जंग का परिणाम ,बम से बिखरा आशियाना, गम में बेघर लोग
कविता
बदली दुनिया
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
कहीं बम , कहीं गम , कहीं जंग ,
आज दुनिया का है यह ढंग ।
इससे अच्छे थे हम पहले ,
आज देते सब नहले पर दहले ,
इसका कारण है जन में अहं ,
कहीं बम , कहीं गम , कहीं जंग ,
आज दुनिया का है यह ढंग ।
हवा , पानी और मन ,
दूषित किए हुए हैं जन ,
आज धारा बनी है बेदरंग ,
कहीं बम , कहीं गम , कहीं जंग ,
आज दुनिया का है ए ढंग ।
जहां जिंदा नहीं हो मानवता
वहां बसेगी नहीं सभ्यता ,
चाहे भरे कोई भी रंग ,
कहीं बम , कहीं गम ,कहीं जंग ,
आज दुनिया का है यह ढंग ।।
धन जो लगा रहे शस्त्र में ,
जनकल्याण में लगाएं ,
मानवता व धारा को
नाश होने से बचाएं।
आज रो रही धारा , प्रकृति ,
मानव के इन कुकर्म से ,
प्रर्यावरण को बचाओ ,
बचेंगे सब इसी कर्म से।
करो सदुपयोग विज्ञान का ,
ज्ञान को अज्ञान न बनाओ ,
जनता के नाश में इसको ,
कभी नहीं सब लगाओ ।
अगर कोई हो समस्या ,
बातचीत से सुलझाओ ,
युद्ध नहीं है निपटारा ,
विश्वयुद्ध फिर न दुहराओ।
अहं को त्याग बनो मानव ,
जनकल्याण रखो मन में ,
अहं के कारण ही सब जंग ,
कहीं बम , कहीं गम , कहीं जंग ,
आज दुनिया के है यह ढंग।
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
प चंपारण ,बिहार ,भारत
Mobile 6201400759
E-mail er.pashupati57@gmail.com
My blog URL
Pashupati57.blogspot.com ( इस पर click करके आप मेरी और सभी मेरी रचनाएं पढ़ सकते
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