कविता
सिसकता जीवन
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
सिसक सिसक कर
जीवन जी रहा हूं ,
हम ही जानते
हमने कैसे निभाई ।
जिधर देखता मैं
तिमिर ही तिमिर है ,
खुदा ने है किस्मत
कैसी बनाई ,
जीवन की गाड़ी
फंसी बीच धारा ,
होगी हम पर कब
नजरें खुदाई ,
हम ही जानते
हमने कैसे निभाई ।
समझ नहीं आती
हम जाएं कहां पर ,
होठों से हुई है
हंसी की विदाई ,
जो भी कर्म करता
नहीं फल है मिलता ,
आंखों से है फुटती
हमेशा रुलाई ।
हम ही जानते
हमने कैसे निभाई ।
सभी लोग अपना
बने हैं बेगाना ,
बताता नहीं कोई
असली दवाई ,
मरेगा शरीर
मौत के आने पर ,
मरेगी नहीं
"पशुपति" की रूबाई ,हम ही जानते
हमने कैसे निभाई।
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी, प चंपारण , बिहार, भारत
Mobile 6201400759
E-mail er.pashupati57@gmail.com
My blog URL
Pashupati57.blogspot.com ( इस पर click करके आप मेरी और सभी मेरी रचनाएं पढ़ सकते
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