कान में दूसरे की चुगली करते लेडी |
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व्यंग्य
** चुगलखोर **
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लेखक - इंजीनियर पशुपति नाथ प्रसाद
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इतिहास -
आज तक वैज्ञानिकों ने बहुत सा तत्वों की खोज की है , लेकिन मैंने एक ऐसा तत्व खोजा है जिसे चुगलखोर कहते हैं । इनके निम्नलिखित गुणों तथा अणु संरचना के आधार पर आवर्त सारणी ( Periodic Table ) के अधातु वर्ग में रखा गया है ।
उपस्थिति ( Occurrence ) -- सामाजिक वातावरण में ये मुक्तावस्था में नहीं के बराबर पाये जाते हैं । लेकिन कमरा के तापक्रम और साधारण दाब व छद्म वेश में ये प्रत्येक समाज , सभा , भीड़ , जाति , काल तथा संसार के हरेक कोना में समान प्रकृति , कर्म एवं कार्यक्रम में रत मिलते हैं । किसी अक्षांश और देशांतर की रोक नहीं ।
अयस्क ( Ore ) --
यों तो इनके बहुत से अयस्क हैं , लेकिन कुछ महत्वपूर्ण अयस्क निम्नलिखित हैं जो पाठकों के ज्ञानवर्धन हेतु दिया जा रहा है ।--
1. वह व्यक्ति या समाज जो ऊँच महत्वाकांक्षा रखता हो , लेकिन योग्यता अल्प हो । यानी अल्प योग्यता संग ऊँच चाहत ।
२. आलसी व्यक्तियों में ।
3. ईर्ष्यालु एवं डाही में ।
4. भाग्यहीन तथा अभागा वगैरह ।
इनके उत्पादन की अन्य विधियाँ --
1. ऊँच आकांक्षा अल्प योग्यता के संग संयोग कर चुगलखोर को जन्म देती है ।-
समीकरण -
ऊँच आकांक्षा + अल्प योग्यता = चुगलखोर
2 . असफल व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा/यश की रक्षा मे चुगलखोर में वदल जाता है । -
समीकरण -
असफल व्यक्ति + प्रतिष्ठा / यश = चुगलखोर
3. सिर्फ साधारण तापक्रम एवं दाब यानी कमरा के तापक्रम एवं दाब पर अभागा / भाग्यहीन चुगलखोर में परिवर्तित हो जाता है ।-
समीकरण -
अभागा / भाग्यहीन ----35° सी ( c ) ---> चुगलखोर
प्रयोगशाला विधि -
साधारण तापक्रम एवं दाब ( सा . ता . दा . ) पर तथा दुर्बल एवं कमजोर प्रशासन की उपस्थिति में ईर्ष्या एवं द्वेष से व्यक्ति सरलता से प्रतिक्रिया कर जाता है तथा प्रतिक्रिया के फलस्वरूप शुद्ध रूप में चुगलखोर की प्राप्ति होती है । यहाँ दुर्बल तथा कमजोर प्रशासन उत्प्रेरक का काम करता है ।-
समीकरण -
व्यक्ति + ईर्ष्या / द्वेश + कमजोर एवं दुर्बल प्रशासन = चुगलखोर
सावधानियाँ -
इन्हे बनाते समय निम्नलिखित सावधानियों पर ध्यान रखना चाहिए । जैसे -
1. कमरा बिलकुल बंद हो यानी एयर टाइट ( air tight )।
2. व्यक्ति दुश्मन का दुश्मन होना चाहिए ।
3. प्रशासन दुर्बल तथा भ्रष्ट हो। तथा समाज द्वेषी एवं ईर्ष्यालु वगैरह ।
भौतिक गुण -
1. ये समाजहीन , प्रभावहीन , गुणहीन तथा लोभयुक्त तत्व हैं ।
2. समाज नामक घोलक में ये बिलकुल अघुलनशील हैं ।
3. ऊँच तापक्रम तथा दाब पर इनका बहुत अल्प मात्रा समाज नामक घोलक में घुलता है ।
4. इनका बहुरूप ( alltrope ) समाज में व्याप्त है , तथा अपने कर्मों से समाज में अराजकता पैदा करता रहता है । यानी समाज के लिए ये बड़ा ही हानिकारक होते हैं । झगड़ा की जड़ वगैरह ।
रसायनिक गुण -
1. अपने ईर्षायलु एवं द्वेशी गुणों के कारण ये स्वयं जलनशील हैं , तथा जलन के पोषक भी ।
2. विकाश तथा प्रगति के ये कट्टर दुश्मन हैं ।
3. अम्ल से प्रतिक्रिया ---
एक अम्ल जिसे ठिठोली कहते है , इसके साथ ये तेजी से प्रतिक्रिया करते हैं तथा गाली गलौज नामक यौगिक की संरचना करते हैं ।
समीकरण -
चुगलखोर + ठिठोली = गाली गलौज
4. क्षार से प्रतिक्रिया ---
साधारण तापक्रम तथा दाब पर एक क्षार जिसे व्यंग्य कहते हैं जिसके साथ ये तेजी से प्रतिक्रिया कर झगड़ा , फसाद , खून खराबा इत्यादि जटिल यौगिक का निर्माण करते हैं । तथा इस जटिल यौगिक का उपयोग प्राय: समाज के विनाश में होता है ।
समीकरण -
चुगलखोर + व्यंग्य = झगड़ा , फसाद इत्यादि
5. सधारण ताप और दाब पर जगह 2 घूम 2 कर ये अपना बहुरूप तैयार करने की कोशिश करते रहते हैं ।
अणु संरचना ( atomic structure ) ---
इनका न्यूक्लिअस ( nucleus ) थोड़ा ढक होता है , तथा बाहरी कक्षा ( outer most orbit ) में शून्य इलेक्ट्रोन ( electron ) रहता है , यानी इनका कोई मित्र साथी नहीं होता , किसी पर ये विश्वास नहीं करते , न कोई इन पर विश्वास करता है ।
ये धैर्यहीन तत्व हैं । अशांति , अर्थहीन व्यस्तता इनका प्रमुख लक्षण हैं , यानी प्रटोन , न्यूट्रोन वगैरह ।
पहचान -
1. ये समाज में प्रकट अथवा स्वतंत्र रूप में नहीं पाये जाते । ये सदा गुप्त रूप तथा छद्म वेश में रहते हैं तथा मिलते हैं ।
2 ये चापलूस , लोभी , चुगली तथा कलहकारी प्रकृति के तत्व हैं ।
इनका व्यवहारिक उपयोग तथा भौतिक सार्थकता --
1. समाज , देश , राज्य , परिवार एवं व्यक्ति के विनाश , कलह इत्यादि में ।
2. राजनीतिज्ञों , नेताओं तथा चतुरजनों के हथियार के रूप में वगैरह ।
****** ****** समाप्त ****** ******
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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