प्रसन्न मन व्यक्ति
कविता
शीर्षक - मन
रचनाकार- इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
सभी कार्य और सभी कर्म,
सभी क्रियाएं ,सभी धर्म,
सभी यत्न , सभी प्रयत्न,
सभी श्रम , सभी कार्यक्रम ।
विभिन्न कलाएं , सब विद्याएं ,
अतुल ज्ञान , सभी विज्ञान ,
सभी ग्रंथ , सभी वेद पुराण,
विज्ञ , चतुरजन या सज्ञान ।
बाइबल , गीता और कुरान ,
ब्रह्म ज्ञान अथवा ब्रह्मांड ,
भूत, भविष्य और वर्तमान ,
पंडित ,ऋषि या विद्वान ।
इस ब्रह्मांड का एक एक कण ,
धारा पर रत एक एक क्षण ,
सब बातों का एक कथन ,
दुखी न मन हो रहे प्रसन्न ।
अगर न तन में रहता मन ,
जगत विचरता शून्य बन ,
दूजा पेट, प्रथम है मन ,
कर्म रत इस कारण तन ।
विश्व आकर्षण यही मन ,
इसकी सेवा हेतु धन ,
जैसे ही मर जाता मन ,
व्याधि से घिर जाता तन।
योगी होता ध्यान मग्न ,
एक बिंदु पर रहता मन ,
गहरी शांति पाता जन ,
ईश्वर में जब रमता मन ।
मन हेतु सब कार्यकलाप,
गीत ताल संगीत आलाप ,
चमक-दमक सब भोजन अन्न ,
दुखी न मन हो रहे प्रसन्न ।
नियमित क्रिया कार्यकलाप ,
जो है पूरा करता तात ,
नियंत्रित है उसका मन ,
कहलाते ये सज्ञ सज्जन ।
नहीं ज्ञान का है दर्शन ,
अनियमित है उनका मन ,
नहीं नियंत्रित जिसका मन ,
कहलाते ये मूर्ख जन ।
घूमते ए जन पागल बन ,
रचते कलह कालिमा रण ,
शांत है करता सिर्फ मरण ,
ऐसा पागल कलुषित जन।
अच्छी बातें सीख नहीं पाते ,
शांत पुरुष से कलह मचाते ,
इन्हें काल सिखलाता फन ,
सब बातों का एक कथन,
दुखी न मन हो रहे प्रसन्न।
*********समाप्त***********
इंजीनियर पशुपतिनाथ प्रसाद
रोआरी , प चंपारण , बिहार , भारत , पीन 845453
E-mail er.pashupati57@gmail.com
Mobile 6201400759
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