पराग सदृश एक तेजस्वी का
गुणोगान है इस भू पर ,
सबका गुरु है यह गुणी
जिन्हें कहते कुछ शिवशंकर ,
त्रिनेत्र , मृत्युंजय आदि ,
कैलाशपति और शंभू भी ,
रामनाथ , गंगाधर जिनको भी
कहते हैं कभी-कभी ।
प्रभा युक्त इस चंद्रशेखर की
जन्म कथा बतलाता हूं ,
पौराणिक कथाओं के संग
वैज्ञानिक बात दिखता हूं ,
महाप्रलय हो जाने पर
जब सब कुछ नष्ट हो जाता है,
विस्तृत भू ,चंद्र ,सूर्य
न जाने कहां खो जाता है।
एक शक्ति सिर्फ बच जाती है ,
जो आदिशक्ति कहलाती है,
इसी शक्ति के हेतु से
फिर नव सृष्टि बन जाती है ,
द्वय नवीन वस्तुओं का
जब मेल परस्पर होता है,
दोनों की क्रिया प्रतिक्रिया
एक नई वस्तु जन्माती है ।
जब चलता पवन है मंद मंद
कैसा मनमोहक होता है ,
अपनी शीतलता दान कर
यह मर्म हमारा छूता है ,
क्षुधित व्याघ्र सा यही कभी
विकराल रूप जब करता है ,
बड़े-बड़े पादप तक को भी
समूल नष्ट यह करता है।
( पादप= पेड़ )
ग्रीष्म ऋतु में प्रायः हम
एक ऐसी घटना पाते हैं ,
मंद वायु को कभी कभी
हम चक्रवात में पाते हैं ,
हल्दी एवं चूना का कभी
मेल परस्पर होता है ,
मिलने के चंद पलो बाद
लाल रंग मिल जाता है।
दूध दही का जनक रहा,
इससे भिज्ञ सारा जग है ,
बीज का ही पुत्र
कहलाता इस भू पर नग है ,
पतझड़ ऋतु में तरु के पत्ते
समग्र गिर जाते हैं ,
नर कंकाल सा सिर्फ तरु के
ढांचा मात्र बच जाते हैं।
( नग = पेड़-पौधा )
विगत दिनों की यादों में
ये अश्रु धारा बिखराते हैं ,
इसके कुछ ही दिनों बाद
एक नव घटना हम पाते हैं ,
सुंदर-सुंदर मुलायम कोपलें
आ जाते तब ,
मस्त हाथी सा झूमने लगते ,
अपनी दशा देख द्रुह अब ।
( द्रुह= पेड़ )
शाल्मली का लाल पुष्प
कितना चारुमय होता है ,
इसकी मनमोहकता में
समग्र खग खो जाते हैं ,
प्रतिक्रिया के फलस्वरूप
कुछ दिनों में बन रूई श्वेत ,
खग समूह को फल की आशा
को कर देता मटियामेट ।
( शाल्मली = सेमर का पेड़ )
प्रतिक्रिया के कारण ही
यह खेल तमाशा होता है ,
नया रूप प्रकृति में
इसके कारण ही आता है ,
आदिशक्ति अभेदी है ,
अखंडित है निराकारी ,
प्रतिक्रिया के कारण यह
कभी हो जाती है साकारी ।
इसी आदिशक्ति ने पहले
ब्रह्मा को था जन्माया ,
सृष्टि हेतु शादी अपने साथ
करने को फरमाया ,
माता के संग ऐसा प्रस्ताव को
ब्रह्मा ने अस्वीकार किया ,
इसके बदले मौत भली है
उन्होंने स्वीकार किया ।
नकारात्मक उत्तर कारण
ब्रह्मा स्वर्ग सिधारे थे ,
विष्णु जन्मे तत्पश्चात थे
प्यारे और दुलारे थे ,
प्रश्न वही शादी करने को
फिर उसने दोहराया था ,
कर्म निष्ठ मर्यादा श्रेष्ठ
विष्णु को फिर भरमाया था ।
नकारात्मक उत्तर से तब
विष्णु स्वर्ग सिधारे थे ,
तेजपुंज कैलाशपति
इसके ही बाद पधारे थे ,
प्रश्न वही पाणिग्रहण
इनके समक्ष भी आया था,
निम्नलिखित ढंग से तब
शिव शंभू ने सुलझाया था।
( पाणिग्रहण = विवाह )
तू जननी मैं सुत तेरा
कैसा यह पावन है नाता ,
इस रूप में यह क्रिया
तुम ही सोचो क्या हो सकता ?
दो शर्त्तों को मानो तो
यह सृष्टि हो सकती है ,
अपना पावन यह रूप तज
दूसरा रूप ले सकती है ।
स्वर्गीय भ्राता जिंदा हो
दूसरी शर्त है यह मेरी ,
सृष्टि करने हेतु बस
इतनी कृपा है तेरी ,
सकारात्मक उत्तर से
इस धर्म कथा का हुआं अंत ,
आदिशक्ति बदली दुलहन में
और शिव शंभू बन गए कंत।
**********समाप्त****************
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
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