** जिस प्रकार कच्चा फल खाद्य नहीं , उसी प्रकार कच्चा विचार ग्राह्य नहीं । जिस प्रकार पका फल खाद्य है , तृप्तिदायक है , उसी प्रकार परिपक्व विचार ग्राह्य है , फलदायक है । **
** परिपक्व विचार कल्याण कारक है तथा अपरिपक्व इसके विपरीत । **
** ब्रह्म परिपक्व विचार दायक है तथा ब्रह्मांड इसका पालक । **
** बन्द वक्र पर परिक्रमा करते जीव के लिए आदि और अंत एक ही बिन्दु है । तथा अनंत , निरंतर परिक्रमा । **
** असमर्थ की समस्या समर्थ के लिए आम ( साधारण ) बात है । जिसका निदान समर्थ ही कर सकता है , असमर्थ नहीं ।
ठीक इसके विपरीत समर्थ की प्रत्येक घटना असमर्थ के लिए महत्वपूर्ण और मार्ग दर्शक बन जाती है । अतैव समर्थ को काफी सावधान एवं चौकस रहना चाहिए । **
** दुष्ट चाहे जितना प्रबल हो , उसकी प्रबल से प्रबल दुष्टता साधु के लिए रुकावट बन सकती है क्षण मात्र के लिए , सदा के लिए नहीं । **
** दुष्ट की दुष्टता नाग का वह विष है जो शिव के लिए अमृत है , लेकिन आम जीवन के लिए मौत है । **
* जिनका साथी अच्छी पुस्तकें हो उन्हे दूसरो का मार्ग दर्शन की जरूरत नहीं । तथा जो स्वयं का साथी हो उन्हे किसी की जरूरत नहीं । **
** मधुमक्खी जैसे हजार जगहों से सत निकाल कर मधु बनाती है , वैसे ही गुणी समग्र विश्व से सत्व निकाल कर गुण , विचार , ज्ञान वगैरह । **
** धातु समय के साथ अपनी चमक खोती है । सोना समय के साथ अपनी चमक कायम रखता है । परंतु गुण समय के साथ और परिपक्व होता है । **
** बहिश्त में पैगम्बर ने खुदा से कहा , ठीक उसी समय स्वर्ग में भक्त ने भगवान से कहा , ठीक उसी समय देवदूत ने ईश्वर से कहा , ठीक उसी समय पृथ्वी पर हैवान ने इन्सान से कहा -- " अयोध्या की बाबरी मस्जिद टूट गयी " -- सबका जवाब था -- " यदि हमारा वश चले तो संसार के सभी मंदिर , मस्जिद , गिरजा , गुरूद्वरा तोड़कर एक कर दें । **
** समय पर काम आये वही स्वजन है । तथा जिनके कारण आत्मा तकलीफ में हो वही दुर्जन है । **
** उर्जा का रूपांतर एवं स्थानान्तरण ने प्रकृति पैदा की ; प्रकृति ने ब्रह्म , ग्रह और नक्षत्र इत्यादि ; ब्रह्म , ग्रह और नक्षत्र ने जीव ; जीव ने पुन्यात्मा और दुरात्मा ; और ये दोनो कमश: मनुज एवं दनुज ; तथा मनुज और दनुज ने सभ्यता , असभ्यता , देश , समाज इत्यादि ।
ये सृष्टि का क्रम है । **
** दुर्जन अपनी दुर्जनाता से कभी नहीं थकता । उसका मुख्य कर्म सज्जन को तकलीफ देना ही है । क्योकि दुर्विचार का लक्ष्य एक ही होता है , और वह है विनाश । अतैव दुर्जनों में एका सज्जनों की तुलना में सरल है । विद्वानो में मतभेद होता है , क्योकि ज्ञान अनेक है ।
लेकिन दुर्जनों का एका बालू की भीत है जो हल्का झटका भी नहीं सह पाती , जल्द गिर जाती है । परंतु विद्वानों की अनेकता में भी एकता है । **
** सावन की बून्दों जैसा कितने बिचार आते हैं और जाते हैं । जो बुलबुला बनकर फूट गये वे लुप्त हो गये । तथा जो जमा हो गये वे काम आते हैं , प्यास बुझाते हैं , ज्ञान बढ़ाते हैं । **
** क्या , कौन , कहाँ एवं कैसे से बुद्धि निर्मित है । जिस दिन क्या , कौन , कहाँ और कैसे का अंत हो जायेगा उस दिन बुद्धि का भी अंत हो जायेगा , तब मानव का भी अंत हो जायेगा । और यह सुन्दर संसार निरस एवं निष्क्रिय हो जायेगा । **
** एक तरह से देखा जाय तो विश्व पागल है --कोई थोड़ा है , तो कोई ज्यादा । इस समाज का जीव उस समाज के लिए पागल है , उस चीज के लिए पागल है , उस ज्ञान के लिए पागल है , तथा पागल करने के लिए पागल है ।
और जो किसी के लिए पागल नहीं ; वह स्थिर , अचल , अक्षर , प्रशांत , अनंत , सर्वव्यापी , विश्व संचालक , परब्रह् परमेश्वर है जो निराकार होते हुए भी अनुभूत है । **
** पागल संज्ञा , सर्वानाम नहीं विशेषण है ।पागल का शाब्दिक अर्थ मूर्ख , मतिछिन्न , गंवार , हैवान और उदंड है ; तो विशेष अर्थ पंडित , विद्वान और भगवान है -- जैसे -
कृष्ण पागल थे -- राधा के लिए ,
पांडव -- विजय के लिए ,
मीरा -- कृष्ण के लिए ,
गाँधी -- स्वतंत्रता के लिए ,
आइन्सटिन -- अनुसंधान के लिए,
खुसरू -- संगीत के लिए ,
गालिब -- शायरी के लिए ,
और मैं पागल हूँ " मैं " के लिए वगैरह । **
** जिस प्रकार बरात बिदा हो जाने पर एक बोझ हट जाने के बाद भी द्वार उदास हो जाता है , काँटा निकल जाने के बाद भी दर्द की टीस बनी रहती है , वैसा ही मन है , जो कभी कभी बिन कारण उदास , चिन्तित हो जाता है ।
** जैसे रंगीन गिलास पानी को रंगीन दिखाता है , गंदा गिलास पानी को गंदा कर देता है , सही मापक सही मान देता है , गलत मापक गलत मान देता है , वैसा ही समाचार माध्यम है , जैसा होगा वैसा समाज बनेगा । **
** कुछ लोगों का मत है कि जैसा समाज होगा वैसा समाचार माध्यम लिखेगा ; मेरे विचार से समाज समाचार माध्यम एवं साहित्य नहीं बनाता , बल्कि वे समाज का निर्माण करते हैं , क्योकि वे बुध्दिजीवी हैं तथा समाज परजीवी । वे अगुवा हैं तथा ये पिछलगा । वे चीनी हैं और ये मिठाई तथा प्रशासन हलवाई । **
** समाज गाड़ी है तो बुध्दिजीवी घोड़ा तथा प्रशासन सारथी । ये दोनो की कुशलता कुशल समाज का द्योतक है । **
** प्राय: गणतंत्र में यह पाया जाता है कि अधिकार के प्रति लोग ज्यादा चिंतित तथा चौकस रहते हैं । जबकि उन्हें कर्त्तब्य के प्रति लड़ना चाहिए । क्योकि अधिकार संघर्ष बढ़ाता है , उच्छृंखल बनाता है । तथा कर्त्तब्य अनुशासन लाता है , उन्नत बनाता है । **
( स्वरचित पुस्तक " विचार से )
क्रमशः
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार ,भारत
Mobile 6201400759
E-mail er.pashupati57@gmail.com
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