मंगलवार, 3 मई 2022

विचार ( भाग १ )


इंजीनियर पशुपतिनाथ चिंतनशील मुद्रा में


 कोटेशन                  

 विचार  ( १ )

रचनाकार - इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद              

  ** कोई कुछ भी महत्वपूर्ण  नहीं , नहीं कोई ईश्वर या खुदा है । किसी को महत्वपूर्ण या भगवान बनाती है मान्यतता , और मान्यता और कुछ नहीं लोकमत है ।। **


** लोकमत अपना कर्तब्य तथा मत को विश्व  पटल पर प्रस्तुत कर प्राप्त की गयी प्रशंसा का अंश है । यह अंश जितना बड़ा होगा वह उतना बडा़ तथा महान है । **



** अगर अंको में देखा जाय तो विद्वानो  तथा महानो की प्रशंसा का अंक मूर्खों तथा साधारण पुरुषो की प्रशंसा के अंक से ज्यादा होता है ।
इसलिए एक विद्वान तथा महान् द्वारा की गयी किसी की प्रशंसा का महत्व ज्यादा  होता है । यह सौ , हजार जन की प्रशंसा के बराबर होता है । **



** दुष्ट और दुष्टता उत्तेजना पैदा करते हैं । उत्तेजना विवेक नष्ट करता है । अपना विवेक अनुसार कार्य करना ही सर्वोत्तम उपाय है । **


** किसी की सफलता उसके कर्मो का द्योतक है ।और कर्म ; उसके मन , इच्छा और मस्तिष्क में उपजे बिचारों का । और मन , इच्छा , बिचार  उसके चारो ओर के वातावरण , वातावरण को देखने का नजरिया एवं अध्ययन मनन का । **


** वैसे तो मानसिक अस्थिरता का कोई निदान नहीं , लेकिन सिलसिलवार कार्य , समय पर कार्य , पूर्व नियोजित कार्य , शठ संगत परित्याग तथा फालतू बातों कों उपेक्षित कर के चलना दो तिहाई निदान है । **

** लोग जितना योजना बनाने पर ध्यान देते , उतना ही यदि उसके कार्यान्वयन पर दे तो लाभ अधिक होता ।**


** जिवन में किसी क्षण , जगह ,आवस्था में शिथिलता निराशा का ही द्योत्तक है । तथा यह सफलता , सुख , समृध्दि को दूर ही करता है । **


** योजना तथा समय की माँग में तालमेल हो तो वह सही है । यदि दोनो की दिशा दो हो तो अराजकता पैदा होती है । **


** आवश्यकता पैसा का दास है ; पैसा सही योोजना का ; और सही योयना समय की माँग तथा कार्यान्वयन का । **


** आयु , विचार एवं इच्छा मन पर निर्भर है । था मन वातावरण पर । **


** समय की मांग , अपना सामर्थ्य तथा अपना मन के अनुसार कार्य करना ही सर्वोत्तम रास्ता है । **


** प्रारब्ध तथा कर्म में किसे चुना जाय -- तो कर्म को -- क्योंकि प्रारब्ध ईश्वरीय है -- शायद अचल भी और अपना वश से बाहर । लेकिन कर्म हस्ताधिन है । अत: अपना पूरा ध्यान , शक्ति से कर्म करना सर्वोत्तम रास्ता है । **


** अपनी योजना , अपना विचार से काम करने पर यदि असफलता भी मिले तो भी यह दूसरों से बेहतर है , क्योंकि इसमें सुधार की गुंजाइस है , तथा दूसरो में नहीं है।**


** व्याकरण भाषा का संविधान है , और सभ्यता समाज का ।**


** किसी वस्तु ( पदार्थ ) की उत्पत्ति का कारण प्रकाश , ध्वनि एवं ताप है । तथा किसी भी वस्तु का पूर्ण विनाश से यहीं तीन प्राप्त होता है । **


** प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक तरंग होता है ।वही उसकी आत्मा है , वही उसकी गतिशीलता है । यदि यह तरंग क्षीण हो जाय तो वह निराश हो जाता है । यदि यह तरंग लुप्त हो जाय तो उसकी मृत्यु हो जाती है ।  संगीत यही तरंग उत्पन्न करता है । इसलिए व्यक्ति अपने मन के अनुसार संगीत पसंद करता है । **

           

** निराश से निराश व्यक्ति के मन - तरंग के अनुसार संगीत सुना दिया जाय तो उसका जीवन की शक्ति बढ़ जाती है । **


"* बिचार ,मन एवं इच्छा , प्रकाश की तीव्रता , समय तथा वातावरण पर निर्भर करते हैं । यही कारण है कि विभिन्न रंग , जगह और समय में भिन्न विचार , भाव तथा इच्छा उत्पन्न होतें हैं ।**


** मेरे दादा कहते थे कि अगर कोई बारह वर्ष तक झूठ नहीं बोले तो उसके बाद जो कहेगा वह सत्य होगा । कारण , इतने दिनों का अभ्यास उसे इतना अभ्यस्त कर देगा कि वह वही कहेगा जो हो रहा है , हुआ है या होनेवाला है , अथवा बोलेगा ही नहीं , चुप रहेगा । **


** किंवदन्तियाँ एकदम असत्य है ऐसी बात नहीं ,   बल्कि  समयान्तराल में पानी मिलाये दुध सा अशुध्द हो गयी हैं ।** 


** लोकोक्तियाँ , मुहावरा एवं कहावतें समाज रूपी समुद्र मन्थन से निकली रत्न हैं , जो अर्जुन के तीर सा कलेजा और मस्तिष्क में चुभकर अच्छाई के प्रति दर्द उत्पन्न कर सजग करती हैं । **


** भावात्मक सोच ( विचार ) एवं वौध्दिक सोच में किसे यथार्थ माना जाय -- तो वौध्दिक सोच को -- क्योकि जहाँ भावात्मक सोच प्राय: तन्द्रा अवस्था की देन है वहाँ वौध्दिक सोच पूर्णत: सजग एवं तार्किक अवस्था की । **

( स्वरचित पुस्तक " विचार " से )
क्रमशः

इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण ,बिहार ,भारत
Mobile 6201400759
E-mail  er.pashupati57@gmail.com

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Pashupati57.blogspot.com  ( इस  पर click करके आप मेरी  और सभी मेरी रचनाएं पढ़ सकते

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