।
जो जी को चुराए अधम आदमी ,
जिनकी कृति अमर सर्वोत्तम आदमी।

नवधारा गिराए यही आदमी ,
नव मानव बनाए यही आदमी।
नवचेतन जगाए
सही आदमी ,
छल को ठेंगा दिखाए
सही आदमी ।
मथ के नदियों के पानी को पौरुष से जो ,
भर दे ज्योति दिशाओं में कर्मठ है वो।

इन पे माथा झुकाता सभी आदमी ,
ए हैं देवों में देव सुनो आदमी।
धैर्य इनमें बहुत है
सुनो आदमी ,
बैर इनको गैर है
सुनो आदमी।
मेरे मन की सहेली यही आदमी ,
खून बनके जिलाते यही आदमी।

बनके ऊर्जा जिलाते यही आदमी ,
मन में हिम्मत बढ़ाते यही आदमी ।
जिनमें है स्वाभिमान
सही आदमी ,
बिना पूछे जो जाए
नहीं आदमी ।
बिना परखे जो करता नहीं आदमी ,
जिसका हिम्मत सखा है वही आदमी।

जिनमें गैरत नहीं है केवल आदमी,
जिनमें हैरत भरा है मरल आदमी।
जाल संकट का काटे
सही आदमी,
जल संकट बिछाए
नहीं आदमी ।
मन की अग्नि बुझाए विरल आदमी ,
मन में अग्नि लगाए गिरल आदमी।

फूल से दामन फंसाते सभी आदमी,
जो है कांटा चबाते वही आदमी।
घनचक्कर में डाले
गिरल आदमी ,
चक्रपाणि कहते
विरल आदमी ।
ब्रह्म पैदा है करता नहीं आदमी,
ब्रह्म करता है पैदा सभी आदमी।

कुछ इनमें से बनते असल आदमी ,
कुछ इनसे बनते नकल आदमी ।
कुछ इनमें से बनते
गिरल आदमी,
कुछ इनमें से बनते
विरल आदमी ।
नहीं जन को बढ़ाओ सिर्फ आदमी ,
उसे शिक्षित बनाओ मूर्ख आदमी ।

किसे  गुरु बनाएं कहो आदमी ,
अपना चिंतन है गुरु सुनो आदमी।
भ्रम करता है पैदा
गिरल आदमी ,
कर्म करता है पैदा
विरल आदमी ।
सब्र खोने से बनता गिरल आदमी ,
सब्र रखता है हरदम विरल आदमी।

धैर्य होने से होता अभयआदमी ,
धैर्य होने से होता अजय आदमी।
धैर्य कारण ही करता
विजय आदमी ,
धैर्य छूटा तो होता है
क्षय आदमी।
धैर्य  अंतिम समय का कठिन आदमी,
धैर्य अंतिम समय का विजय आदमी।

धैर्य करता है मन को निर्भय आदमी,
धैर्य करता है मन को सबल आदमी।
गिरकर मिट जाए
मरल आदमी,
गिरकर टूट जाए
गिरल आदमी ।
गिर कर उठ जाए सरल आदमी ,
टूटकर जुट जाए विरल आदमी।

आंधियों में जो स्थिर अचल आदमी ,
विघ्न जिनको हिलाए विचल आदमी।
घोर गर्जन में अविकल
विरल आदमी,
घोर संकट से विचलित
गिरल आदमी।
काम बुद्धि से करता सफल आदमी,
तर्क लाता अमल में असल आदमी।

बिना सोचे है करता नकल आदमी,
फल पाने पर होता विकल आदमी।
दूसरों पर जो आश्रित
नहीं आदमी,
अपने पर जो आश्रित
वही आदमी।
काम कितना कठिन व विकट आदमी,
जिन्हें लगता सरल व निकट आदमी।

एक दिन वही होते अमर आदमी,
एक दिन वही  बनते अजय आदमी।
कुछ की बातों से होता
तरल आदमी,
कुछ की बोली में होता
गरल आदमी।
कुछ बाहर से होते सरल आदमी,
पर अंदर में रखते गरल आदमी।

कुछ बाहर से दिखते मरल आदमी,
पर अंदर से होते गिरल आदमी।
कुछ बाहर से होते
गरल आदमी,
पर अंदर से होते
सरल आदमी।
कुछ अंदर व बाहर सरल आदमी,
कुछ अंदर व बाहर गरल आदमी।

कुछ होते हैं बिल्कुल मौन आदमी,
कुछ कहना कठिन ए कौन आदमी।
कुछ ऐसे भी होते
सफल आदमी,
जिनके कर्मों को करता
नकल आदमी।
कुछ ऐसे भी होते विफल आदमी,
जिनके कर्मों से रहता अलग आदमी।

कुछ ऐसे भी होते सरल आदमी,
जिनकी संगति बनाती तरल आदमी।
कुछ की संगति में पीता
गरल आदमी,
कुछ की संगति में जीता
मरल आदमी।
कुछ की संगति से मिटता सरल आदमी,
कुछ की संगति से होता विरल आदमी।

***********  क्रमशः ****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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सोमवार, 27 जून 2022

आदमी ( भाग 1 )

अनुसंधानशाला से आदमी भाग 1 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद 

कविता
आदमी ( भाग 1 )
रचनाकार- इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कुछ समझ में न आया  कौन आदमी ?
वकवादी हो अथवा मौन आदमी ।
जिनसे आशा किया ,
वही धोखा दिया ,
कुछ जहर घोलकर ,
कुछ कहर खोल कर ।
मैंने पिया जाहर , बना शिव शंकर ,
बन के रावण में राम , मैंने झेला कहर ।


अब कलम उठा , शब्दवेधी चला ,
करेंगे बयां भिन्न भिन्न जीवन कला ।
आदमी जिंदगी
या जीवन आदमी  ,
बेशर्म आदमी
या हया आदमी ।
धर्म आदमी या कर्म आदमी ,
भ्रम आदमी या मर्म आदमी ।


सुधा आदमी या जहर आदमी ,
धोखा आदमी या लहर आदमी ।
सब मंथन से मुझको
ए आई समझ ,
काम आए समय पर
वही आदमी ।
क्षुधा आदमी या खुदा  आदमी ,
लूटा आदमी जब फूटा आदमी।


जुटा आदमी तब बढ़ा आदमी ,
जब रावण हुआ तब मिटा आदमी ।
मंत्री आदमी
या संत्री आदमी ,
विधि आदमी
या निधि आदमी।
नेताओं को परखा तो आई समझ ,
जिनकी नीति नहीं है वही आदमी।


जहां मूर्ख समाज अनपढ़ आदमी ,
जहां काना राजा अंध सब आदमी।
जहां कर्मठ सभी ,
सब उन्नत आदमी ,
जहां द्वेषी अधिक
अवनत आदमी ।
घर घर में झांका देखा आदमी ,
हर चेहरे को देखा पढ़ा आदमी।


कुछ वस्त्रों में लिपटे सिर्फ आदमी ,
कुछ सजके संवरके बने आदमी ।
कुछ पागल बने
घूमते आदमी ,
कुछ काटे ना मांगे
पानी आदमी ।
कुछ की बोली से शीतल होता आदमी ,
कुछ की बोली पर गोली छोड़े आदमी।


बूढ़ा आदमी या शिशु आदमी ,
बेटा आदमी या बेटी आदमी ।
रोना आदमी
या हंसी आदमी ,
जो है मीठा न खट्टा
वही आदमी ।
सभी पूछते हैं मैं हूं कौन आदमी ?
जो कभी न मरे मैं वही आदमी ।


पंडा आदमी या मुल्ला आदमी ,
या जो ठगकर कमाए वही आदमी।
इस धारा पर आए
बहुत आदमी ,
इस धारा से जाए
बहुत आदमी,
काल खाए रोजना बहुत आदमी,
नाम करता अमर है  सही आदमी।


जिसे जपता तवारीख  सही आदमी,
भू की महत्ता बढ़ाए यही आदमी।
काम छोड़े अधूरा
नहीं आदमी,
काम करता है पूरा
सही आदमी।
काल जिनको नचाए नहीं आदमी,
वक्त जिनको रुलाए नहीं आदमी।


वक्त खुद जो बनाए सही आदमी,
सिर्फ बातें बनाए नहीं आदमी।
गीत गाए खुशी से
सही आदमी,
दुख से आंसू बहाए
नहीं आदमी।
नाज अपना पे जिनको सही आदमी,
जो है दूसरे पे आश्रित नहीं आदमी।


ले कल से जो शिक्षा सही आदमी,
आज पर हाथ जिनका सही आदमी।
आंख परसों पर जिनकी
सही आदमी,
कालदर्शी बने हैं
यही आदमी।
नम्र हृदय है जिनका सही आदमी,
मन पत्थर है जिनका नहीं आदमी।


लेखनी जिनकी तीखी सही आदमी,
शब्द जिनका दे जीवन सही आदमी।
नव जीवन बने जो
वही आदमी,
जो नाशे जीवन को
नहीं आदमी।
अपने करतब को देखो सभी आदमी,
क्या है पाया अभी तक सभी आदमी ?

कम पाए अगर हो सभी आदमी,
कुछ करतब करो अब सभी आदमी।
क्यों दूसरे से जलते
लोभी आदमी,
खुद अपने को परखो
सभी आदमी।
सुंदरता बिछाए सही आदमी,
जो कीचड़ लगाए नहीं आदमी।

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गुरुवार, 23 जून 2022

विचार ( भाग 13 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 13 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


कोटेशन
विचार ( भाग 13 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** मन की गति ( Velocity of mind)
किसी व्यक्ति के लिए यदि स्रवण, स्वाद, स्पर्श, एवं घ्राण स्थिर मान लिया जाए तो मन की गति प्रकाश की तीव्रता ( intensity of light )  पर निर्भर करती है। **

** विषम परिस्थितियों में भी संयम और धैर्य बनाए रखना योग्य पुरुष के लक्षण होते। और यही सफलता का रास्ता भी है। **

** ईश्वर को पेट नहीं होता । इसलिए उसे भोजन की आवश्यकता नहीं होती है। प्रसाद तो भक्त गण अपने लिए चढ़ाते हैं। अगर ईश्वर खाने लगे तो कोई भी प्रसाद नहीं चढ़ाएगा। सभी उसे पेटु कहेंगे।
इसलिए कर्मठ योग्य व्यक्ति को मानव बनना चाहिए। क्योंकि मानव को पेट होता है और पेट के लिए भोजन चाहिए। **

** जो सहायक दोस्त और दुश्मन दोनों में भी बैठे उस पर विश्वास करना धोखा खाना है। वह विश्वासनीय नहीं है। **

** गुणा और जोड़ की लगातार क्रियाएं का अंत अनंत है। तथा घटाव और भाग का शून्य। शून्य आरंभ है और अनंत अंत। अतः घटाव और भाग आरंभ की ओर ले जाते जबकि जोड़ और गुणा अनंत की ओर।
उन्नति और अवनति का भी यही नियम है। उन्नति के लिए जोड़ें या गुणा करें। अवनति के लिए घटाएं या भाग करें। **

** नाम, यश और धन ही नाम, यश और धन लाते और इन्हें पाने के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। **

** चारो तरफ विष्ठा हो और जाने का रास्ता नहीं तो मजबूरी में विष्ठा का रास्ता ही चुनना पड़ेगा।
यदि तीन तरफ विष्ठा हो और एक तरफ गंदगी हो तो गंदगी चुनना बेहतर होगा।
कहने का तात्पर्य यह है कि चतुर जन जो बेहतर है उसे ही चुनते हैं।
अंधों में काना को राजा बनातें हैं। **

** अगर संसार चोर हो जाए और एक साधु हो तो उसे क्या करना चाहिए ?
मेरे विचार में दो ही रास्ते हैं। या तो चोर बन जाए या उस जगह का परित्याग कर दे। **

** मनुष्य को बिना कर्म नहीं बैठना चाहिए। कुछ न कुछ करते रहना चाहिए , रंग बदल कर, ढंग बदल कर, संग बदल कर। **

** अगर लंबाई घटाई जाए और चौड़ाई बढ़ाई जाए तो एक समय ऐसा आएगा कि लंबाई और चौड़ाई बराबर हो जाएगी। विकास-विनाश और लाभ-हानि इत्यादि की भी यही स्थिति है। **

** प्रारब्ध ईश्वरीय है और कर्म मानव निर्मित। कर्म अपने अंतर्गत आता , प्रारब्ध अधिकार से बाहर। अतः प्रारब्ध से अच्छा है कर्म पर विश्वास करना। **

** खुशी दो तरह से होती। एक निर्धारित कार्य की समाप्ति पर तथा दूसरा सफल फल प्राप्ति पर। **

** सांप हर जगह ( बिल से बाहर ) टेढ़ा चलता है, परंतु बिल में बिल के जैसा। यदि बिल सीधा हो तो उसे सीधा चलना पड़ेगा नहीं तो उसकी कमर टूट जाएगी। बिल सांप का रक्षक है और उससे ज्यादा शक्तिशाली।
प्रकृति और ईश्वर भी जीव के लिए ऐसा ही है। **

** जब कोई अपना अस्तित्व खोता है तब ही वह दूसरा में बदलता है। **

** जैसे जैसे सूक्ष्मता की ओर वस्तु बढ़ती जाती है अपना गुण खोती चली जाती है। जैसे सभी तत्व का इलेक्ट्रॉन एक ही गुण का होता है, इसमें पदार्थ का गुण नहीं होता है।
उसी प्रकार जब मानव जैसे जैसे ईश्वरत्व की ओर बढ़ता जाता है समाजिक गुण राग, द्वेष, मान, अपमान इत्यादि भूलकर एक होता जाता है। **

** पांच ज्ञानेंद्रियां मन बनाते हैं। और मन विचार बनाता है। इन पांचों में आंख सबसे प्रधान है। इसके बाद कान , स्पर्श , स्वाद और गंध है। **

** मनुष्य का प्रभाव दो तरह से होता है। प्रथम रूप द्वारा तथा दूसरा गुण द्वारा।
प्रथम तुरंत प्रभाव डालता है। और दूसरा कुछ समय तक साथ रहने पर।
प्रथम अस्थाई प्रभाव है जबकि दूसरा स्थाई।**

** किसी देश में प्रत्येक व्यक्ति की आस्था और शक्ति का कुल योग वहां की सरकार का मापदंड है।**

** जैसे मल्लाह जाल से मछली छापता है वैसे ही ज्ञानी प्रकृति से ज्ञान पकड़ विचार बनाते हैं।**

** मनुष्य खुश होने पर हंसता है और दुखी होने पर रोता है। इन दोनों अवस्थाओं के बाद  सामान्य होता है। ए दोनो अतरिक्त मनोभाव को बाहर कर सामान्य बनाते हैं जैसे डैम का स्पिल वे (spill way ) डैम से पानी बाहर निकल डैम को सामान्य बनाता है। **

** भेष और परिवेश ही विशेष बनाता है। इसलिए मनुष्य को दोनों पर ध्यान देना चाहिए। **

** तम भार में शून्य तथा आयतन में अनंत है। दूसरे शब्दों में इसका विस्तार अनंत और तौल शून्य है। देखने में अनंत और अनुभव करने में शून्य है।**

** पेट की सामग्री सस्ती होती है और मन की महंगी। पेट की सामग्री कुदाल देता और मन की कलम। **

** सहयोग तीन तरह से किया जाता है , तन से , मन से और धन से। **

** बच्चे खिलौने से खेलते और सयाने बच्चों से। अतः बच्चे सयानों के लिए खिलौना हैं जो मन को प्रसन्न करते हैं। **

** कलह और दुख से हमेशा नाश होता है। तथा शांति और सुख से हमेशा विकास।**

** पानी का कोई रंग नहीं होता है। इसका रंग अदृश्य है। यह जिस पात्र में रहता है उसी के रंग के कारण दिखलाई पड़ता है।**

** प्याज के सभी परत निकाल देने पर जो बचता है वह शून्य है। जहां पर रूक जाएं वहीं प्याज का अस्तित्व है। अंतिम परत शून्य है, यहां उसका अस्तित्व नहीं रहता है। यह शून्य का सबसे बढ़िया उदाहरण है।**

** सभी पीला सोना नहीं होता है। पखाना भी पीला होता है।**

** अगर पखाना और मूत्र ही खाना पड़े तो सज्ञ और विज्ञ गाय के खाते हैं जैसे पंचगभ और पंचामृत।**

** जैसे कुम्हार का घड़ा शुरू में कच्चा रहता है, वह जरा सा झटका नहीं सह सकता है। और जिसे वह पीटकर, सुखाकर , रंग कर, तथा अंत में आग में जला कर पक्का बनाता है वैसे ही पिता अपनी संतान को विभिन्न अवस्थाओं और क्रियाओं से गुजार कर पक्का और योग्य बनाता है। **

** प्रत्येक नाम अपने आप में एक छोटा इतिहास छुपाए हुए है।**

** सोचने में सबसे कम, देखने में उससे ज्यादा , सुनने और बोलने में उससे ज्यादा, और लिखने में सबसे  ज्यादा समय लगता है। **

** प्रकृति हमेशा अपना संतुलन बनाए रखती है। इसलिए वह जितना ऋणात्मक होगी उतना ही घनात्मक । दूसरे शब्दों में एक जगह अगर ऋणात्मक होगी तो दूसरे जगह घनात्मक तभी संतुलन में रहेगी।
अर्थात   ऋणात्मक + घनात्मक = 0
इसलिए  सभी रोग की दवा भी प्रकृति में है , जरूरत है उसको खोजना। **

************ क्रमशः *****************

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
E-mail  er.pashupati57@gmail.com
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मंगलवार, 21 जून 2022

विचार ( भाग 12 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 12 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कोटेशन
विचार ( भाग 12 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** समझना से समझाना कठिन होता है। **

** साहित्य का महत्व दो तरह से आंका जाता है।
प्रथम शब्दों की प्रधानता द्वारा तथा दूसरा विचार , भाव इत्यादि की प्रधानता से।
शब्द प्रधान साहित्य के अनुवाद के बाद उसकी मूल गुणवत्ता नहीं रहती , क्योंकि अनुवाद के बाद शब्द बदल जाते हैं।
लेकिन विचार और भाव इत्यादि प्रधान साहित्य अनुवाद के बाद भी अपनी गुणवत्ता बनाए रखते हैं । क्योंकि भाषा बदलने के बाद भी विचार और भाव इत्यादि नहीं बदलता । ए शाश्वत हैं।**

** अनुश्वार (• ) और चंद्र बिंदु की उत्पत्ति संभवत: चांद और तारा देखकर  हुयी है। **

** अधिकांश कार्य दो प्रकार से पूरे किए जाते हैं -
1. हाथ से
2. मस्तिष्क से
इन दो प्रकार के कार्यों में पूरा संसार रत है। **

** जाति नाम , धर्म और भेष बदलकर बदली जा सकती है। **

** समाज ईश्वर का एक ब्रांच औफिस है। और व्यक्ति इसका एजेंट। **

** कलम का काम देखने में बहुत आसान , पर करने में भीषण कठिन है। जबकि कुदाल का काम देखने में भीषण कठिन , पर करने में आसान है। **

** विकास और विनाश समय पर सीधे निर्भर करता है। **

** नवीनता के लिए परिवर्तन आवश्यक है । और परिवर्तन के लिए नवीनता आवश्यक है। **

** सफलता के लिए अपने सामर्थ्य अनुसार लक्ष्य निर्धारित करना जरूरी है। और निर्धारित समय में उसे पूरा करना भी जरूरी है। **

** जो शिकारी जिस तीर से शेर मारने की तमन्ना रखता है उससे गीदड़ भी नहीं मरे तो या तो शिकारी अनाड़ी है या गीदड़ चमत्कारी। **

** किसी तथ्य की सत्यता निम्न प्रकार से की जाती है।
1. मानक पुस्तक द्वारा
2. वैसा ही घटना देखकर या विश्वासी व्यक्ति से सुनकर।
3.  प्रयोगशाला में परीक्षण कर । **

** मानव संसार मुख्यत: तीन कर्मों में ही रत है।
1. दैहिक ( देह संबंधित )
2. भौतिक ( जीविका इत्यादि संबंधित )
3. आध्यात्मिक ( मन / आत्मा इत्यादि संबंधित )
अज्ञ और दुर्जन दूसरा और सज्ञ & विज्ञ दूसरा के साथ तीसरा पर जोर देते । प्रथम सभी को अंशत: या पूरा करना ही पड़ता है। **

** कोई जिधर घृणा करता उधर पीठ और जिधर भय देखता उधर मुंह रखता है। इसी प्रकार सोने में जिधर निर्भयता है उधर सिर और जिधर भय है उधर पैर रखता है।
उदाहरण स्वरूप गेहुंअन सर्प को लिया जा सकता है। जिधर मनुष्य देखता उधर अपना फन रखता है। **

** भारत में अराजकता के अनेक कारणों में से एक कारण यह है कि आजादी के बाद ग्रामीण प्रशासन जो पंचों द्वारा संचालित होता था धीरे धीरे शून्य होता गया।
यह प्रशासन 90% लोगों की समस्याएं सुलझाता था। अतः 90% समस्याएं खड़ी है।
आधुनिक पंचायत का प्रारूप वह नहीं जो पहले था। प्राचीन पंचायत की झलक मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी पंच परमेश्वर में दृष्टिगत होती है। **  

** प्रकाश ( चेतन ) और अंधकार ( जड़ ) इन दो से ब्रह्मांड निर्मित है। इन दोनों का मूल तम है। **

** मानव के पूरे जीवन में तीन ही साथी और संरक्षण बनते।
1. आरंभ में माता-पिता
2. जवानी में पत्नी
3. अंत में संतान **

** ब्रह्मांड में कोई भी रेखा परम सरल रेखा  ( absolute straight line ) नहीं है। अर्थात शून्य डिग्री का वक्र।  परम सरल रेखा भी नहीं खींचा जा सकता है।**

**  तम क्या है ?
जिसमें लम्बाई, चौड़ाई , मोटाई , समय , आवृत्ति या साइकिल शून्य या अनंत हो । यह नित्य , सर्व व्याप्त और अविनाशी है।
यह वैज्ञानिक हाईगन के ईथर सा है , लेकिन काल्पनिक नहीं है । इसका भौतिक रूप अंधकार , नीला , काला इत्यादि देखने में मिलता है। **

** आकाश कैसे बना है ?
आकाश का प्रथम तह तम है । दूसरा तह गुरुत्वाकर्षण और विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र से भरा है । इसके बाद और सब ( जैसे हवा , ध्वनि इत्यादि ) है। **

** सत्य प्रमाणित निम्न प्रकार से किया जाता है।
1. मानक पुस्तक
2. गणित
3. निरीक्षण और अवलोकन
4. प्रयोग
5. तर्क
6. साक्ष्य और गवाह **

** मेरे विचार में मन , आत्मा , प्राण , ब्रह्म, परमात्मा की परिभाषा निम्न हैं।

मन - पांच ज्ञानेंद्रियां नाक , कान, आंख , त्वचा एवं जीभ द्वारा निर्मित एक विशेष तरंग को मन कहते हैं।
मन = +/- दृश्य +/- घ्राण +/- स्पर्श +/- स्वाद +/- स्रवण
आत्मा - ईश्वर के अंश जो सबमें रहता उसे आत्मा कहते हैं।
परमात्मा - कुल आत्मा और ईश्वर के शेष भाग का योग को परमात्मा कहते हैं। इस प्रकार परमात्मा और ईश्वर एक ही हैं।
प्राण - संवेदना उत्पन्न करने वाला तत्त्व को प्राण कहते हैं।
ब्रह्म - ईश्वर का सक्रिय रूप को ब्रह्म कहते हैं।
            ब्रह्म + 0.0°1 = ईश्वर
                    0.00000.......1 = 0.0°1

उपरोक्त सब मेरा अपना सोच और विचार है। इस पर आप सब अपना विचार और प्रतिक्रिया से अवगत कराएं तो आभारी रहूंगा।

********** क्रमशः **********************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन  845453
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सोमवार, 20 जून 2022

विचार ( भाग 11 )

अनुसंधानशाला से विचार भाग 11 प्रस्तुत करते इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

कोटेशन
विचार ( भाग 11 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** मूर्ख का यह गुण होता है कि अपनी प्रगति के लिए सदा शून्य से गुणा करता है और अनंत से विभाजित । नतीजा शून्य का शून्य।
और दुष्ट इससे चतुर होता । वह शून्य जोड़ता रहता है । नतीजा जैसा का तैसा रहता है।
लेकिन सज्ञ और विज्ञ शून्य तथा अनंत की क्रिया से पूर्ण वाफिक होते । इसलिए  वे समयानुसार शून्य से भाग और अनंत से गुणा कर अपना विकास करते रहते हैं। **


** व्यक्ति की अमरता में नाम , यश और धन का योगदान अहम होता है । **


** अगर मन कर्म करना न चाहे , काम से मन जी चुराए , यह भी न समझ आए कि क्या करें या न करें , तो  ऐसे समय में सभी कार्यों की एक सूची बना लें और जो सबसे आसान और रूचिकर कार्य हो उसे पहले शुरू करें । इसी तरह और कार्यों को करते जाएं। जो सबसे कठीन है उसे सबसे बाद में।
अगर यह भी न हो पाए और मन अशांत रहे तो उस जगह को कुछ समय के लिए छोड़ देना ठीक रहता है। **


** अविद्या विद्या के मार्ग में सदा रुकावट पैदा करती है। यह डरती है तो सिर्फ दो से -
1. धन , क्योंकि यह निर्धन होती है तथा धन के प्रति अतीव आकर्षण रखती है।
2. राजदंड , क्योंकि राजदंड इसको रोकने के लिए ही विद्या की देन है। **


** विकास - इसमें पहले नाम , तब धन और अंत में यश मिलता है।
विनाश - पहले धन जाता , तब नाम और अंत में यश । **


** पूर्व संस्कार , वर्तमान संस्कार और परिवेश मन और चरित्र का निर्माण करते हैं। **


** अगर प्रकाश स्रोत पृथ्वी से बाहर अर्थात सूर्य , तारा इत्यादि पर लिया जाए तो इससे पृथ्वी पर बनी छाया अनित्य ( variable ) होती है।
अगर प्रकाश स्रोत पृथ्वी पर लिया जाए जैसे लालटेन इत्यादि तो इससे बनी छाया नित्य ( constant ) होती है।
इसी कारण माइचेलसन और मोरले प्रयोग में drift नहीं मिलता है। क्योंकि स्रोत पृथ्वी पर है ।**


** किसी एक समान गति से गमन करता हुआ पिंड A पर  स्थित गति करता हुआ पिंड B की गति पर पिंड A की गति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
लेकिन ज्योंहि इससे संपर्क छूटता है उसकी गति पर प्रभाव पड़ जाता है।
जैसे - रेल में सवार व्यक्ति अपने ही गति से अंदर घूमता है। लेकिन अगर बाहर कूदे तो गाड़ी की गति प्रभाव डाल देगी। 
( माइचेलसन और मोरले प्रयोग में इसी कारण प्रकाश की गति पर पृथ्वी की गति का प्रभाव नहीं पड़ता है , क्योंकि प्रकाश स्रोत पृथ्वी पर है । जिससे drift नहीं मिलता है। )**


** दो देशों के युद्ध में दोनों का संविधान कठोर रूप से सक्रिय हो जाता है , लेकिन गृह युद्ध की स्थिति में उल्टी होती , क्योंकि गृह युद्ध संविधान की शिथिलता के कारण ही होता है। **


** राजद्रोह - जो व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए लड़ा जाए।
गृह युद्ध -  जो जन कल्याण के लिए लड़ा जाए और जिसमें आम जनता भाग ले। **


** समाज की रचना और संचालन समझौता के सिद्धांत के कारण है। **


** वह कर्म बढ़िया और अच्छा कर्म कहलाता जो दूसरे कर्म में सहयोग दे और सफल बनाए। जो असहयोग करे और असफल बनाए वह घटिया कर्म है। **


** एक ही कर्म एक के लिए बढ़िया तो दूसरे के लिए घटिया हो सकता है। एक समय में बढ़िया तो दूसरे समय में घटिया हो सकता है वगैरह। **


** कोई भी व्यक्ति किसी की मृत्यु का कारण हो सकता है कर्त्ता नहीं। लेकिन अपनी मृत्यु और जीवन का कर्त्ता हो सकता है। **


** आचार्य भास्कर के अनुसार शून्य को शून्य से विभाजित करने पर परिणाम अनंत होता है। **


** चाहें किसी विधि से मिली सफलता सुखदाई होती , जबकि असफलता दुखदाई। **


** धन का आगमन असंतोष पैदा करता है । और धन का गमन संतोष करने पर बाध्य करता है । ए धन का नित्य गुण हैं। **


** सज्ञ - किसी चीज का पूर्ण ज्ञान
विज्ञ - जो सिद्धांत प्रतिपादित करे। जैसे - पाणिनि , कर्णाद , न्यूटन वगैरह।
शिक्षक - ज्ञान के साथ बताने का ढंग सरल और बोधगम्य। **


** जीत के लिए निम्न शक्तियों की आवश्यकता होती है -
1. आध्यात्मिक ( आत्मिक ) शक्ति
2. बौद्धिक /तार्किक शक्ति
3. कुटनीति/राजनीति
4. सैन्य शक्ति
5. धन वगैरह **


** ब्रह्मांड में कोई ऐसा चीज नहीं जो बिना छिद्र  ( void ) का हो। प्रकाश में भी छिद्र है । एक ही चीज जिसमें छिद्र नहीं है वह है तम । यानी शून्य छिद्र ( zero void ) । **


** जब मनुष्य शरीर धारण कर लेता है तो बिना कर्म नहीं रह सकता है। प्रत्येक शरीरधारी जीव को कर्म करना ही पड़ता , चाहे वह सुकर्म हो अथवा कुकर्म। सभी कर्म का दो ही लक्ष्य है। मन की तृप्ति या पेट की तृप्ति।
ए दोनो लक्ष्य सुकर्म से भी पूरा होते और कुकर्म से भी। लेकिन सुकर्म लक्ष्य पूर्ति के साथ नाम और यश भी देता , लेकिन कुकर्म अपयस ।
कुकर्म का प्रारंभ सुगम , आकर्षक और लुभावन होता है , लेकिन अंत कष्टकर । सुकर्म का आरंभ अरुचिकर होता , लेकिन अंत सुखमय ।
मूर्ख , दुष्ट प्रायः कुकर्म अपनाते , और सज्ञ , विज्ञ सुकर्म । **



** मूर्ख और दुर्जन का तीन अनियंत्रित होता है ।
प्रथम मुंह , दूजा जीभ , तीसरा हाथ । यदि इन तीनों पर वे नियंत्रण कर लें तो सज्ञ बन जाएंगे। **



** यदि कोई बिंदु किसी बिंदु के सापेक्ष स्थान न बदले तो उसे स्थिर बिंदु कहते हैं।
परंतु परम स्थिर बिंदु ( Absolute fixed point ) शून्य ( zero ) या अनंत ( infinite ) की गति से अपना स्थान परिवर्तन करता है। इस कारण छोटा से छोटा दूरी तय करने के लिए अनंत समय या बड़ा से बड़ा दूरी तय करने के लिए शून्य समय लेता इस कारण वह वहां के वहां ही रहता।
अवलोकन से तम में यह स्थिति देखने को मिलती है। क्योंकि ज्योंहि प्रकाश रोका जाता तम वहां तुरंत प्रकट हो जाता है।
अतः तम परम स्थिर बिंदु का एक स्पष्ट उदाहरण है। **


** भय का कारण भ्रम है । भय का निदान ज्ञान , बुद्धि , तर्क तथा अध्ययन है। **


** अर्थव्यवस्था तीन प यानी प्रकृति , परिवेश और परिवर्तन पर निर्भर है। **


** पागल कोई समाजिक कार्य नहीं कर सकता है। यदि कोई समाजिक कार्य करता है तो वह पागल नहीं है।
अगर किसी में पागलपन का लक्षण दिखाई पड़े तो उसे उसके रुचि अनुसार समाजिक कार्यों में व्यस्त करना चाहिए। धार्मिक कार्य ( किसी भी धर्म का ) भी एक समाजिक कार्य ही है और सरल भी है।
पागलपन दूर करने का यह सरल देसी उपाय है।**



** अगर किसी देश में वहां की प्रजा 100 रुपए की लागत से 1000 रुपए की उत्पादन करती है। तथा 5000 रुपए लगाकर 4000 रुपए की ।
तो अर्थशास्त्र अनुसार बाद वाला उत्पादन देशहित में है और पहले वाला व्यक्तिगत हित में।**


** जब अच्छा और बुरा में फर्क नही पता चले तो या तो वह ईश्वरत्व की ओर झुक रहा या पागलपन की ओर। **


** महात्वाकांक्षा अच्छी बात है। बिना इसके कोई सफल नहीं हो सकता , परंतु अति महत्वाकांक्षा विनाशकारी है। सफलता की जगह विनाश दायक है। **


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इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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गुरुवार, 16 जून 2022

विचार ( भाग 10 )

अनुसंधानशाला से इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद विचार भाग 10 प्रस्तुत करते हुए


कोटेशन
विचार ( भाग 10 )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

** आम आदमी सिर्फ बीता कल अर्थात भूत की बातें  सोचता है और जीता है । मध्यम पुरुष बीता कल यानी भूत की बातें सोचता है परंतु भविष्य में जीता है । परंतु उत्तम व्यक्ति , दूरदर्शी पुरुष भूत वर्तमान और भविष्य तीनों देखता है और सोचता है तथा वर्तमान में जीता है। **

** वर्तमान भूत का अंत और भविष्य का प्रारंभ है। 0.0000.....1 सेकेंड में भूत वर्तमान में और वर्तमान भविष्य में बदल जाता है। भूत पर सोचा जा सकता है , भविष्य पर विचार किया जा सकता है , लेकिन वर्तमान कर्म करने के लिए है । अगर यह समय गंवा दिए तो फिर नहीं आने का। **

** प्रकोष्ठ यानी रूम तथा पोशाक को अस्त व्यस्त रहना मानसिक परेशानी का द्योतक है । और ऐसा व्यक्ति या तो जाहिल है अथवा पहुंचा हुआ । **

** किसी भी व्यक्ति को परास्त करने का दो ही अचूक तरीका है । यदि साधन हीन या असमर्थ हों तो अपनी महत्वाकांक्षा को घटाएं । यदि प्रभावशाली और साधन युक्त हों तो इसका प्रयोग कर उसके समानांतर व्यवस्था कायम करें । **

** पौराणिक मतानुसार आत्मा मृत्यु के बाद निम्न  गति को पाती है ।
१. पुनर्योनि अर्थात पुन: जन्म
२. प्रेत योनि अर्थात उर्जा रूप में अंतरिक्ष में स्वतंत्र अवस्था में भटकती है ।
३. मुक्ति या मोक्ष अर्थात् परमात्मा में मिलन ।**

** हां कह कर धोखा देने से ना कह कर धोखा नहीं देना बेहतर होता है । **

** वह कर्म जिससे बढ़िया से  पूर्ण होने पर भी धन लाभ नहीं होता वह कर्म त्याज्य है। दूसरे शब्दों में अपने आप त्याज्य हो जाता है ।
वह कर्म जिससे अर्थ लाभ नहीं हो वह पूर्ण है अथवा अपूर्ण पहले यह देखना चाहिए । यदि अपूर्ण है तो पूर्ण करना चाहिए । यदि पूर्ण है तो त्याग कर देना चाहिए। **

** मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति सपने जैसी रहती है । **

**आत्मा बेहद सूक्ष्म तरंग उर्जा है । जिसका वेग प्रकाश वेग से ज्यादा होता है । **

** प्रत्येक व्यक्ति इसी आशा में जिंदा है कि मेरा अभीष्ट लक्ष्य , कार्य अब पूरा ही होने वाला है । यह उम्मीद उसे मृत्यु तक लगी रहती है । **

** प्रत्येक व्यक्ति चाहे गुणी हो या अवगुणी यही अभिलाषा होती है कि मेरे गुणों की प्रशंसा दुनिया करे , लेकिन दुनिया आदिकाल से गुणों की प्रशंसा करती है तथा अवगुणों को त्याग करती है। **

** विद्या और बुद्धि एक नहीं तथा ज्ञान भी इन दोनों से अलग है । एक अनपढ़ व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है , जैसे- अकबर । विद्या युक्त व्यक्ति भी मूर्ख हो सकता है , जैसे- एम ए पास मूर्ख । लेकिन ज्ञानी हमेशा बुद्धिमान और विद्वान ही होगा , क्योंकि ज्ञान विद्या , बुद्धि की संयुक्त देन है । **

** बुद्धि ईश्वरीय है अर्थात प्रभु निर्मित । तथा विद्या किताब , गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान है यानी मानव निर्मित । **

** किसी में परम लगा देने का मतलब है अनंत , जैसे- परम शक्ति , परम ब्रह्म , परम पिता इत्यादि। और अनंत सिर्फ एक ही है , अत: परम लगा देने से सभी एक ही का बोध कराता है , अर्थात अनंत का।**

** मलाह जैसे जाल से मछली छापता है , वैसे ही विज्ञ  ब्रह्मांड से विचार । **

** जैसे हवा की गति की दिशा के अनुकूल खर-पात़ और धूल इत्यादि घूमता रहता है , वैसे ही मूर्ख , गवांर चतुर के इशारे पर घूमते रहते हैं ।**

** सत्य क्या है ?
किसी भी चीज के विषय  में बार-बार सोचने के बाद यदि एक ही विचार रहे तो वह सत्य विचार है। **

** स्वाद का आरंभ बिंदु जहर है यानी हलाहल तथा अंत बिंदु अमृत है। अर्थात जहर का स्वाद को शून्य माना जाए तो अमृत का स्वाद अनंत । तथा और सभी स्वाद इनके बीच में। **  

** यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो महाभारत युद्ध का मूल द्रौपदी थी और विजय भी द्रौपदी ।**

** स्त्री पुरुष के बल , सफलता और उत्साह का मूल है । ए जैसी होगी व्यक्ति, घर ,समाज और देश वैसा होगा । ****

** अगर स्वतंत्रता  का मतलब अनुशासनहीनता है तो उससे अच्छा परतंत्रता है । **

** सबसे बड़ा साधु - जो दुष्ट के साथ दुष्टता करे। सबसे बड़ा दुष्ट - जो साधु के साथ दुष्टता करे और दुष्ट के साथ साधुता।**

**  कर्म फल कारण नहीं देखता ।  कर्म चाहे जिस कारण उचित या अनुचित के कारण पूरा नहीं हुआ हो तो फल पर प्रभाव डालता ही है , जैसे यदि एक मेधावी छात्र पैसे की कमी के कारण से किताब नहीं खरीद सकता , जिससे उसकी परीक्षा की तैयारी नहीं हो पाती , जबकि  वह निर्दोष है फिर भी वह अनुत्तीर्ण होगा । यह सिद्ध करता है कि कर्म फल कारण नहीं देखता।**

** कर्म फल कर्म की पूर्ति चाहता है । कर्म जब तक पूर्ण नहीं होगा तब तक उसका फल नहीं मिलता है। **

** कर्म का सफल फल ही प्रसन्नता , श्रेष्ठता एवं समृद्धि है । तथा असफल फल कुंठा , दरिद्रता एवं लघुता है। **

** उचित पूर्ण कर्म का उचित फल, उचित अपूर्ण कर्म का अपूर्ण फल , तथा अनुचित पूर्ण या अपूर्ण कर्म का कुछ फल नहीं मिलता है ।**

** प्रश्न - भ्रम क्या है ?
उत्तर - अशांत मन और अज्ञान ।
प्रश्न - अभ्रम क्या है ?
उत्तर - शांत मन और ज्ञान। **

** सूर्य प्रकाश में आंख से दृष्टिगत घटना और कान से सुनी ध्वनि विश्वसनीय होते हैं अन्यथा संदेहास्पद। **

** जीवन में कर्म बदल जाए और क्रिया नहीं बदला जाए या क्रिया बदल जाए और कर्म नहीं बदला जाए तो वह सफलता नहीं मिलती।**

** नौकरी वस्तुत: चाकरी है। नौकरी करने का मतलब है परतंत्र होना । **

सभी काल में सब कोई प्रायः यही कहता है कि मेरे पूर्वज का समय का जीवन सुखमय  था । और अब जमाना बदल गया। अब क्या जमाना आ गया ।और पहले कितना अच्छा जमाना था। इसका मूल कारण यह कि यह है कि सुनी बातें मनभावन होती तथा दूसरा कारण अतीत प्यारा होता है और वर्तमान कठोर क्योंकि यह प्रत्यक्ष होता और परिश्रम करना पड़ता वगैरह । **

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