इंजीनियर पशुपतिनाथ चिंतनशील मुद्रा में |
कोटेशन
विचार ( १ )
रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
** कोई कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं , नहीं कोई ईश्वर या खुदा है । किसी को महत्वपूर्ण या भगवान बनाती है मान्यतता , और मान्यता और कुछ नहीं लोकमत है ।। **
** लोकमत अपना कर्तब्य तथा मत को विश्व पटल पर प्रस्तुत कर प्राप्त की गयी प्रशंसा का अंश है । यह अंश जितना बड़ा होगा वह उतना बडा़ तथा महान है । **
** अगर अंको में देखा जाय तो विद्वानो तथा महानो की प्रशंसा का अंक मूर्खों तथा साधारण पुरुषो की प्रशंसा के अंक से ज्यादा होता है ।
इसलिए एक विद्वान तथा महान् द्वारा की गयी किसी की प्रशंसा का महत्व ज्यादा होता है । यह सौ , हजार जन की प्रशंसा के बराबर होता है । **
** दुष्ट और दुष्टता उत्तेजना पैदा करते हैं । उत्तेजना विवेक नष्ट करता है । अपना विवेक अनुसार कार्य करना ही सर्वोत्तम उपाय है । **
** किसी की सफलता उसके कर्मो का द्योतक है ।और कर्म ; उसके मन , इच्छा और मस्तिष्क में उपजे बिचारों का । और मन , इच्छा , बिचार उसके चारो ओर के वातावरण , वातावरण को देखने का नजरिया एवं अध्ययन मनन का । **
** वैसे तो मानसिक अस्थिरता का कोई निदान नहीं , लेकिन सिलसिलवार कार्य , समय पर कार्य , पूर्व नियोजित कार्य , शठ संगत परित्याग तथा फालतू बातों कों उपेक्षित कर के चलना दो तिहाई निदान है । **
** लोग जितना योजना बनाने पर ध्यान देते , उतना ही यदि उसके कार्यान्वयन पर दे तो लाभ अधिक होता ।**
** जिवन में किसी क्षण , जगह ,आवस्था में शिथिलता निराशा का ही द्योत्तक है । तथा यह सफलता , सुख , समृध्दि को दूर ही करता है । **
** योजना तथा समय की माँग में तालमेल हो तो वह सही है । यदि दोनो की दिशा दो हो तो अराजकता पैदा होती है । **
** आवश्यकता पैसा का दास है ; पैसा सही योोजना का ; और सही योयना समय की माँग तथा कार्यान्वयन का । **
** आयु , विचार एवं इच्छा मन पर निर्भर है । तथा मन वातावरण पर । **
** समय की मांग , अपना सामर्थ्य तथा अपना मन के अनुसार कार्य करना ही सर्वोत्तम रास्ता है । **
** प्रारब्ध तथा कर्म में किसे चुना जाय -- तो कर्म को -- क्योंकि प्रारब्ध ईश्वरीय है -- शायद अचल भी और अपना वश से बाहर । लेकिन कर्म हस्ताधिन है । अत: अपना पूरा ध्यान , शक्ति से कर्म करना सर्वोत्तम रास्ता है । **
** अपनी योजना , अपना विचार से काम करने पर यदि असफलता भी मिले तो भी यह दूसरों से बेहतर है , क्योंकि इसमें सुधार की गुंजाइस है , तथा दूसरो में नहीं है।**
** व्याकरण भाषा का संविधान है , और सभ्यता समाज का ।**
** किसी वस्तु ( पदार्थ ) की उत्पत्ति का कारण प्रकाश , ध्वनि एवं ताप है । तथा किसी भी वस्तु का पूर्ण विनाश से यहीं तीन प्राप्त होता है । **
** प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक तरंग होता है ।वही उसकी आत्मा है , वही उसकी गतिशीलता है । यदि यह तरंग क्षीण हो जाय तो वह निराश हो जाता है । यदि यह तरंग लुप्त हो जाय तो उसकी मृत्यु हो जाती है । संगीत यही तरंग उत्पन्न करता है । इसलिए व्यक्ति अपने मन के अनुसार संगीत पसंद करता है । **
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें