रविवार, 1 मई 2022

सिसकता जीवन


कविता

सिसकता जीवन

रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद


 सिसक सिसक कर

 जीवन जी रहा हूं ,

 हम ही जानते 

हमने कैसे निभाई ।


 जिधर देखता मैं 

तिमिर ही तिमिर है ,

खुदा ने है किस्मत 

 कैसी बनाई ,

 जीवन की गाड़ी 

 फंसी बीच धारा ,

 होगी हम पर कब 

 नजरें खुदाई ,

हम ही जानते

 हमने कैसे निभाई ।


 समझ नहीं आती 

 हम जाएं कहां पर ,

 होठों से हुई है 

 हंसी की विदाई ,

जो भी कर्म करता

 नहीं फल है मिलता ,

 आंखों से है फुटती

 हमेशा रुलाई ।

 हम ही जानते

 हमने कैसे निभाई ।


 सभी लोग अपना 

 बने हैं बेगाना ,

बताता नहीं कोई 

असली दवाई , 

मरेगा शरीर

 मौत के आने पर ,

 मरेगी नहीं 

"पशुपति" की रूबाई ,हम ही जानते 

हमने कैसे निभाई।


इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद

रोआरी, प चंपारण , बिहार, भारत

Mobile 6201400759

E-mail er.pashupati57@gmail.com

My blog URL

Pashupati57.blogspot.com  ( इस  पर click करके आप मेरी  और सभी मेरी रचनाएं पढ़ सकते


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